डॉ. सुशील भाटी
851 ई.
में सुलेमान नाम का अरब भूगोलवेत्ता और व्यापारी भारत आया| उसने अपने ग्रन्थ ‘सिलसिलात-उत तवारीख’ में मिहिरभोज की सैन्य शक्ति और
प्रशासन की प्रसंशा की हैं, वह लिखता हैं कि हिन्द के शासको में एक गुर्जर हैं
जिसके पास विशाल सेना हैं, हिन्द के किसी अन्य शासक के पास
उसके जितनी अच्छी घुड़सवार सेना नहीं हैं| वह बहुत धनवान हैं,
उसके पास असख्य ऊट और घोड़े हैं|
बगदाद के
रहने वाले अल मसूदी (900-940 ई.) ने कई बार हिन्द की यात्रा की| अल मसूदी अपने ग्रन्थ ‘मुरुज़ उत ज़हब’ कहता हैं कि बौरा (वराह, मिहिरभोज का
बिरुद आदि वराह) उत्तर, दक्षिण, पूर्व
और पश्चिम चारो दिशाओ में चार विशाल सेनाए तैनात रखता हैं,
क्योकि उसका राज्य लडाकू राजाओ से घिरा हुआ हैं| कन्नौज का
राजा बल्हर (राष्ट्रकूट राजाओ की उपाधी) का शत्रु हैं| वह
कहता हैं कि कन्नौज के शासक बौरा (वराह) के पास चार सेनाए हैं, प्रत्येक सेना में 7 से 9 लाख सैनिक हैं| उत्तर की
सेना मुल्तान के अरब राजा और मुसलमानों के विरुद्ध लडती हैं, दक्षिण की सेना मनकीर (राष्ट्रकूट राजधानी मान्यखेट) के राजा बल्हर
(वल्लभ) के विरुद्ध लडती हैं| उसके अनुसार बल्हर हमेशा
गुर्जर राजा से युद्धरत रहता हैं| गुर्जर राजा ऊट और घोड़ो के
मामले में बहुत धनवान हैं और उसके पास विशाल सेना हैं|| हालाकि
अल मसूदी की भारत यात्रा मिहिरभोज के शासनकाल के कुछ बाद की हैं, परन्तु प्रतिहार शासको की सेना और उनकी सामारिक नीतियों पर की गई उसकी
टिप्पणी मिहिरभोज पर भी लागू होती हैं क्योकि मिहिर भोज ही इस सैन्य शक्ति का वह
वास्तविक निर्माता था तथा इस के बल पर ही उसने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की और
विदेशी अरब अक्रान्ताओ से भारत की रक्षा की|
अल मसूदी
के बात को यदि सत्य माना जाये तो उसकी चारो सेनाओ में कुल 28 से 32 लाख सैनिक थे| इसमें स्थायी सेना कितनी
थी, कुछ ज्ञात नहीं होता|
इस सेना में उनकी शाही सेना, सामन्तो और उप सामन्तो
की सेनाए तथा क्षेत्रीय जमीदारो के सैनिक शामिल थे| गुर्जर
प्रतिहारो की सेना संख्या बल में मुग़ल बादशाह अकबर कि सेना के लगभग बराबर थी| अबुल फज़ल की आइने अकबरी ग्रन्थ (1590 ई.) के अनुसार मुग़ल सेना में 342696
घुड़सवार तथा 4039097 पैदल सैनिक थे| डिर्क एच. ए. कोल्फ के
अनुसार ये मुग़ल सेना की वास्तविक संख्या नहीं बल्कि यह उत्तर भारत के असख्य
जमींदार के सैनिको की संख्या थी, जोकि सक्रिय पुरुष आबादी का
कम से कम दस प्रतिशत थी| अतः ऐसा प्रतीत होता हैं कि गुर्जर
प्रतिहारो की यह विशाल सेना भी उनकी अपनी स्थायी सेना के अतिरिक्त उनके सामन्तो और
