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Tuesday, September 22, 2015

कन्बी/कुनबी/कुर्मी जाति पुंज और गूजर

डा.सुशील भाटी

( Key words- Gurjara, Kurmi, Kunbi, kanbi,  Leva, kadwa, Patidar, caste-cluster, )

मूल विषय पर आने से पहले भारतीय जाति व्यवस्था के अंग- जनजाति, कबीलाई जाति, जाति, जाति पुंज आदि पर चर्चा आवश्यक हैं|

जनजाति (Tribe) अथवा कबीले का अर्थ हैं एक ही कुल वंश के विस्तार से निर्मित अंतर्विवाही जन समूह| जनजाति अथवा कबीला एक ही पूर्वज की संतान माना जाता हैं, जोकि वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता हैं| रक्त संबंधो पर आधारित सामाजिक समानता और भाईचारा जनजातियो की खास विशेषता होती हैं| भील, मुंडा, संथाल, गोंड आदि जनजातियों के उदहारण हैं|

कबीलाई जाति (Tribal caste) वो जातिया हैं, जो मूल रूप से कबीले हैं, किन्तु भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के प्रभाव में एक जाति बन गए, जैसे- जाट, गूजर, अहीर, मेव आदि| इन जातियों को हरबर्ट रिजले ने 1901 की भारतीय जनगणना में कबीलाई जाति (Tribal caste) कहा हैं|

जाति (Caste) एक अंतर्विवाही समूह के साथ-साथ एक प्रस्थिति (Status group) और एक व्यवसायी समूह भी हैं| किसी भी अंतर्विवाही समूह का एक पैत्रक व्यवसाय होना, जाति की खास विशेषता हैं| जैसे ब्राह्मण, बनिया, लोहार, कुम्हार, धुना, जुलाहा, तेली आदि जातियों का अपना एक पैत्रक व्यवसाय हैं|

एक ही भाषा क्षेत्र में ऐसी कई जातिया पाई जाती हैं जिनका एक ही व्यवसाय होता हैं| ऐसी जातियों के समूह को जाति पुंज (Caste cluster) कहते हैं| सामान्यतः एक सी प्रस्थिति और एक ही व्यवसाय में लगी जातियों के समूह को अक्सर एक ही नाम दे दिया जाता हैं जो अक्सर उनके व्यवसाय का नाम होता हैं| जैसे- उत्तर भारत में खाती, धीमान और जांगिड सभी बढ़ईगिरि का व्यवसाय करते हैं और सभी बढ़ई कहलाते हैं| जबकि वास्तविकता में वे अभी अलग- अलग अंतर्विवाही जातिया हैं| इसी प्रकार उत्तराखंड में सैनी नामक जाति पुंज में गोला और भगीरथी दो जातिया हैं| उत्तर प्रदेश में बनिया जाति पुंज में अग्रवाल, रस्तोगी और गिन्दोडिया आदि जातिया हैं| एक व्यवसाय से जुडी भिन्न जातियों का एक साँझा नाम उनके एक से व्यवसाय और क्षेत्रीय जाति सोपान क्रम में उनके एक से स्थान (Status) का धोतक हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|

कन्बी शब्द की उत्पत्ति कुटुम्बिन शब्द से हुई हैं| कुटुम्बिन शब्द का प्रयोग पूर्व मध्यकालीन गुजरात में भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसान के लिए किया गया हैं| कुटुम्बिन/कुटुम्बी का अर्थ हैं किसान परिवार का मुखिया| पूर्व मध्यकालीन भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसानो/कुटुम्बिनो की संख्या उनके नाम तथा उनके द्वारा जोती जानेवाली भूमि की माप अंकित की जाती थी| 


कन्बी, कुनबी अथवा कुर्मी भी एक जाति नहीं एक बल्कि जाति पुंज हैं| कन्बी, कुनबी और कुर्मी,  किसान जाति पुंज के क्षेत्रीय नाम हैं, जिसको हिन्दी में कुरमी, गुजराती में कन्बी तथा मराठी में कुनबी कहा जाता हैं| प्रोफेसर जे.एफ.हेविट- कुरमी (Kurmis) कुरमबस (Kurambas), कुदमबस(Kudambas), कुदम्बीस(Kudambis) भारत की सिंचित कृषि करने वाली महान जातियां थी|


