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Tuesday, August 9, 2022

सम्राट मिहिरकुल हूण से सम्बंधित जम्मू और कश्मीर के कुछ ऐतिहासिक स्थल

डॉ.सुशील भाटी

ग्वालियर और मंदसोर अभिलेख से हमें हूण सम्राट मिहिरकुल (502-542 ई.) के विषय में जानकारी प्राप्त होती हैं| मिहिरकुल हूण उत्तर भारत का सम्राट था, किन्तु सभवतः मालवा के शासक यशोधर्म से पराजय और अपने भाई की बगावत के कारण वह कश्मीर चला गया| कश्मीरी इतिहासकार कल्हण ने भी अपने ग्रन्थ राजतरंगणी (1149 ई.) में मिहिरकुल का ऐतिहासिक वर्णन दिया हैं| राजतरंगिणी के अनुसार मिहिरकुल का जन्म कश्मीर के गौनंद क्षत्रिय वंश में हुआ था| इस वंश का संस्थापक गोनंद महाभारत में वर्णित राजा जरासंध का सम्बंधी था| मिहिरकुल संकट के समय राजगद्दी पर बैठा| राजतरंगिणी के अनुसार उस समय दरदो, भौतो और मलेच्छो ने कश्मीर को रौंद डाला था| इस अवस्था में कश्मीर में धर्म नष्ट हो गया था| मिहिरकुल ने कश्मीर की रक्षा कर उसने वहाँ शांति स्थापित की| उसके पश्चात उसने आर्यों की भूमि से लोगो को कश्मीर में बसा कर धर्माचरण का पालन सुनिश्चित करवाया| राज्तारंगिणी के अनुसार मिहिरकुल के जीवन की एक अन्य महत्वपूर्ण घटना सिंघल (लंका) पर विजय थी| कल्हण की दृष्टी में मिहिरकुल लंका पर चढ़ाई करने वाला भगवान राम के बाद दूसरा उत्तर भारतीय सम्राट था| मिहिरकुल ने भी 1000 अग्रहार (ग्राम) ब्राह्मणों को दान में दिए थे

सियालकोट- मिहिरकुल की राजधानी शागल सियालकोट थी, जोकि आज के पाकिस्तान में स्थित थी| सियालकोट से जम्मू की हवाई दूरी लगभग 10 किलोमीटर मात्र हैं|

हस्तिवंज श्रीनगर के पास पीर पंजाल पर्वत श्रंखला के दर्रे में पुराने गाँव अलिआबाद सराय के पास “हस्तिवंज” स्थित हैं| पीर पंजाल दर्रा कश्मीर घाटी को राजोरी और पुंछ से जोड़ता हैं| पीर पंजाल दर्रा मुग़ल रोड़ का हिस्सा हैं| कल्हण की राजतरंगिणी और अबुल फज़ल की आईन-ए-अकबरी के अनुसार हस्तिवंज नामक  स्थान का इतिहास हूण सम्राट मिहिर कुल से जुड़ा हुआ हैं| कहते हैं कि एक बार मिहिरकुल अपनी सेना के साथ इस स्थान से जा रहा था| तभी उसकी सेना का एक हाथी खाई में गिर गया| मृत्यु के भय से हाथी जोर से चिन्घाड़ा| उसकी इस चिंघाड़ से मिहिरकुल बहुत आनंदित हुआ| उसके बाद उसने एक के बाद एक हाथी को खाई में धकेलने को हुक्म दिया, और उनकी भयग्रस्त चिंघाड़ का आनंद लिया| हाथियों की इस हत्या के कारण यह स्थान हस्तिवंज कहलाया| 

मिहिरपुर- कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार होलड (वुलर परगना) में मिहिरपुर नाम का बड़ा नगर बसाया था|

श्रीनगर - कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार मिहिरकुल ने श्री नगरी में मिहिरेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था| मिहिरकुल हूण के बाद उसका भाई प्रवरसेन कश्मीर का राजा बना, उसने प्रवरपुर नामक नगर बसाया, यहाँ आज श्री नगर स्थित है|

चन्द्रकुल्या- प्रजा की भलाई के लिए मिहिरकुल हूण ने कश्मीर में सिचाई व्यवस्था को मज़बूत किया| इस कार्य के लिए चंद्रकुल्या नदी को रूख मोड़ने का प्रयास भी किया| वर्तमान में यह नदी त्सुन्तिकुल (Tsuntikul) कहलाती हैं|

