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Friday, August 24, 2018

गूजरघार गौरव – गढ़ी खेडा जवाहर का इतिहास


डॉ सुशील भाटी

आगरा जिले की फतेहाबाद के निकट खेडा जवाहर सिंह नामका एक गाँव हैं, जो ब्रिटिश काल में आगरा के फतेहाबाद और फिरोजाबाद परगनो के ताल्लुकेदार चौधरी लक्ष्मण सिंह का मुख्यालय हुआ करता था| उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में चौधरी लक्ष्मण सिंह यहाँ मिट्टी की एक विशाल गढ़ी में राजसी ठाट-बाट से रहते थे| गढ़ी लगभग 50 बीघा ज़मीन में निर्मित थी| गढ़ी की विशाल दीवारे थी जिसके चारो कोनो पर चार बुर्ज़ थे| गढ़ी की सुरक्षा के लिए बुर्जो पर तोपे लगी रहती थी| गढ़ी की सुरक्षा के लिए इसकी दीवारों के साथ गहरी खाइयो का निर्माण किया गया था| आज गढ़ी की दीवारे और बुर्ज़ गिर चुके हैं पर इनके अवशेष अभी भी विधमान हैं| उन्नीसवी शताब्दी के पूर्वार्ध में फतेहाबाद में मराठा शासक दौलत राव सिंधिया (1794-1827 ई.) के सैन्य घोड़ो का अस्तबल था| फतेहाबाद तहसील के तारौली गाँव के निवासी कर्नल आर. एस. कांदिल का कहना हैं कि खेडा गाँव में भी पहले मराठो का सैन्य ठिकाना था| जब चौ. लक्ष्मण सिंह फिरोजाबाद और फतेहाबाद के ताल्लुकेदार बने, तब उन्होंने इस स्थान को अपने आधिपत्य में ले लिया और यहाँ वर्तमान गढ़ी का निर्माण करवाया था|

गढ़ी के अवशेषों के बीचो-बीच पक्की लखोरी ईटो से निर्मित चौधरी लक्ष्मण सिंह की महलनुमा हवेली आज भी बुलंदियों के साथ खड़ी हैं, यहाँ आज इनके वंशज चौधरी राघवेन्द्र सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं| लखोरी ईटो से बनी हवेली लाल पत्थर से बने परकोटो से सुसज्जित हैं| परकोटो के स्तम्भ और रेलिंग शानदार नक्काशी से युक्त हैं| हवेली के मेहराबदार मुख्य प्रवेश द्वार की नक्काशी उत्कृष्ट किस्म की हैं|

चौधरी लक्ष्मण सिंह के विषय में बताते हुए, उनके वर्तमान वंशज चौ. राघवेन्द्र सिंह ने उनके समय की एक पीतल निर्मित चपरास प्रस्तुत की| ये देखने में और उपयोग में बेल्ट के बकल जैसी हैं| उन्होंने बताया की चौधरी लक्ष्मण सिंह के चपरासी इन्हें तहसील, कचहरी आदि में लगा कर रखते थे| इन पर ‘चौधरी लक्ष्मण सिंह ताल्लुकेदार परगने फतेहाबाद व फिरोजाबाद सांकिमोनेपैडा 1874’ लिखा हैं|  अतः स्पष्ट हैं कि सन 1874 में फतेहाबाद और फिरोजाबाद परगनों के ताल्लुकेदार थे| वर्तमान फतेहाबाद तथा फिरोजाबाद तहसील में यमुना के दोनों तरफ लगभग गुर्जरों के 60 गाँव हैं, तथा स्थानीय बोलचाल में इस 60 गाँव के क्षेत्र को गूजरघार कहा जाता हैं, जिसका अर्थ हैं - गूजरों का घर| फतेहाबाद कस्बे के पश्चिम में भरापुर गूजराघार का पहला गाँव हैं, इसके पूर्व में यमुना किनारे तक करीब 21 गाँव हैं तथा यमुना पार फिरोजाबाद तहसील में  करीब 38 गाँव गुर्जरों के हैं| फतेहबाद तथा फिरोजाबाद की ताल्लुकेदार होने के नाते ये सभी गाँव चौधरी लक्ष्मण सिंह की ताल्लुकेदारी में आते थे|

