डॉ. सुशील भाटी
अठारवी शताब्दी के मध्य में वर्तमान मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में परीक्षतगढ़ रियासत का उदय हुआ| इस रियासत का संस्थापक जीत सिंह गूजर था| जीत सिंह गूजर को कुछ समकालीन ग्रंथो में जैता गूजर के नाम से भी जाना जाता हैं|
जन्म एवं बाल्यकाल- जीत सिंह गूजर का जन्म ग्राम बम्बावड, वर्तमान जिला गौतम
बुद्ध नगर में नांगडी गूजर परिवार में हुआ था| इनके पिता का नाम बले सिंह था| जीत सिंह के पिता अपने बागी
तेवरों के कारण मुग़ल प्रशासन से टकराव में आ गए थे| सुरक्षा कारणों से बले सिंह
बालक जीत सिंह सहित अपने परिवार को लेकर जाटो के गाँव सैदपुर, बुलंदशहर चले गए| यही जाट परिवार में रहकर जीत सिंह पलकर जवान हुए|1
वंश परिचय- नांगडी गूजर जाति का एक प्रमुख गोत हैं, गौतम बुद्ध नगर
जिले में नांगडी गूजरों की चौरासी थी| वर्तमान में इस क्षेत्र में नांगडी गूजरों के दो
सत्ताईसा / चौबीसी हैं| क्षेत्र के
लोगो के अनुसार इस क्षेत्र के नांगडी गूजर यमुना पार कर पश्चिम में फरीदाबाद
क्षेत्र में स्थित नीमका-तिंगाँव स्थान से आये थे| इस क्षेत्र में भी नांगडी
गूजरों की एक चौबीसी हैं, जिसका मुख्यालय नीमका-तिगांव ही हैं| फरीदाबाद क्षेत्र में
गूजरों की एक चौरासी हैं, जिसका
मुखिया इसी नांगडी चौबीसी का मुखिया होता हैं|2 बारहा, चौबीसी, चौरासी गुर्जर प्रतीहारो और उनके
सामंतो की राजस्व-प्रशासनिक ईकाईयां थी| इतिहासकार आर. एस. शर्मा के अनुसार गुर्जर
प्रतीहारो ने अपनी विजयी सेना के सरदारों को उक्त बारहा, चौबीसी, साठा, चौरासी,
तीन सौ साठा राजस्व ईकाइयों में विजित क्षेत्रो को आवंटित किया था| उक्त राजस्व
इकाईयों पर इन सरदारों ने अपने गोत के बंधुओ को जोकि उनके सैनिक थे, बसा दिया था|3 अतः नांगडी
गूजर गुर्जर प्रतीहारो अथवा चौहानों के समय यहाँ बसे| नांगडी सभवतः गुहिल वंश की प्रथम राजधानी नागदा से सबंधित
थे| पूर्व-मध्यकाल
काल में, नागदा को नागहड़ा के नाम से
जाना जाता था| नागहड़ा की स्थापना, 646 ई. में शासन करने वाले सिलादित्य के पिता, नागादित्य ने की
थी। नागहडा 948 तक मेवाड़ के गुहिलो की राजधानी रही, उसके बाद आहड़ को राजधानी बनाया
गया| 1116
में पुनः नागहडा को गुहिलो ने अपनी राजधानी बनाया, जोकि तेरहवी शताब्दी के
आरम्भ में इल्तुतमिश के आक्रमण तक बनी रही| सभवतः नागहडा से निकास
होने के कारण इन्हें नागहडी/ नांगड़ी कहा गया, जैसे
आहड़ से निकले हुए गुहिल आहड़िया कहलाए| इस बात की सम्भावना इसलिए भी अधिक हैं
क्योकि गुहिल गुर्जर प्रतीहारो के सामंत भी थे, जिन्होंने गुर्जर प्रतीहारो के लिए
उत्तर में विजय भी प्राप्त कि थी| मेवाड़
क्षेत्र में गुहिल गुर्जर प्रतीहार मिहिर भोज के सामंत थे| गुहिल राजवंश के शासक
बालादित्य के चाटसू अभिलेख से ज्ञात होता हैं कि उसके पूर्वज हर्षराज ने उत्तर की
विजय के बाद अपने स्वामी भोज को घोड़े भेट कियें| यह