जम्मू - कल्हण ने अपनी पुस्तक राजतरंगिनी में नवी शताब्दी में पंजाब के शासक अलखान गुर्जर का उल्लेख किया हैं| हूणराज तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के सिक्को पर उनके वंश का नाम अलखान उत्कीर्ण हैं| इसलिए इन्हें अलखान हूण भी कहते हैं| अतः नवी शताब्दी में हूणों का राजसी कुल अलखान गुर्जर कहलाता था|  राजतरंगिणी के अनुसार ‘अलखान’ गुर्जर का युद्ध कश्मीर के राजा शंकर वर्मन (883- 902 ई.) के साथ हुआ था| इस युद्ध में अलखान गुर्जर पराजित हुआ तब उस अपने गुर्जर राज्य का तक्क देश हिस्सा युद्ध हर्जाने के रूप में शंकर वर्मन को दे दिया| हेन सांग की पुस्तक सीयूकी के अनुसार तक्क देश पंजाब में स्थित था|

 पंजाब कास्ट्स के लेखक डेंजिल इबटसन ने अलखान को जम्मू का शासक लिखा हैं, सभवतः अलखान जम्मू के पास सियालकोट से शासन करता था, जहाँ से कभी उसका पूर्वज मिहिरकुल हूण शासन करता था|

 

सन्दर्भ -

1. Prithvi Nath Kaul Bamzai, Cultutre and Political History of Kashmir, New Delhi, 1994, Vol -2, P108 https://www.google.co.in/books/edition/Culture_and_Political_History_of_Kashmir/1eMfzTBcXcYC?hl=en&gbpv=1&dq=mihirakula+mihirapur&pg=PA108&printsec=frontcover

2. Purnima Kak, God of Destruction, https://www.ikashmir.net/history/godofdestruction.html    

3. Journal of Royal Asiatic Society of Bengal, Vol 68. Part 1, Page 141 https://www.google.co.in/books/edition/Journal_of_the_Asiatic_Society_of_Bengal/8QngAAAAMAAJ?hl=en&gbpv=1&dq=srinagar+pravarasena&pg=RA2-PA141&printsec=frontcover

4. “about the end of the 9th century, Ala Khana the Gujar king of Jammu, ceded the present Gujar-des, corresponding very nearly with the the Gujrat district, to the king of Kashmir” Denzil Ibbetson, Panjab Castes, Lahore 1916. http://indpaedia.com/ind/index.php/The_Gujjar_(Punjab_)

5. डॉ सुशील भाटी, भारतीय साहित्य में प्रतिबिम्बत हूण:  विदेशी नहीं भारतीय, रूमिनेशन, खण्ड 11 न. 2, मेरठ, 2021, प. 242-248

6. डॉ सुशील भाटी, भारत में हूण पहचान की निरंतरता- हूण गुर्जरों के गाँवो का सर्वेक्षण, ग्लिम्पसेज, मेरठ, 2019, प. 488-494

Saturday, April 16, 2022

सम्राट कनिष्क के इतिहास से संबंधित जम्मू एवं कश्मीर स्थित कुछ ऐतिहासिक स्थल

डॉ. सुशील भाटी

कनिसपुर - कनिष्क का कश्मीर के साथ एक ऐतिहासिक जुडाव हैं| बारहवी शताब्दी के कश्मीरी इतिहासकार कल्हण के अनुसार कनिष्क कश्मीर का शासक था और उसने कश्मीर में कनिष्कपुर नगर बसाया था| वर्तमान में, यह स्थान बारामूला जिले में स्थित ‘कनिसपुर’ के नाम से जाना जाता हैं| कनिसपुर बारामूला से लगभग 6 किलोमीटर दूर हैं|

