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Sunday, May 18, 2025

जम्मू-कश्मीर के देशभक्त बहादुर गुज्जर

डॉ सुशील भाटी 

 जम्मू कश्मीर के गुज्जरों का सामान्य परिचय- गुज्जर जनजाति जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों में निवास करती है और उनकी जनसंख्या लाखों में है। एक अनुमानं के अनुसार जम्मू-कश्मीर में गुज्जरों जनसख्या 20 % हैं, और वे राज्य का तीसरा सबसा बड़ा सांस्कृतिक समूह हैं| ज्यादातर दूर-दराज के पहाड़ी क्षेत्रो में अथवा जंगलों के निकट निवास करते हैं| भारत-पाक वास्तविक नियंत्रण रेखा क्षेत्र के पुंछ और राजौरी जिलो में में गुज्जरों की घनी आबादी हैं। गुज्जर-बकरवाल अर्ध-घुमंतू पशुपालक जनजाति हैं, जिसके अनेक गोत (Clans) हैं| जम्मू-कश्मीर के गुज्जरों में खटाना, कसाना, गोर्सी, चेची, चौहान, पोषवाल आदि प्रमुख गोत (Clans) हैं| गुज्जरों का एक तबका भेड़-बकरी पालता हैं वह बकरवाल कहलाता हैं| सामान्यतः गुज्जर भैंस पालते हैं| गुज्जरों का इतिहास, भाषा और संस्कृति जम्मू कश्मीर के अन्य समुदायों से भिन्न है। इनकी भाषा गूजरी हैं, जोकि राजस्थानी विशेषकर मेवाड़ी और मेवाती से समानता रखती हैं इनमे भी यह मेवाती के अधिक निकट हैं| जम्मू-कश्मीर के गुज्जरों के अनुसार सूखा पड़ जाने के कारण उनके पूर्वज सैंकड़ो वर्ष पूर्व गुजरात से आये हैं| 


जम्मू कश्मीर की सुरक्षा में गुज्जरों की भूमिका- 1947 में आज़ादी के समय से कश्मीर पर अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान में तीखा विवाद चल रहा हैं, तथा दोनों देशो में क्रमशः 1947, 1965 तथा 1971 में तीन युद्ध हो चुके हैं| 2001 में कारगिल क्षेत्र में भी पाक घुसपैठियों ने अपना ठिकाना बना लिया था, जिसको लेकर भी कारगिल युद्ध हुआ| इन सभी युद्धों में राष्ट्रभक्त गुज्जर-बकरवाल भारत के साथ खड़े रहें और इन्होने प्रत्येक युद्ध भारतीय सेना का भरपूर साथ दिया| गुज्जर-बकरवालो को भारतीय सेना का आख और कान कहा जाता हैं| गुज्जरो की देशभक्ति और कश्मीर की सुरक्षा में इनके योगदान को भारत सरकार ने भी मान्यता दी हैं और उसे सराहा हैं| गुज्जरों की देशभक्ति पूर्ण कश्मीर की सुरक्षा से जुडा योगदान निम्नवत हैं- 

 1- पद्म श्री पुरस्कार विजेता मोहम्मद दीन गुज्जर- मोहम्मद दीन मुस्लिम गुज्जर समुदाय से हैं और गुलमर्ग से लगभग तीन किलोमीटर दूर दारा कासी गाँव के निवासी हैं। 14 अगस्त 1965 की सुबह जब वे अपने पशुओं को चराने के लिए गुलमर्ग कश्मीर घाटी की पहाड़ियों पर धनवास चरागाह गए थे, तो उन्होंने कुछ लोगों को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने उनसे एक उपकार करने का अनुरोध किया और इसके लिए उन्होंने कुछ पैसे देने की पेशकश की। वे उन्हें क्रमशः उनके गाँव और गुलमर्ग से छह/आठ किलोमीटर दूर ले गए, जहाँ उन्होंने देखा कि लगभग एक वर्ग किलोमीटर जंगल साफ कर दिया गया था जहाँ लगभग एक हजार अजनबी सभी प्रकार के सैन्य हथियारों और गोला-बारूद के साथ रह रहे थे। उन्होंने उससे कहा कि वे पाकिस्तान से आए हैं और कश्मीरी भाइयों को आज़ाद कराना चाहते हैं। उन्होंने गुलमर्ग का आसान रास्ता पूछा और भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों के बारे में भी पूछताछ की। आक्रमणकारियों ने बताया कि वे इस क्षेत्र के प्रत्येक गाइड को 400/- रुपये देंगे। वह 15 अगस्त की सुबह तंगमर्ग पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी। इस सूचना के कुछ घंटों के बाद पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और भारतीय सेना की मदद से आक्रमणकारियों को हिरासत में ले लिया गया। स्वर्गीय चौधरी मोहम्मद दीन को 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। 2 मई 1990 को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने भारत समर्थक होने के आरोप में चौधरी मोहम्मद दीन की हत्या कर दी थी। 

2- अशोक चक्र पुरस्कार विजेता मौलवी गुलाम दीन- मौलवी गुलाम दीन मुस्लिम गुज्जर समुदाय से थे और जम्मू और कश्मीर के पुंछ जिले, तहसील-हवेली के गाँव-दलान के निवासी थे। 1965 के दौरान भारत-पाक घुसपैठिए भारत के हमारे क्षेत्र में घुस आए| स्वर्गीय मौलवी गुलाम दीन ने अपनी जान की परवाह न करते हुए ग्रामीणों को घुसपैठियों के खिलाफ प्रेरित किया और घुसपैठियों के ठिकानों के बारे में भारतीय सेना के जवानों को जानकारी देने के लिए एक संगठित नेटवर्क तैयार किया। स्वर्गीय मौलवी गुलाम दीन के कुशल मार्गदर्शन में किए गए इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें 1966 के युद्ध के बाद "अशोक चक्र" से सम्मानित किया गया। 