असंख्य सैन्य सरदार की जागीरो से प्राप्त सैनिको की संख्या हैं|
गोरखपुर
के कलचुरी वंश का गुमानबोधिदेव (कहला अभिलेख), धोलपुर के चौहान वंश का चन्द महासेन
(धोलपुर अभिलेख), प्रतापगढ़ के चौहान वंश का गोविन्दराज (प्रतापगढ़ अभिलेख) और
शाकुम्भरी के चौहान का गूवक II, मंडोर के प्रतिहार वंश के बौक (जोधपुर अभिलेख) और
कक्कुक (घटियाला अभिलेख), मेवाड़ के गुहिल वंश के हर्षराज और गुहिल II (चाटसू अभिलेख) , कच्छ – कठियावाड़ के चालुक्य का बलवर्मन (ऊना
ग्रांट अभिलेख), पेहोवा के तोमर (पेहोवा अभिलेख) मिहिरभोज के प्रमुख सामंत थे| ये
सामंत अपनी सेनाओ सहित अपने अधिपति मिहिर भोज के सैन्य अभियानों में साथ रहते थे
तथा खुद को मिहिरभोज की विजयो में हिस्सेदार मानते थे| वे अपने योगदान और युद्ध
उपलब्धियों को अपने अभिलेखों और प्रशस्तियों में उत्कीर्ण कराते थे| गुर्जर
प्रतिहार सम्राट, उनके सामंत और सैन्य सरदार आपस में विवाह सम्बंधो पर आधारित
नातेदारी समूह में एक रक्त की भावना से आपस में बंधे थे|
आर. एस .
शर्मा के अनुसार प्रतिहारो और उनके सामन्त अपने विजेता सेनाओ के सरदारों को
नवविजित क्षेत्रो में 12 या 12 के गुणांक 24, 60, 84, 360
आदि संख्यो में ‘पहले से ही बसे हुए गाँव’ जागीर के तौर पर दिया करते थे, ये जागीरे क्रमश बारहा, चौबीसी, साठा, चौरासी, और तीन सौ साठा
कहलाती थी| इन सैन्य सरदारों के सैनिक इनके कुल / नख / गोत
के लोग ही होते थे, अतः इन नव प्राप्त जागीरो में ये अपने
कुल / नख / गोत के लोगो को गाँवो में बसा देते थे| | इस
प्रकार के एक ही कुल / नख / गोत्र के लोगो की जत्थेवार बसावट गंग-यमुना की ऊपरी
दोआब में, इससे सटे हुए हरयाणा में यमुना के किनारे, दिल्ली क्षेत्र में, मध्य
प्रदेश के मोरेना जिले में तथा उत्तर पूर्वी राजस्थान क्षेत्र में विशेष रूप से
देखे जा सकती हैं| गुर्जर प्रतिहारो की विजेता सेना की तैनाती और बसावट को समझने
के लिय कुछ कुछ बारहा, चौबीसी, चौरासी तीन सौ साठा का विवरण निम्नवत हैं-
गंगा-यमुना
का ऊपरी दोआब
1. खूबड ‘पंवार’ गोत के गुर्जरों की चौरासी,
सहारनपुर
2. बुटार गोत के गुर्जरों की बावनी, सहारनपुर
3. छोक्कर गोत के गुर्जरों की चौबीसी, सहारनपुर
4. राठी गोत के गुर्जरों की चौबीसी, सहारनपुर
5. धूलि गोत के गुर्जरों का बारहा, सहारनपुर
6. कल्शियान ‘चौहान’ गोत के गुर्जरों की चौरासी, कैराना-कांधला
7. बालियान गोत के जाटों की चौरासी, शामली
8. मालिक गोत के जाटों की 45 गाँव, बघरा
9. राजपूत चौबीसी, सरधना
10. तोमर गोत के राजपूतो का बारहा, मेरठ
11. भडाना गोत के गुर्जरों का बारहा, मेरठ
12. चपराना- डाहलिया गोत्रो का बारहा, बागपत-मेरठ
