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Wednesday, December 24, 2025

बटार गुर्जरों की बावनी

डॉ सुशील भाटी

बटार गोत्र के गुर्जरों के 52 गाँव की एक खाप जिले सहारनपुर में स्थित हैं, इस खाप को बटारो की बावनी कहते हैं और इसका केंद्र गंगोह क़स्बा हैं| जानकार लोगो का मानना हैं कि परम्परागत 52 गाँव अब बढ़ कर 65 के करीब हो गए हैं| बटारो के अधिकांश गाँव गंगोह और नकुड के बीच हैं| वास्तव में यह बावनी “गुजरात” का हिस्सा हैं| अठारवी शताब्दी में मध्य सहारनपुर गुर्जर जाति की बाहुल्यता और आधिपत्य के कारण “गुजरात” कहलाता था| इस “गुजरात” में सहारनपुर के नकुड, गंगोह, रामपुर, परगने तथा मुज़फ्फरनगर के कैराना और झिंझाना क्षेत्र आते थे| इस क्षेत्र के ननौता, अम्भेटा, गंगोह, देवबंद और कांधला कस्बो में “गुज्जरवाडा” नाम के मोहल्ले हैं, जो इस क्षेत्र में  गुर्जरों के आधिपत्य को दर्शाते हैं|

बटारो गोत्र के लोगो में यह मान्यता चली आ रही हैं कि उनके पूर्वज मुल्तान से आये थे| डेंजिल इबटसन की पुस्तक ‘पंजाब कास्ट’ के अनुसार मुल्तान क्षेत्र में आज भी बटार गोत्र के जाट बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं| सबसे पहले बटार गुर्जर गंगोह के निकट दूधला गाँव में बसे| उन्होंने गंगोह के आस-पास 52 गाँव बसाये| जो कालांतर में बटारो की बावनी के नाम से प्रसिद्ध हुए| बटार गोत्र के सरदार ने गंगोह में एक किले का निर्माण किया और वहाँ सैन्य छावनी स्थापित किया| उसने गंगोह के इस किले को अपने प्रभावक्षेत्र का केंद्र बनाया| गंगोह स्थित इस किले के चार बुर्ज़ थे, जिनके अवशेष आज भी मौजूद हैं|| गंगोह में आज भी गुज्जरवाडा मोहल्ला हैं, ज़हां बटार गोत्र के गुर्जर रहते हैं| कुछ बटार परिवार, पंवार गुर्जरों की लंढोरा रियासत के उत्कर्ष काल में, लगभग 250 वर्ष पूर्व, गंगा के खादर में लक्सर क्षेत्र में चले गए, ज़हां आज भी उनके लक्सर, बसेडी, बसेड़ा  सीमली, मुबारिकपुर आदि अनेक गाँव हैं|

मुग़ल काल में बटारो की बवानी के बड़े आबादी समूह ने इस्लाम धर्म को अपना लिया| ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय बटारो की बावनी के परंपरागत चौधरी भी बुड्ढाखेडा गाँव के एक मुस्लिम गुर्जर चौधरी फतुआ गूजर थे| उनके पास 5200 बीघा ज़मीन थी| चौधरी फतुआ गूजर बुड्ढाखेड़ा स्थित मिट्टी के किले में लखौरी इंटों से बने शानदार महल में रहते थे| उन्होंने अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूक दिया और स्वयं को क्षेत्र का राजा घोषित किया| उन्होंने अंग्रेजो को सहारनपुर जिले में गुर्जरों के परपरागत क्षेत्र ‘गुजरात’ से बाहर निकालने का आवाहन किया| उनके नेतृत्त्व में हिन्दू और मुस्लिम गुर्जर सगे भाइयो के तरह मिलकर कम्पनी शासन के विरुद्ध लड़ें| इस संघर्ष में वे अपने साथ क्षेत्रीय हिन्दू राजपूतो और मुस्लिम राजपूतो (रांघडो) को भी अपने साथ जोड़ने में सफल रहें| शेख एवं तुर्कमान भी वैचारिक रूप से इस संघर्ष में फतुआ गूजर के साथ थे, हालाकि वे प्रत्यक्ष इस संघर्ष में उनके साथ नहीं लड़ें| इब्राहिमी गाँव के चौधरी आलिया खटाना, टाबर गाँव के ठाकुर बख्शी सिंह, रांघडो के उमरपुर, मानपुर, कुंडा कलां आदि गाँव बाबा फतुआ गूजर के विशेष सहयोगी थे|  फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में लगभग 3000 क्षेत्रीय लोगो ने गंगोह और नकुड पर हमला बोल दिया और अंग्रेजी राज का सफाया कर दिया| नकुड तहसील और थाने को आग के हवाले कर दिया| प्रतिक्रिया में अंग्रेजी सेना ने रोबर्टसन के नेतृत्त्व में बुड्ढाखेडा पर हमला बोल दिया| हाथी के मदद से अंग्रेजो ने किले का दरवाज़ा तोड़ दिया| फतुआ गूजर बहादुरी से लड़ें किन्तु पराजित हुए| किन्तु वे किले से सुरक्षित निकलने में कामयाब रहें| अंग्रेजो ने मिट्टी के किले का गिरा दिया और महल को क्षतिग्रस्त कर दिया| एक ज़ोरदार संघर्ष के बाद अंततः 27 जून 1857 फतुआ गूजर सुर्खवाला के युद्ध में शहीद हो गए| अंग्रेजो ने उनकी भूमि और संपत्ति ज़ब्त कर ली| उनके गाँव को राज़स्व रिकार्ड्स में कच्चा घोषित कर बदहाल स्तिथि में पहुंचा दिया गया| बाबा फतुआ के कोई पुत्र नहीं था| बुड्ढा खेडा के बहुत से लोग अंग्रेजो के जुल्म के कारण भिस्सल हेडा गाँव चले गए|