 3- पद्म श्री पुरस्कार विजेता श्रीमती माली गुज्जर- 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पुंछ की एक गुज्जर महिला श्रीमती माली ने पाकिस्तानी घुसपैठ से जिले को बचाया था। कठोर परिस्थितियों और भाषाई बाधाओं के बावजूद, उनकी त्वरित सोच और बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ लिया गया और अनगिनत लोगों की जान बच गई। उनके असाधारण साहस के लिए उन्हें 1972 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 

 4- पद्म भूषण पुरस्कार विजेता मियां बशीर अहमद- कश्मीर घाटी के गांव-वांगत, तहसील-कंगन, जिला-बडगाम के निवासी मियां बशीर अहमद एक गुज्जर संत और जम्मू-कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल समुदाय के राजनेता हैं। मियां बशीर अहमद जम्मू-कश्मीर में चार बार विधानसभा के सदस्य रहे हैं। उन्होंने हमेशा जम्मू-कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल समुदाय के कल्याण और उत्थान के लिए काम किया। उन्होंने गुज्जर लोगों को हमेशा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा गुज्जरों को अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया| उन्होंने राजनीति छोड़ दी और इस्लामी सूफी परंपरा के लिए काम करना शुरू कर दिया और दबे कुचले लोगों की मदद की। जम्मू-कश्मीर में उनके अनुयायियों की संख्या लाखों से भी ज़्यादा है। उन्हें राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी के लिए 2008 में भारत सरकार द्वारा "पद्म भूषण" से सम्मानित किया गया है। उनकी मृत्यु अगस्त 2021 में 98 वर्ष की आयु में हुआ| 

5- ऑपरेशन सर्प विनाश और गुज्जरो की देशभक्ति- जम्मू कश्मीर में 2003 में आतंकियों ने राजौरी के एक पहाड़ी गाँव हिल काका में मुस्लिम गुज्जर युवक को मार दिया था| उसके बाद गुज्जरों ने सेना के ऑपरेशन सर्प विनाश में भाग लेकर आतंकियों पर कहर बरपा दिया था| 

 कारगिल के बाद से ही पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू और कश्मीर को बांटने वाली पीर पंजाल रेंज के ऊंचे पहाड़ों पर सुरक्षित ठिकाने बनाने शुरू कर दिए थे| 10 हजार से 12 हजार फीट तक की ऊंचाई वाले इन पहाड़ों पर गुज्जर अपने पशु चराते घूमते हैं| इस इलाके में सेना या पुलिस बहुत कम आती थी| आतंकवादियों ने इन गुज्जरों के बनाए हुए अस्थायी ठिकानों को पक्का बनाकर अपने लिए मज़बूत ठिकाने बनाने शुरू किए| उनका इरादा यहां सुरक्षित बेस बनाकर पूरे जम्मू-कश्मीर में गुरिल्ला हमले शुरू करने का था| 

इन आतंकियों ने वर्ष 2002 में हिल काका गांव के एक गुज्जर युवक मोहम्मद आरिफ की हत्या कर दी क्योंकि उन्हें उसके मुखबिर होने का शक था| इस घटना ने उस युवक के भाई ताहिर हुसैन समेत कई गुज्जर युवकों को आतंकवादियों के खिलाफ हथियार उठाने की प्रेरणा दी| ये सारे युवक सऊदी अरब में नौकरियां करते थे, वो वापस आए और उन्होंने सेना से संपर्क किया| उन्होंने हिल काका क्षेत्र के हालात सेना को बताए| हिल काका के पास के पहाड़ों में लगभग 700 आतंकवादियों ने अपने अड्डे बना लिए थे, जिनका प्रमुख उमर मूसा था|

सेना और पुलिस ने उन पर भरोसा किया और एक बड़े अभियान की तैयारी शुरू कर दी गई| पहाड़ों में रहने वाले गुज्जरों के पास इलाक़े के चप्पे-चप्पे की जानकारी थी| सेना की विशेष यूनिट 9 पैरा और पुलिस ने गुज्जरों को हथियारों की ट्रेनिंग दी| अप्रैल 2003 में पुलिस, सेना और स्थानीय गुज्जरों के स्पेशल ग्रुप्स ने 150 वर्ग किमी के इलाक़े में कार्रवाई शुरू की जो 27 मई 2003 तक चलती रही. कारगिल के बाद इतने बड़े इलाके में की गई ये पहली सैनिक कार्रवाई थी इसमें हेलीकॉप्टर्स और तोपखाने का भी इस्तेमाल किया गया था| पहली ही कार्रवाई में वो आतंकवादी मारा गया, जिसने हिल काका में गुज्जर युवक मोहम्मद आरिफ की हत्या की थी| गुज्जर पहाड़ पर चढ़ने-उतरने की पैदा होते ही ट्रेनिंग ले लेते हैं| जब उन्हें सेना-पुलिस का साथ मिला तो आतंकवादियों का सफ़ाया करना बहुत आसान हो गया| 

 जब 27 मई 2003 को ये अभियान खत्म हुआ तब तक 85 आतंकवादी मारे जा चुके थे और उनके 119 पक्के ठिकाने तबाह कर दिए गए थे| बाकी बचे आतंकवादी वहाँ से भाग गए| इस क्षेत्र से सुरक्षा बलों को 47 असॉल्ट राइफलें, 11 विदेशी पिस्टल, 12 मशीन गन, 19 अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर्स, 178 ग्रेनेड, 25 माइन और एक रॉकेट लांचर समेत बड़ी मात्रा में गोलाबारूद मिला| यहां से 7 हजार किलो राशन भी मिला, जो 300 आतंकवादियों के लिए पूरी सर्दियों के लिए पर्याप्त था| पहाड़ों में 20 फीट से 40 फीट नीचे ऐसे बंकर भी मिले, जिन्हें भारी बमबारी से भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता और जिन्हें अफगानिस्तान की तोरा-बोरा पहाड़ियों के मॉडल पर बनाया गया था| इनमें एक समय में 50 आतंकवादी शरण ले सकते थे| ऑपरेशन सर्प विनाश में लगभग 45 नागरिक और लगभग 35 सेना के जवान शहीद हुए| 

