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Saturday, August 13, 2022

1857 की जनक्रांति की ज्वाला - राव उमराव सिंह भाटी

डॉ. सुशील भाटी

1857 की ब्रिटिश ईस्ट इंडिया विरोधी जनक्रांति में तत्कालीन बुलंदशहर जिले स्थित भटनेर के राजा उमराव सिंह भाटी की एक प्रचण्ड ज्वालामयी भूमिका हैं| यहाँ उनके नेतृत्त्व में भारतीयों ने जो विद्रोह किया उसकी भीषणता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि अंग्रेजो ने गुर्जरों को सबसे बुरा विद्रोही (Worst rebel) खिताब से नवाज़ा हैं| राव उमराव सिंह भाटी बुलंदशहर स्थित दादरी क्षेत्र के अंतिम राजा राव रोशन सिंह के भतीजे थे|1804 में जब अंग्रेज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काबिज़ हुए थे, उस समय दादरी रियासत में 133 गाँव थे|

विद्रोह के कारण- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध इस विद्रोह के क्रम को आगे जानने से पहले इसके कारणों से रूबरू होना आवश्यक हैं| राव उमराव सिंह भाटी के नेतृत्व में हुए गूजर विद्रोह के कारण उनकी आर्थिक शिकायते और राजनैतिक महत्वाकांक्षा थी| दादरी परगने में गूजर महत्वपूर्ण भूमि धारक थे| 1839-59 के ब्रिटिश भूमि बंदोबस्तो के कारण यहाँ इनके नुकसान विचारणीय हैं| बंदोबस्त के अंत में दनकौर क्षेत्र में उनके पास 114 में से 48 गाँव थे, 18 गाँव उनके हाथ से निकल गए थे| ब्रिटिश शासन में गूजरों के घटते राजनैतिक प्रभाव ने भी असंतोष उत्पन्न कर दिया| ईस्ट इंडिया कम्पनी के आरम्भ के समय तीन गूजर सरदारों रामदयाल सिंह, लंढोरा रियासत - 804 गाँव, नैन सिंह, परीक्षतगढ़ रियासत- 350 गाँव और अजीत सिंह, दादरी-भटनेर रियासत- 133 गाँव के पास मुकररदारी के रूप में उपरी दोआब का बड़ा हिस्सा था| किन्तु ब्रिटिश शासन की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण उनके वंशजो को पतन का सामना करना पड़ा और वे अधंकार और गर्त में समाने लगे| इस विद्रोह के पीछे राजनैतिक इरादे थे, यह इस बात से स्पष्ट हैं की राव उमराव सिंह ने विद्रोह के दौरान स्वयं को अपने क्षेत्र का राजा घोषित कर दिया था|

दादरी-सिकंदराबाद में विद्रोह का प्रारम्भ- मेरठ और दिल्ली के क्रन्तिकारी घटनाक्रमों के विषय में जानकारी प्राप्त होते ही 12 मई 1857 को दादरी और सिकन्दराबाद परगने के गूजरों ने डाक बंगले को आग लगा दी और टेलीग्राफ लाइन को नष्ट कर दिया| दादरी की तरफ विद्रोह सबसे तीव्र था

अंग्रेज अधिकारी टर्नबुल (Turnbull) ने  मेलविल्ले (Melville), ल्याल (Lyall) के साथ विद्रोही गूजरों के दमन के लिए कई अभियान किये| बढ़पुरा गाँव में अह्मान गूजर के बेटे भगवान सहाय ने टर्नबुल का ज़मकर मुकाबला किया| दरसल भगवान सहाय तीसरी देशी पैदल सेना (3rd Native Infantary) का सिपाही था, जिसने 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोह कर दिया था| उसके तुरंत बाद वह अपने गाँव बढ़पुरा आ गया और दादरी क्षेत्र में अंग्रेजो के विरुद्ध विद्रोह भड़काने के कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना रहा था| एक अभियान के दौरान टर्नबुल का मुकाबला दलेलगढ़ और रामपुर में एकत्रित गूजर विद्रोहियों से हुई, टर्नबुल ने उनमे से 46 लोगो को गिरफ्तार कर लिया, हालांकि राजपुर कलां के लोगो के बंदियों को रास्ते में छुड़ाने का असफल प्रयास किया, अंततः उन्हें बुलंदशहर जेल में बंद कर दिया गया|

