डॉ सुशील भाटी
कुछ इतिहासकारों ने कुषाणों को तुर्क बताने का
प्रयास किया हैं| किन्तु कुषाण तुर्क नहीं थे, इस बात के बहुत ही स्पष्ट और प्रबल
प्रमाण हैं|
1. सर्वप्रथम, कुषाणों का शासन काल तुर्क जाति के जन्म से
पूर्व का हैं| कुषाणों का शासन काल मुख्यतः 25 ईसा
पूर्व1 -248 ई. हैं, जबकि विश्व के पटल पर तुर्क जाति
का उदभव छठी शताब्दी ई. में हुआ हैं|2 अतः जब
कुषाण शासन कर रहे थे, तुर्क नाम कि कोई जाति या जातिय पहचान अस्तित्व में नहीं
थी, अतः कुषाणों को तुर्क कहना अत्यंत गलत हैं| इस विषय में को समझने के लिए तुर्क
जाति का परिचय और आरंभिक इतिहास जानना आवश्यक हैं|
तुर्क मूलतः एक भाषाई समूह हैं|तुर्की भाषा
समूह में लगभग 35 भाषा हैं| तुर्की भाषा समूह की भाषा बोलने वाले को तुर्क कहते
हैं|3 तुर्की भाषा समूह यूरालिक-अल्ताई
भाषा परिवार से सम्बंधित हैं|4 यूरालिक-अल्ताई
भाषा परिवार में तुर्की, मंगोली और तुन्गुसिक आदि भाषा आती हैं| तुर्क समुदाय का
उदभव दक्षिण साइबेरिया और मंगोलिया में हुआ था|5 तुर्की भाषा का प्रथम साक्ष्य मंगोलिया से
प्राप्त आठवी शताब्दी का ओर्खोंन अभिलेख हैं|6 यह
अभिलेख गोकतुर्क शासको से सम्बन्धित हैं| वर्तमान विश्व में तुर्की,
तुर्कमेनिस्तान, अज़रबेजान, उज्बेकिस्तान, किर्गिज़िस्तान देशो के लोग तथा चीन के
सिकियांग प्रान्त के ‘उइगुर’ तुर्की भाषा बोलने वाले समुदाय हैं|
तुर्कों का प्रथम ऐतिहासिक उल्लेख छठी शताब्दी
में लिखित चीनी ग्रंथो में मिलता हैं|7
छठी शताब्दी से पहले विश्व में कही भी तुर्क समुदाय का कोई ज़िक्र
नहीं हैं| सबसे पहले छठी शताब्दी ईसवी में गोकतुर्कों ने एक तुर्क राज्य की
स्थापना की थी | गोकतुर्कों के इस राज्य का विस्तार चीन की महादीवार के उत्तर से
लेकर काला सागर तक था| इन्ही गोक तुर्क
शासको से सम्बंधित आठवी शताब्दी का तुर्की भाषा से सम्बंधित प्रथम ओर्खोंन अभिलेख
मंगोलिया से प्राप्त हुआ हैं|
गोकतुर्क साम्राज्य के पतन के बाद, नवी
शताब्दी के मध्य, तुर्की भाषा बोलने वाले उइगुर (Uyghur) तुर्क मंगोलिया से पलायन
कर तारीम घाटी में बस गए|8 आठवी शताब्दी तक तारीम घाटी में भारोपीय
‘आर्य’ समूह की तोख़ारी भाषा बोलने वाली जनसख्या निवास करती थी|9 इस भारोपीय ‘आर्य’ भाषा तोख़ारी के, पांचवी से
आठवी शताब्दी तक के अभिलेख और ग्रन्थ तारीम घाटी से प्राप्त हुए हैं| अतः आठवी
शताब्दी से पहले तारीम घाटी में भी कोई तुर्क आबादी नहीं थी| नवी शताब्दी के बाद
उइगुरो ने तारीम घाटी की बची हुई तोख़ारी/आर्य जनसख्या को अपने में अवशोषित कर
लिया|
आठवी शताब्दी में ही तुर्क मध्य एशिया के
बुखारा और समरकंद शहरो के आस- पास बस गए, बगदाद के मुस्लिम खलीफा के राज्य का
विस्तार इन क्षेत्रो में होने के कारण, ये इस्लाम के प्रभाव में आ गए|
1071 ई. में सेलजुक तुर्कों ने
