डॉ सुशील भाटी
1707 में बादशाह औरंगजेब के मृत्यु के बाद मुग़ल साम्राज्य का पतन बहुत तेज़ी के
साथ हुआ| 1739 में ईरान के शासक
नादिर शाह के आक्रमण के समक्ष मुग़ल शक्ति बिखर कर रह गई| पूरी दुनिया में मुग़ल साम्राज्य का खोखलापन उजागर हो गया| दक्कन में मराठा शक्तिशाली हो गए थे| दिल्ली के निकट जाट, गूजर और रोहिल्ला पठानो की शक्ति
पनपने लगी थी| मुग़ल दरबारी और तुर्क
सैनिक भी बादशाह को आँख दिखाने लगे| 1739 से 1761 तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली
9 गर्दियो का शिकार बनी| 9 गर्दियो का तात्पर्य 9 लूटमार के सिलसिलो से हैं,
जोकि 9 भिन्न शासको अथवा जाति समूहों के
द्वारा संचालित किए गए| नादिर शाह ने
दो बार, अहमद शाह अब्दाली ने चार बार, भरतपुर के जाट राजा सूरज मल ने एक बार, मेरठ
क्षेत्र के राव जीत सिंह गूजर ने एक बार, रोहतक
के बहादुर खान बलूच ने एक बार, रोहिल्ला सरदार नजीब खान ने आठ बार, मराठो ने आठ बार, खुद मुग़ल अधिकारियो और शाही सेना के तुर्क
सैनिको ने भी दिल्ली को लूटा| दिल्ली के ऊपर
बीती प्रमुख गर्दियाँ निम्नवत हैं-
1. नादिर गर्दी- ईरान के शासक
नादिर शाह ने मार्च 1739 में दिल्ली पर आक्रमण किया और मार्च से मई 1739 तक दिल्ली
को जमकर लूटा| करनाल युद्ध के बाद नादिर शाह 50 लाख रूपए लेकर वापस अपने देश जाने
को तैयार हो गया था, किन्तु अवध का नवाब सादात खान उससे मिलने पहुँच गया और उसने
उसे दिल्ली चलने और लूटने के लिए यह कहकर उकसाया कि वहाँ से उसे 50 करोड़ रूपए का
धन प्राप्त होगा| 7 मार्च को नादिर शाह
दिल्ली पहुँच गया| नादिर शाह ने 11 मई 1739 में दिल्ली में कत्लेआम कराया था,
जिसमे बीस हज़ार से अधिक लोग एक दिन में क़त्ल किए गए थे| एक अनुमान के
अनुसार वह दिल्ली से 70-80 करोड़ रूपये कीमत की सोना चांदी धन संपत्ति को लूटकर
अपने देश ले गया, जिसमे मुगलों
का मयूर सिंघासन और कोहिनूर हीरा भी शामिल थे|
2. शाह गर्दी- अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली ने जनवरी 1757 से 1761 तक
भारत पर कई बार आक्रमण किए और 4 बार दिल्ली को लूटा| रोहिल्ला सरदार नजीब खान उर्फ़
नाजीबुदौल्लाह अहमद शाह अब्दाली का समर्थक था| दिल्ली और दिल्ली में मुग़ल दरबार की
राजनीति पर पर नियंत्रण साधने के लिए नजीबुदौल्लाह ने अहमद शाह अब्दाली से मदद की
गुहार की थी| दक्कन के मराठे, भरतपुर के
जाट, सभी दिल्ली को नियंत्रित करना चाहते थे| नजीबुदौल्लाह दिल्ली के पूर्व में स्थित ऊपरी दोआब और गंगा पार रूहेलखंड में सक्रिय था| वह गंगा पार का रोहिल्ला पठान था, उसका लक्ष्य दिल्ली था,
इसलिए वह जाटो और मराठो के साथ संघर्ष में आ गया था| उनसे अपना हिसाब-किताब चुकता करने के लिए उसने अपने स्वदेश अफगानिस्तान से
सजातीय पठान शासक अहमद शाह अब्दाली को आमंत्रित किया था|
3. जाट गर्दी- मुग़ल बादशाह अहमद शाह और उसके वजीर सफ़दर जंग के बीच मार्च
-नवम्बर 1739 में गृह युद्ध चला| मराठो और
रोहिल्लो ने बादशाह का पक्ष लिया, वही भरतपुर के जाटो ने सफदरजंग का साथ दिया| सफदरजंग के उकसावे पर 9 मई 1753 को भरतपुर के राजा सूरजमल के नेतृत्त्व में जाटो ने पुरानी
दिल्ली पर हमला लूट लिया| लूटमार का यह सिलसिला 4 जून 1753 तक चला|
4. गूजर गर्दी- गृह युद्ध के दौरान मीर बख्शी ईमाद उल मुल्क ने सेना की भर्ती
की| ईमाद उल मुल्क के आमन्त्रण पर जब नजीब दिल्ली कूच कर रहा था रास्ते में मीरापुर
