Search This Blog

Tuesday, March 19, 2019

हम थे.... हम हैं.... हम रहेंगे

डॉ सुशील भाटी
साथियों, IGD 2018 के मौके पर ग्रेटर नॉएडा में, हमारे ऐतिहासिक वजूद पर प्रश्न चिन्ह लगाने वालो के लिए मैंने कहा था कि ‘हम थे....हम हैं....हम रहेंगे..
भारत के विधिवत इतिहास लेखन की शुरुआत ब्रिटिश शासनकाल में अंग्रेज इतिहासकार जेम्स मिल, विलियम जॉन, वी ए स्मिथ आदि ने की थी| इन विदेशी इतिहासकारों के इतिहास लेखन का एक मकसद विदेशी अंग्रेजी शासन के लिए भारतीय जनता में सामाजिक आधार खोजना था| अतः इन्होने भारत के इतिहास को विदेशी आक्रमणों का इतिहास बना कर प्रस्तुत किया| शक, कुषाण, हूण सभी को विदेशी आक्रमणकारी के रूप में पेश किया| यहाँ तक कि वेदों के रचयिता वैदिक आर्यों को मूल भी मध्य एशिया में खोजा गया| तुर्क और मुग़ल तो प्रमाणित विदेशी थे ही| अतः अंग्रेजी इतिहास लेखन में निहित तर्क यह था कि भारत पर विदेशी अंग्रेजी शासन स्वाभाविक हैं क्योकि भारत पर सदा ही विदेशियों का शासन रहा हैं तथा भारतीयों में शासन करने के गुणों का अभाव हैं|
विलियम जॉन के 'इंडो-यूरोपियन जाति सिधांत' से प्रभावित अंग्रेज इतिहासकारों और विद्वानों ने वैदिक परंपरा को भारतीय संस्कृति की मुख्य धारा मानते  हैं|
किन्तु उन्होंने शक, कुषाण, हूणों को मध्य एशिया की विदेशी बर्बर जातिया लिखकर, इन्हें भारतीय इतिहास में बदनाम कर, इनकी ऐतिहासिक भूमिका को ही उलट दिया| जबकि सच ये हैं कि किसी भी समकालीन भारतीय ग्रन्थ में इन्हें विदेशी नहीं कहा गया हैं| चीनी यात्री फाहियान ने कनिष्क को जम्बूदीप का सम्राट कहा हैं| कुषाणों का आरंभिक इतिहास जम्बूदीप के उत्तर कुरुवर्ष (तारिम घाटी) से मिलता हैं| जम्बूदीप वृहतर भारत के समान था| प्राचीन भारतीयों की भोगोलिक चेतना जम्बूदीप से जुड़ी थी| आज भी हवन आदि से पूर्व पुरोहित जम्बूदीप स्थित भरत खंड का उच्चारण करते हैं| स्मृति साहित्य और पुराणों में इन्हें ‘व्रात्य क्षत्रिय’ कहा गया हैं| भगवान महावीर के लिच्छवी कुल को भी व्रात्य क्षत्रिय कहा गया हैं| कनिष्क कोशानो के रबाटक अभिलेख में उसने अपने राजसी वर्ग और अधीन सामंतो को क्षत्रिय कहकर पुकारा हैं| अतः प्राचीन समकालीन साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य इनके क्षत्रिय होने का संकेत करते हैं| संस्कृत भाषा का, जूनागढ़ से प्राप्त प्राचीनतम अभिलेख, शक शासक रूद्रदमन का हैं| रबाटक अभिलेख के अनुसार कनिष्क कुषाण ने राजकार्य में ‘आर्य भाषा’ को प्राथमिकता दी तथा उसके शासन काल में संस्कृत सहित्य का विशेष रूप से विकास हुआ| यहाँ तक, कनिष्क के राज्यकाल में, बौद्ध साहित्य भी संस्कृत भाषा में रचा गया| कनिष्क के दरबार में अश्वघोष, वसुबंधु और नागार्जुन जैसे दार्शनिक और विद्वान थे| प्राचीन भारत के प्रसिद्ध आयुर्विज्ञानी चरक और श्रुश्रत कनिष्क के दरबार में आश्रय पाते थे| गांधार एवं मथुरा मूर्तिकला का विकास कनिष्क महान की ही देन हैं|
कनिष्क ने अपने राज्य रोहण को यादगार बनाने के लिए 78 इस्वी में शक संवत चलाया था| आज़ादी के समय शक संवत भारत का सबसे प्रचलित था तथा आज भी भारत का राष्ट्रीय संवत हैं| शक संवत प्रत्येक साल 22 मार्च को शुरू होता हैं अतः यह दिन कनिष्क के राज्य रोहण की वर्ष गाँठ भी हैं|