बात तो सिद्ध हैं कि गुर्जर प्रतीहारो के सामंत के रूप में जिन गुहिलो ने उत्तर
भारत की विजय की उनकी राजधानी नागहडा थी| यह भी उल्लेखनीय हैं कि राष्ट्रकूटो के अभिलेखों से यह
साबित होता हैं, कि यह नवी शताब्दी में चित्तोड़ पर गुर्जरों का शासन था| अमोघवर्ष
के 866 ई. के नीलगुन्ड अभिलेख के अनुसार उसके पिता गोविन्द ने चित्रकूट (चित्तोड़)
के गुर्जरों को पराजित किया था|
मुख्य जीवन वृत्त- जीत सिंह गूजर उपनी स्वयं की राजनैतिक सत्ता स्थापित करना
चाहता था| बड़े
होने पर जीत सिंह सैदपुर से अपने गाँव बम्बावड लौट गया और उसने अपनी बगावती
गतिविधियाँ आरम्भ कर दी| दिल्ली नज़दीक होने के कारण उसे अधिक सफलता नहीं मिली अतः
उसने गंगा के घाटो पर अपना प्रभुत्व ज़माना शुरू कर दिया| उसने गंगा के निकट
परीक्षतगढ़ को अपना केंद्र बनाया| वहाँ उसने एक किले का निर्माण कराया|
परीक्षतगढ़ में केन्द्रित
राव जीत सिंह गूजर उर्फ़ जैता गूजर एक ऐसा मुक्त सिपहसालार था जिसने मेरठ क्षेत्र
के रुहेलखण्ड जाने वाले सभी गंगा घाटो पर राजनैतिक और सैन्य नियंत्रण स्थापित कर
लिया था| दादरी क्षेत्र के दरगाही सिंह (भाटी) और कुचेसर
के मगनीराम जाट इसके ख़ास सहयोगी थे| दिल्ली के मुग़ल दरबार को जीत सिंह की सभी
गतिविधियों की खबर थी, परन्तु उसके खिलाफ कोई
कार्यवाही नहीं की गई| एक दिन दक्कन के मुग़ल सूबेदार प्रताप सिंह के एक प्रिय साथी
को जीत सिंह ने मौत के घाट उतार दिया| प्रताप सिंह
मुग़ल बादशाह अहमद शाह (1748-1754) की माँ का चहेता था| प्रताप सिंह एक सेना लेकर गूजरों के दमन के लिए आ धमका|
जीत सिंह ने उसे भीषण युद्ध में पराजित कर मार डाला| उसके बाद दिल्ली के कोतवाल करम अली की अगुआई में एक और मुग़ल सेना को जीत सिंह
के विरूद्ध भेजा गया, उसका भी वही बुरा हश्र हुआ| इसी प्रकार का हश्र कुछ अन्य मुग़ल अभियानों का हुआ| एच आर नेविल्ल ने मेरठ डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर में पृष्ठ संख्या 96 पर जीत सिंह गूजर के उत्थान और दिल्ली के
मुगलों के विरुद्ध उसकी सफलताओ का इस प्रकार बखान किया हैं “The chief Gujars
in this (Meerut) district are those of Parichhatgarh, who sprang into prominence during the
troublous times at the end of the 18th century. The founder of the family was
one Rao Jit Singh who was a notorious leader of banditti. He held command of
all the ghats leading into Rohilkhand and reduced the art of levying blackmail
to a science. Although his depredations were well known to the court of Dehli,
no notice was taken of his conduct until he happened to kill a follower of one
Partab Singh, a subahdar of the Deccan, who was a favourite of the mother of
Ahmad Shah. Partab Singh marched with a force to chastise the Gujars, but was