चौ. लक्ष्मण सिंह के पूर्वज इस क्षेत्र में दिल्ली से आये थे| फिरोजाबाद क्षेत्र के प्रेमपुर आनंदीपुर गाँव के यतिंदर अवाना अपने बुजुर्गो के हवाले से बताते हैं कि 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली से काफी लोग उजड़ कर फिरोजाबाद और फतेहाबाद क्षेत्र में बस गए| चौ. लक्ष्मण सिंह रियाना गोत्र के गुर्जर थे, उनके पूर्वज भी सभवतः उक्त प्रव्रजन में दिल्ली क्षेत्र के दौलताबाद गाँव से फिरोजाबाद-फतेहाबाद क्षेत्र में आये थे| वर्तमान में फतेहाबाद क्षेत्र में रियाना गुर्जरों के खेडा जवाहर, सारंगपुर, भरापुर, बाबरपुर, हुमायुपुर तथा हाजी नंगला आदि गाँव हैं| आरम्भ में चौ. लक्ष्मण सिंह के साथी भारामल का फतेहाबाद क्षेत्र में उत्थान हुआ| भारामल किसी मेव राजा के सेनापति थे| भारामल ने फतेहाबाद के पश्चिम में भरापुर गाँव बसाया| भारामल की मृत्यु के उपरांत, ब्रिटिश काल में चौ. लक्षण सिंह फिरोजाबाद और फतेहाबाद परगनों के तालुकेदार बन गए|

1857 के विद्रोह में चौधरी लक्ष्मण सिंह ने फतेहाबाद के निकट बादशाही बाग किले में स्थित तहसील मुख्यालय को अपने अधिकार में ले लिया था तथा क्षेत्र में कानून और शांति व्यवस्था बनाये रखी| अराजकता का लाभ उठाते हुए, उन्होंने पिनाहट क्षेत्र को भी अपने अधिकार में ले लिया था| चौ. लक्ष्मण सिंह के अधिकार में सात गढ़ी थी, जिनके माध्यम से वे अपनी ताल्लुकेदारी के प्रबंधन और रख-रखाव करते थे| ये गढ़ियां खेडा, चार बिस्वा, सिलावली, सारंगपुर (गढ़ी जोमदार), मुरावल, ज़रारी और महरा चौधरी गाँवो में स्थित थी| चौ. लक्ष्मण सिंह ने जरारी की गढ़ी का निर्माण यमुना पार से डाकुओ और असामाजिक तत्वों की रोकथाम के लिए करवाया था|

चौ. लक्ष्मण सिंह बहुत से सामाजिक कल्याण के लिए बहुत से कार्य किये| अपने साथी भारामल के देहांत के बाद चौ. लक्ष्मण सिंह ने भरापुर में एक बाग़ लगवाया तथा एक शिव मंदिर का निर्माण करावाया जो आज भी विधमान हैं| चौ. लक्ष्मण सिंह ने फतेहाबाद में तत्कालीन सरकारी अस्पताल तथा थाने के लिए जगह दान में दी थी| इसके अतिरिक्त मौजा स्वार में यमुना नदी पर घाट का निर्माण करवाया तथा हाजी नंगला गाँव में कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया|

कालांतर में चौ. लक्ष्मण सिंह के पौत्र चौ. जवाहर सिंह के समय खेडा गाँव उनके नाम से खेडा जवाहर मशहूर हो गया| चौ. जवाहर सिंह के पुत्र चौ. ऐदल सिंह राज़स्व विभाग में उच्च अधिकारी थे| उनका विवाह बुंदेलखंड के प्रतिष्ठित समथर राजपरिवार में हुआ था| वर्तमान में चौ. राघवेन्द्र सिंह गढ़ी परिसर में अपने स्वर्गवासी पिता चौ. करतार सिंह और माता श्रीमती ललित के याद में ‘चौ. करतार ललित मेमोरियल इन्टर कॉलेज’ चलाते हैं|

                               चौ. लक्ष्मण सिंह की वंशावली

चौ. लक्ष्मण सिंह
 |
चौ. दौलत सिंह
            |           
चौ देवी सिंह
 |
                   चौ. जवाहर सिंह  तथा चौ सौवरन सिंह
 |
चौ. ऐदल सिंह
 |
चौ. करतार सिंह
 |
चौ. राघवेन्द्र सिंह 

सन्दर्भ

1. Rosie Llewelln-Jones, The Great Uprising in India, 1857-58 : Untold Stories, Indian and British, Woodbridge, 2007, p 29  https://books.google.co.in/books?isbn=1843833042

2.  S. B. Chaudhuri, Civil Rebellion In Indian Mutinies (1857-1859), Calcutta, 1957, p 83

3. H. R. Nevill, Agra A Gazetteer, Vol VIII, Allahbad, 1905

4. साक्षात्कार- दिनांक: 30/10/2017, चौ. राघवेन्द्र सिंह,  निवासी ग्राम - खेड़ा जवाहर, तहसील-फतेहाबाद, आगरा|

5. दूरभाष वार्ता दिनांक: 30/10/2017, कर्नल आर. एस. कांदिल, निवासी ग्राम –तारौली, तहसील-फतेहाबाद, आगरा|

6. दूरभाष वार्ता दिनांक: 20/8/2018, श्री यतीन्द्र अवाना, निवासी ग्राम – प्रेमपुर, तहसील तथा जिला  फिरोजाबाद|