वस्तुतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) में खेतीहर जातियों के वर्ग समूह को कन्बी कहते हैं| वस्तुतः इसमें लेवा, कड़वा, अन्जने, मतिया आदि पृथक जातिया हैं| कन्बी जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के गुजरात में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|  जिनमे लेवा और कड़वा गूजर जनजाति का हिस्सा हैं| हालाकि सामान्य रूप से इन्हें वहाँ गूजर नहीं कहा जाता| किन्तु इनके बुजुर्गो और भाटो का मानना हैं कि ये पंजाब से आये हुए गूजर हैं| जबकि अन्जने,  मतिया आदि कन्बी जातियो की भिन्न उत्पत्ति हैं|

मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) में  खेतीहर जातियों के वर्ग को कुनबी कहते हैं| यहाँ के कुनबी नामक जाति पुंज में तिरोले, माना, गूजर आदि जातिया हैं| मराठी समाज में इन्हें तिरोले कुनबी, माना कुनबी, गूजर कुनबी कहा जाता हैं| मराठी में समाज लेवा और कड़वा दोनों जातियों को गूजर कहा जाता हैं| इनके गुजराती लेवा और कड़वाओ से परंपरागत रूप से विवाह भी होते हैं| अतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) के लेवा, कड़वा और मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) के लेवा, कड़वा गूजर एक ही हैं| जबकि मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) तिरोले और माना कुनबी भिन्न उत्पत्ति की पृथक जाति हैं| दक्षिण भारत के मराठी समाज में यह आम धारणा हैं कि लेवा और कड़वा सहित सभी गूजर कुनबी उत्तर से आये हैं| जबकि तिरोले और माना स्थानीय उत्पत्ति के माने जाते हैं|

हिंदी भाषी मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग में भी लेवा गूजर मिलते हैं| होशंगाबाद में इन्हें मून्डले या रेवे गूजर कहते हैं| खानदेश गजेटियर के अनुसार रेवा गूजर और गुजरात के लेवा गूजर एक ही हैं| मध्य प्रदेश के लेवा गूजर कन्बी या कुनबी भी नहीं कहे जाते| मध्य प्रदेश के लेवा गूजर, महाराष्ट्र के लेवा और कड़वा गूजर कुनबी तथा गुजरात के लेवा कड़वा एक ही हैं क्योकि इनमे परंपरागत रूप से शादी ब्याह भी होते हैं| गुजरात का लेवा गुजरात के अन्जने,  मतिया आदि कन्बी जातियो या पूरे भारत की किसी भी अन्य कुनबी या कुर्मी जाति में शादी-ब्याह नहीं करते बल्कि मराठी लेवा कड़वा गूजर कुनबियो और मध्य प्रदेश के लेवा गूजरों से इनके ब्याह-शादी आम बात हैं|

हिंदी भाषी क्षेत्र के पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में खेतीहर जातियों के वर्ग को कुर्मी कहते हैं|

उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति पुंज की प्रमुख जातिया -  बैसवाल, बर्दिया, गंगा परी, जैसवार, कनौजिया, खरबिंद, पथरिया, पथरिया,  सैंथवार, सिंगरौर अकेरिथिया, अखवार, अथरिया, , अवधिया, अन्दर, इलाहाबादी, हार्डिया, उमराओ, सचान, कटियारकाचीसा, कर्जवा, कोयरी, कुरुम, खर्चवाह, लापरिबंध, भूर, खरबिंद, खुरसिया, हैंड्सरी, गेसरी, गंगवारगोटी, गोंडल, घिनाला, दखिनहा चनौ, चन्दौर, चंद्रौल, चंदपुराही, जरिया, जरुहार, तरमल, बाथम, बह्मनिआ, जादौन, जदन,  जैसवार, झामैया, झरी, ठकुरिहा, दिनद्वर्, डेल्फोरा, देसी, निरंजन, झुकारसी, महेसरी, पतरिहा, पतवार, बेसरिया, बर्दिया, पछल, बोटा, संसावं, मघैया, रमैया आदि हैं| इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के उत्तर प्रदेश में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|  

