डॉ. सुशील भाटी
10 मई 1857 – जनक्रांति का आरम्भ| महत्वपूर्ण स्थान- काली पलटन (ओघड्नाथ
मंदिर), सदर कोतवाली, भामाशाह पार्क (नई जेल)| मेरठ सदर बाज़ार कोतवाली में तैनात, ग्राम
पांचली निवासी, कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने 10 मई 1857 के दिन
इतिहास प्रसिद्ध ब्रिटिश विरोधी जनक्रांति के विस्फोट में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका
निभाई थी। एक पूर्व योज़ना के तहत, विद्रोही सैनिकों तथा धन सिंह कोतवाल सहित पुलिस फोर्स ने अंग्रेजों के विरूद्ध
साझा मोर्चा गठित कर क्रान्तिकारी घटनाओं को अंजाम दिया था। शाम 5 से 6 बजे के बीच, सदर बाज़ार
की सशस्त्र भीड़ और सैनिकों ने सभी स्थानों पर एक साथ विद्रोह कर दिया| धन सिंह कोतवाल द्वारा निर्देशित पुलिस के नेतृत्व में क्रान्तिकारी भीड़
ने ‘मारो फिरंगी’ का घोष कर सदर बाजार और कैंट क्षेत्र में अंग्रेजो का कत्लेआम कर
दिया| धन सिंह कोतवाल के आह्वान पर उनके अपने गाँव पांचली
सहित घाट, नंगला, गगोल नूरनगर, लिसाड़ी, चुडियाला, डीलना आदि
गाँवो के हजारों लोग सदर कोतवाली क्षेत्र में जमा हो गए| प्रचलित
मान्यता के अनुसार इन लोगो ने, धन सिंह कोतवाल के नेतृत्व
में, रात दो बजे नई जेल जेल तोड़कर 839 कैदियों क छुड़ा लिया और जेल में आग लगा दी।
3 जून 1857 – नूरनगर, लिसाड़ी और गगोल का बलिदान| नूरनगर, लिसाड़ी और गगोल के किसान उन क्रान्तिवीरों में से थे जो 10
मई 1857 की रात को घाट, पांचली,
नंगला आदि के किसानों के साथ धनसिंह कोतवाल के बुलावे पर मेरठ
पहुँचे थे। इस घटना के बाद नूरनगर, लिसाड़ी, और गगोल के क्रान्तिकारियों बुलन्दशहर आगरा रोड़ को रोक दिया और डाक
व्यवस्था भंग कर दी। आगरा उस समय उत्तरपश्चिम प्रांत की राजधानी थी। गगोल आदि
गाँवों के इन क्रान्तिकारियों का नेतृत्व गगोल के झण्डा सिंह उर्फ झण्डू दादा कर
रहे थे। 3 जून 1857 को क्रांति गाँव नूरनगर, लिसाड़ी और
गगोल पर अंग्रेजो ने का हमला बोल दिया| इन गाँवो को जला कर राख कर दिया|
कुछ दिन बाद अंग्रेजों ने फिर से गगोल पर हमला किया और बगावत करने
के आरोप में 9 लोग रामसहाय, घसीटा सिंह,
रम्मन सिंह, हरजस सिंह, हिम्मत
सिंह, कढेरा सिंह, शिब्बा सिंह बैरम और
दरबा सिंह को गिरफ्तार कर लिया। इन क्रान्तिवीरों पर राजद्रोह का मुकदमा चला और दशहरे
के दिन इन 9 क्रान्तिकारियों को चैराहे पर फांसी से लटका
दिया गया। तब से लेकर आज तक गगोल गांव में लोग दशहरा
नहीं मनाते हैं।
27 जून 1857- बरेली
ब्रिगेड का गंगा पार कर दिल्ली पहुंचना| प्रमुख स्थल गढ़ मुक्तेश्वर पुल, परीक्षतगढ़| 1857 के स्वतंत्रता संग्राम मे राव कदम सिंह
मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में क्रान्तिकारियों का नेता था। उसके साथ दस हजार
क्रान्तिकारी थे, जो कि प्रमुख रूप से मवाना, हस्तिनापुर और बहसूमा
क्षेत्र के थे। ये क्रान्तिकारी कफन के प्रतीक के तौर पर सिर पर सफेद पगड़ी बांध
कर चलते थे। मेरठ के तत्कालीन कलक्टर आर0 एच0 डनलप द्वारा मेजर जनरल हैविट को 28
जून 1857 को लिखे पत्र से पता चलता है कि
क्रान्तिकारियों ने पूरे जिले में खुलकर विद्रोह कर दिया और परीक्षतगढ़ के राव कदम
