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Wednesday, January 24, 2018

मंडोर के प्रतिहारो की वंशावली

डॉ सुशील भाटी



          लक्ष्मण
          :
           : 
                                       हरिचन्द्र उर्फ़ रोहिल्लाधि (विप्र ) + भद्रा (क्षत्रिय पत्नी)
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भोग भट                  कक्क                     रज्जिल                        दद्द
                                                     |
                                                   नर भट
                                                     |
                                                   नाग भट
                                                     |
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                                         |                          |
                                        तात                       भोज
                                         |
                                      यशोवर्धन
                                         |
                                       चंदुक
                                         |
                                       सीलुक
                                         |
                                        झोट
                                         |                                                        
                                     भिल्लादित्य
                                         |
                              पद्मिनी + कक्क + दुर्लभा देवी     
                                    |        |
                                   बौक      कक्कुक
                                ( 837  ई.)    (861 ई.)   
                  
बौक के जोधपुर अभिलेख (837 ई.)  तथा कक्कुक के घटियाला अभिलेख (861ई.) से हमें मंडोर के प्रतिहारो का इतिहास पता चलता हैं| बौक के जोधपुर अभिलेख में मंडोर के प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिचन्द्र को विप्र कहा गया हैं| विप्र का अर्थ ज्ञानी होता हैं| दोनों ही अभिलेखों में हरिचन्द्र की जाति और वर्ण के विषय में स्पष्ट सूचना नहीं दी गई हैं| हरिचन्द्र की दो पत्नी बताई गई हैं, एक ब्राह्मण और दूसरी क्षत्रिय पत्नी भद्रा| जोधपुर अभिलेख के अनुसार क्षत्रिय पत्नी भद्रा के वंशजो ने मंडोर राज्य की स्थापना की थी| जोधपुर अभिलेख में मंडोर के प्रतिहार राजा बौक ने दावा किया हैं कि रामभद्र (रामायण के राम) के भाई लक्ष्मण उनके वंश के आदि पूर्वज हैं| अपने वंश के नाम प्रतिहार को भी उन्होंने लक्ष्मण से सम्बंधित किया हैं|

हरिचन्द्र को वेद और शास्त्र अर्थ जानने में पारंगत बताया गया है| कक्कुक के घटियाला अभिलेख के अनुसार वह प्रतिहार वंश का गुरु था|  जोधपुर अभिलेख में भी उसे प्रजापति के समान गुरु बताया गया हैं| प्रजापति सृष्टी के संस्थापक (पिता) और गुरु दोनों हैं, अतः वेद शास्त्र अर्थ में पारंगत विद्वान (विप्र) हरिचन्द्र मंडोर के प्रतिहार वंश का संस्थापक और गुरु था|

हेन सांग (629-645 ई.) के अनुसार सातवी शताब्दी में दक्षिणी गुजरात में भड़ोच राज्य भी विधमान था| भड़ोच राज्य के शासको के कई ताम्र पत्र प्राप्त हुए हैं, जिनसे इनकी वंशावली और इतिहास का पता चलता हैं| इन शासको ने स्वयं को गुर्जर राजाओ के वंश का माना हैं| मंडोर के प्रतिहारो और उनके समकालीन भड़ोच के गुर्जरों की वंशावली के तुलान्तामक अध्ययन से पता चलता हैं कि इन वंशो के नामो में कुछ समानताए हैं| भड़ोच के ‘गुर्जर नृपति वंश’ के संस्थापक का नाम तथा मंडोर के प्रतिहार वंश के संस्थापक हरिचन्द्र के चौथे पुत्र का नाम एक ही हैं- दद्द| कुछ इतिहासकार इन दोनों के एक ही व्यक्ति मानते हैं|  दोनों वंशो के शासको के नामो में एक और समानता ‘भट’ प्रत्यय की हैं| भट का अर्थ योद्धा होता हैं| मंडोर के प्रतिहारो में भोग भट, नर भट और नाग भट हैं तो भड़ोच के गुर्जर वंश में जय भट नाम के ही कई शासक हैं| दोनों वंशो के शासको के नामो की समानताओ के आधार पर इतिहासकार भड़ोच के गुर्जर वंश को मंडोर के प्रतिहारो की शाखा मानते हैं| किन्तु इसमें आपत्ति यह हैं कि भड़ोच के गुर्जर अपने अभिलेखों में महाभारत के पात्र ‘भारत प्रसिद्ध कर्ण’ को अपना पूर्वज मानते हैं नाकि मंडोर के प्रतिहारो की तरह रामायण के पात्र लक्ष्मण को|