13. भडाना गोत के गुर्जरों का बारहा, मेरठ
14. बैंसला गोत के गुर्जरों का बारहा, मेरठ
15. हूण गोत के गुर्जरों का बारहा, मेरठ-हापुड़
16. सलकलैन ‘तोमर’ गोत के जाटों की चौरासी,
बागपत
17. बैंसला गोत के गुर्जरों का बारहा, लोनी
18. कसाना गोत के गुर्जरों का बारहा, लोनी
19. भाटी गोत के गुर्जरों का तीन सौ साठा गौतम
बुद्ध नगर
20. अहीरों की चौबीसी, बुलंदशहर
21. नांगडी गोत के गुर्जरों की चौबीसी, गौतम
बुद्ध नगर
22. राजपूतो की चौबीसी, धौलाना
23. कपसिया गोत के गुर्जरों का बारहा,
शिवाली-बुलंदशहर
24 डेढा गोत के गुर्जरों की चौबीसी, यमुना पार पूर्वी
दिल्ली
हरयाणा
1. छोक्कर गोत के गुर्जरों की चौबीसी,
पानीपत-करनाल
2. रावल गोत के गुर्जरों का सत्ताईसा, पानीपत-करनाल
3. चमैन गोत के गुर्जरों का बारहा, करनाल
3. जाटों की चौबीसी, मेहम
4. खटाना गोत के गुर्जरों का बारहा, गुडगाँव
6. भामला गोत के गुर्जरों का बारहा, गुडगाँव
7. भडाना गोत के गुर्जरों का बारहा, फरीदाबाद
8. नांगडी गोत के गुर्जरों की चौरासी,फरीदाबाद
9. बैंसला गोत के गुर्जरों की चौबीसी, पलवल
दिल्ली
1. तंवर गोत के गुर्जरों का बारहा, महरौली
राजस्थान
1. खारी गुर्जरों की चौरासी, बयाना, भरतपुर, सवाई माधोपुर, जयपुर
2. खटाना गोत के गुर्जरों का बारहा, करौली
3 बैंसला गोत के गुर्जरों का बारहा, करौली
4. बिडरवास गोत के गुर्जरों का बारहा, करौली
5. तंवर गोत के गुर्जरों का बारहा, बयाना
6. कांवर गोत के गुर्जरों का बारहा, बयाना
7. मावई गोत के गुर्जरों का बारहा, करौली-बयाना
8. मावई गोत के गुर्जरों का बारहा बयाना
9. कसाना गोत के गुर्जरों का
बारहा, बाड़ी-धौलपुर
10. कसाना गोत के गुर्जरों का
बारहा, भरतपुर
11. कसाना गोत के गुर्जरों का
बारहा, सिकंदरा, दौसा
12. कसाना गोत के गुर्जरों का
अट्ठाईसा, धोलपुर
13 घुरैय्या गोत के गुर्जरों का अट्ठाईसा
14. पोशवाल गोत के गुर्जरों का बारहा, सवाई माधोपुर
15. रावत गोत के गुर्जरों का बारहा, कोटपूतली, जयपुर
16 धडान्दिया गोत के गुर्जरों का बारहा, बड्नोर-आसीन्द
मध्य प्रदेश
1. मावई गोत के गुर्जरों का बारहा, मुरैना
2. छावई गोत के गुर्जरों की चौबीसी, मुरैना
3. रियाना गोत के गुर्जरों का बारहा, मुरैना,
4. हरषाना गोत के गुर्जरों का बारहा, मुरैना
5. कसाना गोत के गुर्जरों की चौबीसी, मुरैना
उपरोक्त
विवरण से कुछ तथ्य और निष्कर्ष प्रकट होते हैं|
1. इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि गुर्जर
प्रतिहारो और उनके सामन्तो की सेना में गुर्जरों के अतिरिक्त जाट, अहीर आदि भी
सम्मिलित थे| गुर्जर प्रतिहारो की सेना की 28-35 लाख की विशाल संख्या भी यही संकेत