बुलंदशहर पर हमला 20 मई तक बुलंदशहर का मजिस्ट्रेट साप्टे आश्वस्त था कि अगर दिल्ली (दिल्ली की क्रन्तिकारी सरकार) से गूजरों को कोई सहायता नहीं मिली तो वो बुलंदशहर पर कोई हमला नहीं करेंगे| 21 की सुबह बुलंदशहर के पडोसी जिले अलीगढ में नौवी देशी पैदल रेजिमेंट ने बगावत कर दी| सभी यूरोपियन अपने प्राणों की खातिर आगरा भाग गए| शाम 4:30 बजे साप्टे को खबर मिली की नौवी देशी पैदल रेजिमेंट बुलंदशहर से 12 मील दूर खुर्जा पहुँच गई हैं|

उसी दिन देवटा, तिलबेगमपुर, उत्तेह (Utteh), गेह्नाह आदि गाँव के गूजर तथा वेयेर, मेह्स्सेह और भोनरा के गिरूआ जाति के, सब मिलाकर 20,000 लोग बुलंदशहर पर हमला करने के उद्देश्य से कठेरहा जमींदार राव उमराव सिंह भाटी की सरपरस्ती में चीती गाँव में एकत्रित हो गए| वहां से इस क्रान्तिकारी जनसमूह ने बुलंदशहर की तरफ कूंच कर दिया| राव उमराव सिंह भाटी के अतिरिक्त पेमपुर के नवल, खूगआबास के सिब्बा, रामसहाय और भवरा, सिकन्दराबाद कस्बे के तोता और जाह्गीरा अन्य प्रमुख लोग इस जनसैलाब इस जनसैलाब का महत्वपूर्ण हिस्सा थे| लोगो का उद्देश्य बुलंदशहर में अंग्रेजो के शासन को उखाड़ फैकना था

उधर बुलंदशहर में अंग्रेजो ने खजाने को बैलगाडियो में लाद कर मेरठ भेजने की तैयारी शुरू कर दी| इस बीच दादरी और सिकंदराबाद परगने के लगभग 20,000 गूजरों ने राव उमराव सिंह भाटी के नेतृत्व में बुलंदशहर पर हमला कर दिया| विद्रोहियों ने ट्रेज़री को घेर लिया और बुलंदशहर जेल पर आक्रमण कर पूर्व में कैद कर लिए गए अपने साथियो को आज़ाद करा लिया| अंग्रेजो बहादुरी से लडे परन्तु विद्रोहियों के सामने टिक नहीं सके| मजिस्ट्रेट साप्टे, टर्नबुल (Turnbull), रोस (Ross), मेस्सेर्स (Messers), ल्याल (Lyall) आदि सभी अंग्रेज अधिकारी परिवारों सहित अपनी जान बचाकर मेरठ भागने को विवश हो गए| लगभग चार दिन तक अंग्रेज बुलंदशहर से नदारद रहे| इन चार दिनों में विद्रोहियों ने अपनी कार्यवाही ज़ारी रखते हुए, बुलंदशहर कचहरी को नष्ट कर दिया और सभी रिकॉर्ड जला दिए| इस प्रकार हम देखते हैं की अंग्रेजी सरकार के सभी प्रतीकों थाना, तहसील-कचहरी, जेल सभी जनता के कोप का भाजन बन गए| शहर की आम जनता और आस-पास के गाँवो के लोगो ने इस घटना में बहुत सक्रिय रूप से योगदान किया था| सेतली और हिरदेपुर के गूजरों की भी इस घटनक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका थी| अंग्रजो के अलीगढ और बुलंदशहर से भाग जाने के कारण मेरठ और आगरा के बीच स्थित क्षेत्र में विद्रोहियों की गतिविधियों बढ़ गई तथा अंग्रेजो का यातायात और संचार ठप हो गया|