मंडोर के प्रतिहारो और उनके समकालीन उज्जैन-कन्नौज के प्रतिहारो की वंशावली के तुलनात्मक अध्ययन से भी उनके मध्य कुछ समानताए दिखाई पड़ती हैं| दोनों अपना आदि पूर्वज रामायण के पात्र लक्ष्मण को मानते हैं| दोनों ही वंशो में नाग भट और भोज नाम मिलते हैं| किन्तु मंडोर राज्य के प्रतिहार वंश का संस्थापक हरिचन्द्र हैं, तो मिहिर भोज (836-885 ई.) के ग्वालियर अभिलेख के अनुसार उज्जैन-कन्नौज के प्रतिहार वंश के गुर्जर साम्राज्य का संस्थापक नाग भट प्रथम हैं| दोनों प्रतिहार वंशो की वंशावली भी पूर्ण रूप से अलग हैं|

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता हैं की तीनो वंश मूल रूप से एक ही जाति-कबीले से सम्बंधित प्रतीत होते हैं| परन्तु वे भिन्न परिवार थे| तत्कालीन समाज में अपने परिवार-कुल की स्वीकार्यता को बढाने के लिए लोकप्रिय महाकाव्यों के पात्रो से स्वयं को जोड़ना स्वाभाविक प्रक्रिया हैं| अपने वंश के शासको का वेद-शास्त्र अर्थ में पारंगत होने की बात भी इसी सन्दर्भ में कही गई प्रतीत होती हैं|

सन्दर्भ

1. भगवत शरण उपाध्यायभारतीय संस्कृति के स्त्रोतनई दिल्ली, 1991, 
2. रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिकाखंड-मेरठ, 2006
3. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
4. के. सी.ओझादी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डियाइलाहाबाद, 1968  
5. डी. आर. भण्डारकरफारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख)इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
6. ए. एम. टी. जैक्सनभिनमाल (लेख)बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
7. विन्सेंट ए. स्मिथदी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडियाचोथा संस्करणदिल्ली,
8. जे.एमकैम्पबैलदी गूजर (लेख)बोम्बे गजेटियर खण्ड IX भाग 2बोम्बे, 1899
9.के. सी. ओझा, ओझा निबंध संग्रह, भाग-1 उदयपुर, 1954
10.बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
11. डी. आर. भण्डारकरगुर्जर (लेख)जे.बी.बी.आर.एस. खंड 21, 1903
12 परमेश्वरी लाल गुप्त, कोइन्स. नई दिल्ली, 1969
13. आर. सी मजुमदार, प्राचीन भारत
14. रमाशंकर त्रिपाठी, हिस्ट्री ऑफ ऐन्शीएन्ट  इंडिया, दिल्ली, 1987

6 comments:

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  2. नमशकर सर
    मैं केशव पुंडीर हरियाणा से ये जानना चाहता हूं कि राजा हरीश चन्द्र उर्फ़ रोहिल्लाधी क्यों लिखा हुआ है मतलब रोहिला शब्द किस कारण से लिखा हुआ है
    क्या इसलिए की उनकी उपाधि रोहिला थी ??

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    1. हरिचद्र लिखा है लेखक ने हरीश चंद्र नहीं

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    2. गुरु जी कन्फर्म नही है लेकिन पढ़ा था की योग विद्या मे निपुढ होने के कारण इन्हें रोहलिधि की उपाधि दी गई थी

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  3. Sir aapki book kaha milegi मंडोर के प्रतिहारो की वंशावली please give adress and contact number thanks..

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  4. वंशावली में मिस्टेक है सर

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