लोहरिन- कश्मीर में लोह्कोट (लोहरिन) कनिष्काक की राजनैतिक और सैनिक का शक्ति केंद्र रहा हैं| कैम्पबेल के अनुसार दक्षिण राजस्थान स्थित भीनमाल में यह परंपरा हैं कि लोह्कोट के राजा कनकसेन   (कनिष्क) ने उस क्षेत्र को जीता था| कैम्पबेल अनुसार यह लोह्कोट कश्मीर में स्थित एक प्रसिद्ध किला था| लोह्कोट अब लोहरिन के नाम से जाना जाता हैं तथा कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पड़ता हैं ए. एम. टी. जैक्सन ने बॉम्बे गजेटियर’ में भीनमाल का इतिहास विस्तार से लिखा हैंजिसमे उन्होंने भीनमाल में प्रचलित ऐसी अनेक लोक परम्पराओ और मिथको का वर्णन किया है जिनसे भीनमाल को आबाद करने में सम्राट कनिष्क की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता हैं| उसके अनुसार भीनमाल में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व में कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। ऐसी मान्यता हैं कि भीनमाल के देवड़ा गोत्र के लोगश्रीमाली ब्राहमण तथा भीनमाल से जाकर गुजरात में बसे, ओसवाल बनिए राजा कनक (सम्राट कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से भीनमाल आए थे। ए. एम. टी. जैक्सन श्रीमाली ब्राह्मण और ओसवाल बनियों की उत्पत्ति गुर्जरों से मानते हैं| केम्पबेल के अनुसार मारवाड के लौर गुर्जरों में मान्यता हैं कि वो राजा कनक (कनिष्क कुषाण) के साथ लोह्कोट से आये थे तथा लोह्कोट से आने के कारण लौर कहलायेपुंछ आज भी गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र हैं, जहाँ गुर्जरों की आबादी लगभग 40 प्रतिशत हैं| एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं| उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैंसुशील भाटी ने इस मत का विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमे “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” महत्वपूर्ण हैं| उनका कहना हैं कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं|

वीर भद्रेश्वर मंदिर -  कश्मीर में कनिष्क ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया था| कश्मीर के राजौरी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 66 किलोमीटर दूर वास्तविक नियंत्रण रेखा के नज़दीक प्राचीन ‘वीर भद्रेश्वर शिव मंदिर’ स्थित हैं| आस-पास के क्षेत्रो में प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार इस शिव मंदिर का निर्माण संवत 141 अर्थात 87 ई. में कनिष्क ने करवाया था| भद्रेश्वर शिव मंदिर की दीवार से प्राप्त अभिलेख के अनुसार भी इस मंदिर निर्माण संवत 141 में कनिष्क ने करवाया था|

किरमची- जम्मू से 64 किलोमीटर तथा उधमपुर से 9 किलोमीटर दूर किरमची गाँव हैं, जोकि पूर्व में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल था| यहाँ गंधार शैली में निर्मित चार प्राचीन मंदिर स्थित हैं| कुछ विद्वानों के अनुसार इस स्थान की स्थापना कनिष्क ने की थी| बड़े मंदिर से त्रिमुख शिव और वराह अवतार की मूर्तिया प्राप्त हुई हैं|

कुंडलवन- कनिष्क ने कश्मीर स्थित कुंडलवन में चतुर्थ बौद्ध संगति का आयोज़न किया, जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी| इस संगति में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान सम्रदाय में विभाजित हो गया| महायान ग्रंथो की रचना संस्कृत भाषा में की गई| इतिहासकारों के एक वर्ग के अनुसार चीनी बौद्ध ग्रंथो का यह नायक सम्राट कनिष्क प्रथम नहीं बल्कि कनिष्क द्वितीय था|

 सन्दर्भ-

1.एकनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864

2. जे.एमकैम्पबैलभिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896

3.  Vir Bhadreshwar or Pir Bhadreshwar is acronyms of same deity. The legend of this temple goes back to the days of Lord Shiva and Dakshayani (Sati). This temple is believed to have been built by King Kanishka in Samvat 141 to commemorate the victory of Vir Bhadreshwar, over king Daksha-  Vir Bhadreshwar Temple, Daily Excelsior, 1 June 2014-    https://www.dailyexcelsior.com/vir-bhadreshwar-temple/

4. Kirmachi- 64, Kms from Jammu and about 9 kms from Udhampur is located kirmachi village. Though virtually unknown to the outside world, this village boosts of a unique architectural treasure. Kirmachi held an important place in the past. The four elegant and imposing temples can ascertain this. Three temples are standing in a row on the bank of Devak nadi Traditionally, the construction of these temples is associated with the heroic Pandvas, but there is no reliable record of its date. According to some scholars King Kanishka founded this place.-  Virendera Bangroo, Ancient Temples of  Jammu-  http://ignca.gov.in/PDF_data/Ancient_Temples_Jammu.pdf

5. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016 https://janitihas.blogspot.com/2016/06/blog-post.html

6. Finding Kundalwan

https://kashmirlife.net/finding-kundalwan-issue-36-vol-07-90360/

7. सुशील भाटी, कनिष्क और कश्मीर, जनइतिहास ब्लॉग, 2018 https://janitihas.blogspot.com/2018/01/blog-post.html

8. सुशील भाटी, कनिष्क और शैव धर्म, जनइतिहास ब्लॉग, 2020 https://janitihas.blogspot.com/2020/03/blog-post_62.html

9. सुशील भाटी, कनिष्क की राष्ट्रीयता, जनइतिहास ब्लॉग, 2020 https://janitihas.blogspot.com/2020/03/blog-post_21.html

Monday, March 21, 2022

कनिष्क, मिहिर और गुर्जर

डॉ. सुशील भाटी

कुषाणों में सूर्य पूजा बड़े पैमाने में प्रचलित थी|वो सूर्य को मिहिर के रूप में जानते थे और अपनी आर्य नामक भाषा में मीरो बुलाते थे| प्रस्तुत लेख में मेरा मुख्य तर्क यह हैं कि भारत में सूर्य देवता तथा किसी व्यक्ति के नाम के रूप में ‘मिहिर’ शब्द का प्रयोग कुषाण काल में प्रारम्भ हुआ हैं|

भारत में मिहिर शब्द का सबसे प्राचीन पुरातात्विक प्रमाण कुषाण वंश से सम्बंधित सम्राट कनिष्क (78-101 ई.) का रबाटक अभिलेख हैं| यह अभिलेख सम्राट कनिष्क के शासनकाल के आरम्भिक वर्षो  में लिखा गया था| रबाटक अभिलेख में उन देवी- देवताओ के नाम अंकित हैं जिनकी मूर्तियाँ रबाटक स्थित देवकुल (बागोलग्गो) में स्थापित की गई थी| उनमे एक नाम मिहिर देवता का भी हैं| रबाटक अभिलेख की सम्बंधित 8-11 पंक्तियों को रोबर्ट ब्रेसी (Robert Bracey) ने इस प्रकार प्रस्तुत किया हैं|

 ... for these gods, whose service here the ... glorious Umma (οµµα) leads (namely:) the above mentioned Nana (Νανα) and the above-mentioned Umma, Aurmuzd (αοροµοζδο), the Gracious One (µοζοοανο), Sroshard (σροþαρδο), Narasa (ναρασαο) (and) Mihr (µιρο) and he gave orders to make images of the same. [ Source- Robert Bracey, Chapter7, POLICY, PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012]

भारत में मिहिर शब्द का सबसे प्राचीन पुरातात्विक प्रमाण कुषाण वंश से सम्बंधित सम्राट कनिष्क (78-101 ई.) के सिक्के हैं, जिनमे एक तरफ सम्राट कनिष्क को हवन में आहुति डालते हुए उत्कीर्ण किया गया हैं, और आर्य (बाख्त्री) भाषा में शाओ-नानो-शा कनिष्क कोशानो लिखा हैं, वही सिक्के के दूसरी तरफ सूर्य देवता को उत्कीर्ण किया गया हैं और कुषाणों की आर्य नामक भाषा में मीरो (मिहिर) लिखा हैं| इसी प्रकार के सिक्के उसके पुत्र हुविष्क के प्राप्त हुए हैंकनिष्क के सिक्को के प्राप्त कुल साँचो में 18 प्रतिशत मीरो ‘मिहिर’ देवता के हैं| हुविष्क के सिक्को के प्राप्त कुल साँचो में 20 प्रतिशत मिहिर देवता के हैं| इस प्रकार प्रमाणित होता हैं कि शिव, नाना (दुर्गा) के अतरिक्त कनिष्क प्रमुखतः मिहिर देवता का उपासक था|

कुषाणों के सुर्खकोटल अभिलेख में मिहिरामान और बुर्ज़मिहिरपुर्रह व्यक्तिगत नाम के रूप में प्रयोग किये गए हैं| यह भारत में मिहिर नाम के प्रयोग के प्राचीनतम उधारण हैं|

