डॉ सुशील भाटी
Key words- Kanishka, Koshano, Jambudweep, Bharata, Gurjara, Varaha
कनिष्क कोशानो (कुषाण) वंश का महानतम सम्राट था| कनिष्क महान एक बहुत
विशाल साम्राज्य का स्वामी था| उसका साम्राज्य मध्य एशिया स्थित काला सागर से लेकर पूर्व में
उडीसा तक तथा उत्तर में चीनी तुर्केस्तान से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला
हुआ था| उसके साम्राज्य में
वर्तमान उत्तर भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान का हिस्सा, तजाकिस्तान का हिस्सा
और चीन के यारकंद, काशगर और खोतान के इलाके थे| कनिष्क भारतीय इतिहास का एक मात्र सम्राट हैं जिसका राज्य दक्षिणी
एशिया के बाहर मध्य एशिया और चीन के हिस्सों को समाये था| वह इस साम्राज्य पर चार
राजधानियो से शासन करता था| पुरुषपुर (आधुनिक पेशावर) उसकी मुख्य राजधानी थी| मथुरा, तक्षशिला और कपिशा (बेग्राम)
उसकी अन्य राजधानिया थी| कनिष्क कोशानो का साम्राज्य (78-101 ई.) समकालीन विश्व
के चार महानतम एवं विशालतम साम्राज्यों में से एक था| यूरोप का रोमन साम्राज्य,
ईरान का सासानी साम्राज्य तथा चीन का साम्राज्य अन्य तीन साम्राज्य थे|
कोशानो साम्राज्य का उद्गम स्थल बैक्ट्रिया
(वाहलिक, बल्ख) माना जाता हैं| प्रो. बैल्ली के अनुसार प्राचीन खोटानी ग्रन्थ में
बाह्लक राज्य के शासक चन्द्र कनिष्क का उल्लेख किया गया हैं| खोटानी ग्रन्थ में
लिखा हैं कि बाह्लक राज्य स्थित तोखारिस्तान के राजसी परिवार में एक बहादुर,
प्रतिभाशाली और बुद्धिमान ‘चन्द्र कनिष्क’ नामक जम्बूदीप का सम्राट हुआ| फाहियान (399-412
ई.) के अनुसार कनिष्क द्वारा निर्मित स्तूप जम्बूदीप का सबसे बड़ा स्तूप था| चीनी
तीर्थ यात्री हेन सांग (629-645 ई.) ने भी कनिष्क का जंबूदीप का सम्राट कहा गया
हैं|
वस्तुतः जम्बूदीप प्राचीन ब्राह्मण, बौद्ध एवं
जैन ग्रंथो में वर्णित एक वृहत्तर भोगोलिक- सांस्कृतिक इकाई हैं तथा भारत जम्बूदीप
में समाहित माना जाता रहा हैं| प्राचीन भारतीय समस्त जम्बूदीप के साथ एक भोगोलिक
एवं सांस्कृतिक एकता मानते थे| आज भी हवन यज्ञ से पहले ब्राह्मण पुरोहित यजमान से
संकल्प कराते समय ‘जम्बूद्वीपे भरत खण्डे भारत वर्षे’ का उच्चारण करते हैं| अतः
स्पष्ट हैं कि जम्बूदीप भारतीयों के लिए उनकी पहचान का मसला हैं तथा भारतीय
जम्बूदीप से अपने को पहचानते रहे है| प्राचीन ग्रंथो के अनुसार जम्बूदीप के मध्य में
सुमेरु पर्वत हैं जोकि इलावृत वर्ष के मध्य में स्थित हैं| इलावृत के दक्षिण में
कैलाश पर्वत के पास भारत वर्ष, उत्तर में रम्यक वर्ष, हिरण्यमय वर्ष तथा उत्तर
कुरु वर्ष, पश्चिम में केतुमाल तथा पूर्व में हरि वर्ष हैं| भद्राश्व वर्ष और
किम्पुरुष वर्ष अन्य वर्ष हैं| यह स्पष्ट हैं कि कनिष्क के साम्राज्य के अंतर्गत
आने वाले मध्य एशिया के तत्कालीन बैक्ट्रिया (वाहलिक, बल्ख) क्षेत्र, यारकंद, खोटन
एवं कश्गर क्षेत्र, आधुनिक अफ़गानिस्तान, पाकिस्तान और उत्तर भारत के क्षेत्र
जम्बूदीप को समाये थे| कुषाणों के इतिहास के लिहाज़ से यह बात अति महतवपूर्ण हैं कि
इतिहासकार जम्बूदीप स्थित ‘उत्तर कुरु वर्ष’ की पहचान तारीम घाटी क्षेत्र से करते
हैं, जहाँ से यूची कुषाणों की आरंभिक उपस्थिति और इतिहास की जानकारी हमें प्राप्त
होती हैं| अतः कुषाण आरम्भ से ही जम्बूदीप के निवासी थे| इसी कारण से कुषाणों को
हमेशा भारतीय समाज का हिस्सा माना गया तथा प्राचीन भारतीय ग्रंथो में कुषाण और
हूणों को (व्रात्य) क्षत्रिय कहा गया हैं|
प्राचीन भारतीय ग्रंथो के अनुसार उत्तर कुरु वर्ष
(यूची कुषाणों के आदि क्षेत्र) में वराह की पूजा होती थी| यह उल्लेखनीय हैं कि गुर्जर
प्रतिहार शासक (725-1018 ई.) भी वराह के उपासक थे तथा कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की गई
हैं|
सन्दर्भ
1. ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
2. के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968
3. डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L 1911
4. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल
(लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
5. विन्सेंट ए. स्मिथ, दी
ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली,
6. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर (लेख), बोम्बे
गजेटियर खण्ड IX भाग 2, बोम्बे, 1899
7.बी. एन. पुरी. हिस्ट्री ऑफ गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986
8.
सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016
9.
सुशील भाटी, मिहिर उपासक वराह पर्याय हूण, जनइतिहास ब्लॉग, 2013
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