चार दिन बाद सिरमोर बटालियन के बुलंदशहर आगमन के पर मजिस्ट्रेट साप्टे तथा अन्य अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी 26 मई 1857 को बुलंदशहर वापिस लौट आये|

वलीदाद खान के साथ मिलकर विद्रोह की योजना निर्माण- 26 मई को ही नवाब वलीदाद खान दिल्ली से मालागढ़ (बुलंदशहर के निकट) स्थित अपने किले में वापिस आया था| हालाकि वलीदाद खान के पिता अगौता क्षेत्र में मात्र 36 गाँव के साधारण जमींदार थे, परन्तु वलीदाद खान दिल्ली के बादशाह का रिश्तेदार था| वलीदाद खान की भांजी शहजादे मिर्ज़ा जवां बख्त को ब्याही थी| 11 मई 1857 को जब मेरठ से विद्रोही सैनिक दिल्ली पहुंचे, उस समय वह दिल्ली में ही था| विद्रोही सैनिको ने बहादुरशाह ज़फर को हिन्दुस्तान का बादशाह घोषित कर, दिल्ली में वैकल्पिक क्रांन्तिकारी सरकार का गठन कर लिया था| यमुना पार क्रन्तिकारी सरकार की स्थापना हेतु, बादशाह बहादुरशाह ज़फर ने वलीदाद खान इलाका-दोआब में बुलंदशहर और अलीगढ का सूबा नियुक्त कर दिया| उपरी दोआब में दादरी का राव परिवार बहुत प्रभावशाली था| राव दरगाही सिंह के ज़माने से इस परिवार के पास 133 गाँव की मुकर्रदारी (Estate) थी| मूलतः कठेहरा निवासी राव दरगाही सिंह ने दादरी में एक गढ़ी, बाज़ार और कचहरी का निर्माण कराया था| इसी परिवार से तालुक्क रखने वाले कठेहरा के जमींदार राव उमराव सिंह भाटी के नेतृत्व में दादरी और सिकन्दराबाद के गूजर और गिरुआ जाति के लोगो ने 21 मई 1857 को बुलंदशहर पर हमला बोल अंग्रेजी सरकार का सफाया कर दिया था| इस प्रकार इलाका दोआब में क्रन्तिकारी सरकार की स्थापना के लिए कठेहरा-दादरी के राव परिवार का सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण था| कुछ इसी प्रकार की सोच के साथ दिल्ली से मालागढ़ आते समय नवाब वलिदाद खान ने दादरी में राव परिवार के प्रमुख सदस्यों राव बिशन सिंह, राव भगवान सिंह तथा राव उमराव सिंह भाटी के साथ मुलाकात की| राव राव बिशन सिंह एवं राव भगवान सिंह दादरी के अंतिम मुकर्रदार राव अजीत सिंह के उत्तराधिकारी राव रोशन सिंह के पुत्र थे तथा राव उमराव सिंह राव रोशन सिंह के भतीजे थे| 1857 के विद्रोह के पश्चात बुलंदशहर के मुंसिफ के समक्ष दिए गए अपने बयान में शिवबंस राय वकील ने बताया था कि वलीदाद तथा दादरी के बिशन सिंह, भगवंत सिंह और उमराव सिंह आदि गूजरों ने बैठक कर सरकार का नष्ट करने की योजना बनायीं थी| राव उमराव सिंह भाटी भी दिल्ली में मुग़ल बादशाह एवं शहजादो के सम्पर्क थे|