defeated and slain. Karam Ali, the Kotwal of Dehli, next tried his hands
against Jit Singh but suffered the same fate, as did several others.” 4 इन परिस्थितियों में दिल्ली दरबार ने जीत सिंह से सुलह-संधि
करना ही उचित समझा|
इस समय मुग़ल बादशाह अहमद
शाह और उसके वजीर अवध के नवाब सफदरजंग में तनाव चल रहा था| बादशाह ने सफ़दरजंग को
अवध चले जाने को आदेश दिया और उसके स्थान पर इंतजामउददौल्लाह को वजीर और
गाजीउद्दीन खान उर्फ़ ईमाद उल मुल्क को मीर बख्शी नियुक्त किया| शीघ्र ही इस तनाव ने गृह युद्ध का रूप ले लिया क्योकि सफदरजंग
ने अवध जाने के स्थान पर दिल्ली के बाहर अपनी सेना के साथ डेरा डाल दिया| हालाकि
वह दिल्ली पर हमला बोलने में हिचकिचाता रहा| इस गृह युद्ध
में मराठो और सिक्खों ने बादशाह अहमद शाह का समर्थन किया तो भरतपुर के जाटो ने
सफदरजंग का| 9 मई से लेकर 4 जून तक दोनों पक्षों में झड़पे
चलती रही जिसमे सफ़दर जंग और सूरजमल जाट विजयी रहें| सफ़दर जंग के उकसाने पर राजा सूरजमल के नेतृत्त्व में जाटो ने 9 मई से लेकर 4
जून 1853 तक को पुरानी दिल्ली को जमकर लूटा|
इन परिस्थितियों में मीर बख्शी ईमादउलमुल्क ने सेना की भर्ती की| उसने रोहिल्ला पठान
सरदार नजीब खान को भी आमंत्रित किया, जोकि 15000 पठान सैनिक लेकर 2 जून 1753 को
दिल्ली पहुँच गया| जब नजीब दिल्ली कूच कर रहा था, रास्ते में कतेव्रह (Katewrah) के नवाब फतेहुल्लाह खान ने जीत सिंह
गूजर की दोस्ती नजीबुदौल्लाह से करा दी थी|5 अतः जीत सिंह गूजर
भी नाजीबुदौल्लाह के साथ 2000 गूजर (हिन्दुस्तानी) सैनिको की ब्रिगेड लेकर दिल्ली
आ गया|6 नजीबुदौल्लाह ने जीत सिंह गूजर को मीर बख्शी
ईमादउलमुल्क से मिलवाया| अन्य कुछ सैन्य सरदार भी मुग़ल बादशाह के पक्ष
में दिल्ली पहुँच गए|
इमादुलमुल्क ने सफ़दर जंग के तुर्क सैनिको को अपनी और मिलाने के लिए लालच भी
दिया और उनके घरो पर आक्रामक कार्यवाही कराकर उन पर दवाब भी डाला| इस कार्य में नजीब
खान और जीत सिंह गूजर के सैनिको को सफदरजंग के विरुद्ध लगाया गया| इस कार्यवाही में सफदरजंग के समर्थको के घरो को भी नहीं
बख्शा गया और उन्हें जमकर लूटा गया| लगभग 23 हज़ार
बदख्शी सैनिक पाला बदलकर इमादुल्मुल्क के साथ आ गए|7 इन बदख्शी सैनिको को सिन-दाघ रिसाले का नाम दिया गया| इस प्रकार मुग़ल बादशाह के खेमे में नजीब खान और
जीत सिंह गूजर की उपस्थिति से पलड़ा बादशाह के पक्ष में झुकने लगा|
सफदरजंग का सबसे विश्वसनीय
सेनापति राजेंदर गिरी गुसाई था| इमादुल्मुल्क
ने मराठो को भी अपनी मदद के लिए बुला लिया था| इमादुल्मुल्क ने अंता जी के
नेतृत्त्व वाली मराठा सेना की मदद से राजेन्द्र गुसाई को पराजित कर दिया|
अब नवाब सफ़दरजंग ने राजेंदर
गिरी गुसाईं को सहारनपुर सरकार (ऊपरी दोआब) का गवर्नर बनाया| उसने ऊपरी दोआब के