उपरोक्त परिस्थिथियो में बटारो की चौधर 1890 ई. के लगभग में शेरमऊ गाँव के हिन्दू बटार गुर्जरों के पास चली गई| शेर मऊ गाँव के चौधरी उमराव सिंह उर्फ़ अमरा सिंह बटारो की बावनी के चौधरी बनें| इसके बाद इनके वंशज लगातार बटारो की बावनी खाप के चौधरी बनते आ रहें हैं| शेर मऊ के चौधरी परिवार से सम्बंधित चौधरी पारस सिंह पुत्र श्री जय सिंह ने बताया की औरंगजेब के काल में भी बटारो की चौधर शेर मऊ गाँव में उनके पूर्वज चौधरी करमचंद जी के पास थी, जोकि क्षेत्र से लगान वसूल कर दिल्ली खजाने में जमा करते थे| एक बार जब वो इसी कार्य से दिल्ली गए हुए थे, तो उन्हें औरंगजेब ने विवश कर, मुसलमान बना दिया| उनकी हिन्दू पत्नी जोकि कैराना की बेटी थी, उसने उनकी देखभाल के लिए, उनका निकाह कैराना से ही अपनी जान-पहचान की एक मुस्लिम लड़की से करा दिया, जिनसे उन्हें दो पुत्र हुए| एक पुत्र का नाम जामुद्दीन था, जिसने बुड्ढा खेडा गाँव बसाया, और वह बटारो की बावनी का चौधरी बना| मुस्लिम पत्नी के दूसरे पुत्र ने भिस्सल हेडा गाँव बसाया| चौधरी करमचंद की हिन्दू पत्नी के तीन लडको के वंशज कम्हेडा, शेर मऊ और कुराली में बस गए| शेर मऊ के वर्तमान चौधरी का वंश वृक्ष इस प्रकार हैं-

1.     चोधरी उमराव सिंह उर्फ़ अमरा सिंह

2.     चौधरी राजाराम

3.     चौधरी नत्थू सिंह

4.     चौधरी सोम सिंह

5.     श्री धनेंदर चौधरी (बटार बावनी के वर्तमान चौधरी)

मुस्लिम बटार गुर्जरों के गाँवो की सूची-

1. दरबूजी 2. थावनी 3. भिस्सलहेडा 4. तिघरी 5. घाटमपुर 6. नवाज़पुर 7. घिस्सेवाला 8. किडौली  9. भलापड़ा 10. हाजीपुर 11. गुड़हनपुर 12. खानपुर 13 खैरपुर 14. टापाहेडी 115. सौंतर  16. पीर माजरा 17. हमजागढ़ 18.फतेहपुर ढोला 19. क़ुतुब खेडी 20. बोड़पुर 21. बुड्ढाखेडा 22. कोटडा 23. टिंडोल्ली

हिन्दू-मुस्लिम बटार गुर्जरों की मिश्रित आबादी वाले गाँवों की सूची

1. मैनपुरा / मोहनपुरा 2. बाढ़ी माजरा 3. बडगाँव 4. सांगाखेडा 5. कुलहेडी 6. गंगोह (गुज्जरवाडा) 7. भोगीवाला माज़रा