कनिष्क के पुत्र हुविष्क के शासन काल से सम्बंधित ऐरतम (Airtam) अभिलेख में इसके लेखक का नाम मीरोजादा (Miirozada) अंकित हैं| जनोस हरमट (Janos Harmatta) के अनुसार उक्त अभिलेख के अनुवाद इस प्रकार हौं-  

King [is] Ooesko, the Era year is 30 when the lord king presented and had the Ardoxso Farro image set up here. At that time when the stronghold was completed then Sodila ... the treasurer was sent to the sanctuary. There upon Sodila had this image prepared, then he [is] who had [it] set up in the stronghold. Afterwards when the water moved farther away, then the divinities were led from the waterless stronghold. Just therefore, Sodila had a well dug, then Sodila had a waterconduit dug in the stronghold. Thereupon both divinities returned back here to the sanctuary. This was written by Miirozada by the order of Sodila [ Source- Robert Bracey, Chapter7, POLICY, PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012]

उक्त दोनों उदाहरणों से स्पष्ट हैं कि कुषाणों में मिहिर / मीरो  नाम का प्रचलन था|  

कुषाणों के सिक्को पर उत्कीर्ण देवी-देवताओ को देखने से पता चलता हैं कि कुषाण सम्राट कनिष्क  के सिक्को पर उत्कीर्ण मिहिर देवता की वेश-भूषा कुशाण सम्राटो जैसी हैं| सुर्खकोटल और मथुरा के कंकालीटीला से प्राप्त मिहिर देवता की मूर्ती कुषाण कला शैली और कुषाण सम्राट कनिष्क और हुविश्क वेश-भूषा से पूर्ण रूप से प्रभावित हैंनिष्कर्षतः कनिष्क और मिहिर देवता के अंकन अत्यधिक समनता हैं|

कुषाणों के बाद भारत में मिहिर देवता का नाम हूण सम्राट मिहिरकुल (502-542 ई.) के सिक्को पर अंकित किया गया| हूण सम्राटो के सिक्को में सूर्य का प्रतीक चक्र भी उत्कीर्ण किया गया हैं| सम्राट मिहिरकुल के नाम में भी मिहिर शब्द का प्रयोग किया गया हैं| अलखान हूणों ने कई मायनों में कुषाण विरासत को आगे बढाया हैं|

मिहिरकुल के बाद मिहिर नाम गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई.) के नाम में भी किया गया हैंमिहिर भोज की आदि वराह मुद्रा पर भी सूर्य का प्रतीक चक्र भी उत्कीर्ण किया गया हैंगुर्जर प्रतिहारो की एक हूण विरासत रही हैं|

एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैंउसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैं|  डॉ. सुशील भाटी ने इस मत का अत्यधिक विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैंजिसमे “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” काफी चर्चित हैंउनका कहना हैं कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं| इसी प्रकार रुडोल्फ होर्नले, बुह्लर, विलियम क्रुक, वी.ए. स्मिथ आदि  इतिहासकार गुर्जरों को हूणों से सम्बंधित मानते हुए और प्रतिहारो को गुर्जर मानते हैं| प्रतिहारो को गुर्जर मानने वाले इतिहासकारों में ए. एम. टी. जैक्सन, कैम्पबेल, डी. आर. भंडारकर, बी. एन. पुरी और रमाशंकर त्रिपाठी प्रमुख हैं| कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों को हूणों की खज़र शाखा से उत्पन्न मानते हैं|

यह एक महत्वपूर्ण तथ्य हैं कि गुर्जरों से जुड़े सबसे प्राचीन राजवंश कुषाण, अलखान हूण और गुर्जर प्रतिहार का जुड़ाव मिहिर उपासना अथवा मिहिर नाम/उपाधि से हमेशा बना रहा हैं| मिहिर आज भी अजमेर और पंजाब में गुर्जरों की उपाधि हैं|

सन्दर्भ-

Robert Bracey, Chapter7, POLICY, PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012

 भगवत शरण उपाध्यायभारतीय संस्कृति के स्त्रोतनई दिल्ली, 1991, 

 रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिकाखंड-मेरठ, 2006

 ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864

 के. सी.ओझादी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डियाइलाहाबाद, 1968  

 डी. आर. भण्डारकरफारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख)इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911