हिंडन का युद्ध दिल्ली को पुनः जीतने के लिए अंगे्रजों की एक विशाल सेना प्रधान सेनापति बर्नाड़ के नेतृत्व में अम्बाला छावनी से चल पड़ी। सेनापति बर्नाड ने दिल्ली पर धावा बोलने से पहले मेरठ की अंग्रेज सेना को साथ ले लेने का निर्णय किया। अतः 30 मई 1857 को जनरल आर्कलेड विल्सन की नेतृत्व में मेरठ से ब्रिटिश सेना बर्नाड का साथ देने के लिए गाजियाबाद के निकट हिंडन नदी के तट पर पहुँच गई। किन्तु इन दोनों सेनाओं को मिलने से रोकने के लिए क्रान्तिकारी सैनिकों और आम जनता ने भी हिन्डन नदी के दूसरी तरफ मोर्चा लगा रखा था।

जनरल विल्सन की सेना में 60वीं शाही राइफल्स की 4 कम्पनियां, कार्बाइनरों की 2 स्क्वाड्रन, हल्की फील्ड बैट्री, ट्रुप हार्स आर्टिलरी, 1 कम्पनी हिन्दुस्तानी सैपर्स एवं माईनर्स, 100 तोपची एवं हथगोला विंग के सिपाही थे। अंग्रेजी सेना अपनी सैनिक व्यवस्था बनाने का प्रयास कर रही थी कि भारतीय क्रान्तिकारी सेना ने उन पर तोपों से आक्रमण कर दिया। भारतीयों की सेना की कमान मुगल शहजादे मिर्जा अबू बक्र के हाथ में थी| दादरी के राव रोशन सिंह, उनके पुत्र बिशन सिंह और भगवंत सिंह और उनके भतीजे उमराव सिंह तथा मालागढ़ के नवाब वलीदाद खान प्रमुख भूमिका में थे| भारतीयों की सेना में बहुत से घुड़सवार, पैदल और घुड़सवार तोपची थे। भारतीयों ने तोपे पुल के सामने एक ऊँचे टीले पर लगा रखी थी। भारतीयों की गोलाबारी ने अंग्रेजी सेना के अगले भाग को क्षतिग्रस्त कर दिया। अंग्रेजों ने रणनीति बदलते हुए भारतीय सेना के बायें भाग पर जोरदार हमला बोल दिया। इस हमले के लिए अंग्रेजों ने 18 पौंड के तोपखाने, फील्ड बैट्री और घुड़सवार तोपखाने का प्रयोग किया। इससे क्रान्तिकारी सेना को पीछे हटना पड़ा और उसकी पाँच तोपे वही छूट गई। जैसे ही अंग्रेजी सेना इन तोपों को कब्जे में लेने के लिए वहाँ पहुँची, वही छुपे एक भारतीय सिपाही ने बारूद में आग लगा दी, जिससे एक भयंकर विस्फोट में अंग्रेज सेनापति कै. एण्ड्रूज और 10 अंग्रेज सैनिक मारे गए। इस प्रकार इस वीर भारतीय ने अपने प्राणों की आहुति देकर अंग्रेजों से भी अपने साहस और देशभक्ति का लोहा मनवा लिया। एक अंग्रेज अधिकारी ने लिखा था कि ऐसे लोगों से ही युद्ध का इतिहास चमत्कृत होता है|

यह युद्ध दो दिन तक चला परन्तु ऐसा प्रतीत होता हैं कि राव उमराव सिंह 30 मई की रात में ही सिकंदराबाद क्षेत्र के तिलबेगमपुर गाँव आ गये थे| सभवतः इस युद्ध में राव रोशन सिंह और उनके दोनों पुत्र शहीद हो गए थे| सिरमोर बटालियन ने 30 मई की शाम को बुलंदशहर से गाजीउद्दीननगर (गाज़ियाबाद) के लिए कूंच कर दिया था| इस प्रकार सिकंदराबाद के पर हमले के लिए एक अच्छा अवसर प्राप्त हो गया था|   

