डा.सुशील भाटी
देव उठान का त्यौहार गुर्जर और जाटो में विशेष रूप से मनाया जाता हैं| यू तो हिंदू शास्त्रों के अनुसार हिन्दुओ द्वारा यह त्यौहार विष्णु भगवान के योग निद्रा से जागने के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं परन्तु इस अवसर पर गुर्जर परिवारों में गाये जाने वाला मंगल गीत अपने पूर्वजो को संबोधित जान पड़ता हैं| गुर्जर अपने पूर्वजों को देव कहते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं| यह परम्परा इन्हें अपने पूर्वज सम्राट कनिष्क कुषाण/कसाना (78-101 ई.)से विरासत में मिली हैं| कुषाण अपने को देवपुत्र कहते थे| कनिष्क ने अपने पूर्वजो के मंदिर बनवाकर उसमे उनकी मूर्तिया भी लगवाई थी| इन मंदिरों को देवकुल कहा जाता था| एक देवकुल के भग्नावेश मथुरा में भी मिले हैं|गूजरों और जाटो के घरों और खेतों में आज भी छोटे-छोटे मंदिर होते हैं जिनमे पूर्वजो का वास माना जाता हैं और इन्हें देवता कहा जाता हैं, अन्य हिंदू अपने पूर्वजों को पितृ कहते हैं|घर के वो पुरुष पूर्वज जो अविवाहित या बिना पुत्र के मर जाते हैं, उन देवो को अधिक पूजा जाता हैं| भारत में मान्यता हैं कि यदि पितृ/देवता रूठ जाये तो पुत्र प्राप्ति नहीं होती| पुत्र प्राप्ति के लिए घर के देवताओ को मनाया जाता हैं| देव उठान पूजन के अवसर पर गए जाने वाली मंगल गीत में जाहर (भगवान जाहर वीर गोगा जी) और नारायण का भी जिक्र हैं, परन्तु यह स्पष्ट नहीं हैं कि गीत में वर्णित नारायण भगवान विष्णु हैं या फिर राजस्थान में गुर्जरों के लोक देवता भगवान देव नारायण या कोई अन्य| लेकिन इस मंगल गीत में परिवार में पुत्रो की महत्ता को दर्शाया गया हैं और देवताओ से उनकी प्राप्ति की कामना की गयी हैं| पूजा के लिए बनाये गए देवताओं के चित्र के सामने पुरुष सदस्यों के पैरों के निशान बना कर उनके उपस्थिति चिन्हित की जाती हैं| इस चित्र में एक नहीं कई देवता दिखलाई पड़ते हैं, अतः गुर्जरों के लिए यह सिर्फ किसी एक देवता को नहीं बल्कि अनेक पूर्वजो को पूजने और जगाने का त्यौहार हैं| गीत के अंत में जयकारा भी कुल-गोत्र के देवताओ के नाम का लगाया जाता हैं, जैसे- जागो रे भाटियो के देव या जागो रे बैंसलो के देव, किसी नाम विशेष के देवता का नहीं| यह भी संभव हैं की भारत में प्रचलित देव उठान का त्यौहार गुर्जरों की जनजातीय परंपरा के सार्वभौमिकरण का परिणाम हो| कम से कम गुर्जरों में यह शास्त्रीय हिंदू परंपरा और गुर्जरों की अपनी जनजातीय परंपरा का सम्मिश्रण तो हैं ही| आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं देव उठान मंगल गीत-
Kanishka The Great |
देव उठान का त्यौहार गुर्जर और जाटो में विशेष रूप से मनाया जाता हैं| यू तो हिंदू शास्त्रों के अनुसार हिन्दुओ द्वारा यह त्यौहार विष्णु भगवान के योग निद्रा से जागने के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं परन्तु इस अवसर पर गुर्जर परिवारों में गाये जाने वाला मंगल गीत अपने पूर्वजो को संबोधित जान पड़ता हैं| गुर्जर अपने पूर्वजों को देव कहते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं| यह परम्परा इन्हें अपने पूर्वज सम्राट कनिष्क कुषाण/कसाना (78-101 ई.)