करते हैं कि इसमें गुर्जरों के अतिरिक्त अन्य यौद्धा और लड़ाकू कबीले और जातियां
शामिल थी|
2. यह
आश्चर्यजनक तथ्य हैं कि पश्चिमिओत्तर भारत में गुर्जरों के संगठित बारहा और चौबीसी
करनाल जिले तक मिलते हैं, जोकि मिहिरभोज के साम्राज्य की पश्चिमिओत्तर सीमा थी|
अतः यह सत्य प्रतीत होता हैं कि बारहा, चौबीसी, चौरासी आदि गुर्जर प्रतिहारो और
उनके सामन्तो द्वारा प्रदत्त जागीरे हैं|
3. मध्य
प्रदेश के मुरैना जिले में स्थित गुर्जरों के बारहा और चौबीसी के बीच ही मितावली,
पड़ावली, बटेश्वर स्थित हैं जहाँ गुर्जर प्रतिहारो के बनवाए हुए 200 से अधिक मंदिर
हैं|
4. पूर्वोत्तर
राज़स्थान में गुर्जरों के अनेक बारहा देखने को मिलते हैं| अलबिरुनी ने दसवी
ग्यारहवी शताब्दी के आरम्भ में भारत की यात्रा की थी, उसने इसी क्षेत्र में
‘गुजरात’ राज्य को स्थित बताया था| पूर्वोत्तर राजस्थान स्थित इस गुजरात की
राजधानी उसने ‘बजान’ बताई थी, जिसकी पहचान बयाना से की जाती हैं| बयाना क्षेत्र
में आज भी गुर्जरों के 80 गाँव हैं, जिन्हें स्थानीय बोलचाल में नेहडा कहते हैं|
गुर्जरों प्रतिहारो के आरंभिक शक्ति
केंद्र भीनमाल और उज्जैन क्षेत्र में गुर्जरों के कुल/गोत/नख की जत्थेवार जनसख्या
के बारहा, चौबीसी आदि कम हैं| ऐसा प्रतीत होता हैं कि कन्नौज से अपनी विजय और विस्तार
के क्रम में, प्रतिहारो और उनके सामंत तोमर, चौहान आदि द्वारा अपनी विजेता कबीलाई
सेनाओ के कुल/गोत/नखो के सरदारों को, नए विजित क्षेत्रो में सैन्य आधिपत्य स्थापित
करने के लिए बराहा, चौबीसी, चौरासी गाँवो की जागीरदारी दी गई|
5. इन बराहा,
चौबीसी, चौरासी के विवरण से यह भी स्पष्ट हैं कि गुर्जर प्रतिहारो उनके सामन्तो और
सैनिक सरदारों के वंशज आज भी बड़ी संख्या में गुर्जरों में विधमान हैं| ऊपरी दोआब
में गुर्जरों के भाटी गोत का तीन सौ साठा, खूबड़ पंवारो चौरासी और कलसियान चौहानों
की चौरासी तथा दिल्ली क्षेत्र तंवर गोत का बारहा इसके प्रमाण हैं| अतः विलियम क्रूक
जैसे इतिहासकारों के यह निष्कर्ष कि गुर्जरों के सभी बड़े परिवार राजपूत बन गए उचित
नहीं हैं|
6. इस
विवरण से गुर्जर-प्रतिहारो और उनके सामंतो तोमर और चौहानों के शासन काल में गुर्जरों
के गुर्जर देश (वर्तमान राजस्थान) से हरयाणा, दिल्ली और ऊपरी दोआब में अपनी भाषा ‘गूजरी’
के साथ आना भी प्रमाणित होता हैं| 1000 ई. के लगभग भोज परमार ने सरस्वती कंठाभरन
नामक ग्रन्थ में बताता हैं कि गुर्जर अपनी गूजरी अपभ्रंश भाषा ही पसंद करते हैं|
प्राकृत व्याकरण के विद्वान मार्कंडेय (1450 ई.) ने भी गूजरी अपभ्रंश का उल्लेख
किया हैं| तुर्कों द्वारा दिल्ली सल्तनत की स्थापना से पूर्व सभवतः गूजरी ही
दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रो के राजनैतिक सभ्रांत वर्ग की भाषा थी, दरबारी काव्यो
में भी इस भाषा के प्रयोग की संभावना हैं| गुर्जर प्रतिहारो के शासनकाल में गुर्जर
देश (वर्तमान राजस्थान) से आकार इस बड़ी जनसख्या का दिल्ली के आस-पास बस जाने से क्षेत्रीय
भाषा विकास किस प्रकार प्रभवित हुआ यह शौध का विषय हैं| डिंगल भाषा, गूजरी भाषा और
खड़ी बोली के तुलनात्मक अध्ययन से स्थिति स्पष्ट हो जायेगी|
.अपने नख
गोत के बारहा, चौबीसी, साठा, चौरासी और तीन
सौ साठा में बसे गए इन सैनिको का व्यवसायिक सैनिक का चरित्र अवश्य ही विपरीत रूप
से प्रभावित हुआ होगा तथा बदलते वक्त के साथ वे किसान-सैनिक में परिवर्तित हो गए
होंगे| यह भी संभव हैं कि वे आरम्भ से ही चरवाहा-सैनिक अथवा किसान-सैनिक रहे हो| आगे चलकर भारतीयों का कबायली - सामंती सैन्य संगठन और सैनिको का यह गैर
व्यावसायिक चरित्र तुर्कों के समक्ष हमारी हार के प्रमुख कारण बने|
गुर्जर
प्रतिहारो के सेना के वंशजो का सैनिक चरित्र उनके साम्राज्य के पतन के 1000 साल
बाद भी बना रहा| 1891 की भारतीय जनगणना व्यवसाय के आधार पर की गई एक मात्र जनगणना
हैं, जिसके अनुसार देश की तीस प्रतिशत जनता किसान के रूप में वर्गीकृत की गई थी|
उसमे से एक तिहाई अर्थात कुल जनसख्या की 10 प्रतिशत आबादी को ‘सैनिक और प्रभुत्वशाली’
उपवर्ग में रखा गया था, ज़िसमें गूजर, राजपूत,
जाट आदि 14 जातियां शामिल थी|
सन्दर्भ –
1. R S
Sharma, Indian Feudalism, AD 300-1200, Delhi, 2006, P 88-89 https://books.google.co.in/books?isbn=1403928630
2. B.N.
Puri, History of the Gurjara Pratiharas, Bombay, 1957
3. V. A.
Smith, The Gurjaras of Rajputana and Kanauj, Journal of the Royal Asiatic
Society of Great Britain
and Ireland, (Jan., 1909), pp.53-75
4. V A
Smith, The Oford History of India, IV Edition, Delhi, 1990
5. P
C Bagchi, India and Central Asia, Calcutta, 1965
6. Romila
Thapar, A
History of India, Vol. I., U.K. 1966.
7. R S
Tripathi, History of Kannauj,Delhi,1960
8. K. M.
Munshi, The Glory That Was Gurjara Desha (A.D.
550-1300), Bombay, 1955
9. Sushil Bhati,
Khaps in upper doab of Ganga and Yamuna
10. Sushil Bhati, Khaps of Haryana
11. Sushil Bhati, Gurjara Khaps of Rajasthan
12.सुशील भाटी,
गुर्जरों का सैनिक चरित्र
13.सुशील भाटी,
भडाना देश एवं वंश
14.सुशील भाटी,
विदेशी आक्रान्ता और गुर्जर प्रतिरोध (पूर्व मध्यकाल)
15. Dirk H A
Kolff, Naukar Rajput Aur Sepoy, CUP, Cambridge, 1990