बिहार में कुर्मी जाति पुंज में इनसे भिन्न जातिया हैं- बिहार -  जयसवार,  अवधिया,. समसवार, घमैला, दोजवार, धानुक,  प्रसाद,  राम,  लाल, राय, मंगल, तैलंग, अभात, कैवर्तचपरिया,  विश्वास, शरण, मूलवासी, घनमैला, कोचैसा, सैंठवारव्याहुत, ग्राई, धीजमा, घोड़चढ़े, भगत, पटनवार, मथुरवार,  बड़वार, शंखवार, बसरियार, टिंडवार, शाक्य, मोर्य, आदि| इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के बिहार क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|

इस प्रकार हम देखते हैं हिंदी भाषी क्षेत्र के पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश और बिहार  में खेतीहर जातियों के कुर्मी जाति पुंज में गूजर मूल के लेवा और कड़वा नहीं मिलते| मध्य प्रदेश में कुर्मी जाति पुंज तो हैं परन्तु महाराष्ट्र और गुजरात के तरह यहाँ लेवा गूजर  कुर्मी या अन्य किसी किसान जाति पुंज का हिस्सा नहीं हैं| संभवतः यहाँ इन्होने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू. पी. आदि के गूजर की तरह अपना सैनिक व्यवसाय और राजसी तौर-तरीको को पूरी तरह नहीं छोड़ा था| जबकि महाराष्ट्र और गुजरात में लेवा और कड़वा पूरी तरीके से साधारण किसान बन गए थे, अतः वो वहाँ किसान जातियों के पुंज का हिस्सा बन गए|

अतः भिन्न भाषा क्षेत्रो में किसान जातियों के पुंज में अलग अलग जातिया हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं| कुनबी अथवा कुर्मी जाति पुंज के अंतर्गत आने वाली अधिकांश जातिया भारतीय अनुसूचित जनजातिया की तरह प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड नस्ल की हैं| प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड मूल के लोग मध्य कद काठी के श्याम वर्ण के लोग हैं| अधिकांश भारतीय अनुसूचित जनजातिया भी  प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड नस्ल की हैं, जैसे- भील, शबर, संथाल आदि| हरबर्ट रिजले ने 1901 की भारतीय जनगणना में गूजर जाति को इंडो-आर्य नस्ल का बताया हैं| कन्बी/कुनबी/कुर्मी जाति पुंजो के अन्य जातियों से भिन्न गुजरात के लेवा और कड़वा पंजाब से आये हुए गूजर हैं| इनका रंग-रूप और उनकी पगड़ी, उनके खेती का तरीका इस बात की पुष्टि करता हैं|

बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 2 के अनुसार गुजरात के लेवा तथा कड़वा/खंडवा कन्बी दोनों के लिए इस बात को ज़ाहिर करने का विशेष महत्व हैं, जोकि गुजरात में अब तक सावधानीपूर्वक छिपा कर रखा गया था, कि उत्तरी गुजरात और भडोच में रहने वाली पाटीदारो और कन्बियो की बड़ी आबादी वंशक्रम में गूजर हैं| उत्तरी गुजरात के कन्बी और पंजाब के गूजरो को द्वारका (गुजरात) में इस बात से संतुष्ट होते देखा जाना कोई अपवाद नहीं हैं हैं कि दोनों एक ही मूल(stock) के हैं| पाटीदार जाति के जूनागढ़ निवासी हिम्मतभाई अजा भाई वहीवतदार का 1889 में जूनागढ़ में दिया गया यह वक्तव्य कन्बियो और पाटीदारों की गूजर उत्त्पत्ति के प्रश्न को अंतिम रूप से तय करता हुए प्रतीत होता हैं- मैं संतुष्ट हूँ कि गुजरात के कन्बी और पाटीदार, लेवा और खंडवा दोनों, गूजर हैं| हमारे पास इस सम्बन्ध में लिखित कुछ भी नहीं हैं परन्तु हमारे भाट और परिवारों का लेखा-जोखा रखने वाले इसे जानते हैं, लेवा और खंडवा दोनों पंजाब से आये हैं, यह बुज़र्गो का कहना हैं| भाटो का कहना हैं कि हमने बीस पीढ़ी पहले पंजाब छोड़ दिया था| एक सूखा हमें गंगा और ज़मुना के बीच की ज़मीन पर ले गया| पन्द्रह पीढ़ी पहले लेवा खानदेश होते हुए अहमदाबाद आये तथा खानदेशी तम्बाकू अपने साथ (गुजरात) लाये| .......सबसे पहले वो चंपानेर आये| हम अभी भी पता कर सकते हैं कि हम पंजाब के गूजर हैं| हमारे जुताई का तरीका एक हैं, हमारा हल एक (जैसा) हैं, हमारी पगड़ी एक (जैसी) हैं, हम एक ही तरीके से खाद का इस्तेमाल करते हैं| हमारे शादी-ब्याह के रिवाज़ एक (जैसे) हैं, दोनों ब्याह के समय तलवार धारण करते हैं| रामचंद्र के दो बेटे थे| लव से लेवा ज़न्मे और कुश से खंडवा| मैंने पंजाब के गूजरों से द्वारका में बात की हैं, उन्होंने बताया कि उनके नरवादारी और भागदारी गांव हैं|


