डॉ सुशील भाटी
हिन्दुओं के चार मुख्य त्यौहार हैं -रक्षा बंधन,
दशहरा, दीवाली और होली| परम्परा अनुसार ये चारो मुख्य त्यौहार
वर्णव्यवस्था से भी सम्बंधित माने जाते हैं| हालाकि
चारो त्यौहार चारो वर्ण धूम-धाम से मनाते हैं|
किन्तु रक्षाबंधन ब्राह्मण वर्ण का विशेष त्यौहार हैं| इसी प्रकार दशहरा क्षत्रिय,
दीपावली वैश्य और होली शूद्र वर्ण का त्यौहार हैं|
रक्षाबंधन ब्राह्मणों का विशेष त्यौहार हैं| रक्षाबंधन
के त्यौहार पर ब्राह्मण अपने जजमान (यजमान) को राखी बांधते हैं, और उसे अपनी रक्षा
के लिए प्रतिबद्ध करते हैं| राखी बांधते
समय एक मन्त्र का उच्चारण किया जाता हैं जो इस प्रकार हैं - येन बद्धो बलि राजा,
दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: जिसका
अर्थ हैं- “जिस रक्षासूत्र से महान
शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी से
मैं तुम्हें बांधती/बांधता हूं, हे रक्षे! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना| जजमान रक्षा
सूत्र से प्रतिबद्ध होकर भेंट स्वरुप कुछ धन अथवा वस्तु दक्षिणा स्वरुप अपने ब्राह्मण
पुरोहित को देते हैं|
रक्षाबंधन के त्यौहार और इस मंत्र की उद्गम कथा
भी राजा (बलि) द्वारा ब्राह्मण को दान देने से जुड़ी हैं|
पौराणिक कथाओ के अनुसार सबसे पहले, सतयुग में भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी देवी
ने दानव राजा बलि को ‘राखी’ बाँधी थी| लक्ष्मी
देवी ने राजा बलि को भाई बनाया और उन्हें राखी बाँधी थी| कथा के अनुसार दानव राजा बलि का बहुत शक्तिशाली
थे, और उसका बहुत विस्तृत साम्राज्य था| राजा बलि अपने
गुरु शुक्राचार्य के निर्देशन में सौवा यज कर रहें थे, तब भगवान विष्णु ने एक बौने
ब्राह्मण का वेश बना कर ‘वामन अवतार’ धारण किया और उससे तीन पग भूमि का दान माँगा|
धार्मिक अवसर होने के कारण राजा बलि ने सहर्ष दान देना स्वीकार कर लिया| वामन
अवतार ने विराट रूप में प्रकट होकर दो पग में ही समस्त भूमि और आकाश को नाप दिया|
उसके बाद वामन ने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहा रखू, तब राजा बलि ने अपने वचन
की लाज रखते हुए अपना सिर आगे कर दिया| इस बात से वामन अवतार ने प्रसन्न होकर उसे
पाताल लोक पर राज करने का निर्देश दिया तथा वरदान मागने को कहा| राजा बलि ने भगवान
विष्णु (वामन अवतार) को अपने साथ पाताल लोक में अपने राज्य रक्षक के रूप में रहने
का वरदान माँगा| अतः भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक में
रहने लगे| बहुत समय तक बैकुंठ धाम ने नहीं पहुँचने पर उनकी
पत्नी लक्ष्मी माँ को उनके राजा बलि के पास होने का पता चला| तब वे
एक ब्राह्मणी का रूप बना कर राजा बलि के पास पहुँची और उन्हें अपना भाई बनाकर एक
रक्षा सूत्र बाँधा दिया| प्रसन्न होकर राजा बलि ने उन्हें कुछ उपहार
मागने के लिए कहा, तब माता लक्ष्मी ने अपने पति विष्णु भगवान को मांग लिया| दानव
राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपनी मुँहबोली बहन लक्ष्मी जी प्रदान कर दिया, और इस
प्रकार उनके गृहस्थ जीवन की रक्षा की|जिस दिन माँ
लक्ष्मी ने दानवराज बलि को राखी बाँधी थी उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी|अतः तब
से इस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता हैं|
अब हम बात करते हैं जजमान (यजमान) ब्राह्मण
सम्बन्ध और रक्षाबंधन की| मध्यकालीन कृषि आधारित ग्रामीण समाज में वस्तुओ
और सेवाओ का आदान-प्रदान जजमानी व्यवस्था के माध्यम से किया जाता था|
प्रत्येक ग्राम में एक भूमिपति वर्ग होता था, जिसका भूमि पर एकाधिकार होता था| यह
भूमिपति वर्ग अक्सर किसी एक जाति के एक ही गोत्र से सम्बंधित होता था| भूमिपति
जाति अथवा गोत्र के व्यक्ति क्षत्रिय एवं जजमान (यजमान) की भूमिका निभाते थे| गाँव
में ज़जमान जाति के अतिरिक्त पुरोहित और अन्य व्यावसायिक दस्तकार जातियाँ निवास
करती थी, और उसे
अपनी सेवाए प्रदान करती थी| ब्राह्मण
पुरोहित एवं धार्मिक मार्गदर्शक का कार्य करते थे| | कुम्हार मिट्टी के बर्तन
बनाने, ठटेरा धातु के बर्तन बनाने, बढई लकड़ी के उपकरण बनाने, लुहार लोहे के उपकरण
बनाने, बुनकर कपडे बुनने का कार्य, दर्जी कपडे सिलने का कार्य, छीपी कपड़े रंगने का
कार्य, धोबी कपडे धोने का कार्य करते थे| जजमान सभी सेवाओ का भुगतान फसल के समय
खाद्यान के रूप में करता था| अतः मध्यकालीन
कृषि आधारित समाज में भूमिपति किसान यजमान एवं क्षत्रिय की केन्द्रीय भूमिका में
होते थे| समाज में वर्णव्यवस्था को मज़बूत रखने हेतु पुरोहित/ब्राह्मण के लिए जजमान का समर्थन और
संरक्षण महत्वपूर्ण था, अतः रक्षाबंधन के माध्यम से उसे सुनिश्चित किया जाता था|
आधुनिक काल में मुद्रा-पोषित उद्योग और व्यापार
आधारित अर्थव्यवस्था का उदय हो चुका हैं और मध्यकालीन कृषि आधारित सामंती
अर्थव्यवस्था का अवसान हो गया हैं| भारत का तेज़ी के साथ शहरीकरण हो रहा हैं| जजमानी
व्यवस्था समाप्त प्राय हैं फलस्वरूप ब्राह्मणों द्वारा जजमानो को राखी बांधने की
परम्परा भी धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैं| किन्तु मुंहबोले भाई-बहन दानवराज बलि और लक्ष्मी
माँ की कथा से प्रेरणा लेकर, रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयो को राखी बांधती
हैं तथा भाई बहनों को धन, उपहार आदि के साथ उसके सुख-समृधि और गृहस्थी की रक्षा का
वचन देता हैं|