ऑपरेशन सर्प विनाश ने पीर पंजाल के दक्षिण में आतंकवादियों की कमर तोड़ दी| प्रतिक्रिया में उन्होंने दूर-दराज़ के गांवों में कुछ हमले किए लेकिन स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों ने जल्द ही उनका सफ़ाया कर दिया| 

ऑपरेशन सर्प विनाश की सफलता की यादगार के रूप में एक युद्ध स्मारक का निर्माण पुंछ जिले के सुरन कोट क्षेत्र में कुलाली गाँव में किया गया हैं, जिसमे एक हथियारबंद भारतीय सैनिक और हथियार बंद पगड़ी बाँधें एक ट्राइबल गुज्जर की मूर्ती एक साथ लगाई गई हैं| इस युद्ध स्मारक को जवान और अवाम मेमोरियल” नाम दिया गया हैं| ऑपरेशन सर्प विनाश में लगभग 45 नागरिक और लगभग 35 सेना के जवान शहीद हो गए थे, इन सभी के नाम यहाँ शिलापट पर उत्कीर्ण किए गए हैं| प्रत्येक वर्ष दिनांक 27 मई को पुंछ जिले के सूरनकोट सेक्टर में ऑपरेशन सर्वनाश के दौरान हुए शहीद सैनिकों और (गुज्जर) नागरिकों को याद करने के लिए “हिल काका दिवस” मनाया जाता हैं| 

6- कीर्ति चक्र एवं राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित रुखसाना कौसर गुज्जर- रुखसाना कौसर अपर कलसी की एक पहाड़ी गुज्जर लड़की है| जोकि 2009 में जम्मू और कश्मीर के राजौरी जिले में अपने घर पर एक लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी को गोली मारने के लिए जानी जाती है। उस समय उसकी उम्र लगभग 20 वर्ष थी| उसे कुल्हाड़ी और AK47 राइफल का उपयोग करके अपने घर पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी नेता को मारने के अपने साहसिक कार्य के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उसका एक छोटा भाई, ऐजाज़ है, जिसने उसे अन्य आतंकवादियों का पीछा करने और बाद में पुलिस से संपर्क करने में मदद की। 

27 सितंबर 2009 को रविवार की रात करीब 9:30 बजे तीन आतंकवादी रुखसाना के चाचा वकालत हुसैन के घर आए। उन्होंने उसे अपने बड़े भाई नूर हुसैन के बगल के घर में ले जाने के लिए मजबूर किया था। जब नूर हुसैन ने दरवाजा नहीं खोला, तो तीनों ने कथित तौर पर एक खिड़की तोड़ दी और घर में प्रवेश किया। तब तक, उसने और उसकी पत्नी रशीदा बेगम ने रुखसाना को एक खाट के नीचे छिपा दिया था। उन्होंने मांग की कि रुखसाना को उन्हें सौंप दिया जाए। जब उसके माता-पिता और छोटे भाई ऐजाज ने विरोध करने की कोशिश की, तो आतंकवादियों ने उन्हें राइफल के बट से मारना शुरू कर दिया। रुखसाना अपने छिपने के स्थान से एक कुल्हाड़ी लेकर निकली और लश्कर कमांडर के सिर पर वार कर दिया। एक आतंकवादी ने गोली चला दी, रुखसाना ने कमांडर की ए के 47 राइफल उठाई, दूसरे आतंकवादी से दूसरी राइफल ली और उसे अपने भाई की तरफ फेंक दिया। रुखसाना ने कमांडर को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई और उसने और उसके भाई ने दूसरे आतंकवादियों पर गोली चलाई, जिससे वे भागने पर मजबूर हो गए। इसके बाद रुखसाना और उसका भाई अपने परिवार को शाहदरा शरीफ पुलिस चौकी ले गए और हथियार सौंप दिए। रास्ते में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आतंकवादी दूर रहें, उसके भाई ने नियमित अंतराल पर हवा में गोलियां चलाईं जब तक कि वे पुलिस चौकी तक नहीं पहुंच गए। 

7- चौधरी वजीर मोहम्मद हाकला पुंछी- पुंछ के एक प्रमुख गुज्जर नेता, चौधरी वजीर मोहम्मद हकला ने अपना जीवन गुज्जर-बकरवाल समुदाय के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भारतीय सेना का समर्थन करते हुए और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देते हुए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी सेवाओं का सम्मान करने के लिए, भारत सरकार ने 2024 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया, और जम्मू-कश्मीर सरकार ने उनके नाम पर सड़कों और संस्थानों का नाम रखा। 

उपरोक्त विवरण से पूर्णतः स्पष्ट हैं कि पीर पंजाल की पहाडियों, सीमावर्ती पुंछ और राजौरी आदि जिलो, लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल क्षेत्र के गुज्जरों ने जम्मू एवं कश्मीर रक्षा और सुरक्षा में अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया हैं| विशेषकर आतंकवाद के खिलाफ वर्ष 2003 में ऑपरेशन सर्पविनाश के अंतर्गत उन्होंने बहादुर, देशभक्त और जंगजू कौम होने का प्रमाण दिया हैं| सेना से प्रशिक्षण प्राप्त कर गुज्जर नागरिको ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हिल काका के क्षेत्र से आतंकवाद का सफाया कर दिया था| जम्मू एवं कश्मीर के गुज्जरो की मांग हैं कि सीमवर्ती जिलो की विषम भोगोलिक परिस्थितियों तथा पीर पंजाल क्षेत्र में रह रहे नागरिको की सुरक्षा के लिए लद्दाख स्काउट्स की तर्ज़ पर “गुज्जर स्काउट्स” नाम से सुरक्षा बल का गठन किया जाए| 

