डॉ. सुशील भाटी
कुषाणों में सूर्य पूजा बड़े पैमाने में प्रचलित थी|वो सूर्य को मिहिर के रूप में जानते थे और अपनी आर्य नामक
भाषा में मीरो बुलाते थे| प्रस्तुत लेख
में मेरा मुख्य तर्क यह हैं कि भारत में सूर्य देवता तथा किसी व्यक्ति के नाम के
रूप में ‘मिहिर’ शब्द का प्रयोग कुषाण काल में प्रारम्भ हुआ हैं|
भारत में मिहिर शब्द का सबसे प्राचीन पुरातात्विक प्रमाण कुषाण वंश से
सम्बंधित सम्राट कनिष्क (78-101 ई.) का रबाटक अभिलेख हैं| यह अभिलेख सम्राट कनिष्क के शासनकाल के आरम्भिक वर्षो में लिखा गया था| रबाटक अभिलेख में उन देवी- देवताओ के नाम अंकित हैं जिनकी मूर्तियाँ रबाटक स्थित
देवकुल (बागोलग्गो) में स्थापित की गई थी| उनमे एक नाम मिहिर देवता का भी हैं| रबाटक अभिलेख की सम्बंधित 8-11 पंक्तियों को रोबर्ट ब्रेसी
(Robert Bracey) ने इस प्रकार प्रस्तुत किया हैं|
... for these gods,
whose service here the ... glorious Umma (οµµα) leads (namely:) the
above mentioned Nana (Νανα) and the above-mentioned Umma, Aurmuzd (αοροµοζδο),
the Gracious One (µοζοοανο), Sroshard (σροþαρδο), Narasa (ναρασαο) (and) Mihr
(µιρο) and he gave orders to make images of the same. [ Source- Robert Bracey, Chapter7, POLICY,
PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012]
भारत में मिहिर शब्द का सबसे प्राचीन पुरातात्विक
प्रमाण कुषाण वंश से सम्बंधित सम्राट कनिष्क (78-101 ई.) के सिक्के हैं, जिनमे एक तरफ
सम्राट कनिष्क को हवन में आहुति डालते हुए उत्कीर्ण किया गया हैं, और आर्य (बाख्त्री) भाषा में शाओ-नानो-शा कनिष्क कोशानो
लिखा हैं, वही सिक्के के दूसरी तरफ सूर्य देवता को उत्कीर्ण किया गया हैं और
कुषाणों की आर्य नामक भाषा में मीरो (मिहिर) लिखा हैं| इसी प्रकार के सिक्के उसके पुत्र हुविष्क
के प्राप्त हुए हैं| कनिष्क के सिक्को के प्राप्त कुल साँचो में 18 प्रतिशत मीरो ‘मिहिर’ देवता के
हैं| हुविष्क के सिक्को के प्राप्त कुल साँचो में 20 प्रतिशत मिहिर देवता के हैं| इस
प्रकार प्रमाणित होता हैं कि शिव, नाना (दुर्गा) के अतरिक्त कनिष्क प्रमुखतः मिहिर
देवता का उपासक था|
कुषाणों के सुर्खकोटल अभिलेख में मिहिरामान और बुर्ज़मिहिरपुर्रह व्यक्तिगत नाम
के रूप में प्रयोग किये गए हैं| यह भारत में
मिहिर नाम के प्रयोग के प्राचीनतम उधारण हैं|
कनिष्क के पुत्र हुविष्क के शासन काल से सम्बंधित ऐरतम (Airtam) अभिलेख में इसके लेखक का नाम मीरोजादा (Miirozada) अंकित हैं| जनोस हरमट (Janos Harmatta) के अनुसार
उक्त अभिलेख के अनुवाद इस प्रकार हौं-
King [is] Ooesko, the Era year is 30 when the lord king
presented and had the Ardoxso Farro image set up here. At that time when the
stronghold was completed then Sodila ... the treasurer was sent to the
sanctuary. There upon Sodila had this image prepared, then he [is] who had [it]
set up in the stronghold. Afterwards when the water moved farther away, then
the divinities were led from the waterless stronghold. Just therefore, Sodila
had a well dug, then Sodila had a waterconduit dug in the stronghold. Thereupon
both divinities returned back here to the sanctuary. This was written by
Miirozada by the order of Sodila [ Source- Robert Bracey, Chapter7, POLICY,
PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012]
उक्त दोनों उदाहरणों से स्पष्ट हैं कि कुषाणों में मिहिर / मीरो नाम का प्रचलन था|
कुषाणों के सिक्को पर उत्कीर्ण देवी-देवताओ को देखने से पता चलता हैं कि कुषाण
सम्राट कनिष्क के सिक्को पर उत्कीर्ण मिहिर
देवता की वेश-भूषा कुशाण सम्राटो जैसी हैं| सुर्खकोटल और मथुरा के कंकालीटीला से प्राप्त मिहिर देवता
की मूर्ती कुषाण कला शैली और कुषाण सम्राट कनिष्क और हुविश्क वेश-भूषा से पूर्ण
रूप से प्रभावित हैं| निष्कर्षतः
कनिष्क और मिहिर देवता के अंकन अत्यधिक समनता हैं|
कुषाणों के बाद भारत में मिहिर देवता का नाम हूण सम्राट मिहिरकुल (502-542 ई.)