Notes and References

  1. इरावती कर्वे, हिंदू समाज और जाति व्यवस्था, नई दिल्ली, 1975
  2. बॉम्बे गजेटियर, खंड IX , भाग I, 1889
  3. वडोदरा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, अहमदाबाद, 1979, पृ.17
  4. के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
  5. रमाशंकर त्रिपाठी., हिस्ट्री ऑफ एंशिएंट इंडिया, दिल्ली 1987
  6. बॉम्बे गजेटियर, खंड IX भाग II, 1889, पृ.491
  7. मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
  8. डब्लू. पी.सिनक्लेर, रफ नोट्स ओन खानदेश, दी इंडियन एंटीक्वैरी, दिल्ली 1875 पृ. 108-110
  9. खानदेश गजेटियर, XII, पृ.39 बी. एन.पुरी, दी हिस्टरी ऑफ गुर्जर प्रतिहार, नई दिल्ली, 1996
  10. मस्तराम कपूर, सरदार पटेल स्मारक की भूली हुई कहानी, (लेख) अमर उजाला, 4 नवंबर 2000
  11. गायत्री एम. दत्त, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कॉम्पटीशन सक्सेस रिव्यू, जुलाई 1985.
  12.  मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
  13.  के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
  14. http://www.kurmisamajindore.com/our-proud.php
  15. http://moralrenew.com/swe.php?swe=32
  16. आर. वी  रसेल एवं हीरालाल, टराईब एंड कास्ट ऑफ सेन्ट्रल प्रोविंसज, खंड- III, लन्दन, 1916
  17. भारतीय जनगणना 1891- https://en.wikipedia.org/wiki/1891_census_of_India
  18.  खान देश गजेटियर https://gazetteers.maharashtra.gov.in/cultural.maharashtra.gov.in/english/gazetteer/Khandesh%20District/population_race.html#1
                                                                                                                                       (Dr Sushil Bhati)

Thursday, September 3, 2015

पटेल-पाटीदारो की गूजर उत्पत्ति का सिद्धांत

डा. सुशील भाटी
( Key words- Gurjara, Gujjar,  Leva, kadwa, Patidar, kanbi,  Caste-cluster,)

कन्बी जाति जो पाटीदार के नाम से भी जानी जाती हैं, गुजरात की प्रमुख किसान जाति हैं| कन्बी वास्तव में एक जाति नहीं बल्कि किसान जातियों का एक वर्ग अथवा पुंज हैं|1 इनकी संयुक्त आबादी गुजरात के हिन्दुओ के 14.26 प्रतिशत2 हैं| कन्बी नामक इस जाति पुंज में प्रमुख रूप से चार जाति हैं- लेवा, खंडवा, अंजना आदि|3 परंपरागत रूप से ये चारो आपस में विवाह आदि- रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं करते, जोकि किसी जाति की अनिवार्य विशेषता हैं| इसलिए कन्बी शब्द गुजरात में किसी एक जाति के लिए नहीं बल्कि किसान जातियों के वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता हैं जोकि गुजरात के जातीय सोपान क्रम में उनके स्थान को निर्धारित करता हैं|4 एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली जातियों भिन्न-भिन्न उत्पत्ति की होती हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न होते हैं| भारत में होनेवाली जनगणनाओ से पता चलता हैं कि कन्बी/कुनबी शब्द का प्रयोग क्रमश घटता गया हैं|5 इस में धीरे-धीरे सभी कन्बी अपने आपको महाराष्ट्र में मराठा और गुजरात में पाटीदार कहने लगे क्योकि  मराठा और पाटीदार शब्द से अभिजात्यता का भास होता हैं|

