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Thursday, March 7, 2013

बासौद की कुर्बानी ( Basodh ki Kurbani )

डा. सुशील भाटी

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बाबा शाहमल सिंह की भूमिका अग्रणी क्रान्तिकारी नेता की थी। तत्कालीन मेरठ के बागपत-बड़ौत क्षेत्र में बगावत का झण्डा बुलन्द कर, शाहमल सिंह ने दिल्ली के क्रान्तिकारियों को रसद आदि पहुचाना शुरु कर दिया था। मेरठ के अंग्रेजी प्रशासन एवं दिल्ली में अंग्रेजी फौज के सम्पर्क को तोड़ने के लिए बागपत क्षेत्र के गूजरों ने, शाहमल सिंह के निर्देश पर, बागपत का यमुना पुल तोड़ने दिया। क्रांन्ति में बाबा शाहमल के इस योगदान से प्रसन्न होकर, मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर ने शाहमल सिंह को बागपत-बड़ौत परगने का नायब सूबेदार बना दिया।

यूं तो बागपत-बड़ौत क्षेत्र के 28 गांवों ने क्रान्ति में सक्रिय सहयोग किया था, और प्रति क्रान्ति के दौर में उन्होंने अंग्रेजों के असहनीय जुल्मों और अत्याचारों को झेला था, परन्तु इनमें मेरठ बागपत रोड के समीप स्थित बासौद एक ऐसा गांव था जिसने अपनी देशभक्ति की सबसे बड़ी कीमत अदा की थी। इस मुस्लिम बहुल गांव के लगभग 150 लोगों को मारने के बाद अंग्रेजों ने गांव को आग लगा दी थी।

 बाबा शाहमल ने जब बड़ौत पर हमला किया था तो वो तहसील के खजाने को नहीं लूट पाए क्योंकि बड़ौत का तहसीलदार करम अली इसे डौला गांव के जमींदार नवल सिंह की मदद से सुरक्षित स्थान पर ले गया। कलैक्टर डनलप ने मेजर जनरल हैविट को लिखे पत्र में नवल सिंह की गणना अंगे्रजों के प्रमुख मददगार के रूप में की थी। इस बात से बेहद खफा होकर, बाबा शाहमल ने नवल सिंह आदि को सजा देने के लिए डौला के पड़ौसी गांव बासौद में, अपने लाव-लश्कर के साथ, डेरा डाल दिया। बासौद गांव के लोगों ने आरम्भ से ही क्रन्तिकारी गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। उस दिन भी वहां दिल्ली से दो गाजी आए हुए थे, और दिल्ली के क्रांन्तिकारियों को रसद पहुंचाने के लिए 8000 मन अनाज एवं दाल क्षेत्र से इकट्ठा की गई थी।

बागपत क्षेत्र में क्रान्ति का दमन करने के लिए, उसी दिन डनलप के नेतृत्व में खाकी रिसाला भी दुल्हैणा पहुंच गया। दुलहैणा डौला से लगभग सात मील दूर है। खाकी रिसाले मंे लगभग 200 सिपाही थे। रिसाले में 2 तोपें, 8 गोलन्दाज, 40 राइफलधारी, 50 घुड़सवार, 27 नजीब एवं अन्य सैनिक थे। नवल सिंह भी रिसाले के साथ गाइड के रूप में मौजूद था। इस बीच जब डौला वासियों को शाहमल सिंह के बासौद में मौजूद होने और सम्भावित हमले का पता चला तो उनहोंने जबरदस्त हवाई फायरिंग कर दी। फायरिंग की आवाज सुन कर डनलप ने नवल सिंह को सच्चाई का पता करने के लिए भेजा, जिसने लौट कर सभी को स्थिति से अवगत कराया। हालात को समझते हुए खाकी रिसाला रात में ही कूच कर गया और 17 जुलाई की भौर में डौला पहुँच  गया।

अंग्रेजी घुड़सवार बासौद को घेरने के लिए बढ़े तो, रिसाले के अग्रिम रक्षकों ने देखा कि बहुत से लोग, जो हाथों में बंदूकें और तलवारें लिए हुए थे, गांव से भागे जा रहे थे। अंग्रेज जब गांव में पहुंचे तो पता चला कि बाबा शाहमल के जासूसों ने उन्हें खाकी रिसाले के आने की खबर दे दी थी और वो रात में ही बड़ौत की तरफ चले गये। अंग्रेजों को वहां आठ मन अनाज और दालों का भण्डार मिला जो कि दिल्ली के क्रांन्तिकारियों को रसद के तौर पर पहुंचाने के लिए इकट्ठा किया गया था। गांव के लोग बुरे-से बुरे अंजाम को तैयार थे, उन्होंने औरतों और बच्चों को रात में ही सुरक्षित स्थान पर भेज दिया था। अंग्रेज विद्रोही भारतीयों के लिए एक नजीर स्थापित करना चाहते थे। गांव में जो भी आदमी मिला उसे अंग्रजों ने गोली मार दी या फिर तलावार से काट दिया। शहीद होने वालों में दिल्ली से आये दो गाजी भी थे, जिन्होंने बसौद की मस्जिद में मोर्चा संभाल कर, मरते दम तक, अंग्रेजों को जमकर टक्कर दी। सभी क्रांन्तिकारियाों को मारने के बाद गांव को आग लगा दी गई वहां से प्राप्त रसद को भी आग के हवाल कर दिया गया। डनलप के अनुसार बासौद में लगभग 150 लोग मारे गये।

अंग्रेज अपनी जीत पर फूले नहीं समा रहे थे, परन्तु हिन्दुस्तानी संघर्ष और शहादत का सिलसिला यहीं नहीं रुका, अंग्रेजों का क्रांन्तिकारियों से असली मुकाबला तो अगले दिन, 18 जुलाई को, बड़ौत में होने वाला था, जहां भारतीयों ने उनके दांत खट्टे कर दिये थे। 

संदर्भ

1. गौतम भद्रा, फोर रिबेल्स ऑफ एट्टीन फिफ्टी सेवन (लेख), सब आल्टरन स्टडीज,
   खण्ड-4 सम्पादक-रणजीत गुहा।
2. डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर ऑफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857-58
3. नैरेटिव ऑफ इवैन्ट्स अटैन्डिंग दि आउटब्रेक  ऑफ  डिस्टरबैन्सिस एण्ड रेस्टोरेशन
   ऑफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मेरठ इन 1857-58
4. एरिक स्ट्रोक पीजेन्ट आम्र्ड।
5. एस000 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश खण्ड-5
6. 0वी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटयर
                                                                                                                                             - Dr Sushil Bhati



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