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Monday, February 18, 2013

भड़ाना देश एवं वंश ( Bhadana Desh )

सुशील भाटी
                                                                                                                 
भारतीय इतिहास लेखन में बहुत से राजवंशों और समुदायों को अपेक्षित स्थान नहीं मिल पाया है। ऐसे राजवंशों का उल्लेख यदाकदा इतिहास के संदर्भ ग्रन्थों में मिल जाता है, परन्तु इनके संगठित एवं क्रमबद्ध इतिहास का प्रायः अभाव है। ऐसा ही एक राजवंश है, ‘भड़ाना वंश

भड़ाना जिन्हें सामान्य तौर पर समकालीन ग्रन्थों में भड़ानककहा गया है, ग्यारहवीं व बारहवीं शताब्दी में एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन करते थे। भड़ानकमुख्य रूप से मथुरा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली क्षेत्र में निवास करते थे और यह क्षेत्र इनके राजनीतिक आधिपत्य के कारण भड़ाना देशअथवा भड़ानक देशकहलाता था। सम्भवतः भड़ानकों की बस्तियाँ दिल्ली के दक्षिण में फरीदाबाद जिले तक थीं, जहाँ आज भी ये बड़ी संख्या में निवास करते हैं। फरीदाबाद जिले में भड़ानों के बारह गांव आबाद हैं। इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार जब शाकुम्भरी के राजा पृथ्वीराज चौहान ने भड़ाना देश पर आक्रमण किया, उस समय पर इस राज्य की पूर्वी सीमा पर चम्बल नदी एवं कछुवाहों का ग्वालियर राज्य था,  पूर्वोत्तर दिशा में इसकी सीमाएँ यमुना नदी एवं गहड़वालों के कन्नौज राज्य तक थी। इसकी अन्य सीमाएँ शाकुम्भरी के चौहान राज्य से मिलती थी। भड़ाना या भड़ानक देश एक पर्याप्त विस्तृत राज्य था। स्कन्द पुराण के विवरण के अनुसार भड़ाना देश में 1,25,000 ग्राम थे। समकालीन चौहान राज्य में भी इतने ग्राम न थे।1

समकालीन विद्वान सिद्धसैन सूरी ने भी भड़ानक देश का लगभग यही क्षेत्र बताया है, उसने कहा है कि यह कन्नौज और हर्षपुर (शेखावटी में हरस) के बीच स्थित है। उसने कमग्गा (मथुरा के चालीस मील पश्चिम में कमन) और सिरोहा (ग्वालियर के निकट) का भड़ानक देश के पवित्र जैन स्थलों के रूप में उल्लेख किया है।2 सम्भवतः कमग्गा और सिरोहा इस राज्य के प्रमुख नगर थे। इनके अतिरिक्त अपभ्रंश पाण्डुलिपि ‘‘सम्भवनाथ चरित’’ के लेखक तेजपाल ने भड़ाना देश में स्थित श्रीपथ नगर का वर्णन किया है। इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार यह नगर इस राज्य की राजधानी था। इस श्रीपथ नगर की पहचान आधुनिक बयाना से की जाती है।3 इतिहासकारों के अनुसार पूर्व मध्यकालीन अपभ्रंश भाषा में भड़ानक को भयानया कहा गया है, और भयानया शब्द से ही उत्तर मध्यकाल में बयाना शब्द की उत्पत्ति हुई है। इस प्रकार से आधुनिक बयाना ही भड़ाना देश का केन्द्र बिन्दु था। बयाना से 14 मील दक्षिण में ताहनगढ़ का मजबूत किला स्थित है जो इस राज्य की रक्षा छावनी थी।

भड़ाना समुदाय के विषय में हमें अनेक समकालिक साहित्यिक एवं अभिलेखीय स्रोतों से जानकारी प्राप्त होती है। कन्नौज के गुर्जर प्रतिहार सम्राट महिपाल के दरबारी कवि राजशेखर ने अपने ग्रन्थ काव्यमीमांशामें उन्हें अपभ्रंश भाषा बोलने वाला कहा है। इस अपभ्रंश भाषा को सूरसेनी अपभ्रंश भी कहा जाता है, क्योंकि भड़ाना देश एवं प्राचीन सूरसेनी जनपद का क्षेत्र लगभग एक ही था। यह सूरसेनी अपभ्रंश ही आधुनिक ब्रजभाषा की जननी है।

भड़ानक या भड़ाना देश के राजनीतिक इतिहास के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है। सम्भवतः यह राज्य ग्यारहवीं एवं बारहवीं शताब्दी में स्थिर रहा। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भड़ानकों का शाकुम्भरी के चौहानों से राजनीतिक संघर्ष चला। चौहान दिग्विजय की भावना से प्रेरित थे और उत्तर भारत में एक साम्राज्य का निर्माण करना चाहते थे। इसलिए उनका उत्तर भारत की अन्य राजनीतिक शक्तियों के साथ युद्ध अवश्यंभावी था। उस समय उत्तर भारत में कन्नौज के गहढ़वाल़, बुन्देलखण्ड के चन्देल, मालवा के परमार, गुजरात के सोलंकी एवं भड़ानक उत्तर भारत में प्रमुख राजनीतिक शक्ति थे। चौहानों का इन सभी से युद्ध हुआ परन्तु सम्भवतः सबसे पहले उनका युद्ध भड़ानकों के साथ ही हुआ।