आज़ादी के बाद राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने वैदिक आर्यों के विदेशी मध्य एशियाई मूल के सिधांत को चुनौती दी और उसे अस्वीकार कर दिया| वोट बैंक की राजनीती ने तुर्क और मुगलों को भी विदेशी होने के तमगे से बरी कर दिया| लेकिन शक कुषाण और हूण भारतीय इतिहास लेखन में कोरे विदेशी बर्बर ही लिखे जाते रहे हैं| भारतीय इतिहास लेखन की पथभ्रष्ट परम्परा द्वारा भारतीय सभ्यता के लिए इनके योगदान को यह कह कर झुटलाया जाता रहा कि इन्हें भारतीय समाज और संस्कृति ने पचा लिया और विलीन कर लिया गया|
किन्तु कुषाण, कुषाणों की आर्य भाषा (बाख्त्री) में कोशानो, आज भी गुर्जरों के कसाना गोत्र के रूप में उपस्थित हैं, जिसका विस्तार लगभग पूरे भारतीय उप महादीप में हैं| इतिहासकार कनिंघम, भगवान लाल इंद्र जी, एथ्नोलोजिस्ट डेंजिल इबटसन तथा एच ए बिंगले ने गुर्जरों को कुषाण स्वीकार किया हैं| इसी प्रकार हूण भी गुर्जरों का एक प्रमुख गोत्र हैं| विलियम क्रुक, होर्नले और वी. ए. स्मिथ ने गुर्जरों के हूण सम्बंध को स्वीकार किया हैं| (कुषाण/कोशानो) और हूण न पचे हैं ना विलीन हुए हैं बल्कि आज भी ये गुर्जरों के गौत्र हैं, वास्तव में य ये गुर्जरों के इतिहास के जीते-जागते उदाहरण हैं|
विदेशी अंग्रेजी इतिहासकारों ने सभी भारतीयों को विदेशी साबित करने की जिस परिपाटी को आरम्भ किया, उसका अनुसरण उनके कुछ पिछलग्गू भारतीय इतिहासकारों ने भी किया| इन अंग्रेज इतिहासकारों और उनके पिछलग्गूओ के इतिहास लेखन और प्रचार से घबरा कर कुषाण और हूण जैसे बहादुर और पराक्रमी यौधाओ के कुछ बुद्धिजीवी वंशज भी उनसे कतराते फिर रहे हैं, कुषाणों और हूणों को विलीन कर लेने की बात करने वालो के दामन में छुपकर, ये मिथकों को इतिहास बनाने पर तुले हैं और वास्तविक इतिहास से समाज को विमुख कर रहे हैं|
यह बेहद आश्चर्यजनक हैं कि तुर्क और मुग़ल को विदेशी कहने में लोगो को संकोच हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओ के पोषको को विदेशी ठहराए जाने से कोई गुरेज़ नहीं हैं| साथियों कनिष्क कुषाण/ कोशानो, मिहिरकुल हूण और मिहिर भोज के इतिहास से गुर्जर समाज के जुड़ाव ने ब्रिटिशशासन काल के विदेशी अंग्रेज इतिहासकारों और उनके कुछ वर्तमान पिछलग्गू इतिहासकारों के सामने चुनौती उपस्थित कर दी हैं| ब्रिटिशशासन काल के विदेशी अंग्रेज इतिहासकारों के वर्तमान पिछलग्गू इतिहासकारों को हमारा साफ़ सन्देश हैं - हम थे.. हम हैं....हम रहेंगे !
जय कनिष्क, जय मिहिरकुल, जय मिहिर भोज
जय हिन्द, जय भारत !
सन्दर्भ
1. Alexander, Cunningham, Archeological survey India, Four reports made during 1862-63-64-65, Vol . II, Simla, 1871, Page 70-73
2. Pandit Bhagwanlal Indraji, Early History of Gujarat (art.), Gazetteer of the Bombay Presidency, Vol I Part I, , Bombay 1896,
3. Denzil Ibbetson, Panjab Castes, Lahore 1916
4. H A Rose, A Glossary Of The Tribes and Castes Of The Punjab And North-Western Provinces, Vol II, Lahore, 1911,
5. Edwin T Atkinson, Statistical, Descriptive and Historical Account of The North- Western Provinces Of India, Vol II, Meerut Division: Part I, Allahabad, !875, Page 185-186 https://books.google.co.in/books?id=rJ0IAAAAQAAJ
6. A H Bingley, History, Caste And Cultures of Jats and Gujarshttps://books.google.co.in/books?id=1B4dAAAAMAAJ
7. D R Bhandarkar, Gurjaras (Art.), J B B R S, Vol. XXI,1903
8. G A Grierson, Linguistic Survey of India, Volume IX, Part IV, Calcutta, 1916
9. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016
10. सुशील भाटी, जम्बूदीप,का सम्राट कनिष्क कोशानो,जनइतिहास ब्लॉग, 2018

No comments:

Post a Comment