सिकन्दराबाद पर हमला-  विद्रोहियों ने चीती, देवटा, तिलबेगमपुर और दादरी आदि गाँवो में सिकन्दराबाद पर हमले के सम्बन्ध में पंचायते हुई| खूगाबास के लोगो ने तथा नंगला नैनसुख के झंडू ज़मींदार गूजरों के गाँव-गाँव गए और अपनी पगड़ी फेककर लोगो को विद्रोह के लिए प्रेरित किया और तिलबेगमपुर में पंचायत में इक्कठा किया| क्षेत्र के गिरूआ और गहलोत राजपूत भी इस पंचायत में मौजूद थे| 30 मई 1857 की शाम को मेजर रीड (Reid) सिरमोर बटालियन को लेकर जनरल विलसन की सहयता के लिए गाजीउद्दीननगर (गाज़ियाबाद) चला गया| इसकी सूचना मिलते ही 31 मई 1857 को 20 हज़ार गूजर, गिरूआ और राजपूतो ने राव उमराव सिंह भाटी की अगुवाई में सिकंदराबाद पर हमला बोल दिया| सिकन्दराबाद के तहसीलदार, कोतवाल और रिसालदारो ने अंग्रेजो के वफादार काजी कमालुद्दीन के घर में छिप कर जान बचाई| कस्बे के लोग बदहवास अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग गए| विद्रोहियों की संख्या इतनी अधिक थी कि क़स्बा वासियों ने उनसे लड़ने या विरोध का साहस नहीं किया| लुहारली के मजलिस जमींदार, मसोता के इन्दर और भोलू, चीती गाँव के कल्लू जमींदार, तिलबेगमपुर के जमींदार पीर बक्श खान, लडपुरा के जमींदार कुमसेन, सलेमपुर निवासी लछमन, रामपुर के निवासी, मुन्द्स्सेह के ज़मींदार फब्तेह (फत्तेह), अंधेल के नामदार खान, सांवली (Sownlee) के मेदा और बस्ती, खूगआबास के सिब्बा, रामसहाय गूजर और भौरा, हिरदेपुर के मुल्की, नंगला चुमराव के बंसी जमींदार, सेंतली के मंगनी ज़मींदार, नंगला नैनसुख के झंडू ज़मींदार, चिठेडा का फत्ता गूजर (Futtah Goojar), मेस्सेह के देबी सिंह जमींदार, वेयेर (वेयेर) के हरबल, खोबी और दिलदार, मुन्द्स्सेह के ज़ब्तेह खान ज़मींदार, पेमपुर के कदम गूजर, गढ़ मुक्तेश्वर के रईस तह्वुर अली खान, मह्चेह के जमींदार, घरबरा के जमींदार, हरनोवती के ज़मींदार, भोनरा के गिरूआ, कलोवंदेह के जमींदार, नंगला-समनाह, कोव्नराह और जरचा (Jurchah), छोलास (Chholas), पर्स्सेह (Parsseh) आदि गाँवो ने इस घटना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| सिकन्दराबाद के आस-पास के सभी गूजर और गिरूआ जाति के गाँवो ने इस विद्रोही गतिविधि में बढ़-चढ़ कर भाग लिया|

इस घटना में सिकन्दराबाद में 1000 अंग्रेज परस्त लोग मारे गए और उनकी लगभग 2 करोड़ रुपयो की सम्पत्ति का नुकसान हुआ| कई हज़ार लोग जान बचाकर बुलंदशहर भाग आये| यह घटनाक्रम चार दिन तक चलता रहा, बार-बार सहयता की गुहार के बावजूद, बुलंदशहर का मजिस्ट्रेट साप्टे सिकन्दराबाद जाने का साहस नहीं कर सका|