सभी ज़मींदारो जिसमे बारहा के सैय्यद, पठान और गूजर सम्मिलित थे, से सख्ती से लगान वसूला| ऊपरी दोआब का नियंत्रण लेने के
लिए उसने उसने 15000 सैनिको के साथ मवाना पर हमला कर दिया| खतरे से निबटने के लिए
मीर बख्शी इमादुल्मुल्क ने जीत सिंह गूजर को नियुक्त किया| मुज़फ्फरनगर के निकट हुए युद्ध में जीत सिंह गूजर ने
राजेंदर गिरी को पराजित कर मार गिराया| हरिराम गुप्ता
ने अपनी पुस्तक मराठाज़ एंड पानीपत में पृष्ठ संख्या 310 पर इस निर्णायक युद्ध का वर्णन इस प्रकार किया हैं “Meanwhile Safdar
Jang appointed Rajinder Giri Gosain the governor of Saharanpur and sent him to
ravage and capture the township of Mawana. As its landlord Ahmad Said Khan was
also siding with Najib. Rajinder Girt invested Mawana with 15000 or 16000 soldiers, inflicted a defeat on Saadat
Ali Khan and Mohsin Ali Khan and plundered all their baggage. To meet this
menace Imad commissioned Jit Singh to proceed against Rajinder Giri. Parvarish
Ali Khan and Tahawwar Ali Khan landlords of Barah went out to help Jit Singh.
At that time Rajinder Giri was campaigning against Dilawar Ali Khan rais of
Jalalabad. An encounter took place between Jit Singh and Rajinder Giri near
Muzaffarnagar in which the latter was defeated and killed”8 राजेंदर गिरी गुसाईं के मारे जाने से सफदरजंग निराश हो गया और
युद्ध के प्रति उदासीन हो गया| उसके इस रवैये
को देखते हुए उसके सैनिक पाला बदलने लगे और राजा सूरजमल ने भी मुग़ल बादशाह से सुलह-संधि
की बात शुरू कर दी|
बादशाह ने खुश होकर जीत
सिंह गूजर को राजा का ख़िताब प्रदान कर दिया| मुग़ल बादशाह
अहमद शाह ने जीत सिंह को मेरठ के पूर्वी परगने प्रदान किए| पूर्वी परगने में
शोंदत, दयालपुर, शेओपुर, पूठी आदि ग्राम प्रमुख थे| जीत सिंह गूजर के प्रमुख साथियों दरगाही सिंह गूजर को दादरी परगना, कुचेसर के
मगनीराम जाट को सियाना, पूठ और फरीदा के परगने प्रदान किए गए, हालाकि ये क्षेत्र
पहले ही इनके कब्ज़े में थे| एच आर नेविल्ल द्वारा
लिखित मेरठ डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर इस घटना को पृष्ठ संख्या 96 पर इस प्रकार वर्णित
करता हैं “Accordingly, the Emperor summoned Jit Singh and other Gujar leaders to
Dehli, and gave them authority over the country that they held on condition
that they should prevent others from thieving. Thus, Dargahi Singh obtained
Dadri and the neighbouring lands; Mangni Ram, the Jat leader of Kuchesar,
received Siyana, Puth and
Farida; and Jit Singh obtained possession of the eastern parganas of this
district.”9
1739 से 1761 तक मुग़ल
साम्राज्य की राजधानी दिल्ली 9 गर्दियो का शिकार बनी| 9 गर्दियो का तात्पर्य 9