हिन्दू बटार गुर्जरों के गाँवो की सूची-

1. रामगढ़ 2. ढोला माजरा 3. सिरस्का 4. किशनपुरा 5. सनौली 6. छाप्पुर छोटी 7. छाप्पुर बड़ी  7. बिस्नोट 8. खोसपुर 9. कुराली 10. नया गाँव 11. समसपुर 12. भैरमऊ 13. दरियापुर 14. रामसहायवाला 15. रंधेडी / धीर खेडी 16. ढायकी 17. चकवाली 18. अलीपुरा 19. बंदाहेडी 20. बीराखेडी 21. शेरमऊ  22. कम्हेडा 23. सालारपुरा 24. 25. जुखेडी  26. ज़न्धेडा

दूधला गाँव के कैप्टन मंगत सिंह (बटार), अधिवक्ता एक अन्य प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और नेता थे, जोकि 1937 में विधायक निर्वाचित हुए थे| ग्राम बीरा खेडी में जन्मे महंत जगन्नाथ दास (बटार) क्षेत्र की एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे, उनका आश्रम गाँव रणदेवा में था| वे 1946 में सहारनपुर से निर्विरोध विधायक चुने गए| उनकी याद में “महंत जगन्नाथ दास इंटर कॉलेज” बांदूखेडी गाँव संचालित किया जाता हैं| गंगोह के श्री कदम सिंह (बटार) स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे|  दूधला गाँव के श्री कंवरपाल सिंह (बटार) नकुड विधानसभा से तीन बार वर्ष 1989, 1991 और 1996 में विधायक चुने गए| उनके सुपुत्र श्री प्रदीप चौधरी दो बार नकुड और एक बार गंगोह से विधायक रहें| वे एक बार वर्ष 2014 से 2019 तक कैराना लोकसभा से सांसद भी रहें हैं| चौधरी इरशाद वर्ष 2005 से 2010 तक सहारनपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष रहें हैं| भिस्सल हेडा के चौधरी दोस्त मोहम्मद (बटार) गंगोह ब्लाक के प्रमुख रहें हैं| हरडाखेडी गाँव के चौधरी ताहिर (बटार) चिलकाना ब्लाक के प्रमुख रहें हैं| फतेहपुर ढोला गाँव के चौधरी मज़ाहिर राणा एक अन्य प्रमुख बटार गुर्जर हैं|

क्षेत्र के लोग हिन्दू-मुस्लिम गुर्जरों की एकता की मिसाल देते हैं| बटार गोत्र के हिन्दू-मुस्लिम गुर्जरों की एकता को प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 1986 में सालारपुरा गाँव में एक गुर्जर सम्मलेन का अयोज़न भी किया गया था| वर्तमान में हिन्दू-मुस्लिम गुर्जर, 27 जून को, गंगोह कस्बे में बाबा फतुआ गूजर का शाहदत दिवस बड़े धूम-धाम से मनाते हैं| चुनावी राजनीती में भी हिन्दू-मुस्लिम गूजर धर्म-संप्रदाय से ऊपर उठकर अपनी जाति और गोत्र के प्रत्याशी को वोट करते हों|

सन्दर्भ-

1. टेलीफोनिक साक्षात्कार चौधरी पारस सिंह, ग्राम शेर मऊ, सहारनपुर, दिनांक 23.12.2025

2. टेलीफोनिक साक्षात्कार चौधरी धनेंदर सिंह, ग्राम शेर मऊ, सहारनपुर, दिनांक 23.12.2025

3. टेलीफोनिक साक्षात्कार चौधरी संजय सिंह, ग्राम शेर मऊ, सहारनपुर, दिनांक 21.12.2025

4. टेलीफोनिक साक्षात्कार श्री मुस्तकीम चौधरी, गुज्जरवाडा, गंगोह, सहारनपुर, दिनांक 19.12.2025

5. टेलीफोनिक साक्षात्कार श्री विपिन आर्य, ग्राम ढोला माज़रा, सहारनपुर, दिनांक 19.12.2025

6. टेलीफोनिक साक्षात्कार श्री ओमकार सिंह चौधरी, ग्राम उमरी कलां, सहारनपुर, दिनांक 19.12.2025

7. H. R. Nevill, Saharanpur: A Gazetteer, Allahabad, 1909, p 101

8. Dangli Prasad Varun, Uttar Pradesh District Gazetteer: Saharanpur, Lucknow, 1981, p 64

9. Eric Stroke, Peasant Armed, Oxford, 1986, p 199, 207

10. Ranajit Guha, Elementary Aspects of Peasant Insurgency in Colonial India, p 313, 318, 321

11. R C Majumdar, The Sepoy Mutiny and the Revolt of 1857,  1963, p 106 

12. S B Chaudhari, Civil Rebellion in Indian Mutinies, 1857-1859, 1957, p 77, 287

13. Denzil Ibbetson, Tribes and castes of Panjab, Lahore, 1916



Statue of Mahant Jagan NathDas

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Shri Mangat Singh Doodhla


 

 

 

 

 

 

 

 

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