सिंह को पूर्वी परगने का राजा घोषित कर दिया। मेरठ और बिजनौर दोनो ओर के घाटो, विशेषकर दारानगर और रावली घाट, पर राव कदमसिंह का प्रभाव बढ़ता जा रहा था। राव
कदम सिंह की सहायता से विद्रोही बरेली ब्रिगेड ने गढ़ मुक्तेश्वर से गंगा पार की और
दिल्ली पहुँच गई,
जिससे दिल्ली में विद्रोहियों की स्थिति काफी मज़बूत हो गई|
4 जुलाई 1857– पांचली
का बलिदान| मेरठ के
क्रान्तिकारी हालातो पर काबू पाने के लिए अंग्रेजो ने मेजर विलयम्स के नेतृत्व में
खाकी रिसाले का गठन किया। जिसने 4 जुलाई 1857 को पहला हमला 10 मई 1857 को जनक्रांति
के प्रमुख नायक धन सिंह कोतवाल के गाँव पांचली और अन्य निकटवर्ती विद्रोही ग्राम
घाट और नंगला पर किया| मेरठ गजेटियर के अनुसार खाकी रिसाले ने 4 जुलाई, 1857 को प्रातः चार बजे पांचली पर गाँव को चारो
तरफ से घेर कर लिया| खाकी रिसाले में 56 घुड़सवार, 38 पैदल सिपाही और 10 तोपची थे। एरिक स्ट्रोक के
अनुसार अंग्रेजी सेना में 300 सैनिक थे, जिनमे दो तिहाई यूरोपीय थे| पांचली वासियों के अनुसार उस समय गाँव के
दक्षिण में एक चौपाल पर काफी तादात में विद्रोही ठहरे हुए थे| पूरे पांचली गाँव को तोप से उड़ा दिया गया। लगभग
400 लोग मारे गए, जो बच गए उनमें से 46 लोग कैद कर लिए गए और इनमें से 40 को
बाद में मिलिट्री कमीशनने फांसी पर लटकवा दिया। आचार्य दीपांकर के अनुसार पांचली
के 80 लोगों को फांसी की सजा पर चढ़ाया गया|। पूरे गांव को आग लगा दी गई| पूरा गाँव जल कर नष्ट हो गया।
9 जुलाई 1857- सीकरी
का बलिदान| मेरठ से 13 मील
दूर, दिल्ली जाने
वाले राज मार्ग पर मोदीनगर से सटा हुआ एक गुमनाम गाँव है-सीकरी खुर्द। 1857 के
स्वतन्त्रता संग्राम में इस गाँव ने एक अत्यन्त सक्रिय भूमिका अदा की थी| बेगमाबाद
कस्बा सीकरी खुर्द से मात्र दो मील दूर था। बेगमाबाद के अंग्रेज परस्तों ने
गाजियबााद और दिल्ली के बीच हिण्डन नदी के पुल को तोड़ने का प्रयास किया। वो
दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार और बुलन्दशहर के बागी नवाब वलिदाद खान के बीच के
सम्पर्क माध्यम, इस पुल को समाप्त करना चाहते थे। इस घटना ने सीकरी खुर्द में स्थित
क्रान्तिकारियों की क्रोधाग्नि में घी का काम किया और उन्होंने 8 जुलाई सन् 1857
को बेगमाबाद पर हमला कर दिया। सबसे पहले बेगमाबाद में स्थित पुलिस चौकी को
नेस्तनाबूत कर अंग्रेज परस्त पुलिस को मार भगाया। इस हमले की सूचना प्राप्त होते
ही आसपास के क्षेत्र में स्थित अंग्रेज समर्थक काफी बड़ी संख्या में बेगमाबाद में
एकत्रित हो गये। प्रतिक्रिया स्वरूप सीकरी खुर्द, नंगला, दौसा, डीलना, चुडि़याला और अन्य गाँवों के विद्रोही
क्रान्तिकारी बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए। आमने सामने की इस लड़ाई में
क्रान्तिकारियों ने सैकड़ों गद्दारों को मार डाला, चन्द गद्दार बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भाग
सके।
बेगमाबाद की इस
घटना की खबर जैसे ही मेरठ स्थित अंग्रेज अधिकारियों को मिली, तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी।
अंग्रेजी खाकी रिसाले ने रात को दो बजे ही घटना स्थल के लिए कूच कर दिया।
