डॉ सुशील भाटी
आगरा जिले की फतेहाबाद के
निकट खेडा जवाहर सिंह नामका एक गाँव हैं, जो ब्रिटिश काल में आगरा के फतेहाबाद और
फिरोजाबाद परगनो के ताल्लुकेदार चौधरी लक्ष्मण सिंह का मुख्यालय हुआ करता था|
उन्नीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में चौधरी लक्ष्मण सिंह यहाँ मिट्टी की एक विशाल
गढ़ी में राजसी ठाट-बाट से रहते थे| गढ़ी लगभग 50 बीघा ज़मीन में निर्मित थी| गढ़ी की विशाल
दीवारे थी जिसके चारो कोनो पर चार बुर्ज़ थे| गढ़ी की सुरक्षा के लिए बुर्जो पर तोपे
लगी रहती थी| गढ़ी की सुरक्षा के लिए इसकी दीवारों के साथ गहरी खाइयो का निर्माण
किया गया था| आज गढ़ी की दीवारे और बुर्ज़ गिर चुके हैं पर इनके अवशेष अभी भी विधमान
हैं| उन्नीसवी शताब्दी के पूर्वार्ध में फतेहाबाद में मराठा शासक दौलत राव सिंधिया
(1794-1827 ई.) के सैन्य घोड़ो का अस्तबल था| फतेहाबाद तहसील के
तारौली गाँव के निवासी कर्नल आर. एस. कांदिल का कहना हैं कि खेडा गाँव में भी पहले
मराठो का सैन्य ठिकाना था| जब चौ. लक्ष्मण सिंह फिरोजाबाद और फतेहाबाद के ताल्लुकेदार
बने, तब उन्होंने इस स्थान को अपने आधिपत्य में ले लिया और यहाँ वर्तमान गढ़ी का
निर्माण करवाया था|
गढ़ी के अवशेषों के
बीचो-बीच पक्की लखोरी ईटो से निर्मित चौधरी लक्ष्मण सिंह की महलनुमा हवेली आज भी
बुलंदियों के साथ खड़ी हैं, यहाँ आज इनके वंशज चौधरी राघवेन्द्र सिंह अपने परिवार
के साथ रहते हैं| लखोरी ईटो से बनी हवेली लाल पत्थर से बने परकोटो से सुसज्जित
हैं| परकोटो के स्तम्भ और रेलिंग शानदार नक्काशी से युक्त हैं| हवेली के मेहराबदार
मुख्य प्रवेश द्वार की नक्काशी उत्कृष्ट किस्म की हैं|
चौधरी लक्ष्मण सिंह के
विषय में बताते हुए, उनके वर्तमान वंशज चौ. राघवेन्द्र सिंह ने उनके समय की एक पीतल
निर्मित चपरास प्रस्तुत की| ये देखने में और उपयोग में बेल्ट के बकल जैसी हैं|
उन्होंने बताया की चौधरी लक्ष्मण सिंह के चपरासी इन्हें तहसील, कचहरी आदि में लगा
कर रखते थे| इन पर ‘चौधरी लक्ष्मण सिंह ताल्लुकेदार परगने फतेहाबाद व फिरोजाबाद
सांकिमोनेपैडा 1874’ लिखा हैं| अतः स्पष्ट
हैं कि सन 1874 में फतेहाबाद और फिरोजाबाद परगनों के ताल्लुकेदार थे| वर्तमान
फतेहाबाद तथा फिरोजाबाद तहसील में यमुना के दोनों तरफ लगभग गुर्जरों के 60 गाँव
हैं, तथा स्थानीय बोलचाल में इस 60 गाँव के क्षेत्र को गूजरघार कहा जाता हैं, जिसका अर्थ हैं - गूजरों का घर| फतेहाबाद कस्बे के पश्चिम में भरापुर
गूजराघार का पहला गाँव हैं, इसके पूर्व में यमुना किनारे तक करीब 21 गाँव हैं तथा
यमुना पार फिरोजाबाद तहसील में करीब 38
गाँव गुर्जरों के हैं| फतेहबाद तथा फिरोजाबाद की ताल्लुकेदार होने के नाते ये सभी
गाँव चौधरी लक्ष्मण सिंह की ताल्लुकेदारी में आते थे|
चौ. लक्ष्मण सिंह के
पूर्वज इस क्षेत्र में दिल्ली से आये थे| फिरोजाबाद क्षेत्र के प्रेमपुर आनंदीपुर
गाँव के यतिंदर अवाना अपने बुजुर्गो के हवाले से बताते हैं कि 1192 में तराइन के
दूसरे युद्ध में दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान की पराजय के बाद दिल्ली से काफी
लोग उजड़ कर फिरोजाबाद और फतेहाबाद क्षेत्र में बस गए| चौ. लक्ष्मण सिंह रियाना
गोत्र के गुर्जर थे, उनके पूर्वज भी सभवतः उक्त प्रव्रजन में दिल्ली क्षेत्र के दौलताबाद
गाँव से फिरोजाबाद-फतेहाबाद क्षेत्र में आये थे| वर्तमान में फतेहाबाद क्षेत्र में
रियाना गुर्जरों के खेडा जवाहर, सारंगपुर, भरापुर, बाबरपुर, हुमायुपुर तथा हाजी
नंगला आदि गाँव हैं| आरम्भ में चौ. लक्ष्मण सिंह के साथी भारामल का फतेहाबाद
क्षेत्र में उत्थान हुआ| भारामल किसी मेव राजा के सेनापति थे| भारामल ने फतेहाबाद
के पश्चिम में भरापुर गाँव बसाया| भारामल की मृत्यु के उपरांत, ब्रिटिश काल में