कन्बी शब्द की उत्पत्ति कुटुम्बिन शब्द से हुई हैं|6 कुटुम्बिन शब्द का प्रयोग पूर्व मध्यकालीन गुजरात में भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसान के लिए किया गया हैं| कुटुम्बिन/कुटुम्बी का अर्थ हैं किसान परिवार का मुखिया| पूर्व मध्यकालीन भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसानो/कुटुम्बिनो की संख्या उनके नाम तथा उनके द्वारा जोती जानेवाली भूमि की माप अंकित की जाती थी| 

कन्बियो और पाटीदारो के विषय में गुजरात में स्थानीय मान्यता हैं कि वे दो हज़ार साल पहले बाहर से आकर गुजरात में बसे हैं|7

वड़ोदरा गज़टेयर के अनुसार गुजरात के कन्बी अथवा पाटीदार मूल रूप से पंजाब से आये हुए गूजर हैं|8  जिन्होने साबरमती और माही नदियों के बीच की उपजाऊ भूमि चरोतर  पर अधिकार कर लिया और यही बस गए| इस भूमि पर अपने अधिकार को पुख्ता करने के लिए इन्होने स्थानीय शासको से स्थायी पट्टे प्राप्त किये, जिसके कारण से ये पट्टीदार/पाटीदार कहलाने लगे|9

1899 में छपे बॉम्बे गज़टेयर, खंड 9 भाग1 के अनुसार गुजरात के कन्बी अथवा पाटीदार गुर्जरों के श्वेत हूण कबीले (485-542 ) से सम्बंधित हैं, जोकि महान विजेता थे|10 वही आगे बताया गया कि किस प्रकार इन श्वेत हूणो ने कुषाणों (50- 230 ई.) के इतिहास, विरासत और आबादी को आत्मसात कर लिया|

बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 2 के अनुसार उन्नीसवीं शताब्दी के बाद के दशको में, लेवा तथा कड़वा/खंडवा कन्बी, दोनों के लिए, इस बात को दुनिया के सामने ज़ाहिर करने का विशेष महत्व था, जोकि गुजरात में सावधानीपूर्वक छिपा कर रखा गया था, कि उत्तरी गुजरात और भडोच में रहने वाली पाटीदारो और कन्बियो की बड़ी आबादी वंशक्रम में गूजर हैं|11  उस समय उत्तरी गुजरात के कन्बी और पंजाब के गूजरो को द्वारका (गुजरात) में इस बात से संतुष्ट होते देखा जाना कोई अपवाद नहीं था, कि दोनों एक ही मूल(Stock) के हैं|12 पाटीदार जाति के जूनागढ़ निवासी हिम्मतभाई अजा भाई वहीवतदार का 1889 में जूनागढ़ में दिया गया यह वक्तव्य कन्बियो और पाटीदारों की गूजर उत्त्पत्ति के प्रश्न को अंतिम रूप से तय करता हुए प्रतीत होता हैं- मैं संतुष्ट हूँ कि गुजरात के कन्बी और पाटीदार, लेवा और खंडवा दोनों, गूजर हैं| हमारे पास इस सम्बन्ध में लिखित कुछ भी नहीं हैं परन्तु हमारे भाट और परिवारों का लेखा-जोखा रखने वाले इसे जानते हैं, लेवा और खंडवा दोनों पंजाब से आये हैं, यह बुज़र्गो का कहना हैं| भाटो का कहना हैं कि हमने बीस पीढ़ी पहले पंजाब छोड़ दिया था| एक सूखा हमें गंगा और ज़मुना के बीच की ज़मीन पर ले गया| पन्द्रह पीढ़ी पहले लेवा खानदेश होते हुए अहमदाबाद आये तथा खानदेशी तम्बाकू अपने साथ (गुजरात) लाये| .......सबसे पहले वो चंपानेर आये| हम अभी भी पता कर सकते हैं कि हम पंजाब के गूजर हैं| हमारे जुताई का तरीका एक हैं, हमारा हल एक (जैसा) हैं, हमारी पगड़ी एक (जैसी) हैं, हम एक ही तरीके से खाद का इस्तेमाल करते हैं| हमारे शादी-ब्याह के रिवाज़ एक (जैसे) हैं, दोनों ब्याह के समय तलवार धारण करते हैं| रामचंद्र के दो बेटे थे| लव से लेवा ज़न्मे और कुश से खंडवा| मैंने पंजाब के गूजरों से द्वारका में बात की हैं, उन्होंने बताया कि उनके नरवादारी और भागदारी गांव हैं|13