अंग्रेजों के अचानक आने की खबर से क्रान्तिकारी हैरान रह गये परन्तु शीघ्र ही वो
तलवार और भाले लेकर गाँव की सीमा पर इकट्ठा हो गये। खाकी रिसाले ने कारबाईनों से
गोलियाँ बरसा दी| अंग्रेजी तोपखाने ने कहर बरपा दिया| गाँव की सीमा पर ही 30
क्रान्तिकारी शहीद हो गये। अन्ततः क्रान्तिकारियों ने
सीकरी खुर्द के बीचोबीच स्थित किलेनुमा दोमजिला हवेली में मोर्चा लगा लिया। कैप्टल
डीवयली के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी ने हवेली के मुख्य दरवाजे को तोप
से उड़ाने का प्रयास किया। क्रान्तिकारियों के जवाबी हमले में कैप्टन डीवायली की
गर्दन में गोली लग गयी और वह बुरी तरह जख्मी हो गया। इस
बीच कैप्टन तिरहट के नेतृत्व वाली सैनिक टुकड़ी हवेली की दीवार से चढ़कर छत पर
पहुँचने में कामयाब हो गयी। हवेली की छत पर पहुँच कर इस अंग्रेज टुकड़ी में नीचे
आंगन में मोर्चा ले रहे क्रान्तिकारियों पर गोलियों की बरसात कर दी। तब तक हवेली
का मुख्य द्वारा भी टूट गया, भारतीय क्रान्तिकारी बीच में फंस कर रह गये।
हवेली के प्रांगण में 70 क्रान्तिकारी लड़ते-लड़ते शहीद हो गये| उस दिन
सीकरी में लगभग 170 भारतीयों इस आमने -सामने के युद्ध में अपने प्राण न्योछावर किए|
17 जुलाई 1857–
बासोद का बलिदान| बासौद गांव के लोगों ने आरम्भ से ही क्रन्तिकारी गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर
हिस्सा लिया था| मेरठ के पश्चिमी भाग में क्रांतिकारियों के नेता बाबा शाहमल उस
दिन बासोद ग्राम में ही थे|
अंग्रेजी घुड़सवार बासौद को घेरने के लिए बढ़े तो, रिसाले के अग्रिम रक्षकों ने देखा कि बहुत से
लोग, जो हाथों में
बंदूकें और तलवारें लिए हुए थे, गांव से भागे जा रहे थे। अंग्रेज जब गांव में पहुंचे तो पता
चला कि बाबा शाहमल के जासूसों ने उन्हें खाकी रिसाले के आने की खबर दे दी थी और वो
रात में ही बड़ौत की तरफ चले गये। अंग्रेजों को वहां आठ मन अनाज और दालों का
भण्डार मिला जो कि दिल्ली के क्रांन्तिकारियों को रसद के तौर पर पहुंचाने के लिए
इकट्ठा किया गया था। गांव में जो भी आदमी मिला उसे अंग्रजों ने गोली मार दी या फिर
तलावार से काट दिया। सभी क्रांन्तिकारियाों को मारने के बाद गांव को आग लगा दी गई
। वहां से प्राप्त रसद को भी आग के हवाल कर दिया गया। मेरठ के कलक्टर डनलप के
अनुसार बासौद में लगभग 150 लोग मारे गये।
18 जुलाई 1857 – बड़ोत का
युद्ध| 18 जुलाई की सुबह खाकी रिसाला डौला से पूर्वी यमुना नहर के किनारे
किनारे बडौत की तरफ चल दिया। बडौत में क्रान्तिकारियों ने एक बाग में मोर्चा लगा
रखा था, करीब 3500
क्रान्तिकारी बाबा शाहमल के साथ वहां अंग्रेजों से भिडने को तैयार थे। भारतीय
बहादुरी से लडे परन्तु भारतीयों की देशी बंदूकें अंग्रेजी राइफलो और तोपों का
मुकाबला न कर सकी। भारतीय जान हथेली पर लेकर लडे पर विजय आघुनिक हथियारों की हुई।
इस लडाई में करीब 200 भारतीय शहीद हुए। जिनमें बाबा शाहमल भी थे, जिन्हे एक अंग्रेज मि. तोन्नाकी ने दो भारतीय
सिपाहियों की मदद से मारा था। अंग्रेजों ने बाबा शाहमल का सिर काट कर एक लम्बे