अनातोलिया ‘एशिया माइनर’ को जीत लिया|10 बारहवी शताब्दी में यूरोप के
लोग अनातोलिया ‘एशिया माइनर’ क्षेत्र को तुर्कों की बाहुल्यता और आधिपत्य के कारण
तुर्की (टर्की) पुकारने लगे| अतः ग्यारहवी शताब्दी से पहले आधुनिक टर्की में कोई
तुर्क आबादी नहीं थी| बल्कि प्राचीन काल से यह क्षेत्र आर्यों का निवास स्थान था|
आधुनिक तुर्की के बोगाज़कोई नामक स्थान से हित्ती आर्यों का, 1400 ईसा पूर्व का,
प्राचीनतम अभिलेख प्राप्त हुआ हैं, जिसमे इंद्र, दशरथ और आर्त्ततम आदि राजाओ के
नाम तथा इंद्र, वरुण, मित्र, नासत्य आर्य
देवताओ के नामो का उल्लेख हैं|11 इस प्रकार हम
देखते हैं कि प्राचीन काल में वेदों में उल्लेखित आर्य देवताओ को पूजने वाले
आर्यों का विस्तार सुदूर पश्चिमी एशिया में, वर्तमान में तुर्की कहे जाने वाले देश
तक था| 600 ईसा पूर्व में इस क्षेत्र को ईरानियो के हखामनी (Achmenid) वंश ने जीत
लिया| 334 ईसा पूर्व में सिकंदर के नेतृत्व में यूनानियो ने अनातोलिया (वर्तमान
तुर्की) को ईरानियो से जीत लिया| बाद में यह क्षेत्र पूर्वी रोमन साम्राज्य का
हिस्सा बन गया तथा इसकी राजधानी कुन्सतनतुनिया (Constantipole) थी| सेलजुक तुर्कों
ने ग्यारहवी शताब्दी में रोमनो के (Byzantine Empire) को हराकर ही इस क्षेत्र पर
पहली बार अधिकार किया था|
कभी हित्ती आर्यों का देश रहे अनातोलिया
(वर्तमान तुर्की देश) के एक प्रान्त का नाम, प्राचीन काल से गुर्जिस्तान हैं| यह
प्रान्त वास्तव में तुर्की के उत्तर-पूर्वी पडोसी देश गुर्जिस्तान (जॉर्जिया) का
हिस्सा हैं, जिसे तुर्की ने कब्ज़ा लिया हैं| गुर्जिस्तान (जॉर्जिया) के लोग ग्रुज़
(Gruz) और गुर्ज (Gurj) कहलाते हैं|12 कुछ इतिहासकार इस गुर्जिस्तान को
भारत के गुर्जरों को से जोड़कर देखते हैं|13 क्या
भारतीय गुर्जरों का वास्तव में गुर्जिस्तान से कोई सम्बन्ध हैं अथवा नहीं? यह शोध का विषय हैं| वर्तमान स्थिति मे इसके
पक्ष यह कहा जा सकता हैं कि गुर्जिस्तान (जॉर्जिया) प्राचीन रेशम मार्ग पर स्थित
हैं, जिसके बहुत बड़े हिस्से पर शताब्दियों तक कुषाणों का आधिपत्य रहा हैं| सम्भव
हैं, कुषाण और उनके भाई-बंद कुल-कबीले रेशम मार्ग पर अपना वर्चस्व बनाये रखने के
लिए गुर्जिस्तान आदि क्षेत्रो में भी बसे हो|
यहाँ यह तथ्य उल्लेखनीय हैं कि लेखक14 सहित
एलेग्जेंडर कनिंघम15,
ए. एच. बिंगले16,
भगवान लाल इंद्र जी17 आदि
ने कुषाणों की पहचान आधुनिक गुर्जरों से की हैं|
दसवी शतब्दी के अंत में सुबकुतगिन और उसके
पुत्र महमूद (1000-1030 ई.) ने भारतीय उपमहादीप के अंतर्गत, हिन्दू कुश पर्वत के
दक्षिण में, गजनी क्षेत्र में प्रथम तुर्क राज्य की स्थापना की|18 इससे
पूर्व भारत में किसी तुर्क राज्य के प्रमाण नहीं हैं|
इस प्रकार स्पष्ट हैं कि विश्व में तुर्क जाति