बराल में गूजर विद्रोहियों का जमघटसिकन्दराबाद की इस घटना ने वलीदाद खान के मनोबल को भी ऊचा कर दिया| अभी तक वलीदाद ने खुलकर विद्रोह नहीं किया था| मुग़ल बादशाह द्वारा उसे सूबा नियुक्त किये जाने को दिल्ली में अपनी मजबूरी बताते हुए, अंग्रेजी शासन के प्रति वफादारी रहने की बात की थी| किन्तु अब उसने अपने बागी तेवर दिखने शुरू कर दिए| 8 जून को बुलंदशहर के निकट बराल (बराल) में फिर से गूजर विद्रोही को एकत्रित हो गए| मजिस्ट्रेट साप्टे को प्राप्त सूचना के अनुसार वलीदाद खान गूजरों के साथ मिलकर बुलंदशहर पर हमला करना चाहता था| किन्तु उस दिन यह हमला किसी प्रकार टल गया|

बुलंदशहर पर विद्रोहियों का कब्ज़ा- 10 जून 1857 को नवाब वलीदाद खान ने गूजरों की सहयता से बुलंदशहर पर कब्ज़ा कर लिया और गुलावठी में अपनी अग्रिम चौकी स्थापित कर ली| गुलावठी मेरठ-आगरा मार्ग पर अवस्थित हैं अतः इस मार्ग पर अंग्रजो का आवागमन और डाक-संचार व्यवस्था बाधित हो गई| राव उमराव सिंह भाटी के समर्थन और सहयोग के अतिरिक्त अयमन सिंह गूजर वलीदाद का खास साथी था| नदवासा गूजरों के 12 गाँव के 2000 गूजर वलीदाद खान के साथ थे|

गुलावठी में संघर्ष- मजिस्ट्रेट साप्टे अपने साथियो के साथ हापुड के निकट बाबूगढ़ में टिका रहा| बाबूगढ़ में ब्रिटिश सेना के घोड़ो का अस्तबल था, अंग्रेज हर हाल में इसकी रक्षा करना चाहते थे| इसके अलावा साप्टे यहाँ से गुलावठी पर पुनः अधिकार के चेष्ठा कर रहा था, जिससे कि मेरठ-आगरा मार्ग को आवागमन और संचार के लिए साफ़ किया जा सके| एक अन्य वज़ह यह थी कि वह यहाँ से रुहेलखण्ड के विद्रोहियों पर नज़र रख सकते था| इसी क्रम में 18 जून 1857 को 75 राइफलमैन, 50 कारबाईनरो से युक्त एक अंग्रेजी सेना साप्टे सहित गुलावठी पर पुनः कब्ज़ा करने पहुँच गईअंग्रेजो सेना और विद्रोहियों के बीच हुए संघर्ष के साथ हुए युद्ध में 20 विद्रोही मारे गए| अंग्रेज अधिकारी विल्सन ने गढ़मुक्तेश्वर स्थित गंगा नदी के नावो के पुल को तुडवा दिया, जिससे की विद्रोही बरेली ब्रिगेड नदी पार कर दिल्ली ना जा सके|