से विरासत में मिली हैं| कुषाण अपने को देवपुत्र कहते थे| कनिष्क ने अपने पूर्वजो के मंदिर बनवाकर उसमे उनकी मूर्तिया भी लगवाई थी| इन मंदिरों को देवकुल कहा जाता था| एक देवकुल के भग्नावेश मथुरा में भी मिले हैं|गूजरों और जाटो के घरों और खेतों में आज भी छोटे-छोटे मंदिर होते हैं जिनमे पूर्वजो का वास माना जाता हैं और इन्हें देवता कहा जाता हैं, अन्य हिंदू अपने पूर्वजों को पितृ कहते हैं|घर के वो पुरुष पूर्वज जो अविवाहित या बिना पुत्र के मर जाते हैं, उन देवो को अधिक पूजा जाता हैं| भारत में मान्यता हैं कि यदि पितृ/देवता रूठ जाये तो पुत्र प्राप्ति नहीं होती| पुत्र प्राप्ति के लिए घर के देवताओ को मनाया जाता हैं| देव उठान पूजन के अवसर पर गए जाने वाली मंगल गीत में जाहर (भगवान जाहर वीर गोगा जी) और नारायण का भी जिक्र हैं, परन्तु यह स्पष्ट नहीं हैं कि गीत में वर्णित नारायण भगवान विष्णु हैं या फिर राजस्थान में गुर्जरों के लोक देवता भगवान देव नारायण या कोई अन्य| लेकिन इस मंगल गीत में परिवार में पुत्रो की महत्ता को दर्शाया गया हैं और देवताओ से उनकी प्राप्ति की कामना की गयी हैं| पूजा के लिए बनाये गए देवताओं के चित्र के सामने पुरुष सदस्यों के पैरों के निशान बना कर उनके उपस्थिति चिन्हित की जाती हैं| इस चित्र में एक नहीं कई देवता दिखलाई पड़ते हैं, अतः गुर्जरों के लिए यह सिर्फ किसी एक देवता को नहीं बल्कि अनेक पूर्वजो को पूजने और जगाने का त्यौहार हैं| गीत के अंत में जयकारा भी कुल-गोत्र के देवताओ के नाम का लगाया जाता हैं, जैसे- जागो रे भाटियो के देव या जागो रे बैंसलो के देव, किसी नाम विशेष के देवता का नहीं| यह भी संभव हैं की भारत में प्रचलित देव उठान का त्यौहार गुर्जरों की जनजातीय परंपरा के सार्वभौमिकरण का परिणाम हो| कम से कम गुर्जरों में यह शास्त्रीय हिंदू परंपरा और गुर्जरों की अपनी जनजातीय परंपरा का सम्मिश्रण तो हैं ही| आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत हैं देव उठान मंगल गीत-
देव उठान गीत
उठो देव बैठो देव
देव उठेंगे कार्तिक में.....
कार्तिक में...... कार्तिक में
सोये हैं आषाढ़ में
नई टोकरी नई कपास
जा रे मूसे जाहर जा.....
जाहर जा.....जाहर जा
जाहर जाके डाभ कटा
डाभ कटा कै खाट बुना.....
खाट बुना........खाट बुना
खाट बुना कै दामन दो
दामन दीजो गोरी गाय
गोरी गाय……कपिला
गाय
जाके पुण्य सदा फल होय
गलगलिया के पेरे पाँव
पेरे पाँव……पिरोथे
पाँव
राज़ करे अजय की माँ..... विजय की माँ
राज करे संजय की माँ...... जीतेंद्र की माँ
राज करे मिहिर की माँ
औरें धौरे धरे मंजीरा
ये रे माया तेरे बीरा
ये रे अनीता तेरे बीरा
ये रे कविता तेरे बीरा
औरें धौरे धरे चपेटा
ये हैं नांगणन तेरे बेटा
औरें कौरें धरे चपेटा
यह हैं बैस्लन तेरे बेटा
औरें कौरें धरे चपेटा
यह हैं कसानी तेरे बेटा
नारायण बैठा ओटा
नो मन लीक लंगोटा
जितने जंगल हीसा-रौडे
उतने या घर बर्द-किरोडे
जितने अम्बर तारैयां
उतनी या घर गावानियां
जितने जंगल झाऊ-झूड
उतने या घर जन्में पूत
जागो...........रे......भाटियो के देव........
(स्त्रोत- जैसा मेरी माँ ने मुझे बताया)
[Dr.Sushil Bhati]
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteडेढो के देव हम उठा देंगे
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ReplyDeleteYOGENDRA KASANA RISTAL GZB UP
ReplyDeletebhati ji dev uthan ka male version bhi dal do ...wo wala
AAYE AYE RE ..
BABA TERE DWARE RE .,
CHAR KHHOT DIBLA BALE...
Very nice song "Dev Uthan"
ReplyDeleteBut in my community in Punjab before I never listen this type of any song
Superb. Thank you for this .
ReplyDeleteReally Very awesome bhajan 🙏🙏🚩🚩
ReplyDeletePlease follow me instagram 👉 sanu2076_shagun_sharma
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