भाले पर लटका दिया। बाबा का सिर जहाँ अंग्रेजों के लिए विजयी चिन्ह था, वहीं भारतीयों के लिए वह क्रान्तिकारी ललकार और
सम्मान का प्रतीक था। इसलिए उन्होनें इसे वापिस पाने के लिए अंग्रेजो का हिंडन तक
पीछा किया।
22 जुलाई 1857- अकलपुरा
का बलिदान| खाकी रिसाला, जब 21 जुलाई 1857 को सरधना पहुँच गया खाकी
रिसाले ने बेगम समरू के महल में डेरा डाल दिया। 22 जुलाई को खाकी रिसाला अकलपुरा
पहुँच गया और गांव को चारो तरफ से घेर लिया। क्रांतिकारी भी तैयार थे। रात में ही औरतों और बच्चों को
सुरक्षित स्थान पर भेज दिया गया था। अंग्रेजो की गोली का जवाब गोली से दिया
गया।क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजो को
गांव में घुसने नहीं दिया। इस पर
अंग्रेजो ने तोपो से गोलाबारी की और गांव में घुसने में कामयाब हो गए।
क्रान्तिकारी नरपत सिंह के घर के आस-पास मोर्चा जमाए हुये थे। परन्तु आधुनिक
हथियारों के सामने वे टिक न सकें। गांव मे
जो भी आदमी मिला अंग्रेजो ने उसे गोली से उडा दिया। सैकडो क्रान्तिकारी शहीद हो
गए। उनके शव जहाँ-तहाँ पडे थे उनमे से एक सुन्दर और सुडोल शव क्रांतिकारियों के
नेता नरपत सिंह का भी था।
29 जुलाई 1857-
गुलावठी का युद्ध| बुलंदशहर में विद्रोहियों के नेता वलीदाद खान अपने साथी दादरी के राजा राव
उमराव सिंह के साथ, मेरठ पर आक्रमण करने के लिए, 28 जुलाई को गुलावठी मे दिया था| उनके साथ 400 घुड़सवार, 600 पैदल सिपाही और 1000 विद्रोही गूजर और राजपूत थे| मेरठ से अंग्रेजी
सेना भी पहुँच गई जिसमे 50 कारबाईनर, 50 राइफलमैन तथा सैन्य रेजिमेंट का एक हिस्सा
भेज दिए गए| 29 जुलाई 1857 को आमने-सामने के लड़ाई में सैंकड़ो
भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को वीरगति प्राप्त हुई|
सन्दर्भ-
1. गौतम भद्रा, फोर रिबेल्स ऑफ ऐत्तीन फिफटी सेवन; लेख, सब - आल्टरन स्टडीज, खण्ड.4 सम्पादक. रणजीत
गुहा
2. डनलप, सर्विस एण्ड एडवैन्चर ऑफ खाकी रिसाला इन इण्डिया इन 1857.58
3. नैरेटिव ऑफ इवैन्ट्स अटैन्डिंग दि आउटब्रेक
ऑफ डिस्टरबैन्सिस एण्ड रेस्टोरेषन आॅफ अथारिटी इन दि डिस्ट्रिक्ट ऑफ मरेठ इन
1857.58
4. एरिक स्ट्रोक, पीजेन्ट आम्र्ड
5. एस0 ए0 ए0 रिजवी, फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर
प्रदेश खण्ड.5
6. ई0 बी0 जोशी, मेरठ डिस्ट्रिक्ट गजेटेयर
7. सुशील भाटी, अमर
क्रान्तिकारी बाबा शाहमल सिंह, https://janitihas.blogspot.com/2012/10/baba-shahmal-singh.html
8. सुशील भाटी, मेरठ के क्रान्तिकारियों का सरताज राव कदम सिंह https://janitihas.blogspot.com/2012/10/rao-kadam-singh.html
9. सुशील भाटी, गगोल का बलिदान https://janitihas.blogspot.com/2012/10/blog-post_28.html
10. सुशील भाटी, सीकरी की शहादत https://janitihas.blogspot.com/2012/10/blog-post.html
11. सुशील भाटी, क्रान्तिवीर नरपत सिंह एवं अकलपुरा का बलिदान https://janitihas.blogspot.com/2012/10/akalpura-ka-balidan.html
12. सुशील भाटी, 1857 की जनक्रान्ति के जनक धन सिंह कोतवाल https://janitihas.blogspot.com/2012/11/1857-dhan-singh-kotwal.html
13. सुशील भाटी, बासौद की कुर्बानी https://janitihas.blogspot.com/2013/03/blog-post.html