डॉ सुशील भाटी
2016 IGD के अवसर पर
जावली में मैंने कहा था कि “मेरे इतिहास लेखन का एक लक्ष्य उनके सिर लगवाना हैं
जिनके सिर तोड़ दिए गए हैं|” साथियो इतिहास अधिकतर सभ्रांत और अभिजात्य मानसिकता से
लिखा जाता हैं| इस कारण से वर्तमान में गैर-अभिजात वर्ग में गिने वाले जाट, अहीर,
गुर्जर, लोध, कुर्मी, जाटव, भील, मुंडा संथाल, मेव, मीणा लुहार, बढई आदि भारत की
लगभग पांच हज़ार जातियों और कबीलों को भारतीय इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया
हैं| नस्लीय तथा जातिगत पूर्वाग्रह से ग्रस्त अभिजात्य मानसिकता की वज़ह से, बहुधा इनकी
ऐतिहासिक उपलब्धियों की उपेक्षा की गई हैं, या फिर इनके इतिहास को तोड मरोड़ कर
अभिजात्य जातियों का इतिहास बना दिया गया हैं| गुर्जर शब्द स्थान वाचक हैं या
कबीले का नाम? इस प्रश्न को खड़ा करके, गुर्जरों को उनके इतिहास से वंचित करने के
प्रयासों से सभी परिचित हैं| वर्तमान इतिहास लेखन की इस परिपाटी से गैर-अभिजात्य
कबीलों और जातियों का इतिहास और उनकी
पहचान मिटती जा रही हैं|
इस सब के बावजूद,
समाज में अपनी सम्मान जनक पहचान पाने के लिए आतुर, ये गैर-अभिजात्य कबीले और
जातियां अपना सही इतिहास लिखने के स्थान पर, अपने को मिथकीय पात्रो से जोड़कर देखने
का औचित्यहीन प्रयास कर रहे हैं|
कुषाण/कसाना वंश के
कनिष्क महान (78-101 ई.) और उसके पिता विम कडफिस भारत के मात्र ऐसे सम्राट हैं,
जिनकी समकालीन मूर्तिया, हमें उनकी राजधानी मथुरा से, प्राप्त हुई हैं| लेकिन सभी
मूर्तिया सिरविहीन हैं| हमारे पूर्वजों की ये सिरविहीन मूर्तिया हमारे मिटे हुए
इतिहास और पहचान का प्रतीक हैं|
अपने ब्लॉग जनइतिहास
पर, “गैर अभिजात्य कबीलों और जातियों के इतिहास लेखन” के माध्यम से, मैंने अपने
पूर्वजों के चेहरों को पहचाने का प्रयास किया हैं| गुर्जरों के पूर्वज कनिष्क और
और उसके वंश पर भी अनेक लेख इस ब्लॉग पर है| सम्राट कनिष्क का ‘राज्य रोहण दिवस’ ‘22
मार्च: अन्तराष्ट्रीय गुर्जर दिवस’ अपने पूर्वजों के इतिहास से जुड़ने और अपनी पहचान
को पुनः कायम करने का एक साधन हैं|
भाई नरेन्दर कसाना (ग्राफ़िक
डिज़ाइनर) साधुवाद के पात्र हैं, जिन्होने मेरे आग्रह पर सम्राट कनिष्क का ऐतिहासिक
लक्षणों से युक्त एक सुंदर चित्र हमारे बीच रखा| ‘गुर्जर सम्राट कनिष्क महान
ट्रस्ट’ और उससे जुड़े भाई संजू वीर गुर्जर, भाई अमित वीर कपासिया गुर्जर आदि भी
साधुवाद के पात्र जिन्होने सम्राट कनिष्क की मूर्ति स्थापित करने के ऐतिहासिक
कार्य का बीड़ा उठाया हैं| सम्राट कनिष्क के चित्र और मूर्ति का निर्माण हमारी
प्रतीकात्मक विजय का उद्घोष हैं|
अन्य सन्दर्भ
1.सुशील भाटी,
गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016
2.सुशील भाटी, प्राचीन भारत के इतिहास में नस्लीय
पूर्वग्रह, जनइतिहास ब्लॉग. 2013
3.सुशील भाटी, भारतीय इतिहास लेखन में
सभ्रांतवादी दृष्टिकोण , जनइतिहास ब्लॉग. 2014
4.सुशील भाटी, भारत में जनइतिहास लेखन की चुनौती,
जनइतिहास ब्लॉग. 2014
Thanks brother
ReplyDelete