बरेली ब्रिगेड का गंगा नदी पार कर दिल्ली पहुंचना - अठारवी-उन्नीसवी शताब्दी में मेरठ-मुरादाबाद स्थित गंगा के घाटो पर परीक्षतगढ़-बहसूमा के जीत सिंह गूजर और उसके उत्तराधिकारियो का वर्चस्व था| इसी परिवार के राजा नैन सिंह उत्तर मुग़ल काल में 350 गाँव के मुकर्रदार थे| इसी परिवार के एक सदस्य राव कदम सिंह गूजर 1857 के ग़दर में बागी हो गया था| बरेली ब्रिगेड ने राव कदम सिंह गूजर तथा अन्य गूजरों की मदद से गढ़मुक्तेश्वर के पूर्वी घाट पर नावो का इंतजाम कर लिया और 27 जून को बख्त खान के नेतृत्व में गढ़ मुक्तेश्वर से गंगा नदी पार कर ली और दिल्ली की तरफ कूच कर गई| बरेली ब्रिगेड ने रास्ते में पड़नेवाले बाबूगढ़ स्थित अस्तबल की ईमारत सहित सभी सरकारी भवनों को नष्ट कर दिया| मजिस्ट्रेट साप्टे अपने यूरोपिय साथियो के साथ मेरठ भाग गया| बरेली ब्रिगेड के दिल्ली पहुँचने से विद्रोही मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर की स्थिति बहुत मज़बूत हो गई| इस सम्पूर्ण घटनाक्रम से दिल्ली और दोआब सहित पूरे देश में विद्रोहियोंई के होंसले बुलंद हो गए| बरेली ब्रिगेड के कुछ विद्रोही सैनिक वलीदाद की मदद के लिए आ गए, इससे उसकी ताकत काफी बढ़ गई| मालागढ़ का किला विद्रोहियों का केंद्र बन गया| किले पर 6 तोपे लगाई गई| वलीदाद खान ने गुलावठी, अलीगढ और खुर्जा पर अधिकार कर लिया| भटनेर के राव उमराव सिंह भाटी को तो भटनेर की जनता पहले ही अपना राजा घोषित कर चुकी थी| उधर मेरठ क्षेत्र में राव कदम सिंह गूजर ने भी स्वयं को बहसूमा-परीक्षतगढ़ का राजा घोषित कर दिया| इस प्रकार हम देखते हैं कि उपरी दोआब के विद्रोही नेताओ के तार दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार से जुड़े थे और सभी विद्रोही इस क्रन्तिकारी सरकार का सहयोग और समर्थन कर रहे थे

गुलावठी का प्रसिद्ध युद्ध- 27 जुलाई को अंग्रेजो को सूचना मिली की वलीदाद खान भटौना गाँव पर हमला करने वाला हैं| भटोना की सुरक्षा के लिए अंग्रेजो ने मेरठ से 50 कारबाईनर 50 राइफलमैन और और एक सैन्य टुकड़ी हापुड़ भेज दी| 28 जुलाई को अंग्रेजो को पता चला कि वलीदाद खान ने 400 घुड़सवार 600 पैदल सिपाही और 1000 गूजर गुलावठी में तैनात कर रखे हैं| प्रचलित किवदंतियों के अनुसार विद्रोहियों का नेतृत्व वलीदाद खान और राव उमराव सिंह भाटी कर रहे थे| 29 जुलाई की सुबह 2 बजे अंग्रेजो की सेना ने गुलावठी के लिए कूच कर दिया| गुलावठी से 6 किलोमीटर पहले हापुड़ की तरफ विद्रोहियों ने पिकेट स्थापित कर रखी थी| अंग्रेजो ने पिकेट पर हमला कर दिया| दोनों तरफ से हुई गोलाबारी में विद्रोहियों के चालीस घुड़सवार मारे गए| विद्रोहियों ने खेतो की ऊँची फसलो में मोर्चे लगा रखे थे| अंग्रेज सेना के राइफलधारियों को कदम-कदम आगे बढ़ने के लिए भीषण संघर्ष करना पड़ रहा था| गाँव के 1 किलोमीटर बाहर भीषण युद्ध हुआ जिसमे देशभक्त विद्रोही पराजित हुए| 920 विद्रोही मारे गए, शेष विद्रोही मालागढ़ चले गए और अंग्रेज सेना विद्रोहियों का पीछा करने की हिम्मत नहीं जुटा सकी और मेरठ लौट गई|

वलीदाद खान की मदद के लिए दिल्ली से झाँसी ब्रिगेड भी आ गई| वलीदाद खान ने हापुड़ पर हमला बोल दिया, परन्तु वह सफल नहीं सका|

सितम्बर में एक बार फिर गुलावठी एक अंग्रेजो और विद्रोही भारतीयों के बीच एक प्रमुख युद्ध लड़ा गया| जिसमे जमकर तोपों का प्रयोग हुआ| इस युद्ध का नेतृत्व नवाब वलीदाद खान और उसके मित्र और साथी राव उमराव सिंह भाटी ने किया|

