डा. सुशील भाटी
बुहलर, होर्नले, वी. ए. स्मिथ, विलियम क्रुक आदि इतिहासकारो ने गुर्जरों को
श्वेत हूणों से सम्बंधित माना हैं| कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों की उत्पत्ति
श्वेत हूणों की खज़र शाखा से बताते हैं| भारत में आज भी ‘हूण’ गुर्जरों का एक प्रमुख गोत्र
हैं जिसकी आबादी अनेक प्रदेशो में हैं|
छठी शताब्दी के उतरार्ध में हूण साम्राज्य
के पतन के बाद हूण गुर्जरों की उपस्थिति नवी-दसवी शताब्दी में पंजाब में प्रमाणित
होती हैं| हूण सम्राट तोरमाण और उसके पुत्र मिहिरकुल (502-542) ई. के सिक्को पर उनके
कुल का नाम ‘अलखान’ अंकित हैं| राजतरंगिणी के अनुसार पंजाब के शासक ‘अलखान’ गुर्जर
का युद्ध कश्मीर के राजा शंकर वर्मन (883- 902 ई.) के साथ हुआ था| इतिहासकार हरमट
के अनुसार हूणों के सिक्को पर बाख्त्री भाषा में उत्कीर्ण ‘अलखान’ वही नाम हैं
जोकि कल्हण की राजतरंगिणी में उल्लेखित गुर्जर राजा का हैं| इतिहासकार अलार्म के
अनुसार ‘अलखान’ हूण शासको की क्लेन / कुल का नाम हैं| इतिहासकार बिवर के
अनुसार मिहिरकुल का उतराधिकारी ‘अलखान’ था| अतः भारत में हूण साम्राज्य के पतन के
बाद भी पंजाब में तोरमाण और मिहिरकुल के परिवार की शक्ति अक्षुण बनी रही तथा नवी
शताब्दी में पंजाब पर शासन करने वाला अलखान गुर्जर उनके ‘अलखान’ परिवार का वारिस था|
वर्तमान में उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जिले में लक्सर कस्बे के पास
हूण गोत्र का “चौगामा” यानि चार गाँव का समूह हैं| कुआँ खेडा, मखयाली, रहीमपुर और भुर्ना गाँव इस
‘हूण’ चौगामे का हिस्सा हैं| इनके अतिरिक्त मंगलोर के पास बिझोली गाँव में हूण
गुर्जर हैं| वास्तविकता में कुआ खेडा गाँव के एक हूण परिवार के पूर्वज बिझोली से आकर
बसे थे| बिझोली गाँव में आज भी इस परिवार की पुश्तैनी ‘सती देवी’ के मंदिर हैं|
कुआ खेडा का दूसरा परिवार कनखल स्थित प्राचीन मायापुरी नगरी से आया हैं| मायापुरी
में भी इनके पूज्य सती मंदिर हैं| इनके अतिरिक्त उत्तराखंड के हरिद्वार जिले मे ही
झबरेडा के पास हूण गुर्जरों का एक बड़ा गाँव हैं, जिसका नाम ‘लाठ्हरदेवा हूण’ हैं|
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में सरसावा रेलवे स्टेशन के पास
‘अलीपुर-काजीपुर’ हूण गुर्जरों के गाँव हैं| मुज़फ्फरनगर जिले में पुरकाजी के पास शकरपुर
और भदोलीगाँव में हूण गोत्र के गुर्जर
हैं|
उत्तर प्रदेश के हापुड़ और मेरठ जिले में हूण गोत्र के गुर्जरों का
बारहा हैं| बारहा का अर्थ हैं-12 गाँव की
खाप या समूह| गोहरा, मुदाफरा, औरंगाबाद, मुक्तेसरा, माधोपुर, पीरनगर, दतियाना, सालारपुर,
सुकलमपुरा, मडैय्या, अट्टा और नवल इस ‘हूण खाप’ के गाँव हैं| इसमें पहले 11 गाँव
हापुड़ जिले में तथा बारहवा गाँव नवल मेरठ जिले में हैं| मेरठ में शाहजहाँपुर के
पास सदुल्लाह्पुर गाँव में भी हूण गुर्जरों के परिवार रहते हैं|
आगरा जिले में भी हूण गुर्जरों के गाँव हैं|
राजस्थान में हूण गुर्जर मुख्य रूप से
अलवर, भरतपुर, दौसा, अजमेर, सवाई माधोपुर, टोंक, बूंदी, कोटा, चित्तोडगढ और भीलवाड़ा जिले में पाए
