डॉ. सुशील भाटी
गुर्जरों की मिहिर
उपाधि की परंपरा ने इनकी ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित रखा हैं| मिहिर शब्द का गुर्जरों के इतिहास के साथ गहरा
सम्बंध हैं| हालाकि गुर्जर चौधरी, पधान ‘प्रधान’, आदि उपाधि धारण करते हैं, किन्तु ‘मिहिर’ गुर्जरों की विशेष उपाधि हैं| राजस्थान के अजमेर क्षेत्र और पंजाब में गुर्जर
मिहिर उपाधि धारण करते हैं|
मिहिर ‘सूर्य’ को कहते हैं| भारत में सर्व प्रथम सम्राट कनिष्क कोशानो ने ‘मिहिर’ देवता का चित्र और
नाम अपने सिक्को पर उत्कीर्ण करवाया था| सम्राट कनिष्क के रबाटक अभिलेख में उल्लेखित उसकी अपनी ‘आर्य भाषा’ में उसने अपने
सिक्को पर ‘मीरो’ अंकित करवाया था| कनिष्क मिहिर ‘सूर्य’ का उपासक था|
सम्राट मिहिरकुल हूण
ने मिहिर शब्द उपाधि के रूप में धारण किया था| मिहिरकुल का
वास्तविक नाम गुल था तथा मिहिर इसकी उपाधि थी| मिहिरगुल को ही
राजतरंगिणी सहित अन्य संस्कृत ग्रंथो में मिहिरकुल लिखा गया हैं| सम्राट मिहिरकुल हूण परम शिवभक्त था और सनातन
धर्म का संरक्षक था| उसने 1000 गाँव ब्राह्मणों को
दान में दिए थे| कैम्पबैल आदि इतिहासकारों के अनुसार हूणों को ‘मिहिर’ नाम से भी पुकारा
जाता था| मिहिरकुल का पिता सम्राट तोरमाण ‘वराह देवता’ का उपासक था|
भारतीय इतिहास में, सम्राट मिहिरकुल हूण के पश्चात, मिहिर उपाधि धारण करने का एक अन्य उदाहरण गुर्जर
प्रतिहार सम्राट भोज महान द्वारा प्रस्तुत होता हैं| भोज
महान ने भी ‘मिहिर’ उपाधि धारण की थी| इसीलिए आधुनिक इतिहासकार इन्हें मिहिर भोज भी
कहते हैं| भोज भी वराह देवता का उपासक था, उसने अपने सिक्को पर वराह देवता का चित्र तथा
अपनी उपाधि ‘आदि वराह’ अंकित करवाया थी| आदि शब्द आदित्य का संछिप्त रूप हैं, जिसका अर्थ मिहिर 'सूर्य' हैं|
इस प्रकार मिहिर भोज
के सिक्को पर उत्कीर्ण 'आदि वराह' सूर्य से संबंधित
देवता हैं| वराह देवता इस मायने में भी सूर्य से सम्बंधित
हैं कि वे भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, जोकि
वेदों में सौर देवता के रूप में प्रतिष्ठित हैं| विष्णु
भगवान को सूर्य नारायण भी कहते हैं| 'आदि वराह' के अतिरिक्त वराह और सूर्य देवता के नाम की
संयुक्तता कुछ प्राचीन स्थानो और ऐतिहासिक व्यक्तियों के नामो में भी दिखाई देती
हैं, जैसे- उत्तर प्रदेश के बहराइच नगर का नाम वराह और
आदित्य शब्दों से वराह+आदित्य= वराहदिच्च/ वराहइच्/ बहराइच होकर बना हैं| कश्मीर में बारामूला नगर हैं, जिसका नाम वराह+मूल = वराहमूल शब्द का अपभ्रंश
हैं| आदित्य और मिहिर की भाति ‘मूल’ शब्द भी सूर्य का
पर्यायवाची हैं| प्राचीन मुल्तान नगर का नाम भी मूलस्थान शब्द का
अपभ्रंश हैं| भारतीय नक्षत्र
विज्ञानी वराहमिहिर (505-587
ई.) के नाम में तो दोनों शब्द एक दम साफ़ तौर पर
देखे जा सकते हैं|
भादो के शुक्ल पक्ष
की तीज को वराह जयंती होती हैं| वराहमिहिर, वराहमूल (बारामूला), वराहदित्य (बहराइच) आदि नामो से मिहिर और वराह
देवता की संयुक्तता प्रमाणित हैं| वराह जयंती के अवसर
पर ‘आदि वराह’ उपाधि धारक सम्राट
मिहिर भोज को भी हम याद करते हैं| मिहिर और 'आदि वराह' दोनों ही गुर्जर
प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज की उपाधि हैं| अतः "मिहिर भोज
स्मृति दिवस" को “मिहिरोत्सव”- मिहिर का उत्सव के
रूप में भी मना सकते हैं|
सन्दर्भ:
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Bhati, Huna origin of Gurjara clans, Janitihas Blog, 2015
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16. सुशील भाटी, सूर्य उपासक सम्राट
कनिष्क (लेख)
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