 शम्स इरफ़ान की “कश्मीर लाइफ” समाचार पत्र में दिनांक 18 जनवरी 2015 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में गुज्जर समुदाय के सदस्यों ने बताया कि सरकार ने दिसम्बर 2003 में जम्मू & कश्मीर के सीमवर्ती जिलो तथा पीर पंजाल रेंज में रह रहे नागरिको की सुरक्षा के लिए “गुज्जर स्काउट्स” बल का गठन करने का निर्णय लिया था, तथा जनवरी 2004 कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने भी इसे मंजूरी दे दी थी| कार्यक्रम में गुज्जर समुदाय के सदस्यों ने गुज्जर स्काउट्स बल के गठन में हो रही देरी पर असंतोष व्यक्त किया था| एक अन्य गुज्जर सामाजिक संगठन ने “जम्मू & कश्मीर बॉर्डर एरिया स्काउट्स” की स्थापना की मांग भी करता हैं, जिसमे जम्मू एवं कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र के गुज्जर नौजवानों को भर्ती किया जाए| 

जम्मू एवं कश्मीर के गुज्जरों की देशभक्ति को नमन हैं, वे देश की रक्षा के लिए लड़ने के लिए सेना में गूजर रेजिमेंट की मांग करते हैं| यह मांग अन्य राज्यों के हिन्दू गुर्जर/गूजर/गुज्जर भी करते रहें हैं| 1891 की जनगणना के अनुसार गूजर एक प्रभुत्वशाली सैनिक जाति (Military and dominant caste) हैं| वर्तमान में राजपूत रेजिमेंट में लगभग 45 % गुर्जर हैं| मशहूर मानवशास्त्री एम एन श्रीनिवास के अनुसार गूजर उत्तर भारत के चार प्रभुत्वशाली जातियों- अहीर, जाट, गूजर, राजपूत (अजगर) में से एक हैं| अमेरिकी मानवशास्त्री ग्लोरिया गोडविन रहेजा के अनुसार वो गाँव में क्षत्रिय और यजमान की भूमिका निभाते हैं| विदेशियों से देश की रक्षा करने का गुर्जरों का लम्बा इतिहास हैं| उज्जैन-कन्नौज के गुर्जर प्रतीहारो ने 725 ई. के लगभग से 1025 के लगभग तक अरब साम्राज्यवाद से देश की रक्षा की| दसवी-ग्यारहवी शताब्दी में काबुल, जाबुल और उदानभंड के शाही वंश (खटाना वंश) के जयपाल, आनंदपाल और त्रिलोचनपाल का महमूद गजनवी से ऐतिहसिक संघर्ष रहा हैं, जिन्होने विदेशी तुर्कों के विरुद्ध उत्तर भारत के शासको का परिसंघ बनाकर भारत की रक्षा का प्रयास किया|| बाबरनामा के अनुसार बाबर के आक्रमण के विरुद्ध नमक की पहाडियों में और स्यालकोट में गूजर और जाटो का संघर्ष हुआ| शेर शाह सूरी के विरुद्ध दिल्ली में गूजरों का विद्रोह हुआ, जिसमे पाली और पाखल के भडाना गूजरों की विशेष भूमिका थी| अंग्रजो के विदेशी शासन के विरुद्ध 1824 में राजा विजय, कुंजा बह्दुरपुर, निकट रूडकी, हरिद्वार और कलुआ गूजर का विद्रोह तथा 1857 में लगभग पश्चिमी-उत्तर भारत में अंग्रेजो के खिलाफ गूजरों का विद्रोह उनकी बहादुरी और देशभक्ति की मिसाल हैं| राजस्थान में बिजोलिया आन्दोलन के नायक विजय सिंह पथिक का अंग्रेज समर्थित सामंशाही के विरुद्ध संघर्ष भारतीय इतिहास की अमिट कहानी हैं| गुर्जरों की उपरोक्त बहादुरी और देशभक्ति से परिपूर्ण सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में, जम्मू एवं कश्मीर में गुज्जर स्काउट्स अथवा सारे देश के गुर्जरो की गुर्जर रेजिमेंट की मांग अनुचित नहीं हैं| 

 सन्दर्भ- 
 1. Haji Mohd. Ashra, The heroes of Gujjars of J&K, Early Times e Paper, 3, May 2025           https://www.earlytimes.in/newsdet.aspx?q=249766

2. Shahid Ahmed Hakla Poonchi, Roar of the brave – the call for a Gujjar regiment in Indian Army, Kashmir Images, 3 May 2025 

3. Rukhsana Kausar (article), https://en.wikipedia.org/wiki/Rukhsana_Kausar

4. कृष्ण मोहन मिश्र, ऑपरेशन सर्प विनाश : जब आतंकियों पर काल बनकर टूटे थे गुज्जर, मार डाले थे 65 आतंकी, Zee News, हिंदी, दिनांक-3 जनवरी 2021 1.   https://zeenews.india.com/hindi/india/operation-sarp-vinash-army-with-gujjars-launched-campaign-against-terrorists-in-pir-panjal-hills/820794

5. हिल काका के लोगों की गुहार- हम आतंकियों से लड़ लिए लेकिन सड़क नहीं बनवा पाए, दैनिक भास्कर, 1.   https://www.bhaskar.com/news/mh-mum-omc-hill-kaka-terror-area-5276994-pho.html

6. “The community members in a programme organised by Tribal Research and Cultural Foundation here today expressed strong resentment over unwarranted delay in raising of ‘Gujjar Scouts’ which stands approved in J&K.”.... 

“The speakers questioned that why the decision of Government of India taken on December 22, 2003 has not been implemented where under it was approved that a new force comprising Gujjars and Bakarwals of Jammu and Kashmir would be raised for deployment on the difficult terrains of the State to serve for the security of the people residing in border and Pir Panchal area of the State. The proposed force was to be named as the “Gujjar scouts” and was designed to be framed on the pattern of Ladakh Scouts. 