के निकट स्थित कतेव्रह (Katewrah) के नवाब
फतेहुल्लाह खान ने नजीब खान से परीक्षतगढ़ के राव जीत सिंह गूजर की दोस्ती करा दी
थी| अतः जीत सिंह भी 2 जून 1754 को नजीब खान
के साथ 2000 गूजर सैनिको की रेजिमेंट लेकर दिल्ली आ गया| नजीब खान ने जीत सिंह गूजर को मीर बख्शी ईमाद उल मुल्क से
मिलवाया| इन सैनिको को दिल्ली में सफ़दर जंग और उसके समर्थको के विरुद्ध तैनात
किया| इस कार्यवाही में सफदरजंग के समर्थको के घरो को भी नहीं बख्शा गया और उन्हें
जमकर लूटा गया| अगस्त-सितम्बर के माह में
सैनिको को तनख्वाह नहीं मिली तब गूजर और रोहिल्ला सैनिको ने दिल्ली को लूट लिया|
5. बलूच गर्दी- अगस्त-सितम्बर के माह में सैनिको को तनख्वाह नहीं मिली तब बहादुर
खान बलूच के सैनिको ने दिल्ली में लूटमार कर दी|
6. रोहिल्ला गर्दी- सितम्बर 1753 में नजीब खान के सैनिको के वेतन आदि के 25 लाख रूपए मुग़ल दरबार पर बकाया थे| उसे केवल 4 लाख रूपए का भुगतान किया गया| उसे 15 लाख रूपए का राज़स्व गंगा दोआब में आवंटित कर दिया
गया| इस सब के बावजूद 26 नवम्बर
1753 को दिल्ली से लोटते हुए नजीब और उसके सैनिको ने पटपडगंज और शाहदरा को लूट
लिया| 11 अगस्त 1757 को नजीब और
उसके लोगो ने वजीर ईमाद उल मुल्क के घर को लूटा| नजीब के 20-25 हज़ार सैनिको ने अफ़ग़ान शासक अहमद शाह अब्दाली की सेना के साथ
मिलकर दिल्ली को लूटा|
7. मराठा गर्दी- पेशवा बाजीराव ने अप्रैल 1737 में अचानक से दिल्ली में प्रकट
हो हमला बोल दिया| मराठा सेनापति
खांडेराव नवम्बर- दिसम्बर 1753, रघुनाथ राव जून- दिसम्बर 1754, अंताजी जनवरी 1757
से जनवरी 1758 तक किसी ना किसी कारण से दिल्ली में रहें और उन्होंने दिल्ली को
लूटा| कुल मिलाकर मराठो ने दिल्ली को आठ बार लूटा|
8. मुग़ल गर्दी- मुग़ल वजीर इमाद
उल मुल्क ने सैनिक मदद के बदले मराठो को 40 लाख रूपए देने का वादा किया था, शाही
खजाने में धन नहीं होने के कारण उसने जून-अक्टूबर 1754 में स्वयं दिल्ली की जनता
पर ज़बरदस्ती अतिरिक्त कर आदि लगा कर लूटा|
9. तुर्क गर्दी- तुर्क गर्दी का काल मार्च-जून 1754 तक रहा| तुर्क सैनिको के सिन-दाघ रिसाले को एक साल से वेतन नहीं
मिला था, अतः मार्च 1754 में उन्होंने दिल्ली के सुनारों को लूट लिया| इसी प्रकार की लूट की कार्यवाही जून 1754 तक चलती रही|
सही कहा जाता हैं कि वक्त सबसे बलवान होता हैं| कभी मौहम्मद तुग़लक, अलाउद्दीन खिलजी, शाहजहाँ और औरंगजेब जैसे बलशाली और
प्रचण्ड तुर्क-मुग़ल शासको की राजधानी रही दिल्ली 1739 से लेकर 1761 तक, 22 साल की
अवधि में, अनेक बार लूटी गई| दिल्ली की 9
गर्दियों की कहानी वास्तव में मुगलिया दिल्ली के बेआबरू होने की कहानी हैं|
1.Hari Ram Gupta, Marathas and Panipat, Panjab
University, 1961
2. Edwin T Atkinson,
Statistical Descriptive and Historical Account of the North-Western Provinces
of India, Vol II, Part 1, Allahabad, 1875
3. H M Elliot, Memoirs on
the History, Folk-lores and Distribution of the Races of North-Western
Provinces of India, London
4. Uday Kulkarni, Solstice
at Panipat: 14 January 1761
5. Jadunath Sarkar, Fall
of the Mughal Empire, Vol. 1, Calcutta, 1932
6. H R Nevil, District
Gazetteers of the United Provinces of Agra and Oudh: Meerut, Allahabad, 1904
No comments:
Post a Comment