पाटीदार मूलतः गूजर कबीले का अंग हैं इस बात का एक अन्य प्रमाण यह हैं कि गुजरात के पाटीदार और उत्तर भारत का गूजर, दोनों अपना पूर्वज रघु वंश में ज़न्मे  राम के पुत्र लव और कुश को मानते हैं|14 उत्तर भारत के गूजर भी एक हज़ार वर्ष से अधिक समय से अपने कुल का सम्बन्ध राम से जोड़ कर देखते रहे हैं| उत्तर भारत में अंतिम हिंदू साम्रज्य के निर्माता गुर्जर-प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज ने अपने ग्वालियर अभिलेख में अपनी उत्पत्ति भगवान राम के भाई लक्ष्मण से होने का दावा किया हैं|15 इस दावे को तत्कालीन समाज में भी एक मान्यता प्राप्त थी क्योकि  गूजर-प्रतिहारो के दरबारी कवि राजशेखर ने अपने ग्रन्थ कर्पूर मंजरी में गूजर-प्रतिहार सम्राट महिपाल को रघुकुलतिलक और रघुकुल ग्रामिणी कहा हैं|16 राजस्थान और मध्य प्रदेश के गूजर आज भी अपने को राम की संतान मानते हैं तथा लौर और खारी नामक अंतर्विवाही समूहों में विभाजित हैं| लौर गूजर राम के बेटे लव के वंशज और खारी गूजर उनके दूसरे बेटे कुश के वंशज माने जाते हैं| लौर खुद को खारी गूजरो से ऊँचा मानकर उनसे विवाह नहीं करते| इसी प्रकार गुजरात के पाटीदार भी अपने राजस्थान के गूजर भाइयो की तरह दो अंतर्विवाही समूहों लेवा और कड़वा में बटे हैं, जोकि क्रमशः लोर और खारी का ही परिवर्तित रूप हैं| लेवा पाटीदार लोर गूजर की भाति राम के बेटे लव और कड़वा पाटीदार खारी गूजर की भाति कुश की संतान कहे जाते हैं| राजस्थान के गुजरो की तर्ज़ पर ही लेवा अपने को कड़वा पाटीदारो से ऊँचा समझते हैं और उनके साथ विवाह सम्बन्ध नहीं करते|17 अतः राजस्थान के गूजरों और गुजरात के पाटीदारो का राम के कुल से समान उत्पत्ति का दावा और सामान सामाजिक संरचना उनके मूलतः एक ही समुदाय होने का प्रबल प्रमाण हैं|

पाटीदार जाति के जूनागढ़ निवासी हिम्मतभाई अजा भाई वहीवतदार का 1889 में जूनागढ़ में दिए गए उपरोक्त वक्तव्य में कहा गया हैं कि गुजरात के लेवा पाटीदार खानदेश से होते गुजरात आये| लेवा पाटीदारो की आबादी गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग और महाराष्ट्र के खानदेश में भी हैं, और ये यहाँ लेवा गूजर नाम से जाने जाते हैं| यहाँ के लेवा गूजरो और गुजरात के लेवा पाटीदारो के बीच परंपरागत रूप से विवाह सम्बन्ध भी होते हैं18 जो इस बात का प्रमाण हैं कि दोनों मूलतः एक ही जाति हैं|