The speakers said that even it was reported in a section of press that the Cabinet Committee on Security (CCS) had also approved this proposal in January 2004.” -Shams Irfan, Gujjars seek Support for Raising ‘Gujjar Regiment’ in Army, Kashmir Life, 18 January 2015 https://kashmirlife.net/gujjars-seek-support-for-raising-gujjar-regiment-in-army-71943/


8. Set up Gujjar scouts on Ladakh scouts’ pattern | JK News Today, 25 August 2021 https://www.youtube.com/watch?v=gPMy98KllsM

9. Centre gives nod to Gujjar Scouts in J&K The Government has given its approval to raise a new force comprising Gujjars and Bakkarwals of Jammu and Kashmir for deployment on the difficult terrains of the state to check infiltration from Pakistan and take on mercenaries and local militants in these areas. The force to be named as the Gujjar Scouts will be formed on the pattern of Ladakh Scouts and attached to an Army unit. The government in 1963 had formed the Ladakh Scouts in the wake of 1962 war against China. The Ladakh Scouts or the "Snow Tigers", comprising local Buddhists and Tibetan commandos, is one of the Army's most decorated units with more than 300 gallantry awards to its credit, including one Ashok Chakra, ten Mahavir Chakras and two Kirti Chakras. It was the first unit of the Indian Army to successfully launch the counter strike against Pakistani incursions in the 1999 Kargil operations in the Batalik sector.- Sify News 18 Dec 03 https://archive.ph/rlOZp#selection-4205.0-4221.19

10. P N K Bamzai, Culture and Political History of Kashmir, Vol 1, Delhi, 1994, p 419-424 

11. S C Sharma, Ethnic Identities- Gujjar Problem (Article), Ethnic Rural And Gender Issues In Contemporary North-West, New Delhi, 2005, p 102 https://books.google.co.in/books?isbn=8179750205

12.  Javaid Rahi, The Gujjars Vol 1, Srinagar/Jammu 2012,p 150



Monday, March 31, 2025

अमर शहीद राजा फतुआ गूजर

डॉ. सुशील भाटी 

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय सैनिकों और आम जनता का एक बड़ा विद्रोह था। यह विद्रोह उत्तर भारत में मुख्य रूप से मेरठ, बुलंदशहर, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी आदि स्थानों पर केंद्रित था, किन्तु सहारनपुर क्षेत्र में भी इसका व्यापक प्रभाव हुआ। 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोही सैनिको के अतिरिक्त धन सिंह कोतवाल के नेतृत्त्व में वहाँ की पुलिस, सदर बाज़ार की भीड़ और आस-पास के हजारो गूजरों ने स्वतंत्रता संग्राम का विस्फोट कर दिया| जैसे ही यह खबर सहारनपुर पहुँची वहाँ के गूजरों ने बुड्ढा खेडा गाँव के फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया|

सहारनपुर का गंगोह क्षेत्र इस विद्रोह का एक बड़ा केंद्र था| गंगोह क्षेत्र में गूजरों के बटार गोत की बाहुल्यता हैं| इस क्षेत्र में बटार गूजरों के 52 गाँव हैं, जोकि “बटारो की बावनी” के नाम से मशहूर हैं| बटारो के अधिकांश गाँव नकुड और गंगोह के बीच स्थित हैं| दूधला गाँव इस क्षेत्र में बटारो का मूल गाँव माना जाता हैं, कहते हैं कि इनके पूर्वज मुल्तान से आकर सबसे पहले दूधला गाँव में बसे थे, जहाँ से वो 52 गाँवों में फ़ैल गए| एक अनुमान के अनुसार 52 गाँवो में से 23 गाँव में मुस्लिम तथा शेष 29 गाँव में हिन्दू गूजर निवास करते हैं| गंगोह से लगभग 6 किलोमीटर दूर स्थित मुस्लिम गूजरों का बुड्ढा खेडा गाँव हैं जहाँ बटारो की बावनी की चौधर थी| इस गाँव के मुस्लिम गूजर राव फतुआ गूजर “बटारों की बावनी” के चौधरी थे|  राव फतुआ गूजर मिटटी के किले के अन्दर लखोरी ईंटो से बने महल में रहते थे, उनके पास कई हज़ार बीघा जमीन की मिल्कियत थी|  हिन्दू-मुस्लिम गूजर समान रूप से उन्हें अपना सरदार अथवा चौधरी मानते थे| 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में राव फतुआ गूजर ने सहारनपुर क्षेत्र में हिन्दुस्तानियों का नेतृत्त्व किया| सहारनपुर क्षेत्र के गूजरों के अतिरिक्त कुंडा कलां, उमरपुर, मानपुर आदि गाँवो के मुस्लिम राजपूत, जिन्हें रांघड कहा जाता हैं, ने भी राव फतुआ गूजर का साथ दिया था|

सहारनपुर में इस विद्रोह के पीछे जनपद के गूजरों के राजनैतिक उद्देश्य भी थे| जिन्हें समझने के लिए हम सहारनपुर जिले के गूजरों की सामाजिक-राजनैतिक पृष्ठभूमि को समझना आवश्यक हैं| नेविल द्वारा लिखित सहारनपुर डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर के अनुसार पहले सहारनपुर जिले एक बड़े भाग को गुजरात कहा जाता था| वह कहता कि जिले के तीन भाग माने जाते हैं, इनमे से केन्द्रीय भाग, जिसमे गंगोह, रामपुर और नकुड क्षेत्र आते हैं, के अतिरिक्त मुज़फ्फरनगर का लगा हुआ क्षेत्र गुजरात कहलाता था| एरिक स्टोक्स पीजेंट आर्म्ड पुस्तक में बताते हैं कि इस गुजरात में मुज़फ्फरनगर जिले के कैराना और झिंझाना परगना भी सम्मिलित थे| इस प्रकार गंगोह के चारो तरफ विस्तृत बटार गूजरों की बावनी गुजरात का हिस्सा थी| इस बावनी के अतिरिक्त उक्त गुजरात में खूबड़ पंवार गूजरों की चौरासी, राठी गूजरों का बारहा, छोक्कर गोत के गूजरों का बारहा, तंवर गूजरों का बारहा, धूलि गोत के गूजरों का बारहा, कैराना के कल्सियान चौहान गूजरों की चौरासी जैसी मज़बूत खाप थी| सहारनपुर जिले में गूजर सबसे बड़े भूमिपति थे| तत्कालीन सहारनपुर जनपद में स्थित लंढोरा रियासत के राजा भी गूजर थे| लंढोरा रियासत में करीब आठ सौ गाँव थे, जोकि जवालापुर, निकट हरिद्वार से लेकर बहसूमा तक फैले हुए थे| अतः अठारवी शताब्दी में सहारनपुर जनपद में गूजर सामाजिक और राजनैतिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली जाति थी| किन्तु 1813 में लंढोरा के राजा रामदयाल गूजर का निधन होने के बाद अंग्रेजो ने रियासत को कई ताल्लुको में बाँट दिया, और रियासत का बड़ा भाग अपने पास रख लिया| इस वज़ह से गूजरों में एक भारी राजनैतिक असंतोष था| इसी कारण से 1824 में भी ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध गूजर विद्रोह हो चुका था, जिसका नेतृत्व कलुआ गूजर और कुंजा बहादुरपुर के ताल्लुकेदार विजय सिंह गूजर ने किया था| गुजरात (सहारनपुर) के गूजर ब्रिटिश शासन को उखाड़ कर पुनः अपना गूजर राज़ स्थापित करना चाहते थे| फतुआ गूजर ने क्षेत्रीय गूजरों की भावनाओ के अनुरूप अंग्रेजो को अपने पूर्वजों के क्षेत्र गुजरात से बाहर निकालने का आव्हान किया| उसके आव्हान पर पूरे जिले के गूजर इस स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े| मुस्लिम राजपूत रांघडो ने भी उनका साथ दिया|