के सिक्को पर अंकित किया गया| हूण सम्राटो के सिक्को में सूर्य
का प्रतीक चक्र भी उत्कीर्ण किया गया हैं| सम्राट मिहिरकुल के नाम में भी मिहिर शब्द का प्रयोग किया
गया हैं| अलखान हूणों ने कई मायनों
में कुषाण विरासत को आगे बढाया हैं|
मिहिरकुल के बाद मिहिर नाम गुर्जर प्रतिहार सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई.) के
नाम में भी किया गया हैं| मिहिर भोज की
आदि वराह मुद्रा पर भी सूर्य का प्रतीक चक्र भी उत्कीर्ण किया गया हैं| गुर्जर प्रतिहारो की एक हूण विरासत रही हैं|
एलेग्जेंडर कनिंघम ने कुषाणों की पहचान गुर्जरों से की हैं| उसके अनुसार गुर्जरों का कसाना गोत्र ही प्राचीन
कुषाण हैं| डॉ. सुशील भाटी
ने इस मत का अत्यधिक विकास किया हैं और इस विषय पर अनेक शोध पत्र लिखे हैं, जिसमे “गुर्जरों की कुषाण उत्पत्ति का सिद्धांत”
काफी चर्चित हैं| उनका कहना हैं
कि ऐतिहासिक तोर पर कनिष्क द्वारा स्थापित कुषाण साम्राज्य गुर्जर समुदाय का
प्रतिनिधित्व करता हैं| इसी प्रकार
रुडोल्फ होर्नले, बुह्लर, विलियम क्रुक, वी.ए. स्मिथ आदि इतिहासकार गुर्जरों को हूणों से सम्बंधित मानते हुए
और प्रतिहारो को गुर्जर मानते हैं| प्रतिहारो को
गुर्जर मानने वाले इतिहासकारों में ए. एम. टी. जैक्सन, कैम्पबेल, डी. आर. भंडारकर, बी. एन. पुरी और रमाशंकर त्रिपाठी प्रमुख हैं| कैम्पबेल और डी. आर. भंडारकर गुर्जरों को हूणों की खज़र
शाखा से उत्पन्न मानते हैं|
यह एक महत्वपूर्ण तथ्य हैं कि गुर्जरों से जुड़े सबसे प्राचीन राजवंश कुषाण, अलखान
हूण और गुर्जर प्रतिहार का जुड़ाव मिहिर उपासना अथवा मिहिर नाम/उपाधि से हमेशा बना
रहा हैं| मिहिर आज भी अजमेर और
पंजाब में गुर्जरों की उपाधि हैं|
सन्दर्भ-
Robert Bracey, Chapter7, POLICY,
PATRONAGE, AND THE SHRINKING PANTHEON OF THE KUSHANS, 2012
भगवत शरण उपाध्याय, भारतीय संस्कृति के स्त्रोत, नई दिल्ली, 1991,
रेखा चतुर्वेदी भारत में सूर्य पूजा-सरयू पार के विशेष सन्दर्भ में (लेख) जनइतिहास शोध पत्रिका, खंड-1 मेरठ, 2006
ए. कनिंघम आरकेलोजिकल सर्वे रिपोर्ट, 1864
के. सी.ओझा, दी हिस्ट्री आफ फारेन रूल इन ऐन्शिऐन्ट इण्डिया, इलाहाबाद, 1968
डी. आर. भण्डारकर, फारेन एलीमेण्ट इन इण्डियन पापुलेशन (लेख), इण्डियन ऐन्टिक्वैरी खण्ड X L 1911
जे.एम. कैम्पबैल, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
विन्सेंट ए. स्मिथ, दी ऑक्सफोर्ड हिस्टरी ऑफ इंडिया, चोथा संस्करण, दिल्ली, 1990
सुशील भाटी, सूर्य उपासक सम्राट कनिष्क