महाराष्ट्र के खानदेश इलाके में कई प्रकार के गूजर हैं- लेवा, रेवे, दोडे आदि|19 खानदेश के गूजर दसवी शताब्दी में मालवा होते हुए भिनमाल (राजस्थान) से आये थे|20  खानदेश के गूजरों को आज भी याद हैं कि वो बैल गाडियों में सवार होकर मालवा होते हुए भिनमाल से आये थे|21 उपरोक्त कथन के अनुसार गुजरात के पाटीदार खानदेश से गए तो उनका भी आगमन भिनमाल राजस्थान से ही हुआ| चीनी यात्री हेन सांग (629-45 ई.) के अनुसार ‘’भिनमाल सातवी शताब्दी में गुर्जर राज्य गुर्जर देश की राजधानी थी| नक्षत्र विज्ञानी ब्रह्मगुप्त के अनुसार यहाँ का राजा चप वंश (आधुनिक चप राणा) का व्याघ्रमुख था|
राजस्थान के गूजरों में लौर/लेवा गूजरों की उत्त्पत्ति के विषय में एक कथा परंपरा यह भी प्रचलित हैं कि लौहकोट के राजा कनकसेन (कनिष्क 78-101 ई.) ने आधुनिक राजस्थान के इलाको को जीत लिया| कनकसेन/कनिष्क के साथ लौह कोट से आने के कारण वे लौर कहलाये|22

अतः गुजरात के पाटीदारो का इतिहास महारष्ट्र के खानदेश, मालवा, भिनमाल (राजस्थान) होते हुए लाहौर, पंजाब तक आता हैं| गुजरात के पाटीदार पंजाब से आये हैं ऐसी ही उनके भाटो का भी कहना हैं| यही सामाजिक मान्यता भी हैं, इसी वज़ह से मस्तराम कपूर,23 राजमोहन गाँधी, गायत्री एम. दत्त,24 मधु लिमये25 और के. एल. पंजाबी26 आदि लेखकों ने सरदार पटेल को लेवा गूजर जाति का लिखा हैं|


Notes and References

  1. इरावती कर्वे, हिंदू समाज और जाति व्यवस्था, नई दिल्ली, 1975, पृ 18
  2. बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 154 
  3. वही
  4. गुजरात के अलावा महारष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी किसान जातियों के जाति पुंज हैं| महारष्ट्र में किसान जातियों के पुंज को कुनबी कहते हैं, इसमें तीन अलग-अलग जाति समूह हैं- तिरोले कुनबी, माना कुनबी और गूजर कुनबी| गूजर कुन्बियो में लेवा गूजर भी हैं| इसी प्रकार उत्तर प्रदेश में भी किसान जातियों का एक कुर्मी नामक जाति पुंज जिसमे सचान, गंगवार, कटियार आदि अंतर्विवाही जाति समूह हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली जातियों भिन्न-भिन्न उत्पत्ति की होती हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न होते हैं|
  5. इरावती कर्वे, हिंदू समाज और जाति व्यवस्था, नई दिल्ली, १९७५, पृ २०
  6. आर. एस. शर्मा, अर्ली मेडिएवल इंडियन सोसाइटी, कोलकाता, 2003, पृ. 87 https://books.google.co.in/books?id=i_sIE1sO5kwC&printsec=frontcover#v=onepage&q&f=false 
  7. बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 155 
  8. Patels are divided into two sub-division Leva and Kadwa. In this district Leva Patels are mainly found. Gujarati Patels claim to be of Kshatriya stock. They are Gujjars and came from Punjab.- वडोदरा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, अहमदाबाद, 1979, पृ.17
  9. के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
  1.  Kanbis are of the great conquering White Huna tribe of Gurjjaras or Mihiras who during the second half of the sixth century passed through the Panjab and settled in Malwa and Bombay Gujarat. The earliest settlement to which local traditions refer seems to be during first and second century A.D. the southern progress of the great Kushan or Shaka tribe whose most famous leader was Kanaksen or Kanishka, the founder of 78 A.D. era. Like the Kushans the Mihiras and White Hunas are frequently referred as Sakas. Their common Central Asian origin, similarity of their History in India, the fact that latter horde succeeded much of the territory of the earlier horde, and probable marriage connection between both chiefs and the people explain how the sixth century White Huna conquerors adopted as their own the legends the  History of their predecessors the Sakas or Kushans- बॉम्बे गजेटियर, खंड  IX भाग I, 1889, पृ. 154
  1.  “The division of Lava, Laur or Lor together with less important branch of Khari , Kharia or Khadwa have the special value of showing what has been carefully concealed in Gujarat that the great body of Patidars and Kanbis in North Gujarat and in Broach are Gujars by descent.”- बॉम्बे गजेटियर, खंड IX भाग II, 1889, पृ.491
  1.  “It is not uncommon at Dwarka to find that Kanbis of  north Gujarat and Gujars from the Punjab satisfy themselves that the both are of same stock.”- बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 154

