डॉ. सुशील भाटी
कनिसपुर - कनिष्क का कश्मीर के साथ एक ऐतिहासिक जुडाव हैं| बारहवी शताब्दी के कश्मीरी इतिहासकार कल्हण के अनुसार कनिष्क कश्मीर का शासक था और उसने कश्मीर में कनिष्कपुर नगर बसाया था| वर्तमान में, यह स्थान बारामूला जिले में स्थित ‘कनिसपुर’ के नाम से जाना जाता हैं| कनिसपुर बारामूला से लगभग 6 किलोमीटर दूर हैं|
लोहरिन- कश्मीर में लोह्कोट (लोहरिन) कनिष्काक की राजनैतिक और सैनिक का शक्ति केंद्र रहा हैं| कैम्पबेल के अनुसार दक्षिण राजस्थान स्थित भीनमाल में यह परंपरा हैं कि लोह्कोट के राजा कनकसेन (कनिष्क) ने उस क्षेत्र को जीता था| कैम्पबेल अनुसार यह लोह्कोट कश्मीर में स्थित एक प्रसिद्ध किला था| लोह्कोट अब लोहरिन के नाम से जाना जाता हैं तथा कश्मीर के पुंछ क्षेत्र में पड़ता हैं| ए. एम. टी. जैक्सन ने ‘बॉम्बे गजेटियर’ में भीनमाल का इतिहास विस्तार से लिखा हैं| जिसमे उन्होंने भीनमाल में प्रचलित ऐसी अनेक लोक परम्पराओ और मिथको का वर्णन किया है जिनसे भीनमाल को आबाद करने में सम्राट कनिष्क की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका का पता चलता हैं| उसके अनुसार भीनमाल में सूर्य देवता के प्रसिद्ध जगस्वामी मन्दिर का निर्माण कश्मीर के राजा कनक (कनिष्क) ने कराया था। कनिष्क ने वहाँ ‘करडा’ नामक झील का निर्माण भी कराया था। भीनमाल से सात कोस पूर्व में कनकावती नामक नगर बसाने का श्रेय भी कनिष्क को दिया जाता है। ऐसी मान्यता हैं कि भीनमाल के देवड़ा गोत्र के लोग, श्रीमाली ब्राहमण तथा भीनमाल से जाकर गुजरात में बसे, ओसवाल बनिए राजा कनक (सम्राट कनिष्क) के साथ ही काश्मीर से भीनमाल आए थे। ए. एम. टी. जैक्सन श्रीमाली ब्राह्मण और ओसवाल बनियों की उत्पत्ति गुर्जरों से मानते हैं| केम्पबेल के अनुसार मारवाड के लौर गुर्जरों में मान्यता हैं कि वो राजा कनक (कनिष्क कुषाण) के साथ लोह्कोट से आये थे तथा लोह्कोट से आने के कारण लौर कहलाये| पुंछ आज भी गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र हैं, जहाँ गुर्जरों की आबादी लगभग 40 प्रतिशत हैं| एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं| उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन कुषाण हैं| सुशील भाटी ने इस मत का विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमे “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत” महत्वपूर्ण हैं| उनका कहना हैं कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हैं|
वीर भद्रेश्वर मंदिर - कश्मीर में कनिष्क ने शिव मंदिर का निर्माण करवाया था| कश्मीर के राजौरी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 66 किलोमीटर दूर वास्तविक नियंत्रण रेखा के नज़दीक प्राचीन ‘वीर भद्रेश्वर शिव मंदिर’ स्थित हैं| आस-पास के क्षेत्रो में प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार इस शिव मंदिर का निर्माण संवत 141 अर्थात 87 ई. में कनिष्क ने करवाया था| भद्रेश्वर शिव मंदिर की दीवार से प्राप्त अभिलेख के अनुसार भी इस मंदिर निर्माण संवत 141 में कनिष्क ने करवाया था|
किरमची- जम्मू से 64 किलोमीटर तथा उधमपुर से 9 किलोमीटर दूर किरमची गाँव हैं, जोकि पूर्व में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल था| यहाँ गंधार शैली में निर्मित चार प्राचीन मंदिर स्थित हैं| कुछ विद्वानों के अनुसार इस स्थान की स्थापना कनिष्क ने की थी| बड़े मंदिर से त्रिमुख शिव और वराह अवतार की मूर्तिया प्राप्त हुई हैं|
कुंडलवन- कनिष्क ने कश्मीर स्थित कुंडलवन में चतुर्थ बौद्ध संगति का आयोज़न किया, जिसकी अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी| इस संगति में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान सम्रदाय में विभाजित हो गया| महायान ग्रंथो की रचना संस्कृत भाषा में की गई| इतिहासकारों के एक वर्ग के अनुसार चीनी बौद्ध ग्रंथो का यह नायक सम्राट कनिष्क प्रथम नहीं बल्कि कनिष्क द्वितीय था|
सन्दर्भ-
1.ए. कनिंघम
आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
2. जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल
(लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
3. Vir Bhadreshwar or Pir Bhadreshwar is acronyms
of same deity. The legend of this temple goes back to the days of Lord Shiva
and Dakshayani (Sati). This temple is believed to have been built by King
Kanishka in Samvat 141 to commemorate the victory of Vir Bhadreshwar, over king
Daksha- Vir Bhadreshwar Temple, Daily
Excelsior, 1 June 2014- https://www.dailyexcelsior.com/vir-bhadreshwar-temple/
4. Kirmachi- 64, Kms from Jammu and about 9
kms from Udhampur is located kirmachi village. Though virtually unknown to the
outside world, this village boosts of a unique architectural treasure. Kirmachi
held an important place in the past. The four elegant and imposing temples can
ascertain this. Three temples are standing in a row on the bank of Devak nadi
Traditionally, the construction of these temples is associated with the heroic
Pandvas, but there is no reliable record of its date. According to some
scholars King Kanishka founded this place.- Virendera Bangroo, Ancient Temples
of Jammu- http://ignca.gov.in/PDF_data/Ancient_Temples_Jammu.pdf
5. सुशील भाटी, गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिधांत, जनइतिहास ब्लॉग, 2016 https://janitihas.blogspot.com/2016/06/blog-post.html
6. Finding Kundalwan
https://kashmirlife.net/finding-kundalwan-issue-36-vol-07-90360/
7. सुशील भाटी, कनिष्क और कश्मीर, जनइतिहास ब्लॉग, 2018 https://janitihas.blogspot.com/2018/01/blog-post.html
8. सुशील भाटी, कनिष्क और शैव धर्म, जनइतिहास ब्लॉग, 2020 https://janitihas.blogspot.com/2020/03/blog-post_62.html
9. सुशील भाटी, कनिष्क की राष्ट्रीयता, जनइतिहास ब्लॉग, 2020 https://janitihas.blogspot.com/2020/03/blog-post_21.html
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