 जे.एमकैम्पबैलभिनमाल (लेख)बोम्बे गजेटियर खण्ड भाग 1, बोम्बे, 1896

 विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली1990

 सुशील भाटी, सूर्य उपासक सम्राट कनिष्क

 

 

 

 

 

Wednesday, March 16, 2022

सम्राट कनिष्क और 22 मार्च: अंतराष्ट्रीय गुर्जर दिवस

डॉ. सुशील भाटी

गुर्जर एक वैश्विक समुदाय हैं जोकि प्राचीन काल से भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान और कुछ मध्य एशियाई देशो में रह रहा हैं| एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं| उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैंडॉ. सुशील भाटी ने इस मत का अत्यधिक विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमे “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” काफी चर्चित हैं| उनका कहना हैं कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं| कनिष्क का साम्राज्य भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि उन सभी देशो में फैला हुआ था जहाँ आज गुर्जर रहते हैं| कनिष्क के साम्राज्य की एक राजधानी मथुरा, भारत में तथा दूसरी पेशावर, पाकिस्तान में थी| कनिष्क के साम्राज्य का एक वैश्विक महत्व हैं, दुनिया भर के इतिहासकार इसमें रूचि रखते हैं| कनिष्क के साम्राज्य के अतरिक्त गुर्जरों से सम्बंधित ऐसा  कोई अन्य साम्राज्य नहीं हैं जोकि पूरे दक्षिणी एशिया में फैले गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इससे अधिक उपयुक्त हो| यहाँ तक की मिहिर भोज द्वारा स्थापित प्रतिहार साम्राज्य केवल उत्तर भारत तक सीमित था तथा पश्चिमिओत्तर में करनाल इसकी बाहरी सीमा थी|

कनिष्क के राज्य काल में भारत में व्यापार और उद्योगों में अभूतपूर्व तरक्की हुई क्योकि मध्य एशिया स्थित रेशम मार्ग, जोकि समकालीन अंतराष्ट्रीय व्यापार मार्ग था तथा जिससे यूरोप और चीन के बीच रेशम का व्यापार होता था, पर कनिष्क का नियंत्रण था| भारत के बढते व्यापार और आर्थिक उन्नति के इस काल में तेजी के साथ नगरीकरण हुआ| इस समय पश्चिमिओत्तर भारत में करीब 60  नए नगर बसे| इन नगरो में एक कश्मीर स्थित कनिष्कपुर था| बारहवी शताब्दी के इतिहासकार कल्हण ने अपनी राजतरंगिनी में कनिष्क द्वारा कश्मीर पर शासन किया जाने और उसके द्वारा कनिष्कपुर नामक नगर बसाने का उल्लेख किया गया हैं|  सातवी शताब्दी कालीन गुर्जर देश (आधुनिक राजस्थान क्षेत्र) की राजधानी भीनमाल थी| भीनमाल नगर के विकास में भी कनिष्क का बहुत बड़ा योगदान था| प्राचीन भीनमाल नगर में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (सम्राट कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व ने कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। कहते है कि भीनमाल के वर्तमान निवासी देवडा लोग एवं श्रीमाली ब्राहमण कनक (कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से आए थे। कनिष्क ने ही पहली बार भारत में कनिष्क ने ही बड़े पैमाने सोने के सिक्के चलवाए|

कनिष्क के दरबार में अश्वघोष, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे विद्वान थे| आयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थे| कनिष्क के राज्यकाल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआ| भारत में पहली बार बोद्ध साहित्य की रचना भी संस्कृत में हुई| गांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान के शासनकाल की ही देन हैं|

अधिकांश इतिहासकारों के अनुसार कनिष्क ने अपने राज्य रोहण के अवसर पर 78 ईस्वी में शक संवत प्रारम्भ किया| शक संवत भारत का राष्ट्रीय संवत हैं| शक संवत भारतीय संवतो में सबसे ज्यादा वैज्ञानिक, सही तथा त्रुटिहीन हैं| शक संवत भारत सरकार द्वारा कार्यलीय उपयोग लाया जाना वाला अधिकारिक संवत हैं| शक संवत का प्रयोग भारत के ‘गज़ट’ प्रकाशन और ‘आल इंडिया रेडियो’ के समाचार प्रसारण में किया जाता हैं| भारत सरकार द्वारा ज़ारी कैलेंडर, सूचनाओ और संचार हेतु भी शक संवत का ही प्रयोग किया जाता हैं|

