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Friday, August 23, 2019

‘मिहिर’ उपाधि, गुर्जर और मिहिरोत्सव

डॉ. सुशील भाटी

गुर्जरों की मिहिर उपाधि की परंपरा ने इनकी ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित रखा हैं| मिहिर शब्द का गुर्जरों के इतिहास के साथ गहरा सम्बंध हैं| हालाकि गुर्जर चौधरी, पधान प्रधान’, आदि उपाधि धारण करते हैं, किन्तु मिहिरगुर्जरों की विशेष उपाधि हैं| राजस्थान के अजमेर क्षेत्र और पंजाब में गुर्जर मिहिर उपाधि धारण करते हैं|

मिहिर सूर्यको कहते हैं| भारत में सर्व प्रथम सम्राट कनिष्क कोशानो ने मिहिरदेवता का चित्र और नाम अपने सिक्को पर उत्कीर्ण करवाया था| सम्राट कनिष्क के रबाटक अभिलेख में उल्लेखित उसकी अपनी आर्य भाषामें उसने अपने सिक्को पर मीरोअंकित करवाया था| कनिष्क मिहिर सूर्यका उपासक था|

सम्राट मिहिरकुल हूण ने मिहिर शब्द उपाधि के रूप में धारण किया था| मिहिरकुल का वास्तविक नाम गुल था तथा मिहिर इसकी उपाधि थी| मिहिरगुल को ही राजतरंगिणी सहित अन्य संस्कृत ग्रंथो में मिहिरकुल लिखा गया हैं| सम्राट मिहिरकुल हूण परम शिवभक्त था और सनातन धर्म का संरक्षक था| उसने 1000 गाँव ब्राह्मणों को दान में दिए थे| कैम्पबैल आदि इतिहासकारों के अनुसार हूणों को मिहिरनाम से भी पुकारा जाता था| मिहिरकुल का पिता सम्राट तोरमाण वराह देवताका उपासक था|

भारतीय इतिहास में, सम्राट मिहिरकुल हूण के पश्चात, मिहिर उपाधि धारण करने का एक अन्य उदाहरण गुर्जर प्रतिहार सम्राट भोज महान द्वारा प्रस्तुत होता हैं| भोज महान ने भी मिहिरउपाधि धारण की थी| इसीलिए आधुनिक इतिहासकार इन्हें मिहिर भोज भी कहते हैं| भोज भी वराह देवता का उपासक था, उसने अपने सिक्को पर वराह देवता का चित्र तथा अपनी उपाधि आदि वराहअंकित करवाया थी| आदि शब्द आदित्य का संछिप्त रूप हैं, जिसका अर्थ मिहिर 'सूर्य' हैं|

इस प्रकार मिहिर भोज के सिक्को पर उत्कीर्ण 'आदि वराह' सूर्य से संबंधित देवता हैं| वराह देवता इस मायने में भी सूर्य से सम्बंधित हैं कि वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जोकि वेदों में सौर देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं| विष्णु भगवान को सूर्य नारायण भी कहते हैं| 'आदि वराह' के अतिरिक्त वराह और सूर्य देवता के नाम की संयुक्तता कुछ प्राचीन स्थानो और ऐतिहासिक व्यक्तियों के नामो में भी दिखाई देती हैं, जैसे- उत्तर प्रदेश के बहराइच नगर का नाम वराह और आदित्य शब्दों से वराह+आदित्य= वराहदिच्च/ वराहइच्/ बहराइच होकर बना हैं| कश्मीर में बारामूला नगर हैं, जिसका नाम वराह+मूल = वराहमूल शब्द का अपभ्रंश हैं| आदित्य और मिहिर की भाति मूलशब्द भी सूर्य का पर्यायवाची हैं| प्राचीन मुल्तान नगर का नाम भी मूलस्थान शब्द का अपभ्रंश हैं| भारतीय नक्षत्र विज्ञानी वराहमिहिर (505-587 ई.) के नाम में तो दोनों शब्द एक दम साफ़ तौर पर देखे जा सकते हैं|

भादो के शुक्ल पक्ष की तीज को वराह जयंती होती हैं| वराहमिहिर, वराहमूल (बारामूला), वराहदित्य (बहराइच) आदि नामो से मिहिर और वराह देवता की संयुक्तता प्रमाणित हैं| वराह जयंती के अवसर पर आदि वराहउपाधि धारक सम्राट मिहिर भोज को भी हम याद करते हैं| मिहिर और 'आदि वराह' दोनों ही गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज की उपाधि हैं| अतः "मिहिर भोज स्मृति दिवस" कोमिहिरोत्सव”- मिहिर का उत्सव के रूप में भी मना सकते हैं|

सन्दर्भ:

1. भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
3. सुशील भाटी, वराह उपासक मिहिर पर्याय हूण, जनइतिहास ब्लॉग, 2013
4. सुशील भाटी, शिव भक्त सम्राट मिहिरकुल हूण, जनइतिहास ब्लॉग, 2012
5. सुशील भाटी, गुर्जर प्रतिहारो की हूण विरासत, जनइतिहास ब्लॉग, 2013
6. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
7. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
8. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
9. Sushil Bhati, Huna origin of Gurjara clans, Janitihas Blog, 2015
10. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
11. सुशील भाटी, कल्कि अवतार और मिहिरकुल हूण, जनइतिहास ब्लॉग, 2013
12. सुशील भाटी, गुर्जर इतिहास चेतना के सूत्र, जनइतिहास ब्लॉग, 2017
13. के. सी. ओझा, ओझा निबंध संग्रह, भाग-1 उदयपुर, 1954
14. बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
15. डी. आर. भण्डारकर, गुर्जर (लेख), जे.बी.बी.आर.एस. खंड 21, 1903
16. सुशील भाटी, सूर्य उपासक सम्राट कनिष्क (लेख)

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