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Friday, June 5, 2020

गुर्जर आरक्षण आन्दोलन और चोपड़ा समिति

Key words- Gurjar Reservation Movement, Chopra Committee, Gurjar Tribe, Gurjar Culture


मई-जून  2007 में राजस्थान के गुर्जर समुदाय ने अनुसूचित जनजाति की सूची में अपना नाम दर्ज  कराने की मांग को लेकर आन्दोलन किया, जिसमे करीब 25 लोगो की मौत के बाद, भारत के 11 राज्यों में निवास कर रहा गुर्जर समुदाय भी आंदोलित हो गया था| आज़ादी के बाद किसी भी समुदाय विशेष द्वारा किया गया यह सबसे बड़ा आन्दोलन था| गुर्जर आन्दोलन में किये गए रोड जाम, रेल रोको, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र चक्का जाम आदि से जहाँ आम जन को अनेक परेशानियों का सामना करना पडा, वही दिल्ली और उससे सटे राज्यों की सरकारे मूक दर्शक बनी दिखी| सम्पूर्ण राष्ट्र इस घटनाक्रम को टकटकी लगाये देख रहा था| इन अभूतपूर्व हालातो में राजस्थान सरकार और गुर्जर आन्दोलनकारियों के बीच एक समझोता हुआ, जिसके फलस्वरूप जस्टिस जसराज चोपड़ा की अध्यक्षता में उच्च अधिकार प्राप्त  तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसे तीन महीने में यह रिपोर्ट देनी थी कि गुर्जर अनुसूचित जनजाति के पात्र हैं अथवा नहीं| चोपड़ा समिति को  भारत सरकार द्वारा अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए स्थापित पांच मानदंडो के आधार पर अध्ययन कर अपनी सिफारिशे देनी थी| ये पांच मान दंड इस प्रकार हैं- 1. आदिम लक्षण, 2. भोगोलिक एकाकीपन, 3. आम समुदाय से मिलने में संकोच, 4.विशिष्ट संस्कृति, 5. पिछड़ापन| अतः चोपड़ा समिति ने गुर्जरों के मांग के विचारार्थ, उक्त मानदंडो के आधार पर इनके अनुरूप, आम जनता से प्रतिवेदन आमंत्रित किये|  गुर्जर आन्दोलन के शीर्ष नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के नेतृत्व वाली राजस्थान गुर्जर आरक्षण समिति द्वारा अपना प्रतिवेदन/अभ्यावेदन लिखने का कार्य डॉ सुशील भाटी को सौपा गया| उनके द्वारा लिखित  अभ्यावेदन दिनांक 16 जुलाई 2007 को चोपड़ा समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया|  डॉ सुशील भाटी ने भारतीय जनगणना 1901, भारतीय जनगणना 1935, लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ़ इंडिया 1918, राजपूताना गज़ेटियर, बॉम्बे गज़ेटियर, इम्पीरियल गज़ेटियर, लोकुर समिति रिपोर्ट, पीपल्स ऑफ़ इंडिया आदि सरकारी सर्वेक्षणों और रिपोर्ट्स को अभ्यावेदन का आधार बनाया| जेम्स टॉड, विलियम डेलरिम्पल आदि इतिहासकारों तथा विलियम क्रुक, आर. वी. रसेल आदि एथ्नोलोजिस्ट के अध्ययनो का उल्लेख अभ्यावेदन में किया गया|  वर्ष 2008 में, यह अभ्यावेदन, सम्पादित रूप में, "दी जर्नल ऑफ़ मेरठ युनिवेर्सिटी हिस्ट्री एलुमनी" के खंड XII  में  "गुर्जरों का जनजातिय चरित्र" नामक शीर्षक से प्रकाशित भी किया गया|

25 सितम्बर 2007 को चोपड़ा समिति ने खासा कोठी, जयपुर में गुर्जरों की मांग के विचारार्थ  मुख्य सुनवाई की| जिसमे आन्दोलन के शीर्ष नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला, डॉ सुशील भाटी, डॉ रूप सिंह, श्री मान सिंह, श्री महेंदर सिंह, श्री अतर सिंह, श्री मान्धाता सिंह आदि उपस्थित रहे| डॉ सुशील भाटी ने राजस्थान आरक्षण संघर्ष समिति के अभ्यावेदन के सन्दर्भ में मुख्य तर्कों और तथ्यों को चोपड़ा समिति के समक्ष रखा तथा समिति को यह समझाने का प्रयास किया किस प्रकार गुर्जर अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा प्राप्ति हेतु निर्धारित पांच मानदंडो को पूरा करते हैं| उन्होंने इस सम्बन्ध में 16 जुलाई 2007 के अभ्यावेदन का एक पूरक प्रतिवेदन (लिखित तर्क) भी समिति को सौपा|

25 September 2007, Khasa Kothi, Jaipur, Before Chopra Committee, From the left Dr. Roop Singh, Dr. Sushil Bhati, Col. Kirodi Singh Bainsla, Shri Mahender Singh, Shri Atar Singh and Shri Man Singh

 दैनिक भास्कर दिनांक 26 सितम्बर 2007 

चोपड़ा समिति ने 15 दिसम्बर 2007 को अपनी रिपोर्ट राजस्थान सरकार को सौप दी | समिति ने रिपोर्ट में कहा कि अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए वर्तमान में निर्धारित उक्त पांच मानदंड वक्त के साथ पुराने पड़ चुके हैं अतः मानदंड बदले बिना जनजाति का दर्ज़ा देने का परीक्षण संभव नहीं हैं| समिति  ने दूरदराज़ के पिछड़े क्षेत्रो जैसे डांग, छिंद, वन, एवं पहाड़ी इलाको में रहने वाले लोगो के विकास के लिए एक बोर्ड का गठन करने तथा विशेष पैकेज का सुझाव दिए|  

अनुसूचित जनजाति के दर्जे के अपने  दावे के पक्ष राजस्थान गुर्जर आरक्षण समिति के द्वारा तमाम दस्तावेज़ और प्रमाण उपलब्ध कराये गए उसे देखते हुए कुछ अखबारों द्वारा इनकी मांग पर सकारात्मक रूख अपनाया गया| इस सम्बन्ध में नीचे दी गई रिपोर्ट भी खास मायने रखती हैं-

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