जाते हैं| पूर्व मध्य काल में कोटा, बूंदी आदि जिलो का हाड़ोती क्षेत्र हूण प्रदेश कहलाता था|
अलवर जिले में हूण गुर्जरों के सात गाँव में हूण गुर्जर निवास करते
हैं| अलवर जिले की तहसील लक्ष्मण गढ़ में बांदका हूण गुर्जरों का प्रमुख गाँव हैं| भरतपुर
जिले में डीग के पास ‘महमदपुर’ हूण गुर्जरों का गाँव हैं| इसी के पास ‘अधावाली’
गाँव में भी हूण गुर्जरों के कुछ परिवार निवास करते हैं| भरतपुर जिले के बसावर
क्षेत्र में ‘इटामदा’ और ‘महतोली’ हूण गुर्जरों के गाँव हैं| दौसा जिले में
सिकंदरा के पास ‘पीपलकी’ हूण गुर्जरों का प्रसिद्ध गाँव हैं, जोकि अपनी बहादुरी के
लिए जाना जाता हैं| अजमेर जिले में ‘नारेली’, ‘लवेरा’, ‘बासेली’, घोड़दा और ‘भेरूखेड़ा’ हूण
गुर्जरों के मुख्य गाँव हैं| टोंक जिले में सरोली, ‘गांवडी’, ‘कल्याणपुर’,
‘बसनपुरा’, ‘चान्दली माता’ और ‘रंगविलास’ ग्रामो में हूण गुर्जरों का निवास हैं| गांवडी
गाँव में हूण गुर्जरों का पूज्य एक सती मंदिर भी हैं| कहते हैं कि गांवडी में पहले
तंवर गुर्जर रहते थे| इन्होने अपनी एक बेटी का विवाह भीलवाड़ा जिले के टीकर गाँव के
हूण गुर्जर के साथ कर दिया| किसी कारण वश दोनों परिवारों में संघर्ष हो गया| जिसमे
तंवर परिवार के दामाद की मृत्यु हो गई और उसकी पत्नी सती हो गई| बाद में हूण
गुर्जर गाँव में आबाद हो गए और उन्होंने अपनी पूर्वजा की याद में सती मंदिर का
निर्माण करवाया| हिण्डोली और बूंदी के कुछ हूण परिवार गांवडी से ही प्रव्रजन कर वहां
बसे हैं|
कोटा-बूंदी का क्षेत्र पूर्व मध्य काल में हूण प्रदेश के नाम से जाना
जाता था| बूंदी इलाके में रामेश्वर महादेव, भीमलत और झर महादेव हूणों के बनवाये प्रसिद्ध
शिव मंदिर हैं| बिजोलिया, चित्तोरगढ़ के समीप स्थित ‘मैनाल’ कभी हूण राजा
अन्गत्सी की राजधानी थी, जहा
हूणों ने तिलस्वा महादेव का मंदिर बनवाया था| यह मंदिर आज भी पर्यटकों और श्रद्धालुओं को अपनी
ओर आकर्षित करता हैं| कर्नल
टाड़ के अनुसार बडोली, कोटा
में स्थित सुप्रसिद्ध शिव मंदिर हूणराज ने बनवाया था| आज भी इस इलाके में हूणों गोत्र के गुर्जरों के अनेक गांव हैं| | बूंदी
शहर के बालचंद पाड़ा मोहल्ले में भी हूण गुर्जरों की पुरानी आबादी हैं| बूंदी
जिले में राणीपुरा, नरसिंहपुरा, रामपुरा, झरबालापुरा, सुसाडिया, नीम का खेडा, झाल jआदि हूण गुर्जरों
के प्रसिद्ध गाँव हैं| हिण्डोली में नेहडी, सहसपुरिया, टरडक्या, टहला, सलावलिया और खंडिरिया हूण
गुर्जरों के गाँव हैं| सती माँ का एक मंदिर ग्राम मांगटला, जिला भीलवाडा में हैं जोकि खंडिरिया, झाल, बूंदी शहर के बालचंद पाड़ा तथा नेहडी के कुछ हूण परिवार की कुल देवी हैं| नेहडी के अधिकांश हूण परिवारो की कुल देवी, सती माँ का मंदिर बूंदी जिले के खेरखटा ग्राम में हैं| कोटा जिले में ‘रोजड़ी’, राजपुरा और पीताम्बपुरा हूण
गुर्जरों के मुख्य गाँव हैं|
चित्तोडगढ
जिले की बेगू तहसील में ‘पारसोली’ हूण गुर्जरों का प्रमुख गाँव हैं| भीलवाड़ा जिले
की जहाजपुर तहसील में टिटोडा. बरोदा, मोतीपुरा
मोहनपुरा और गांगीथला तथा शाहपुरा तहसील में ‘बच्छ खेड़ा’ हूण गुर्जरों के गाँव