20 सितम्बर 1857 को अंग्रेजो ने पुनः दिल्ली को जीत लिया| देशभर के विद्रोहियों के लिए हतोत्साहित करने वाला एक बड़ा मनोवैज्ञानिक झटका था| दूसरी तरफ अंग्रेज अब आत्मविश्वास से लबरेज थे| उन्होंने अब उपरी दोआब के विद्रोह को दबाने के लिए अपनी ताकत झोक दी| इस कार्य के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल एडवर्ड ग्रीथेड को चुना गया| उसकी सेना में 2790 सैनिक थे| इनके पास लगभग 16 तोपे थी| 24 सितम्बर को कर्नल ग्रीथेड के नेतृत्व में एक यह शक्तिशाली अंग्रेज सेना ने हिंडन नदी पारकर दिल्ली से बुलंदशहर के लिए कूच कर दिया| 25 सितम्बर को यह सेना गाज़ियाबाद रूकते हुए 26 सितम्बर 1857 को दादरी पहुँच गई| जहाँ गुर्जर विद्रोहियों का दमन किया गया| रास्ते के सभी विद्रोही गांवों को उजाड़ते हुए ग्रीथेड 27 सितम्बर को सिकन्दराबाद पहुँच गया| 28 सितम्बर को ग्रीथेड अपनी सेना के साथ बुलंदशहर पहुँच गया| सभी स्थानों पर विद्रोहियों ने जमकर मुकाबला किया, हजारो भारतीय मारे गए| अंग्रेजो ने विजय के बाद हर जगह दमन चक्र चलाया| दादरी सिकंदराबाद में अंग्रेजो ने हजारो लोगो को मौत के घाट उतार दिया| बागी गाँवो को आग के हवाले कर समूल नष्ट कर दिया| कितने ही लोगो को काला पानी की सजा हुई| मालागढ़ के नवाब वालिदाद खान और अयमन सिंह गूजर बचे-कुछे साथियो के गंगा पार चले गए| राव उमराव सिंह भाटी को पकड़ लिया गया और उन्हें हजारो क्रांतिकारियों के साथ बुलंदशहर में आमो के बाग में फ़ासी दे दी गई| यह जगह आज काले आम के नाम से मशहूर हैं| कुछ लोगो की मान्यता हैं कि उन्हें हाथी के पाँव से कुचलवा कर मारा गया| काला आम आज भी राव उमराव सिंह भाटी के अमर बलिदान का गवाह हैं|

सन्दर्भ-

1. Extract from letter no. 406 of 1858, From F. Williams, Commissioner, 1st division, to William Muir, Secretary to Government, North-Western Provinces, Allahabad, dated the 15th November1858. S. A. A. Rizvi  (Editor) Freedom Struggle IN Uttar Pradesh, Volume V, Lucknow, 1960. P 34-40

2. Statement of Quazi Kamaluddin, Rais of Secundrabad (Sikandarabad), . S. A. A. Rizvi  (Editor) Freedom Struggle IN Uttar Pradesh, Volume V, Lucknow, 1960. P 40-43

3. Statement of Munshi Lachhman Singh, Rais of Secundrabad (Sikandarabad), . S. A. A. Rizvi  (Editor) Freedom Struggle IN Uttar Pradesh, Volume V, Lucknow, 1960. P 43-48

4. Deposition of Sobans Raee Wakeel (Shivbans Rai Vakil) before the Moonsif (Munsif) of Secundarabad (Sikandrabad) S. A. A. Rizvi  (Editor) Freedom Struggle IN Uttar Pradesh, Volume V, Lucknow, 1960. P 4851.

5. Letter of Rais of Malagarh, Mohd. Walidad Khan, to Magistrate, Bulandshahar, dated June 8, 1857     S. A. A. Rizvi  (Editor) Freedom Struggle IN Uttar Pradesh, Volume V, Lucknow, 1960. P 53-54

6. Eric Stroke, Peasant And The Raj, Cambridge University Press,  p 140-158

7. Eric Stroke, Peasant Armed,

8. H R Nevil, Bulandshahar : A Gazeteer, Allahabad, 1903, p.153-166



 

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