चौहानों ने भड़ाना देश पर कम से कम दो बार आक्रमण किया। भड़ानकों पर प्रथम आक्रमण के विषय में हमें चौहान राजा सोमेश्वर के सन् 11690 के बिजौलिया अभिलेखसे पता चलता है। इस समय भड़ाना देश पर कुमार पाल प्रथम अथवा उसके उत्तराधिकारी अजय पाल का शासन था।4 अजय पाल एक शक्तिशाली एवं सम्प्रभुता सम्पन्न शासक था और वह महाराजाधिराज की उपाधि धारण करते था। उनके शासनकाल की जानकारी हमें उनकी महाबन प्रशस्ति (सन् 11500) से ज्ञात होती है। उनकी महाराजाधिराज की उपाधि से ऐसा प्रतीत होता है कि उनके अधीन अनेक छोटे राजा थे और वे एक विस्तृत क्षेत्र पर शासन करते थे। चौहानों और भड़ानकों में भीषण युद्ध हुआ परन्तु यह युद्ध निर्णायक साबित न हो सका, हालांकि बिजोलिया अभिलेख में चौहानों ने अपनी विजय का दावा किया है। अजयपाल के बाद हरिपाल भड़ाना राज्य का उत्तराधिकारी हुआ, एक अभिलेख के अनुसार 11700 में शासन कर रहा था।5

हरिपाल के पश्चात् साहन पाल उनका उत्तराधिकारी हुआ। उसका एक अभिलेख भरतपुर स्टेट के आघातपुर नामक स्थान से प्राप्त होता है। साहन पाल के शासन काल में चौहानों ने पृथ्वीराज तृतीय के नेतृत्व में दूसरी बार भड़ानकों पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का उल्लेख समकालीन जैन विद्वान् जिनपाल ने 11820 में लिखित अपने ग्रन्थ खरतारगच्च पत्रावलीमें किया है। जैन विद्वान् ने भड़ानकों की शक्तिशाली गज सेना की प्रशंसा की है, वह लिखता है कि भड़ानकों ने अपनी शक्तिशाली गज सेना के साथ भीषण युद्ध किया।6 भड़ानक बहादुरी से लड़े परन्तु चौहान विजयी रहे। इस हार के कारण भड़ानों की शक्ति क्षीण होने लगी।

साहन पाल के पश्चात् कुमार पाल द्वितीय भड़ानक देश की गद्दी पर बैठा। वह इस राज्य का अन्तिम शासक था। उसके शासनकाल में सन् 11920 में मौहम्मद गौरी ने भड़ाना राज्य पर आक्रमण किया और त्रिभुवन नगरी को जीत लिया।7 इस आक्रमण से भड़ानक देश का पतन हो गया और कुछ समय पश्चात् हम बयाना को दिल्ली सल्तनत के अंग के रूप में देखते हैं।

भड़ाना राज्य की ज्ञात वंशावली में, कुमार पाल प्रथम (12वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध), महाराजाधिराज अजयपाल (11500), हरिपाल (11700), सोहन पाल (11960), कुमार पाल द्वितीय थे। भड़ाना राज्य का यदि मूल्यांकन किया जाये तो हम कह सकते हैं कि यह एक विस्तृत राज्य था जो कि दिल्ली के दक्षिण में अलवर, भरतपुर, मथुरा, करौली एवं धौलपुर क्षेत्र में फैला हुआ था। स्कन्द पुराणके अनुसार इसमें 1,25,000 ग्राम थे। इस राज्य का शासक महाराजाधिराज की उपाधि धारण करता था। भड़ानक राज्य की गणना समकालीन शक्तिशाली राज्यों से की जा सकती है। जैन विद्वान ने भड़ानों की शक्तिशाली गज सेना की प्रशंसा की है। भड़ानक राज्य दो शताब्दियों तक स्थिर रहा और उसने तत्कालीन भारतीय राजनीति को प्रचुर मात्रा में प्रभावित किया।

भड़ानक या भड़ाना राज्य के पतन हो जाने पर भी भड़ानकों की शक्ति पूरी तरह समाप्त नहीं हुई और वो आने वाले समय में भी अपने साहस और बहादुरी की पहचान बनाये रहे।

