डॉ सुशील भाटी
Key words - Ajgar, Ahir, Jat, Gujar, Rajput, Dominant Caste, Jajmani system, Martial Race, Kshatriya
भारत के प्रसिद्ध समाजशास्त्री एम. एन. श्रीनिवास (1916- 1999) भारत
की मुख्य प्रभुत्वशाली जातियों का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि उत्तर भारत के
ग्रामीण अजगर के विषय में बात करते हैं| अजगर उत्तर भारत की चार प्रभुत्वशाली
जातियों के नाम का पहला अक्षर लेकर बना हैं, ये है- अहीर, जाट, गूजर और राजपूत| उत्तर
भारत की इन चार प्रभुत्वशाली जातियों का संक्षिप्त नाम अजगर अन्य जातियों में इनके
प्रभाव का सूचक हैं| इनके अतरिक्त पश्चिमी बंगाल में सदगोप, गुजरात में पाटीदार,
महाराष्ट्र में मराठा, आन्ध्र प्रदेश में कम्मा तथा रेड्डी, कर्णाटक में वोक्कालिग
और लिंगायत, केरल में नायर, तमिलनाडु में वेल्ल्लास और कल्लर आदि प्रभुत्वशाली
जातियां हैं|
एम. एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘प्रभुत्वशाली जाति’ तथा ‘संस्कृतीकरण’
की अवधारणाओं का समाजशास्त्रियों और इतिहासकारों ने अपने अध्ययन में व्यापक प्रयोग
किया गया है। भारत के ग्रामीण जीवन की एक खासियत प्रभूतासम्पन्न भूमिपति जातियों की
मौजूदगी हैं| प्रभुत्वशाली जाति संस्कृतिकरण का आदर्श सन्दर्भ के रूप कार्य करते
हैं| प्रभुत्वशाली जाति होने के लिए किसी भी जाति में निम्न लिखित विशेषताए होनी
चाहिये-
1 उपलब्ध स्थानीय खेतीलायक भूमि में से एक बड़े हिस्से पर उसका
मालिकाना हक़ हो|
2 उस जाति कि सदस्य-संख्या का पर्याप्त बाहुल्य हो|
3 स्थानीय जातीय सोपानक्रम में उस जाति का उच्च स्थान हो
विगत शताब्दी में प्रभूता पर प्रभाव डालने वाले अन्य कारक प्रकट हुए
है, जैसे- पश्चिमी शिक्षा, प्रशासन में नौकरिया, शहरी आमदनी के स्त्रोत आदि|
उत्तर भारत में गांवों की पहचान अक्सर वहाँ निवास करने वाली
प्रभुत्वशाली भूमिपति जाति से की जाति हैं, जैसे- राजपूतो का गाँव, जाटो का गाँव या
अहीरों का गाँव आदि| प्राख्यात मानवशास्त्री ग्लोरिया गुडविन रहेजा अपनी पुस्तक
‘पोईजन इन दी गिफ्ट’ में लिखती हैं कि उत्तर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जब दो अनजान
लोग बस, तीर्थस्थान या कस्बे के बाज़ार में मिलते हैं तो अक्सर पूछा जाने वाला
प्रश्न होता हैं- कौन सा गाम हैं तेरा? गाँव का नाम बताने के बाद टिप्पणी होती हैं
जाटो का गाम हैं या गूजरों का गाम हैं या फिर राजपूतो का गाम हैं| यहाँ तक
ब्राह्मण तथा अन्य जातियां भी गाँवो को वहां रहने वाली भूमिपति प्रभुत्वशाली जाती
के नाम से पहचानती हैं| वे कहती हैं कि “When two stranger meet on a bus,
or at pilgrimage place or at a market town in North Western Uttar Pradesh, the
question often asked first is Kaun sa gam he tera (“what is your village?”) and the comment
that will often follow, when the name of village is given, is jato ka gam
hain (“ It’s a village of Jats”) or gujaro ka gam hain It’s a
village of Gujars”) or perhaps rajputo ka gam hain It’s a village of
Rajputs”).