भारत सरकार द्वारा 1954 में गठित प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक मेघनाथ साहा की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय संवत सुधार समिति के अनुसार शक संवत प्रत्येक वर्ष 22 मार्च को आरम्भ होता हैं| डॉ सुशील भाटी का मत हैं कि क्योकि शक संवत 22 मार्च को शुरू होता हैं अतः 22 मार्च कनिष्क के राज्य रोहण की तिथि हैं| उनका कहना हैं कि यह दिन भारतीय विशेषकर गुर्जर इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह दिन अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए| यह तिथि अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस मनाने के लिए इसलिए भी उचित हैं गुर्जरों के के प्राचीन इतिहास में यह एक मात्र तिथि हैं, जिसे अंतराष्ट्रीय रूप से मान्य पूरी दुनिया में प्रचलित कलेंडर के अनुसार निश्चित किया जा सकता हैं| अतः अन्य पंचांगों पर आधारित तिथियों की विपरीत यह भारत, पाकिस्तान अफगानिस्तान अथवा अन्य जगह जहा भी गुर्जर निवास करते हैं यह एक ही रहेगी, प्रत्येक वर्ष बदलेगी नहीं|

कनिष्क द्वारा अपने राज्य रोहण पर प्रचलित किया गया शक संवत प्राचीन काल में भारत में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता था| भारत में शक संवत का व्यापक प्रयोग अपने प्रिय सम्राटकनिष्क के प्रति प्रेम और सम्मानका सूचक हैं और उसकी कीर्ति को अमर करने वाला हैं| प्राचीन भारत के महानतम ज्योतिषाचार्य वाराहमिहिर (500 इस्वी) और इतिहासकार कल्हण (1200 इस्वी) अपने कार्यों में शक संवत का प्रयोग करते थे| प्राचीन काल में उत्तर भारत में कुषाणों और शको के अलावा गुप्त सम्राट भी मथुरा के इलाके में शक संवत का प्रयोग करते थे| दक्षिण के चालुक्य और राष्ट्रकूट और राजा भी अपने अभिलेखों और राजकार्यो में शक संवत का प्रयोग करते थे|

सम्राट कनिष्क के सिक्को पर पाए जाने वाले राजसी चिन्ह को कनिष्क का तमगा भी कहते है, तथा इसे आज अधिकांश गुर्जर समाज अपने प्रतीक चिन्ह के रूप में देखता हैं| कनिष्क के तमगे में ऊपर की तरफ चार नुकीले काटे के आकार की रेखाए हैं तथा नीचे एक खुला हुआ गोला हैं इसलिए इसे चार शूल वाला ‘चतुर्शूल तमगा” भी कहते हैं| कनिष्क का ‘चतुर्शूल तमगा” सम्राट और उसके वंश / ‘कबीले’ का प्रतीक हैं| कुछ इतिहासकारों का मानना हैं कि चतुर्शूल तमगा शिव की सवारी ‘नंदी बैल के पैर के निशान’ और शिव के हथियार ‘त्रिशूल’ का ‘मिश्रण’ हैं, अतः इस चिन्ह को शैव चिन्ह के रूप में स्वीकार करते हैं| डॉ. सुशील भाटी, जिन्होंने इस चिन्ह को गुर्जर प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रस्तावित किया हैं, इसे शिव के पाशुपतास्त्र और नंदी के खुर (पैर के निशान) का समिश्रण मानते हैं, क्योकि शिव के पाशुपतास्त्र में चार शूल होते हैं| गुर्जर प्रतीक के रूप में कनिष्क के राजसी चिन्ह को अधिकांश गुर्जरों द्वारा अपनाये जाने से 22 मार्च: अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस और अधिक प्रसांगिक ho गया हैं|

सन्दर्भ-

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991, 

2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006

3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864

4. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968  

5. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911

6. जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896

7. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली, 1990

8. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016

https://janitihas.blogspot.com/2016/06/blog-post.html

9. सुशील भाटी, भारतीय राष्ट्रीय संवत- शक संवत, जनइतिहास ब्लॉग, 2012

https://janitihas.blogspot.com/2012/10/surya-upasak-samrat-kanishka.html