सहारनपुर गज़ेटियर के अनुसार 12 मई 1857 को मेरठ में सैनिक और आम जनता के विद्रोह की खबर सहारनपुर पहुँच गई| उस समय आर. स्पेंकी जिले में मजिस्ट्रेट और एच. डी. रोबर्टसन जॉइंट मजिस्ट्रेट थे| जिले के गूजरों और रांघडो ने अपनी विद्रोही गतिविधियाँ आरम्भ कर दी| 21 मई को सहारनपुर के निकट उन्होंने मुल्लीपुर गाँव को लूट लिया| गूजर और रांघड किसान अंग्रेजो की राज़स्व नीति से भी असंतुष्ट थे| लगान बहुत अधिक था, और लगान चुकाने के लिए साहुकारो से भारी सूद पर ऋण लेना पड़ रहा था| उनकी ज़मीने नीलाम हो रही थी| साहुकारो को अंग्रेजी प्रशासन तहसील-थानों का संरक्षण प्राप्त था| अतः जैसे ही मेरठ में सैनिक और आम जनता के विद्रोह की खबर सहारनपुर पहुंची, गूजर और रांघडो ने साहुकारो और बैंकरो को लूटना आरम्भ कर दिया और ब्रिटिश राज के दमन के प्रतीक तहसील, थानों, और जेलों को निशाना बनाने की योज़ना बनाने लगे| 27 मई को जॉइंट मजिस्ट्रेट रोबर्टसन ने क्रांतिकारी गूजरों के बाबूपुर, फतेहपुर, सांपला बकल आदि गाँवो पर हमला किया| लगभग 400 विद्रोहियों ने जमकर अंग्रेजो का मुकाबला किया| सैकड़ो विद्रोही मारे गए| अंग्रेजो की जीत हुई विद्रोही गाँवो का जला दिया गया| 30 मई को मजिस्ट्रेट स्पेंकी मंगलौर पहुँच गया जहाँ जॉइंट मजिस्ट्रेट रोबर्टसन भी अपनी सेना लेकर पहुँच गया| मंगलौर को आधार बनाकर उन्होंने मानिकपुर आदमपुर गाँव पर हमला किया| इस गाँव के उमराव सिंह गूजर ने अपने आप को राजा घोषित कर आस-पास के क्षेत्रो से लगान वसूलना आरम्भ कर दिया था| अंग्रेज उमराव सिंह को पकड़ने में नाकामयाब रहें, और उन्होंने गाँव को आग में जलाकर खाक कर दिया| 

उमराव सिंह के बलिदान के बाद जिले के क्रांतिकारियों का नेतृत्त्व पूरी तरह से फतुआ गूजर के हाथो में आ गया| फतुआ गूजर की पुकार पर बटारो की बावनी सहित सम्पूर्ण गुजरात अंग्रेजो के विरुद्ध एकजुट हो गया| फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में लगभग 3000 हिन्दू-मुस्लिम गूजरों और रांघडो ने गंगोह में ब्रिटिश पुलिस चौकी पर हमला बोल दिया, और पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया| उसके बाद राजा फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने गंगोह से नकुड की तरफ कूच कर दिया| संढोली गाँव के चौधरी फ़तेह सिंह भी अन्य विद्रोहियों के साथ नकुड पहुँच गएँ| इनके अतिरिक्त टाबर गाँव के बख्शी राजपूत भी अपने साथियों के साथ फतुआ गूजर के समर्थन में नकुड पहुँच गए| फतुआ गूजर की अगुआई में स्वतंत्रता सेनानियों ने नकुड तहसील और पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया| सभी राज़स्व सम्बंधी दस्तावेज़ और महाजनों के खाते जला कर ख़ाक कर दिए गए| अंग्रेज परस्त साहुकारो को भी नहीं बख्शा गया| उनकी हवालियो और घरो पर भी हमला बोल सभी प्रकार के बही खाते जला दिए गए| नकुड के बाद सरसावा का भी यही हश्र हुआ| इब्राहिमी गाँव के आलियाँ खटाना भी फतुआ गूजर के प्रमुख सहयोगी थे| सरसावा की क्रांतिकारी घटनाओ में चौधरी आलियाँ खटाना की विशेष भूमिका थी|

20 जून को नकुड के घटानक्रम की जानकारी होने पर जॉइंट मजिस्ट्रेट रोबर्टसन तुरंत वहाँ पहुँच गया| उसका साथ 30 गोरखा और 40 पटियाला घुडसवार थे| उसने देखा की विद्रोही जा चुके थे, और तहसील और पुलिस थाने से आग की लपते उठ रही थी| अंग्रेजी प्रशासन के अनुसार मुसलमानों के घरो को छोड़ कर पूरे नकुड कस्बे को लूट लिया गया था| 