कृषि आधारित देहात में प्रभुत्वशाली भूमिपति अजगर जातियां अपने गाँव
में क्षत्रिय और जजमान की भूमिका निभाती हैं तथा ब्राह्मणों सहित आश्रित सामाजिक
समूहों को बारम्बार दिए जाने वाले दान से निर्मित सामाजिक-अनुष्ठानिक औपचारिक
तंत्र के केंद्र में रहती हैं| इस विषय में ग्लोरिया गुडविन रहेजा का सहारनपुर के
पहाँसू गाँव में किया गया क्षेत्र का उक्त अध्ययन पठनीय हैं| रहेजा के अध्ययन से
निष्कर्ष निकलते हुए मार्को गेसलानी (Marko Geslani) कहते हैं कि “Raheja’s
central thesis, to the contrary, is that purity based caste hierarchy is not
the primary principal of social organization in the North Indian Village of
Pahansu, the site of her field work in the late 1970s. Instead dominant
landholding group (Gujars) playing the role of ksatriya and Jajman (landowning
sponsor), occupies the centre of socio-ritual network constituted by recurring
gifts or prestations -(dan/Dana)- given by these landholders to dependent
groups including Brahmins. Since these ritual gifts are media for transfer of
inauspiciousness, such nonreciprocal exchanges and sustains the dominance of
the central group”
उत्तर भारत में प्राचीन काल से ही अजगर जाति समूह की स्थिति प्रबल रही
है| तुर्कों और मुगलों के शासन काल में भी देहाती क्षेत्रो में इनका प्रभुत्व कायम
रहा| शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बावजूद अकबर के अधिकारियो ने राज्य के समेकन को अधूरा पाया| राजपूत, जाट और
गूजर वंशो के सरदारों और उनके नातेदारो ने, अपने संख्या बल, सशस्त्र युद्धकारी
भावनाओ और लम्बी परम्पराओ के बल पर अपनी शक्ति को बनाये रखा| मुग़ल काल के विशेषज्ञ इतिहासकार जॉन ऍफ़
रिचर्ड्स (John F Richards) कहते कि “Despite the centuries of Muslim dominance of Indo- Gangetic
plains Akbar’s officials found consolidation of state power incomplete. In the
second half of the sixteenth century both force and diplomacy were needed to
subdue and pacify rural society..........The Rajput, Jat,
Gujar lineage heads and their kinsmen or Afghan or the other Indian Muslim
lineage retained their power partly by weight of number, partly by armed
belligerence, partly by inertia of long custom. In majority of villages the
most powerful and wealthiest peasants were member of the same caste and shared
the lineage ties with the lineage head at the headquarters town. These village
elites cultivated the largest and most fertile tracts within the village landless
laborers, craftsmen, traders and the priest served the dominant caste in
an intricate network of hereditary service and exchange relationships.”
अजगर जातियों में हमेशा ही एक सामजिक एकता और सामूहिक चेतना रही हैं| उत्तर
भारत के देहात में अजगर जाति समूह भूमिपति हैं तथा जजमान और क्षत्रिय की भूमिका में रहे
हैं| ब्रिटिश भारत में चारो ‘मार्शल रेस’ माने जाते थे तथा बड़ी मात्रा में सेना
में भर्ती किये जाते थे| डॉ जे पी शर्मा
के अनुसार 1924 में आजमगढ़ जिले में अनौपचारिक रूप से अजगर नामक संगठन बना जिसमे
अहीर, जाट. गूजर. और राजपूत शामिल थे| डॉ सुनीता सिंह के अनुसार शाहपुरा के राजा
हुकुम सिंह के निर्देशन में भी एक अजगर सभा का गठन किया गया| कहा गया कि हम सभी
क्षत्रिय हैं| आपस में परस्पर भेद नहीं होना चाहिये|
20 जुलाई 2015 के दैनिक जागरण में छपी एक खबर के अनुसार अजगर जातियों
की एक पंचायत गाजियाबाद जिले के डासना स्थित सिद्धपीठ देवी मंदिर में संपन्न हुई,
जिसकी अध्यक्षता श्री नरेंद्र सिसोदिया ने की| श्री राकेश टिकैत एवं श्री वीरेंदर
गुर्जर मुख्य रूप से उपस्थित थे| अहीर, जाट, गूजर और राजपूत (अजगर) जातियों की पंचायत में
समाज से जुड़ी मूल समस्याओं पर चर्चा की गई। पंचायत में देश, धर्म और समाज की
रक्षा के लिए क्षत्रिय एकता पर बल दिया| सहमति बनी कि अहीर, जाट, गूजर और राजपूत युवक-युवतियों के विवाह को
अंतरजातीय नहीं माना जाएगा और लोगो के इस सम्बंध में जागरूक किया जायेगा| हालाकि
इस प्रकार कि पंचायतो का समाज पर प्रभाव समाजशास्त्रियों के अध्ययन का विषय हैं पर
ये ‘सामुहिक चेतना’ की अभिव्यक्ति ज़रूर हैं|
आधुनिक भारत में भिन्न राजनेताओ और राजनैतिक दलों ने प्रभुत्वशाली
जाति समूह अजगर को अपना सामाजिक आधार बनाया हैं, जिसका पृथक विस्तृत अध्ययन किया
जा सकता हैं| 1989 के आम चुनाव इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय हैं|
भारत के सकल घरेलु उत्पाद में कृषि का अनुपात लगातार कम हो रहा हैं| कृषि ‘व्यापार और ऊद्योग’ की तुलना में बहुत ही कम लाभकारी रह गई हैं| इसके अतरिक्त व्यापार और उद्योग के निरंतर विकास और बढ़ते शहरीकरण और शहरो की तरफ आम पलायन के कारण कृषि-पशुपालन पर आश्रित देहात में रहने वाली सभी भूमिपति प्रभुत्वशाली जातियों का प्रभाव काफी कम हुआ हैं| सार्वभोमिक व्यस्क मताधिकार ने शहर और देहात सभी जगह समता का मार्ग प्रशस्त किया हैं| देहात में जानकारी और शिक्षा आदि सुविधाओ का अभाव हैं, अतः अपनी पुश्तैनी सैनिक अभिवृति के कारण अजगर समूह के अधिकांश युवा रोज़गार के लिए सेना और पुलिस की तरफ रूख किये हुए हैं|
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