अथवा पहचान का उदय छठी शताब्दी में दक्षिणी साइबेरिया और मंगोलिया में हुआ| इसके
पश्चात, यहाँ से इनका प्रसार कालंतर में समस्त मध्य एशिया और तुर्की में हुआ| भारत
में इनका आगमन दसवी शताब्दी के अंत में हुआ हैं, अतः तीसरी शताब्दी ईसवी तक भारतीय
उपमहादीप में शासन करने वाले कुषाणो के तुर्क होने की बात पूर्णतः असत्य हैं|
II
II
2. कुषाणों
के इतिहास पर दृष्टी डालने से उनकी निम्नलिखित भाषाई संबद्धता प्रकट होती हैं|
(क) आर्य
भाषा - कनिष्क के रबाटक अभिलेख के अनुसार कुषाणों की राजकीय और अधिकारिक
भाषा का नाम ‘आर्य’ था| कनिष्क के रबाटक अभिलेख में बताया गया हैं की कनिष्क ने
यूनानी भाषा के स्थान पर ‘आर्य’ भाषा को
अपने साम्राज्य की राजकीय भाषा घोषित किया|19 इतिहासकारों का मत हैं कि
आर्य उनकी अपनी भाषा थी| आधुनिक भाषा विज्ञानियों के अनुसार कुषाणों द्वारा ‘आर्य’
पुकारी जाने वाली उनकी अपनी तथा अधिकारिक राजकीय भाषा भारोपीय समूह की सातेम (Satem)
वर्ग की आर्य भाषा थी20|
डब्लू. बी. हेनिंग ने कुषाणों की ‘आर्य’ नामक भाषा को ही बाख्त्री (Bactrian) नाम दिया हैं21|
अतः स्पष्ट हैं कि कुषाणों की भाषा आर्य थी, तुर्की नहीं|
तुर्क
मूलतः एक भाषाई समूह हैं, तुर्की भाषा समूह की भाषा बोलने वाले को तुर्क कहते हैं|
कुषाण तुर्क नहीं थे, क्योकि कुषाणों की भाषा तुर्की नहीं ‘आर्य’ थी| इसलिए
कुषाणों को तुर्क कहना अत्यंत त्रुटिपूर्ण और गलत हैं| आर्य भी मूलतः एक भाषाई
समूह हैं|22 आर्य भाषा समूह की भाषा बोलने वाले जन समूह आर्य कहलाते
हैं| अतः कनिष्क और उसका कुषाण वंश तुर्क नहीं आर्य थे|
(ख) तोख़ारी
भाषा - कुछ विद्वानों का मत हैं कि कुषाणों की मूल भाषा तोख़ारी हैं|23
तोख़ारी तारीम घाटी स्थित राज्यों में बोले जाने वाली भारोपीय भाषा समूह के केन्तुम
(Centum) वर्ग की आर्य भाषा थी|24तारीम
घाटी स्थित राज्यों से, पांचवी से आठवी शताब्दी के कालक्रम से सम्बंधित , तोख़ारी
भाषा के अभिलेखों और ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं जोकि मुख्यतः भारतीय ब्राह्मी25 लिपि में लिखे गए थे| तोख़ारी
हालाकि केन्तुम वर्ग की भाषा हैं परन्तु यह सातेम वर्ग की पुरानी भारोपीय भाषाओ के सबसे निकट हैं|26
उत्तरी तारीम घाटी राज्यों में बोले जाने वाली तोख़ारी भाषा कुषाण साम्राज्य के
प्रभाव मे थी|27
कुषाण /
यूची तथा तोख़ारी सम्बन्ध- यह अवधारणा कि “कुषाणों की मूल भाषा तोख़ारी थी”, इस मत पर आधारित हैं कि कुषाण “कभी तारीम घाटी निवासी रहे
उस यूची कबीले” का हिस्सा थे, जोकि तोख़ारी भाषा बोलते था, अतः यूची और तोख़ारी
एक ही लोग हैं| कुषाण, यूची और तोख़ारी सम्बंध पर हमें प्राचीन चीनी और
यूनानी-रोमन विद्वानों से कुछ महत्वपूर्ण सूचनाए प्राप्त होती हैं, जो इस प्रकार
हैं-
(i) चीनी