चौ. लक्षण सिंह फिरोजाबाद और फतेहाबाद परगनों के तालुकेदार बन गए|
1857 के विद्रोह में चौधरी
लक्ष्मण सिंह ने फतेहाबाद के निकट बादशाही बाग किले में स्थित तहसील मुख्यालय को
अपने अधिकार में ले लिया था तथा क्षेत्र में कानून और शांति व्यवस्था बनाये रखी|
अराजकता का लाभ उठाते हुए, उन्होंने पिनाहट क्षेत्र को भी अपने अधिकार में ले लिया
था| चौ. लक्ष्मण सिंह के अधिकार में सात गढ़ी थी, जिनके माध्यम से वे अपनी ताल्लुकेदारी
के प्रबंधन और रख-रखाव करते थे| ये गढ़ियां खेडा, चार बिस्वा, सिलावली, सारंगपुर (गढ़ी
जोमदार), मुरावल, ज़रारी और महरा चौधरी गाँवो में स्थित थी| चौ. लक्ष्मण सिंह ने
जरारी की गढ़ी का निर्माण यमुना पार से डाकुओ और असामाजिक तत्वों की रोकथाम के लिए करवाया
था|
चौ. लक्ष्मण सिंह बहुत से
सामाजिक कल्याण के लिए बहुत से कार्य किये| अपने साथी भारामल के देहांत के बाद चौ.
लक्ष्मण सिंह ने भरापुर में एक बाग़ लगवाया तथा एक शिव मंदिर का निर्माण करावाया जो
आज भी विधमान हैं| चौ. लक्ष्मण सिंह ने फतेहाबाद में तत्कालीन सरकारी अस्पताल तथा
थाने के लिए जगह दान में दी थी| इसके अतिरिक्त मौजा स्वार में यमुना नदी पर घाट का
निर्माण करवाया तथा हाजी नंगला गाँव में कृष्ण मंदिर का निर्माण करवाया|
कालांतर में चौ. लक्ष्मण
सिंह के पौत्र चौ. जवाहर सिंह के समय खेडा गाँव उनके नाम से खेडा जवाहर मशहूर हो
गया| चौ. जवाहर सिंह के पुत्र चौ. ऐदल सिंह राज़स्व विभाग में उच्च अधिकारी थे|
उनका विवाह बुंदेलखंड के प्रतिष्ठित समथर राजपरिवार में हुआ था| वर्तमान में चौ.
राघवेन्द्र सिंह गढ़ी परिसर में अपने स्वर्गवासी पिता चौ. करतार सिंह और माता
श्रीमती ललित के याद में ‘चौ. करतार ललित मेमोरियल इन्टर कॉलेज’ चलाते हैं|
चौ.
लक्ष्मण सिंह की वंशावली
चौ. लक्ष्मण सिंह
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चौ. दौलत सिंह
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चौ देवी सिंह
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चौ. जवाहर सिंह तथा चौ सौवरन सिंह
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चौ. ऐदल सिंह
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चौ. करतार सिंह
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चौ. राघवेन्द्र सिंह
सन्दर्भ
1. Rosie
Llewelln-Jones, The Great Uprising in India, 1857-58 : Untold Stories,
Indian and British, Woodbridge, 2007, p 29 https://books.google.co.in/books?isbn=1843833042
2. S. B. Chaudhuri, Civil Rebellion In Indian
Mutinies (1857-1859), Calcutta, 1957, p 83
3. H. R. Nevill, Agra A
Gazetteer, Vol VIII, Allahbad, 1905
4. साक्षात्कार-
दिनांक: 30/10/2017, चौ. राघवेन्द्र सिंह,
निवासी ग्राम - खेड़ा जवाहर, तहसील-फतेहाबाद, आगरा|
5. दूरभाष वार्ता दिनांक:
30/10/2017, कर्नल आर. एस. कांदिल, निवासी ग्राम –तारौली, तहसील-फतेहाबाद, आगरा|
6. दूरभाष वार्ता दिनांक: 20/8/2018, श्री यतीन्द्र अवाना, निवासी ग्राम – प्रेमपुर, तहसील तथा जिला फिरोजाबाद|
Nice article bhai saab
ReplyDeleteJai gurjar samaaj.
ReplyDeleteGurjar ek khoj yatra jari rhe Dr Bhati sab
ReplyDeleteGood source of gurjar history.it needs to intigrates all these news.
ReplyDeleteThanks Bro
Very good. Its historical place gurjar society.
ReplyDeleteजय गुर्जर समाज ।
ReplyDeleteIt's a historical place as gurjar we should visit here once in our life. Yes I m gone here many times. People of this is also are Vry nice and gentle. Thanku.
ReplyDeleteजय हो गुर्जर समाज की मैंने भी देखी है हवेली
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