डॉ.सुशील भाटी
ग्वालियर और मंदसोर
अभिलेख से हमें हूण सम्राट मिहिरकुल (502-542 ई.) के विषय में जानकारी प्राप्त
होती हैं| मिहिरकुल हूण
उत्तर भारत का सम्राट था, किन्तु सभवतः मालवा के शासक यशोधर्म से पराजय और अपने
भाई की बगावत के कारण वह कश्मीर चला गया| कश्मीरी इतिहासकार
कल्हण ने भी अपने ग्रन्थ राजतरंगणी (1149 ई.) में मिहिरकुल का ऐतिहासिक वर्णन दिया
हैं| राजतरंगिणी के अनुसार मिहिरकुल का जन्म कश्मीर के गौनंद
क्षत्रिय वंश में हुआ था| इस वंश का संस्थापक गोनंद महाभारत
में वर्णित राजा जरासंध का सम्बंधी था| मिहिरकुल संकट के समय
राजगद्दी पर बैठा| राजतरंगिणी के अनुसार उस समय दरदो,
भौतो और मलेच्छो ने कश्मीर को रौंद डाला था| इस
अवस्था में कश्मीर में धर्म नष्ट हो गया था| मिहिरकुल ने
कश्मीर की रक्षा कर उसने वहाँ शांति स्थापित की| उसके पश्चात
उसने आर्यों की भूमि से लोगो को कश्मीर में बसा कर धर्माचरण का पालन सुनिश्चित
करवाया| राज्तारंगिणी के अनुसार मिहिरकुल के जीवन की एक अन्य
महत्वपूर्ण घटना सिंघल (लंका) पर विजय थी| कल्हण की दृष्टी
में मिहिरकुल लंका पर चढ़ाई करने वाला भगवान राम के बाद दूसरा उत्तर भारतीय सम्राट
था| मिहिरकुल ने भी 1000 अग्रहार (ग्राम) ब्राह्मणों को दान
में दिए थे
सियालकोट- मिहिरकुल की राजधानी शागल “सियालकोट” थी, जोकि आज के पाकिस्तान में
स्थित थी|
सियालकोट से जम्मू की हवाई दूरी लगभग 10 किलोमीटर मात्र हैं|
हस्तिवंज – श्रीनगर
के पास पीर पंजाल पर्वत श्रंखला के दर्रे में पुराने
गाँव अलिआबाद सराय के पास “हस्तिवंज” स्थित हैं| पीर
पंजाल दर्रा कश्मीर घाटी को राजोरी और पुंछ से जोड़ता हैं| पीर पंजाल दर्रा मुग़ल रोड़
का हिस्सा हैं| कल्हण की राजतरंगिणी और अबुल फज़ल की आईन-ए-अकबरी के
अनुसार हस्तिवंज नामक स्थान का इतिहास हूण
सम्राट मिहिर कुल से जुड़ा हुआ हैं| कहते हैं कि एक बार मिहिरकुल अपनी सेना के साथ इस
स्थान से जा रहा था|
तभी उसकी सेना का एक हाथी खाई में गिर गया| मृत्यु के भय से हाथी जोर से चिन्घाड़ा|
उसकी इस चिंघाड़ से मिहिरकुल बहुत आनंदित हुआ| उसके बाद उसने एक के बाद एक हाथी को
खाई में धकेलने को हुक्म दिया, और उनकी भयग्रस्त चिंघाड़ का आनंद लिया| हाथियों की इस हत्या के कारण यह
स्थान हस्तिवंज कहलाया|
मिहिरपुर- कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार होलड (वुलर परगना) में मिहिरपुर नाम का बड़ा नगर बसाया था|
श्रीनगर - कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार मिहिरकुल ने श्री नगरी में मिहिरेश्वर मंदिर का निर्माण
करवाया था| मिहिरकुल हूण
के बाद उसका भाई प्रवरसेन कश्मीर का राजा बना, उसने प्रवरपुर नामक नगर बसाया, यहाँ
आज श्री नगर स्थित है|
चन्द्रकुल्या- प्रजा
की भलाई के लिए मिहिरकुल हूण ने कश्मीर में सिचाई व्यवस्था को मज़बूत किया| इस कार्य के लिए चंद्रकुल्या नदी को रूख
मोड़ने का प्रयास भी किया| वर्तमान में यह नदी त्सुन्तिकुल (Tsuntikul) कहलाती हैं|
जम्मू - कल्हण ने अपनी
पुस्तक राजतरंगिनी में नवी शताब्दी में पंजाब के शासक अलखान गुर्जर का उल्लेख किया
हैं| हूणराज तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल के
सिक्को पर उनके वंश का नाम अलखान उत्कीर्ण हैं| इसलिए इन्हें
अलखान हूण भी कहते हैं| अतः नवी शताब्दी में हूणों का राजसी
कुल अलखान गुर्जर कहलाता था| राजतरंगिणी
के अनुसार ‘अलखान’ गुर्जर का युद्ध कश्मीर के राजा शंकर वर्मन (883-
902 ई.) के साथ हुआ था| इस युद्ध में अलखान गुर्जर पराजित हुआ तब उस
अपने गुर्जर राज्य का तक्क देश हिस्सा युद्ध हर्जाने के रूप में शंकर वर्मन को दे
दिया| हेन सांग की पुस्तक सीयूकी के अनुसार तक्क देश पंजाब में स्थित था|
पंजाब कास्ट्स के लेखक डेंजिल इबटसन ने अलखान को जम्मू का शासक लिखा हैं, सभवतः अलखान जम्मू के पास सियालकोट से शासन करता था, जहाँ से कभी उसका पूर्वज मिहिरकुल हूण शासन करता था|
सन्दर्भ
-
1. Prithvi Nath Kaul Bamzai, Cultutre and Political History
of Kashmir, New Delhi, 1994, Vol -2, P108 https://www.google.co.in/books/edition/Culture_and_Political_History_of_Kashmir/1eMfzTBcXcYC?hl=en&gbpv=1&dq=mihirakula+mihirapur&pg=PA108&printsec=frontcover
2. Purnima Kak, God of Destruction, https://www.ikashmir.net/history/godofdestruction.html
3. Journal of Royal Asiatic Society of Bengal, Vol 68. Part 1, Page 141 https://www.google.co.in/books/edition/Journal_of_the_Asiatic_Society_of_Bengal/8QngAAAAMAAJ?hl=en&gbpv=1&dq=srinagar+pravarasena&pg=RA2-PA141&printsec=frontcover
4. “about the end of the
9th century, Ala Khana the Gujar king of Jammu, ceded the present Gujar-des,
corresponding very nearly with the the Gujrat district, to the king of Kashmir”
Denzil Ibbetson, Panjab Castes, Lahore 1916. http://indpaedia.com/ind/index.php/The_Gujjar_(Punjab_)
5. डॉ सुशील भाटी, भारतीय साहित्य में प्रतिबिम्बत हूण: विदेशी नहीं भारतीय, रूमिनेशन, खण्ड 11 न. 2,
मेरठ, 2021, प. 242-248
6. डॉ सुशील भाटी, भारत में हूण
पहचान की निरंतरता- हूण गुर्जरों के गाँवो का सर्वेक्षण, ग्लिम्पसेज, मेरठ, 2019,
प. 488-494