इतिहास के प्राचीन ग्रन्थ ‘शीजी’ (Shij) में दिए गए, चीनी राजदूत जहाँग क़ुइअन (Zhang Quian) के हवाले के अनुसार,
176 ईसा पूर्व में हिंगनू जाति से पराजित होकर तारीम घाटी से
पलायन करने वाला यूची कबीला 129 ईसा पूर्व में उत्तरी वाह्लिक (बैक्ट्रिया) में शासन कर रहा
था|28 यूची घुमंतू लोगो की कौम थी, जो अपने पशुओं
के साथ घूमते रहती थी, वह कहता हैं कि उनके पास 1-2 लाख धनुर्धर थे|
(II) 111
ई. में लिखी गए एक अन्य चीनी इतिहास के ग्रन्थ “हान शु ” (Han Shu, Book of Han) तथा
पांचवी शताब्दी में लिखी गई इतिहास की पुस्तक होउ हान शु (Hou Han Shu, Book of
Later Han) 29 के अनुसार कुषाण यूचीयो का एक कबीला था,
जिसने बाह्लिक (बैक्ट्रिया) के पांच अन्य यूची राज्यों को समाप्त कर एक साम्राज्य
का निर्माण किया|
(III) प्राचीन
यूनानी भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो के अनुसार तोखारोई (Tokharoi) और असी (Asii), पसिअनी
(Pasiani), सकेरौली (Sacarauli) कबीलों ने दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के अंत
में वाह्लिक (बैक्ट्रिया) राज्य में यूनानी सत्ता को समाप्त कर दिया था|30
(IV) प्रथम
शताब्दी ईसा पूर्व के रोमन इतिहासकार ट्रोगस (Trogus) यूनानी राज्य बैक्ट्रिया के
विनाश के लिए सकारौकाए (Sacaraucae) और असिअनी (Asiani) को जिम्मेदार ठहराता हैं, तथा वह यह भी बताता हैं
कि असिअनी ने तोखारियो को शासक दिए|31
(V) बीसवी शताब्दी के आरम्भ में “कभी यूची
कबीले का निवास स्थान रहे तारीम घाटी” में उत्खनन के फलस्वरूप वहां से पांचवी से
आठवी शताब्दी तक कुछ अभिलेख और ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं| उइगुर भाषा में अनुवादित एक
ग्रन्थ में इस भाषा को तोक्सरी (तोख़ारी) नाम से पुकारा गया हैं|32
(VI) कुषाणों की राजधानी मथुरा के निकट एक
पुरातात्विक टीला हैं ज़हां से कुषाण शासक विम तक्तु तथा कनिष्क की मूर्ती प्राप्त
हुई हैं, इस टीले को आस-पास के ग्रामीण तोकरी-टीला (तुखारो का टीला) कहते हैं|33
अतः उपरोक्त
‘चीनी तथा यूनानी-रोमन सूचनाओ के मिलान’ तथा ‘तारीम घाटी से प्राप्त पांचवी से
आठवी शताब्दी तक के अभिलेखों और ग्रंथो की भाषा के विश्लेषण’ के आधार पर कुछ
विद्वानों का मत हैं कि कुषाण यूची कबीले का एक अंग हैं तथा यूची कबीले यूनानियो
द्वारा तोखारोई के नाम से जाने जाते थे| इन विद्वानों अनुसार बाह्लिक (बैक्ट्रिया)
के जिन क्षेत्रो में यूची निवास करते थे, वो तोखारिस्तान के नाम से मशहूर हो गए|34 अतः उक्त मत के अनुसार यूची तोख़ार,
तोख़ारी, तोखारियन, तुषार नाम से भी पुकारे जाते थे तथा इनकी भाषा तोख़ारी कहलाती
थी| पुराणों में पश्चिमिओत्तर भारत में निवास करने वाली तुखार और तुषार जाति का
उल्लेख हैं| पुराणों के अनुसार तुखार जाति के 14 शासक हुए थे|35
तारीम