Saturday, August 11, 2018

तह्कीके हिन्द में प्रतिबिंबित गुप्त संवत एवं गुप्त काल


डॉ सुशील भाटी

अलबिरुनी (1031 ई.) की पुस्तक तह्कीके हिन्द के अनुसार भारत के लोग ग्यारहवी शताब्दी में श्री हर्ष, बिक्रमादित्य, शक, गुप्त या बल्लब का संवत प्रयोग करते थे|

अलबिरुनी लिखता हैं कि जहाँ तक गुप्त काल संवतका सम्बन्ध हैं, वे लोग (गुप्त शासक), जैसा कि कहा जाता हैं, दुष्ट और शक्तिशाली थे और जब वे ख़त्म हो गए, तब जनता ने इसे चलाया| अलबिरुनी के अनुसार गुप्त और बल्लभ संवत (वल्लभी संवत) एक ही हैं, क्योकि प्राप्त सूचना के अनुसार बल्लभ गुप्त वंश का अंतिम शासक था| बल्लभ अन्हिलवाडा के 30 योज़न दक्षिण में स्थित बल्लभ (वल्लभी) नगर का स्वामी था| अलबिरुनी के अनुसार जो लोग बल्लभ के संवत को प्रयोग करते हैं, वो शक संवत से 241 वर्ष घटा कर इसे प्राप्त करते हैं| बल्लभ गुप्तो में अंतिम शासक था, इसलिए इसलिए गुप्त संवत का आरम्भ भी शक संवत के 241 वर्ष बाद होता हैं|

अलबिरुनी ने 632 ई. में प्रारम्भ होने वाले ईरानी यज्दजिर्द संवत वर्ष 400 के अनुरूप भारतीय संवतो के आगामी वर्षो का उल्लेख इस प्रकार किया हैं बिक्रमादित्य के संवत का वर्ष 1088, शक संवत का वर्ष 953 तथा बल्लभ का संवत, जोकि गुप्त संवत भी हैं, उसका वर्ष 712 |

अलबिरुनी ने तह्कीके हिन्द पुस्तक यज्दजिर्द संवत वर्ष 400 से एक वर्ष पूर्व अर्थात 632+399 = 1031 ई. में लिखी थी| अतः 1031 से 712 घटा कर गुप्त संवत का आरंभिक वर्ष 319 ई. प्राप्त होता हैं| इसी प्रकार 1031 से 953 घटा कर शक संवत का आरंभिक वर्ष 78 ई. प्राप्त होता हैं|

अलबिरुनी के अनुसार गुप्त शासक भारतीय आम जन में अलोकप्रिय थेछठी शताब्दी के पूर्वार्ध में  गुप्तो का पतन हो गया| इनके पतन के लगभग 500 वर्ष बाद अलबिरुनी भारत आया तथा भारत में प्रचलित संवतो के विषय में जानकारी जुटाते वक्त लोगो ने, उसे गुप्तो के विषय में प्रचलित धारणा के विषय में, बताया कि गुप्त शासक दुष्ट और शक्तिशाली थे, उनके शासन का अंत होने पर आमजन ने प्रसन्नता में गुप्त संवत चलाया| अतः अलबिरुनी के अनुसार गुप्तो के साम्राज्य के अंत से जनता को उनके उत्पीडन से मुक्ति मिल गई तथा इस घटना को एक समय विभाजक रेखा तथा नए युग की शुरुआत मानते हुए भारतीय जनमानस ने प्रसन्नता में गुप्त संवत आरम्भ किया| अलबिरुनी की गुप्तो की अलोकप्रियता के विषय में दी गई जानकारी को इस तथ्य से भी बल मिलता हैं कि हर्षवर्धन (606-647 ई.) के दरबारी कवि बाणभट्ट ने भी अपनी हर्षचरित नामक पुस्तक में मालवा के एक दुष्ट गुप्त राजा (दुरात्मा मालवराजेन) का उल्लेख किया हैं| गुप्तो के शासन के 500 वर्ष बाद भी प्रचलित उनकी अलोकप्रियता सम्बंधित, यह नकरात्मक जनधारणा, जिसका उल्लेख अलबिरुनी ने किया है, इतिहासकार वी. ए. स्मिथ द्वारा प्रतिपादित इस संकल्पना का खंडन करती हैं कि गुप्त काल प्राचीन भारत का स्वर्ण युग हैं’ |
सन्दर्भ

1.       जॉन ऍफ़ फ्लीट, कोर्पुस इनस्क्रिप्टशनम इन्डिकेरम खंड III, कलकत्ता, 1888 प 17-40

2.       डॉ शिवस्वरुप सहाय, भारतीय पुरालेखो का अध्ययन, प 321

3.       अपर्णा शर्मा, भारतीय संवतो का इतिहास,1994

4.       उदय नारायण रॉय, गुप्त राजवंश तथा उनका युग, 1977  

5.       शिव कुमार गुप्ता, भारत का राजनैतिक इतिहास, 1999,

6.       रामवृक्ष सिन्हा, गुप्तोत्तर कालीन राजवंश, 1982