क्षेत्र की जनता ने पंचायत कर फतुआ गूजर को राजा घोषित कर दिया| फतुआ गूजर का राजा घोषित किया जाना ब्रिटिशराज को खुली चुनौती थी| ब्रिटिश प्रशासन इन घटनाओ से बहुत चिंतित हो गया| उसने फतुआ गूजर के जिन्दा या मुर्दा पकडवाने पर 200 रूपए का इनाम घोषित कर दिया, जोकि उस ज़माने में एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी|

अंग्रेजी प्रशासन ने प्रतिक्रिया और बदले की कार्यवाही आरम्भ कर दी| सबसे पहले फतेहपुर गाँव पर रोबर्टसन ने उपरोक्त वर्णित अपनी सेना लेकर आक्रमण किया| आस-पास के सभी गाँव फतेहपुर की रक्षा के लिए एकत्रित होकर वहाँ पहुँच गये| रोबर्टसन को पीछे हटना पड़ा| दो दिन बाद 22 जून को बोईसरगोन अपनी गोरखा सेना के साथ वहाँ पहुँच गया| स्वतंत्रता सेनानियों और अंग्रेजो की सयुक्त सेना के बीच जमकर युद्ध हुआ| जिसमे भारतीय भारी मात्रा में शहीद हुए| विजेता अंग्रेज सेना ने फतेहपुर और आस-पास के चार गाँवो में आग लगा उन्हें नष्ट कर दिया| 23 जून को संढौली और रणदेवा आदि क्रांतिकारी  गाँवों को अंग्रेजो ने रोबर्टसन के नेतृत्त्व में आग लगा दी| ब्रिटिश विरोधी इस संघर्ष में अम्बेहटा के आस-पास के घाटमपुर आदि गाँव भी सक्रिय थे, कितु उसके बाद जॉइंट मजिस्ट्रेट रोबर्टसन ने उन्हें छोड़ सेना के साथ गंगोह की तरफ रुख किया और गूजरों के मुख्यालय, राजा फतुआ गूजर के गाँव बुड्ढा खेडा पर हमला कर दिया| फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में भारतीयों ने मिटटी के किले में मोर्चा लिया| गूजर, रांघड आदि बहादुरी से लडे किन्तु अंग्रेजो ने हाथी की सहायता से किले का दरवाज़ा तोड़ दिया| अंग्रेजी सेना के आधुनिक हथियारों के समक्ष समक्ष भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को हार का सामना करना पड़ा| अनेक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए| राजा फतुआ गूजर अपने कुछ साथियों के साथ वहाँ से सुरक्षित निकलने में कामयाब रहें| अंग्रेजो ने गुस्से में राजा फतुआ गूजर के किले को गिरा दिया, उनके महल को भी तोड़ -फोड़ दिया|

फतुआ गूजर अपने बचे हुए साथियों के साथ यमुना खादर के जंगलो में चले गए| रोबर्टसन ने उन्हें   घेरने का प्रयास किया| इस उपक्रम में बोईसरगोन ने एक सेना के साथ 26 जून को रांघडो के उमरपुर और मानपुर गाँवो पर आक्रमण किए, जहाँ भारतीयों की भारी शाहदत के बाद अंग्रेज विजयी हुए| कुंडा कलां गाँव के रांघड फतुआ गूजर के विशेष समर्थक थे अतः अंग्रेजो ने इस गाँव पर भी हमला किया, जहाँ भारी रक्त-पात हुआ और भारतीय का भारी बलिदान हुआ| 

उसके पश्चात् सभवतः 27 जून को गंगोह के समीप राजा फतुआ गूजर और अंग्रेजो के बीच निर्णायक युद्ध हुआ| भारतीय बहादुरी से लड़ें किन्तु पराजित हुए, इस युद्ध में हजारो की तादात में स्वतंत्रता सेनानी शहीद हुए, कहते हैं कि भूमि पर शहीदों का इतना रक्त गिरा कि वहाँ की भूमि सुर्ख (लाल) हो गई| आज भी यह स्थान बलिदान स्थल सुर्खेवाला कहलाता हैं|

अंग्रेज अधिकारियो और कुछ यूरोपीय इतिहासकारों के अनुसार के सहारनपुर में विद्रोह का मुख्य कारण नकुड और उसके आस-पास के कट्टर मुसलमान थे, जिन्होंने असंतुष्ट हिन्दुओ को विशेषकर गूजरों को ब्रिटिश शासन के प्रति भड़का दिया था|किन्तु जिस प्रकार फतुआ गूजर के नेतृत्त्व में क्रांतिकारी भीड़ ने नकुड तहसील के राजस्व रिकार्ड्स और साहुकारो की हवेलियों और बहीखातो को अपना निशाना बनाया उससे साफ़ पता चलता हैं कि आम व्यक्ति और किसान अंग्रेजी की भू-राज़स्व व्यवस्था से नाराज़ था| आम व्यक्ति की नज़र में लगान बहुत अधिक था, जिसे चुकाने के लिए वह साहुकारो के ऋण जाल में जकड़ा हुआ महसूस कर रहा था| फतुआ गूजर के वर्तमान पारावारिक वंशज चौधरी ताहिर गूजर बताते हैं कि स्वयं बाबा फतुआ गूजर पर भारी मात्रा में राज़स्व बकाया था, जिस कारण से उन्हें अंग्रेजी प्रशासन ने प्रताड़ित किया था| यह भी सच हैं कि अठारवी शताब्दी में सहारनपुर का एक बड़ा हिस्सा गूजर जाति की बाहुल्यता और सामाजिक राजनैतिक वर्चस्व के कारण गुजरात कहलाता था| अतः फतुआ गूजर के लिए गुजरात (सहारनपुर) उसके पूर्वजों का पारंपरिक क्षेत्र था, जहाँ से वह अंग्रेजो को बाहर निकलकर पुनः गूजर राज की स्थापना करना चाहता थे| अंग्रेजो ने सहारनपुर में लड़ें गए इस स्वतंत्रता संग्राम को गूजरों और सहयोगी जातियों की लूटमार कहकर खारिज करने की बेशर्म कोशिश भी की हैं| परन्तु कई हजारो की तादात में गूजर और सहयोगी जातियो के लोगो का एकत्रित होकर ब्रिटिश राज़ के प्रतीक चिन्ह तहसील थानों को नष्ट कर आग लगा देने को लूटमार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता हैं, निश्चित ही यह संघर्ष एक स्वतंत्रता संग्राम था| 