घाटी क्षेत्र में तोख़ारी भाषा- तारीम घाटी क्षेत्र में तोख़ारी भाषा के अस्तित्व के सम्बंध में महत्वपूर्ण
प्रमाण मिले हैं| जैसा कि पूर्व में कहा जा चुका हैं कि बीसवी शताब्दी के आरम्भ
में तारीम घाटी में उत्खनन के फलस्वरूप वहां से पांचवी से आठवी शताब्दी तक कुछ
अभिलेख और ग्रन्थ प्राप्त हुए हैं| उइगुर भाषा में अनुवादित ‘आरियाकंद्र द्वारा
लिखित मैत्रेयस्यमिति “(maytreyiasyamiti) ग्रन्थ में इस भाषा को तोक्सरी (तोख़ारी)
नाम से पुकारा गया हैं| अतः इन अभिलेखों और ग्रंथो की भाषा को ऍफ़. वी. के. मुएल्लेर
(F. V. K. Mueller) ने तोख़ारी
नाम दिया हैं|36 ये ग्रन्थ और अभिलेख भारतीय ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं| इन अभिलेखों
और ग्रंथो के अध्ययन से पता चलता हैं कि तारीम घाटी के नगर राज्यों में तोख़ारी
भिन्न रूपों में बोली जाती थी| तारीम घाटी के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में स्थित
अग्नि (Yanqi) और चेशी (आधुनिक तुर्फन) राज्यों में तोख़ारी- ए37, इसके पश्चिम क्षेत्र में स्थित कुसि (Quici) यानि कूचा में तोख़ारी- बी38 तथा तारीम घाटी के दक्षिण क्षेत्र
में तोख़ारी-सी39 बोली जाती थी| अग्नि आदि राज्यों
के तोख़ारी-ए भाषा बोलने वाले लोग अपनी भाषा को ‘अर्शी कन्त्वा’ (Arshi Kantwa)
40 तथा स्वयं को अर्शी कहते थे41| अर्शी का अर्थ श्वेत (white) हैं42| अर्शी
अपने राज्य को आर्शी यपे (Arshi Ype) कहते थे, जिसका अर्थ हैं- श्वेत देश (The
White Country) 43| अर्शी शब्द
की मूल धातु आर्य हैं| एच. बैले के अनुसार अर्शी शब्द, ईरानी शब्द आर्ष के माध्यम
से, संस्कृत के आर्य शब्द से आया हैं|44 अर्शी / रिशी को ही महाभारत
आदि प्राचीन भारतीय ग्रंथो में (जम्बुद्वीप स्थित उत्तरकुरु वर्ष निवासी) ऋषिक45 तथा चीनी ग्रंथो में रुझी / युएझी / यूची46 कहा गया हैं| इस प्रकार स्पष्ट हैं कि यूची आर्य थे, जोकि स्वयं को अर्शी
कहते थे| यह पूर्व में कहा जा चुका हैं कि अर्शी शब्द की मूल धातु आर्य हैं|
तोख़ारी
बी के ग्रंथो के अध्ययन से ये प्रमाणित हो गया हैं की कूचा राज्य के निवासी अपनी
भाषा, तोख़ारी-बी में कूचा को कुसि47 तथा अपनी भाषा को ‘कुसिन्ने’ बोलते
थे| ‘कुसिन्ने’ और ‘कुच्चाने’ न केवल उनकी भाषा का नाम था बल्कि यह कूचा के
निवासियों का जातिनाम (ethnonym) भी था|48 अर्शी की भाति कुसिन्ने का
अर्थ भी श्वेत हैं|49 अतः सम्भव हैं कि यूची जातिनाम तारीम घाटी स्थित अग्नि
राज्य के निवासी ‘अर्शी’ का चीनी रूपांतरण हैं तथा कुषाण कूचा के ‘कुसिन्ने’ से
सम्बंधित हैं| कुषाण यदि तोख़ारी बोलने वाले अर्शी (यूची), विशेष रूप से कूचा के
कुसिन्ने हैं, तब भी यह प्रमाणित हैं कि उनकी भाषा भारोपीय समूह की आर्य भाषा थी
तथा तुर्की भाषा से उनका कोई सम्बन्ध नहीं हैं| एक बड़ी महत्वपूर्ण बात यह भी हैं
