डॉ सुशील भाटी
चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री ईत्सिंग (672 ई.) के
अनुसार महाराज श्रीगुप्त (240-380 ई.) ने चीनी बौद्ध तीर्थ यात्रियों के लिए, मृगशिखावान
नामक स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करवाया था, तथा इसके रख-रखाव के लिए 24 गाँव भी
दान में दिए थे| इस मंदिर के अवशेष ईत्सिंग ने अपनी भारत
यात्रा के दौरान स्वयं देखे थे| इत्सिंग ने मगध देश में
श्रीगुप्त के विषय में ये सभी बाते सुनी थी| श्रीगुप्त को
गुप्त वंश का संस्थापक माना जाता हैं|
गुप्त सम्राट समुन्द्रगुप्त (335- 380 ई.) के
शासनकाल में श्री लंका के शासक मेघवार्मन ने बौद्ध गया में एक बौद्ध मठ का निर्माण
करवाया था|
चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री फाहियान (405-11 ई.)
गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य (380-415 ई.) के समय भारत आया था, तथा उसने
आर्यवृत (उत्तर भारत) के सभी राजाओ को सद्धर्म (बौद्ध धर्म) का श्रद्धालु बताया थ| चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य उत्तर
भारत का सम्राट था|
हेन सांग (629-45 ई.) के अनुसार पांच राजाओ ने
नालंदा में पांच (बौद्ध) संघारामो का निर्माण करवाया| ये सम्राट शक्रादित्य, बुद्धगुप्त, तथागत गुप्त, बालादित्य
और वज्र थे| हेन सांग के अनुसार शक्रादित्य ने
सबसे पहले नालंदा में एक संघाराम का निर्माण करवाया था| उसके
पश्चात उसके पुत्र बुध गुप्त तथा पौत्र तथागत गुप्त ने भी संघाराम का निर्माण
कराया| शक्र को महेंदर भी कहते हैं, तथा गुप्त सम्राट कुमारगुप्त
I (415-55 ई.) की उपाधी महेंदर थी, इसलिए बहुत से
इतिहासकारों ने उपरोक्त शक्रादित्य की पहचान कुमारगुप्त प्रथम के रूप में की हैं,
तथा उसे नालंदा के प्रसिद्ध बौद्ध विश्विद्यालय की स्थापना का श्रेय दिया हैं|
हेन सांग द्वारा उल्लेखित, नालंदा विश्विद्यालय
के संरक्षक शासक बुद्धगुप्त, बालादित्य आदि का नाम गुप्त
राजाओ की सूची में भी आता हैं| हेन सांग के अनुसार हूण
सम्राट मिहिरकुल (502-42 ई.) का युद्ध जिस (गुप्त सम्राट) बालादित्य से हुआ वह
बौद्ध धर्म का अनुयायी था| यह बालादित्य वस्तुतः गुप्त शासक
नरसिंह बालादित्य हैं| मंजूश्रीमूलकल्प (800 ई.) के अनुसार
भी नरसिंह गुप्त बौद्ध धर्म का अनुयायी था तथा वह बाद बौद्ध साधु बन गया था|
हेन सांग के अनुसार उसका पुत्र वज्र के ह्रदय में बौद्ध धर्म के लिए
गहरी आस्था थी तथा उसने भी एक संघाराम का निर्माण करवाया था|
अतः चीनी बौद्ध तीर्थ यात्रियों के विवरण के
अनुसार गुप्त सम्राट बौद्ध धर्म के समर्थक थे तथा उन्होंने नालंदा में बौद्ध विश्वविद्यालय
की स्थापना में अतिशय सहयोग प्रदान किया| गुप्त काल में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार
हुआ तथा बुध की अनेक मूर्तिया स्थापित हुई| गुप्त काल में
बुद्ध की प्रतिमा बनाने वाले मथुरा कला और सारनाथ कला केन्द्रों का भी अभूतपूर्व
विकास हुआ| गुप्तकालीन सारनाथ में बुध की सर्वश्रेष्ठ
मूर्तिया का निर्माण हुआ| गुप्तकाल में उनके साम्राज्य के
अंतर्गत स्थित कुशीनगर में बुद्ध के निर्वाण स्तूप का विस्तार किया गया तथा वहां
एक ‘बुद्ध का निर्वाण मंदिर’ भी स्थापित किया गया| गुप्त काल
में पूर्वी और दक्षिण पूर्वी एशिया में बौद्ध कला का व्यापक प्रसार हुआ|
चीनी बौद्ध तीर्थ यात्रियों के विवरणों के
अतरिक्त अन्य साक्ष्यो पर दृष्टी डालने पर ऐसा प्रतीत होता हैं कि आरम्भिक गुप्त
सम्राट वैदिक तथा पौराणिक-वैष्णव धर्म के अनुयायी थे| किन्तु जैसा चीनी बौद्ध तीर्थ
यात्रियों के विवरणों से स्पष्ट हैं कि बौद्ध धर्म से भी उन्हें लगाव और सहानुभूति
थी| कुमारगुप्त प्रथम के समय से उन पर बौद्ध धर्म का प्रभाव
बढ़ने लगा| तोरमाण और मिहिकुल द्वारा हूण साम्राज्य की स्थापना के समय वो बौद्ध
धर्म के अनुयायी थे|
गुप्त काल के बाद बौद्ध धर्म ने एक विशिष्ट और
संगठित धर्म के रूप में प्रभावी नहीं रहा| हेन् सांग बताता हैं कि हूण सम्राट मिहिरकुल ने
भारत में बौद्ध धर्म को बहुत भारी नुकसान पहुँचाया| कल्हण ने बारहवी शताब्दी में “राजतरंगिणी” नामक ग्रन्थ में कश्मीर का इतिहास लिखा हैं| कल्हण
मिहिरकुल हूण को ब्राह्मणों के समर्थक शिव भक्त के रूप में प्रस्तुत करता हैं| वह कहता हैं कि मिहिरकुल ने 1000
गाँव ब्राह्मणों को दान में दिए तथा कश्मीर में मिहिरेश्वर शिव मंदिर का निर्माण
करवाया|
सन्दर्भ
1. राधाकुमुद मुख़र्जी, गुप्त साम्राज्य, 1997
2. दी
गुप्त पोलिटी,
3
रोशन दलाल, दी
रिलिजन ऑफ़ इंडिया: ए कनसाइज़ गाइड तो नाइन मेजर फैथ्स, 2010https://books.google.co.in/books?isbn=0143415174
4. सुकुमार दत्त, बुद्धिस्ट मोंक्स एंड मोनास्ट्रीज ऑफ़ इंडिया
5.
हू फूओक, बुद्धिस्ट आर्किटेक्चर
6.
फ्रेड एस क्लेंएर , गार्डनरस
आर्ट्स थ्रू दी एजिस: नॉन वेस्टर्न पर्सपेक्टिव्सhttps://books.google.co.in/books?isbn=0495573671
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