1857 की इस जनक्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की कीमत राजा फतुआ गूजर के गाँव वासियों को भी चुकानी पड़ी| ग्रामवासियों के अनुसार राज़स्व रिकॉर्ड में बुड्ढा खेडा गाँव कच्चा घोषित कर दिया गया और वहाँ के निवासियों की सभी जमीन-जायदाद जब्त कर ली गई| ईस्ट इंडिया कंपनी के दमन से बचने के लिए बुड्ढा खेडा गाँव के कुछ वाशिंदे भिस्सल हेडा गाँव में भी जाकर बस गए| राजा फतुआ गूजर और उनके गाँव बुड्ढा खेडा के बलिदान के बाद बटार गूजरों की चौधर भी वहाँ से चली गई| आज बटार गूजरों की बावनी के चौधरी शेरमऊ गाँव में रहते हैं|

आज़ादी के बाद राजा फतुआ गूजर को इतिहास लेखन में वह महत्वपूर्ण स्थान नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे| लेकिन प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने सहारनपुर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध खड़ा किया| उनका नाम स्थानीय प्रतिरोध का प्रतीक बन गया था| आगामी पीढियां के लिए वो एक प्रेरणा का स्रोत बन गए| उनका विद्रोह भारतीय जनता की आज़ादी की आकांक्षाओं का प्रतीक था। उनके ब्रिटिश विरोधी संघर्ष की लोक स्मृति ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की भावना को जीवित रखा।

राजा फतुआ गूजर के किले/महल की दीवार के अवशेष 

1980 के दशक तक राजा फतुआ के महल के अवशेष काफी अच्छी अवस्था में देखे जा सकते थे| किन्तु किसी संरक्षण के आभाव में वर्तमान में वहाँ महल की सिर्फ एक दीवार शेष रह गई हैं| वर्तमान में चौधरी ताहिर गूजर अपने परिवार के साथ उस स्थान पर रहते हैं, जहाँ फतुआ गूजर का महल था| चौधरी ताहिर गूजर ने अपने घर के निर्माण लिए महल की इस अवशेष दीवार को प्रयोग में ले रखा हैं| वो स्वयं को राजा फतुआ गूजर का वंशज बताते हैं| क्षेत्रीय लोगो के अनुसार भी वे राजा फतुआ गूजर के भाई के वंशज हैं|

आम समाज और आज़ाद देश की सरकारों द्वारा राजा फतुआ गूजर के बलिदान को भुला दिया गया| उनके वंशज भी आज गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं| कुछ वर्षो से कुछ समाजसेवियों ने इस तरफ थोडा ध्यान दिया हैं| क्षेत्र के एक युवा मुस्तकीम चौधरी राजा फतुआ गूजर के नाम से गंगोह में “हेरोज़ मेमोरियल हाई स्कूल” में कोचिंग सेंटर चलाते हैं| कुछ वर्षो से क्षेत्र के समाजसेवी फतुआ गूजर के बलिदान की याद में कार्यक्रम भी करते हैं, परन्तु प्रदेश सरकारो ने अभी तक इस शहीद को सम्मान देने की तरफ ध्यान नहीं दिया| उनके नाम पर किसी चौक-चौराहे, सड़क, स्कूल, महाविद्यालय, संसथान आदि का नामकरण, किसी स्मारक का निर्माण, उनके गाँव को शहीद गाँव का दर्ज़ा और उनके परिवार को आर्थिक सहायता समय की मांग हैं|

सन्दर्भ-

1. H. R. Nevill, Saharanpur: A Gazetteer, Allahabad, 1909, p 101

2. Dangli Prasad Varun, Uttar Pradesh District Gazetteer: Saharanpur, Lucknow, 1981, p 64

3. Eric Stroke, Peasant Armed, Oxford, 1986, p 199, 207

4. Ranajit Guha, Elementary Aspects of Peasant Insurgency in Colonial India, p 313, 318, 321

5. सुशील भाटी, 1857 की जनक्रांति के जनक धन सिंह कोतवाल, दी जर्नल ऑफ़ मेरठ यूनिवर्सिटी हिस्ट्री एलुमनाई, खण्ड XII, 2008, पृष्ठ 62-66

6. सुशील भाटी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत राजा विजय सिंह- कल्याण सिंह, प्रकाशक- अशोक चौधरी, मेरठ, 2002

7. R C Majumdar, History of Freedom Movement in India, Vol. 1, Firma K. L. Mukhopadhyay, 1971, p 155

8. R C Majumdar, The History and Culture of the Indian People: British paramountcy and Indian renaissance, pt. 1, G. Allen & Unwin, 1951, p 503

9. R C Majumdar, The Sepoy Mutiny and the Revolt of 1857, Firma K. L. Mukhopadhyay, 1963, p 106 

10. S B Chaudhari, Civil Rebellion in Indian Mutinies, 1857-1859, 1957, p 77, 287

11. Denzil Ibbetson, Tribes and castes of Panjab, Lahore, 1916

12. Biswamoy Pati, The 1857 Rebellion, Oxford University Press, 2007, p 90

13. श्री मुस्तकीम चौधरी, निवासी गुज्जरवाडा, गंगोह का साक्षात्कार एवं दूरभाषवार्ता|

14. चौधरी बलबीर सिंह तोमर, निवासी डूभर किशनपुर, सहारनपुर से दूरभाषवार्ता साक्षात्कार |

15.  चौधरी मुस्लिम चौहान, निवासी ग्राम गढ़ी भरल, ब्लाक घरोंडा, जिला करनाल से दूरभाषवार्ता साक्षात्कार|

राजा फतुआ गूजर के वर्तमान वंशज चौधरी ताहिर गूजर के साथ डॉ. सुशील भाटी