लूटमार के सिलसिलो से हैं, जोकि 9 भिन्न शासको अथवा जाति समूहों के द्वारा संचालित
किए गए| जिसमे एक बार राव जीत सिंह की अगुआई में गूजरों
ने दिल्ली को लूटा जिसे गूजर गर्दी का नाम दिया गया| नजीब खान के साथ दिल्ली में
मुग़ल सेना के साथ तैनाती के दौरान 1753 के अगस्त-सितम्बर के माह में सैनिको को
तनख्वाह नहीं मिली तब गूजर और रोहिल्ला सैनिको ने दिल्ली को लूट लिया था| इसे गूजर गर्दी कहा गया|10
1754 में जीत सिंह गूजर ने
जवालापुर के मुस्लिम राजपूतो के विरुद्ध अभियान किया जिन्होने पवित्र स्थल हरद्वार
के ब्राह्मणों को आतंकित कर रखा था|11 हरिद्वार क्षेत्र में अपना
प्रभाव बनाये रखने के लिए जीत सिंह अथवा उसके उत्तराधिकारियो ने कनखल में एक गढ़ी
का निर्माण किया| जहाँ कालांतर में उसके एक
उत्तराधिकारी राजा नैन सिंह ने अपने भाई अजब सिंह को तैनात किया था|
नजीबुदौल्लाह के कठिन समय
में जीत सिंह गूजर की मित्रता बहुत काम आई| कुछ समय बाद मराठो का दिल्ली और ऊपरी
दोआब में प्रभाव बढ़ा| ऊपरी दोआब में मराठा सरदार
गोविन्दपंत बुंदेले सक्रिय था, वह जीत सिंह गूजर और क्षेत्र के अन्य गुर्जर सरदारों के साथ मित्रता नहीं कर
सका,12 उसने उनकी उपेक्षा की तथा उनके आय के स्त्रोतों पर रोक लगा दी| उसने जीत सिंह गूजर पर असहनीय भारी नजराना लगा दिया, अतः
जीत सिंह गूजर मानसिक रूप से मराठो से अलग हो गया| जीत सिंह गूजर नजीबुदौल्लाह का मित्र और सहयोगी बना रहा| नतीजा यह हुआ कि पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठो को इस
क्षेत्र से उपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं हुआ| पानीपत के किसी भी युद्ध में, ऊपरी दोआब यह क्षेत्र सेना के लिए सैनिको के साथ-साथ खाद्यान
भी उपलब्ध कराता था| 14 जनवरी 1761 को पानीपत
के तीसरी लड़ाई में खाद्यान की कमी मराठो की हार का एक प्रमुख कारण थी|
क्षेत्र विस्तार और प्रभाव
क्षेत्र – जीत सिंह की रियासत अथवा
मुकर्रदारी में आज के मेरठ एवं हापुड़ जिले का समस्त पूर्वी क्षेत्र आता था|
बहसूमा, हस्तिनापुर, मवाना, दादरी (मंडोरा), किला- परीक्षतगढ़ किठोर, गोहरा आलमगीरपुर और गढ़ मुक्तेश्वर
क्षेत्र सम्मिलित थे| जीत सिंह रुहेलखण्ड
जानेवाले सभी गंगा घाटो से कर वसूलता था| जीत सिंह के राज्य
क्षेत्र की उत्तरी सीमा पर मीरापुर क्षेत्र उसके मित्र कतेव्रह (Katewrah) के नवाब फतेहुल्लाह खान काबिज़ था| वही दक्षिण में गढ़ मुक्तेश्वर से लगे सियाना, पूठ और फरीदा
के परगने उसके प्रिय साथी मगनीराम जाट के पास थे| इस प्रकार रुहेलखण्ड से सटे गंगा क्षेत्र पर जीत सिंह और उसके मित्रो का
कब्ज़ा था| जीत सिंह गूजर एक महान सेनापति थे, जिन्होने
मुग़ल सत्ता को चुनौती देते हुए अपने पराक्रम के बल पर मुगलों से परीक्षतगढ़ रियासत/
मुकर्र्दारी प्राप्त कर ऊपरी दोआब में अपना एक प्रभाव क्षेत्र स्थापित किया| जीत सिंह ने किठौर