  1. “The following statement made at Junagadh in January 1889 by Mr Himmatbhai Ajabhai Vahivatdar of Junagadh a Nadiad Patidar by caste seems to settle the question of  Gujar origin of  the Patidars and Kanbis of Bombay Gujarat.- I am satisfied that Gujarat Kanbis and Patidars both Lavas and Khandwas are Gujars. We have nothing written about it, but the bards and the family recorders know it, both lavas and Khandwas came from Punjab, this is old people talk.The bhats and waiwanchers say, We left the Punjab 20 generation ago. A famine drove us from Punjab into the land between the Jamna and the Ganga. About 15 generation ago the Lavas came to Ahemdabad , it is through Khandesh and brought with them Khandeshi tobacco. The Kanbi weavers in Ahemdabad, Surat and Bhroach did not come with the lavas. The first place they came to to was Champanair. We can still know that we are the same as Punjab Gujars. We have the same way of tilling, our plough is the same, our turban is the same and we use the manure in the same way. Our marriage custom are the same, both of us wear sword at marriage. Ramchandara had two sons. From Lava came Levas and from Kush the Khandwas. I have talked with Punjab Gujars at Dwarka, they say they have Bhagdari and Narwadari villages. बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 492
  2. वही, पृ. 491
  3. रमाशंकर त्रिपाठी., हिस्ट्री ऑफ एंशिएंट इंडिया, दिल्ली, 1987, पृ.319
  4. वही
  5. बॉम्बे गजेटियर, खंड IX भाग II, 1889, पृ.491
  6. मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
  7. डब्लू. पी.सिनक्लेर, रफ नोट्स ओन खानदेश, दी इंडियन एंटीक्वैरी, दिल्ली 1875 पृ. 108-110      (b) Kunbis, who form the bulk of the Khandesh population, belong to two main divisions, local and Gujar Kunbis. Gujar Kunbis include eight classes, Revas properly Levas, Dores, Dales, Garis, Kadvas, Analas, Londaris, and Khapras........... Reve Gujars are found in Dhulia, Amalner, Savda, Raver, and Shahada. They are said to be the same as the Reves or Levas of the Charotar between Ahmedabad and Baroda..................... Kadve Gujars, found in Songir, Burhanpur, and Nimar, have the same peculiar custom as Gujarat Kadvas, celebrating marriages only once in twelve years. The shrine of their chief deity, Umiya, is at Oja, about fourteen miles from Visnagar and sixty north of Ahmedabad. Numerous priests and Kadve representatives attend the shrine about six months before the marriage time to fix the day and hour for the ceremony. On these occasions, so great is the demand for wives, that infants of even one month old are married. https://gazetteers.maharashtra.gov.in/cultural.maharashtra.gov.in/english/gazetteer/Khandesh%20District/population_race.html#1
  8. The Gujars of the north Khandesh, who during the tenth century, moved from Bhinmal in in south Marwar through Malwa into Khandesh include the following divisions Barad, Bare, Chawade, Dode, Lewe and Rewe- बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 492
  9. खानदेश गजेटियर, XII, बी. एन.पुरी, दी हिस्टरी ऑफ गुर्जर प्रतिहार, नई दिल्ली, 1996,  
  10. Among the tradition adopted was the story of the conquest of the country by the Kanaksen, apparently the family of kanishka (A.D.78) the great Saka or Kushan. Kanaksenis said to have come from Lohkot. This has been taken to be Lahore.- बॉम्बे गजेटियर, खंड 9 भाग 1, 1889, पृ. 491
  11. मस्तराम कपूर, सरदार पटेल स्मारक की भूली हुई कहानी, (लेख) अमर उजाला, 4 नवंबर 2000
  12. गायत्री एम. दत्त, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कॉम्पटीशन सक्सेस रिव्यू, जुलाई 1985.
  13.  मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
  14.  के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
  15.                                                                                                                            (Dr. Sushil Bhati)