हैं| भीलवाड़ा की केकड़ी तहसील में गणेशपुरा गाँव में
हूण गुर्जर निवास करते हैं|
छठी शताब्दी के पूर्वार्ध में मध्य प्रदेश के ग्वालियर क्षेत्र में हूणों का आधिपत्य था| हूण
सम्राट मिहिरकुल के शासन
काल के पंद्रहवे वर्ष का एक अभिलेख ग्वालियर के पास से एक सूर्य मंदिर से प्राप्त हुआ हैं| ग्वालियर
जिले की डबरा तहसील में भारस हूण गुर्जरों का प्रमुख गाँव हैं| आज भी चंबल संभाग ग्वालियर तथा इसके समीपवर्ती जिलो के गुर्जर बाहुल्य अनेक गाँवो में
हूण गुर्जरों की बिखरी आबादी हैं| ग्वालियर
की डबरा तहसील में भारस हूण गुर्जरों का मुख्य गाँव हैं| भरास के पास ही चपराना
गुर्जरों का बडेरा गाँव हैं| दोनों गोंवो के लोग पग-पलटा भाई माने जाते हैं तथा
आपस में शादी नहीं करते| मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में नरवर के पास डोंगरी, और
टिकटोली हूण गुर्जरों का प्रसिद्ध गाँव हैं| डोंगरी नल-दमयंती के पौराणिक आख्यान
के पात्र मनसुख गुर्जर का गाँव माना जाता हैं| मनसुख हूण गोत्र का गुर्जर था तथा
राजा नल का दोस्त था| मनसुख गुर्जर ने संकट के समय राजा नल का साथ निभाया था| आम
समाज आज भी मनसुख गुर्जर को एक आदर्श दोस्त के रूप में देखता हैं| डोंगरी में एक किले
के भग्नावेश भी हैं जोकि मनसुख गुर्जर का किला माना जाता हैं| भारत के प्रथम हूण
सम्राट तोरमाण का अभिलेख मध्य प्रदेश के सागर जिले स्थित एरण स्थान से प्राप्त हुआ
हैं| मध्य प्रदेश में हूण गुर्जर भोपाल तक पाए जाते हैं|
महाराष्ट्र के दोड़े गुर्जरों में हूण गोत्र हैं| खानदेश गजेटियर के
अनुसार दोड़े गुर्जरों के 41 कुल हैं| इनमे से एक अखिलगढ़ के हूण हैं|
सन्दर्भ
1. वी. ए. स्मिथ, “दी गुर्जर्स ऑफ़ राजपूताना एंड कन्नौज”, जर्नल ऑफ़ दी रॉयल एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, 1909, प. 53-75
2. विलियम क्रुक,” इंट्रोडक्शन”, अनाल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, खंड I, ( संपा.) कर्नल टॉड
3. ए. आर. रुडोल्फ होर्नले, “सम प्रोब्लम्स ऑफ़ ऐन्शिएन्ट इंडियन हिस्ट्री, संख्या III. दी गुर्जर क्लैन्स”, जे.आर.ए.एस., 1905, प. 1- 32
4. सुशील भाटी, “शिव भक्त सम्राट मिहिरकुल हूण”, आस्पेक्ट ऑफ़
इंडियन हिस्ट्री, समादक- एन आर. फारुकी तथा एस. जेड. एच. जाफरी, नई दिल्ली,
2013, प. 715-717
5. एम. ए स्टीन (अनु.), राजतरंगिणी, खंड II प. 464
6. जे.एम. कैम्पबैल, दी गूजर”, बोम्बे गजेटियर, खण्ड IX, भाग 2, 1901, प. 501
7. ए. कुर्बनोव, दी हेप्थालाइटस: आरकिओलोजिकल एंड हिस्टोरिकल
एनालिसिस ( पी.एच.डी थीसिस) बर्लिन 2010, प. 100n
8.वी. ए. स्मिथ, “व्हाइट
हूण कोइन ऑफ़ व्याघ्रमुख ऑफ़ दी चप (गुर्जर) डायनेस्टी ऑफ़ भीनमाल”, जर्नल ऑफ़ रॉयल
एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड, 1907, प 923-928
9. बी. एन. पुरी, हिस्ट्री ऑफ
गुर्जर-प्रतिहार, नई दिल्ली, 1986, प.
12-13
10. डी. आर. भण्डारकर, “फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन”, इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्डX L, 1911,प
11.
खानदेश डिस्ट्रिक्ट गजेटियर