कि तारीम घाटी से प्राप्त तोख़ारी भाषा के अभिलेख और ग्रन्थ भारतीय ब्राह्मी में
लिखे गए हैं, किसी चीनी या तुर्की लिपि में नहीं| अतः कुषाणों की तोख़ारी भाषा से
संबद्धता के आधार पर वो भारोपीय आर्य साबित होते हैं|
उपरोक्त
विश्लेष्ण के आधार पर कह सकते हैं कि कुषाणों के सिक्को और अभिलेखों में पाई जाने
वाली ‘आर्य’ नामक भाषा ‘बाख्त्री’ और भारोपीय आर्य भाषा ‘तोख़ारी’ का मिश्रण थी|
ग. संस्कृत एवं प्राकृत - कुषाणों
ने संस्कृत को विशेष बढ़ावा दिया| यहाँ तक की बौद्ध ग्रन्थ कुषाण काल से पूर्व में
पाली भाषा में लिखे जाते थे, कुषाणों के समय में महायान बौद्ध ग्रन्थ संस्कृत में
लिखे जाने लगे|50 कनिष्क कुषाण (78-101 ई.) ने चीन के शासको को पराजित
कर तारीम घाटी को पुनः जीत लिया था|51 कुषाणों ने वहां भारतीय भाषा और
लिपियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया| कुषाणों के शासन काल में तारीम घाटी के राज्यों
में संस्कृत को साहित्य की भाषा के रूप में प्रयोग आरम्भ हुआ|52 कुषाणों
ने ही तारीम घाटी राज्यों अन्य भारतीय भाषा प्राकृत और ब्राह्मी लिपि को प्रशासनिक
भाषा और लिपि के रूप में स्थापित किया|53 कुषाणों ने ही वहाँ भारत की
एक अन्य लिपि खरोष्ठी का प्रयोग आरम्भ किया|
निष्कर्ष- रबाटक अभिलेख के अनुसार कुषाणों की अपनी भाषा
का नाम आर्य था| कुछ इतिहासकारों ने चीनी स्त्रोतों के आधार कुषाणों को यूची कबीले
का अंग माना हैं तथा स्ट्रैबो तथा ट्रोगस आदि प्राचीन यूनानी-रोमन लेखको के वर्णन
के आधार यूची कबीले की पहचान तोख़ारी समुदाय से की हैं| इस आधार पर उनकी मूल भाषा
तोख़ारी को माना हैं| तोख़ारी भी भारोपीय समूह की आर्य भाषा हैं| कुषाणों ने अपनी
मातृ भाषा आर्य के अतिरिक्त संस्कृत को विशेष बढ़ावा दिया| यहाँ तक उनके प्रभाव से तारीम
घाटी राज्यों में भी संस्कृत को साहित्य की भाषा के रूप में प्रयोग आरम्भ हुआ तथा
प्राकृत को प्रशासनिक भाषा के रूप में स्थापित हुई| निष्कर्षतः कुषाणों की सभी ज्ञात
भाषाई संबद्धता उन्हें आर्य प्रमाणित करती हैं|
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31. ibid., p 65
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33. John M Rosenfield, 1967, op. cit. p 7-9
34. ibid.
35. ibid.
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38. ibid.
39. J. P. Mollary and D. Q. Adams (Edit.), The Encyclopedia
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40. Zhivko Voynikov, op. cit., p 9
41. ibid., p 7
42. ibid., p 9
43. ibid., p 10
44. ibid, p 9
45. ibid., p 10, 40, 60,
46. ibid., p 4-6
47.ibid., p 10
48. ibid., p14
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