में, को जोकि सरावा का एक टप्पा था, को अलग कर कर दिया|13 किठौर में उन्होंने
या उनके उत्तराधिकारी राजा नैन सिंह ने एक गढ़ी का निर्माण भी करवाया था|14 किठौर कस्बे का
यह किला किठौर टप्पे का मुख्यालय था|15
निष्कर्ष- इस प्रकार हम देखते हैं कि अठारवी शताब्दी में गंगा यमुना
के ऊपरी दोआब में जीत सिंह गूजर एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में उभरा| अपने
सैन्य पराक्रम, कूटनीति और संगठन शक्ति के आधार पर ऊपरी दोआब में गंगा और यमुना के
घाटो पर अपना आधिपत्य जमा लिया| उसने प्रताप
सिंह और करम अली के नेतृत्त्व में अपने विरुद्ध भेजी गई शाही मुग़ल सेनाओ को पराजित
किया, और दिल्ली दरबार को अपने समक्ष समझोता करने के लिए विवश कर दिया| उसने
कुचेसर के मगनी राम जाट और दादरी क्षेत्र दरगाही सिंह भाटी का सहयोग प्राप्त किया| ना केवल उसने अपने लिए बल्कि अपने उक्त दोनों सहयोगियों के
लिए भी मुग़ल दरबार से बड़ी रियासते प्राप्त करने में सफलता हासिल की| रोहिल्ला सरदार नजीब खान के सहयोगी के रूप में उसने दिल्ली
दरबार की मुगलिया राजनीती और गृहयुद्ध में सफल हस्तक्षेप किया| आवश्यकता पड़ने पर उसने मुग़ल राजधानी दिल्ली को लूटा भी,
जिसे इतिहास में गूजर गर्दी कहा गया| राजा के तौर
पर उसने अपनी रियासत का पुनर्गठन किया और अनेक किले और गढ़ियो का निर्माण कराया|
उसकी मृत्यु के बाद गुलाब
सिंह और फिर नैन सिंह उसके उत्तराधिकारी बने जिन्होंने जीत सिंह के नक़्शे-कदम पर
ऊपरी दोआब और दिल्ली की राजनीती में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई|
सन्दर्भ-
1. दया राम वर्मा, गुर्जर जाति का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, दिल्ली, 2008, पृष्ठ 395-96
2. Sushil Bhati, Khaps of
Haryana, 2017
https://janitihas.blogspot.com/2017/04/khaps-of-haryana.html#google_vignette
3. R S Sharma, Indian
Feudalism, AD 300-1200, Delhi, 1965, P 88-89
4. H. R.
Nevil, Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904, p 96
5. Hari Ram Gupta, Marathas and
Panipat, Panjab University, 1961, p 310
6. Jadunath Sarkar, Fall of the
Mughal Empire, Vol. 1, Calcutta, 1932, p 485-86
7. वही
8. Hari Ram Gupta,
Marathas and Panipat, Panjab University, 1961, p 310
9. H. R. Nevil,
Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904, p 96
10.
Hari Ram Gupta, Marathas and Panipat, Panjab
University, 1961, p 331
11.
वही, पृष्ठ 310
12.
वही पृष्ठ 316-317
13. Edwin T
Atkinson, Statistical Descriptive and Historical account o
f the North-Western
Provinces of India, Vol II, Part 1, Allahabad, 1875, P 198
14.
वही, पृष्ठ 200
15.
H. R. Nevil, Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904,
p 256
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