बारहवीं शताब्दी के अन्त में तराईन के द्वितीय युद्ध में चैहानों की तुर्कों से हार के फलस्वरूप उत्तर भारत में तुर्कों की सल्तनत की स्थापना हुई। तुर्क मध्य एशिया के निवासी थे और भारत में उनका शासन एक विदेशी शासन था। इस विदेशी शासन के प्रति भारतीयों ने अनेक विद्रोह किये। भड़ानकों अथवा भड़ानों ने भी संगठित होकर दो बार विदेशी सल्तनत का विरोध किया। समकालीन मुस्लिम इतिहासकारों के अनुसार सुल्तान बलबन (1246-840) के शासनकाल में दिल्ली के समीप मेवातियों और भड़ानकों ने जोरदार विद्रोह किया था। बलबन ने बड़ी निर्दयता एवं क्रूरता से इस विद्रोह का दमन किया, हजारों मेवाती और भड़ाने मारे गए। आज भी दिल्ली के दक्षिण में फरीदाबाद से लेकर भरतपुर तक मुस्लिम मेव व भड़ाने गूजरों की आबादी बहुसंख्या में है।

फरीदाबाद के भड़ानकों ने सुल्तान शेरशाह सूरी (1540-450) के शासन काल में दूसरी बार सशस्त्र विद्रोह किया। इस बार विद्रोह की कमान स्वयं भड़ानों के हाथों में थी। दिल्ली की सीमा के निकट फरीदाबाद जिले के पाली और पाखल  ग्रामों के भड़ानों ने इस विद्रोह में प्रमुख भूमिका निभाई। पाली और पाखल के भड़ानों ने मजबूत गढियों का निर्माण कर अपने सैन्य संगठन को शक्तिशाली बना लिया था। भड़ानकों का साहस इतना बढ़ गया था कि उन्होंने दिल्ली के दरवाजों तक हमले किये। जिस समय शेरशाह सूरी दिल्ली की किले बन्दी कर उत्तर भारत में अपने पैर जमा रहा था उस समय भड़ानकों ने उसे बहुत परेशान किया। एक बार भड़ानकों ने शेरशाह के सैन्य शिविर पर छापा मार हमला बोल कर उसके हाथियों को छीन लिया और इन हाथियों को अरावली पहाडि़यों में छिपा दिया। जहाँ इन हाथियों को छिपाया गया था वह स्थान आज भी हथवाला के नाम से जाना जाता है। भड़ानकों में हाथियों के प्रति आसक्ति शायद उनकी गज सेना की परम्परा की देन थी। भड़ानकों के बढ़ते साहस ने सुल्तान को विचलित कर दिया। भड़ाना अपना खोया हुआ वैभव पाना चाहते थे। विद्रोह इतना शक्तिशाली था कि सुल्तान शेरशाह सूरी ने उसकी गम्भीरता को समझते हुए स्वयं शाही सेना की कमान सम्भाली और पाली और पारवल पर हमला बोल दिया। भड़ाने वीरता और साहस से लड़े परन्तु शाही सेना बहुत बड़ी और बेहतर रूप से संगठित थी, उसके पास तोपें थीं। अन्त में तोपों की सहायता से गढि़या गिरा दी गई। हजारों भड़ाने मारे गए। आर0बी0 रसैल ने इस विषय में लिखा है "The Gurjars of Pali and Pahal became exceedingly audacious while Sher Shah was fortifying Delhi and he marched to the hills and expelled them so that not a vestige was left."8पाली और पारवल ग्राम जिन्हें बाद में पुनः बसाया गया आज भी फरीदाबाद जिलें मौजूद हैं और वहाँ भड़ाना गोत्र के गुर्जर निवास करते हैं जिनकी जुबां पर आज भी उनके पूर्वजों के बलिदान की कहानी है।

1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में फरीदाबाद जिले के गुर्जरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। फरीदाबाद और सोहना क्षेत्र के अन्य गुर्जरों के साथ भड़ाना गुर्जरों ने भी अंग्रेजों के विरुद्ध अनेक क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया। क्रान्ति की विफलता के बाद अन्य देशभक्त गुर्जरों के साथ अनेक भड़ाना वीरों को भी फाँसी दी गई।

सन्दर्भ :

1.      Page no. 101-102, Early Chauhan Dynasty, Dashrath Sharma, Jodhpur, 1992.
2.      Catalogue of MSS in Pattan Bhandara I.G.Os, p. 156, Verse 22 as quoted by Dashrath Sharma.
3.      Ibid, page 102-103, Dashrath Sharma.
4.      See his Mohaban Prasasti of the year, V. 1207, Epigraphica India pp. 289ff and II 276ff.
5.      Epigraphica Indica Vol. II page 275.
6.      Page 28 Singhi Jain Granth Mala edition as quoted by Dashrath Sharma.
7.      Taj-ul-Ma sir, Ed. II, pp. 204-43 as quoted by Dashrath Sharma.
8.      Page no. 170, Tribe and Caste of Central Province, Vol. 3, by R.V. Russel, Landon, 1916.

                                                                                                                             ( Sushil Bhati )

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