डा.सुशील भाटी
( Key words- Gurjara, Kurmi, Kunbi, kanbi, Leva, kadwa, Patidar, caste-cluster, )
मूल विषय पर आने से पहले भारतीय जाति व्यवस्था के अंग- जनजाति, कबीलाई
जाति, जाति, जाति पुंज आदि पर चर्चा आवश्यक हैं|
जनजाति (Tribe) अथवा कबीले का अर्थ हैं एक ही कुल ‘वंश’ के विस्तार से निर्मित अंतर्विवाही जन समूह| जनजाति अथवा कबीला एक ही पूर्वज
की संतान माना जाता हैं, जोकि वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता हैं| रक्त संबंधो पर
आधारित सामाजिक समानता और भाईचारा जनजातियो की खास विशेषता होती हैं| भील, मुंडा,
संथाल, गोंड आदि जनजातियों के उदहारण हैं|
कबीलाई जाति (Tribal
caste) वो जातिया हैं, जो मूल
रूप से कबीले हैं, किन्तु भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के प्रभाव में एक
जाति बन गए, जैसे- जाट, गूजर, अहीर, मेव आदि| इन जातियों को हरबर्ट रिजले ने 1901 की
भारतीय जनगणना में कबीलाई जाति (Tribal caste)
कहा हैं|
जाति (Caste) एक अंतर्विवाही समूह के साथ-साथ एक प्रस्थिति
(Status
group) और एक व्यवसायी समूह भी
हैं| किसी भी अंतर्विवाही समूह का एक पैत्रक व्यवसाय होना, जाति की खास विशेषता
हैं| जैसे ब्राह्मण, बनिया, लोहार, कुम्हार, धुना, जुलाहा, तेली आदि जातियों का
अपना एक पैत्रक व्यवसाय हैं|
एक ही भाषा क्षेत्र में ऐसी कई जातिया पाई जाती हैं जिनका एक ही व्यवसाय
होता हैं| ऐसी जातियों के समूह को जाति पुंज (Caste cluster) कहते हैं| सामान्यतः एक सी प्रस्थिति और एक
ही व्यवसाय में लगी जातियों के समूह को अक्सर एक ही नाम दे दिया जाता हैं जो अक्सर
उनके व्यवसाय का नाम होता हैं| जैसे- उत्तर भारत में खाती, धीमान और जांगिड सभी
बढ़ईगिरि का व्यवसाय करते हैं और सभी बढ़ई कहलाते हैं| जबकि वास्तविकता में वे अभी
अलग- अलग अंतर्विवाही जातिया हैं| इसी प्रकार उत्तराखंड में सैनी नामक जाति पुंज
में गोला और भगीरथी दो जातिया हैं| उत्तर प्रदेश में बनिया जाति पुंज में अग्रवाल,
रस्तोगी और गिन्दोडिया आदि जातिया हैं| एक व्यवसाय से जुडी भिन्न जातियों का एक
साँझा नाम उनके एक से व्यवसाय और क्षेत्रीय जाति सोपान क्रम में उनके एक से स्थान
(Status) का धोतक हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत
आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र
में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|
कन्बी शब्द की उत्पत्ति कुटुम्बिन शब्द से हुई हैं| कुटुम्बिन
शब्द का प्रयोग पूर्व मध्यकालीन गुजरात में भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं
लेखो-जोखो में किसान के लिए किया गया हैं| कुटुम्बिन/कुटुम्बी का अर्थ हैं किसान
परिवार का मुखिया| पूर्व मध्यकालीन भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में
किसानो/कुटुम्बिनो की संख्या उनके नाम तथा उनके द्वारा जोती जानेवाली भूमि की माप
अंकित की जाती थी|
कन्बी, कुनबी अथवा कुर्मी भी एक जाति नहीं एक बल्कि जाति
पुंज हैं| कन्बी, कुनबी और कुर्मी,
किसान जाति पुंज के क्षेत्रीय नाम हैं, जिसको हिन्दी
में कुरमी, गुजराती में कन्बी तथा मराठी में कुनबी कहा जाता हैं| प्रोफेसर
जे.एफ.हेविट- कुरमी (Kurmis)
कुरमबस (Kurambas), कुदमबस(Kudambas), कुदम्बीस(Kudambis) भारत की सिंचित कृषि करने वाली महान जातियां थी|
वस्तुतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) में खेतीहर जातियों के वर्ग समूह
को कन्बी कहते हैं| वस्तुतः इसमें लेवा, कड़वा, अन्जने, मतिया आदि पृथक जातिया हैं|
कन्बी जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा
इनमे अधिकांश के गुजरात में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं| जिनमे लेवा और कड़वा गूजर जनजाति का हिस्सा हैं|
हालाकि सामान्य रूप से इन्हें वहाँ गूजर नहीं कहा जाता| किन्तु इनके बुजुर्गो और
भाटो का मानना हैं कि ये पंजाब से आये हुए गूजर हैं| जबकि अन्जने, मतिया आदि कन्बी जातियो की भिन्न उत्पत्ति हैं|
मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) में खेतीहर जातियों के वर्ग को कुनबी कहते हैं| यहाँ
के कुनबी नामक जाति पुंज में तिरोले, माना, गूजर आदि जातिया हैं| मराठी समाज में
इन्हें तिरोले कुनबी, माना कुनबी, गूजर कुनबी कहा जाता हैं| मराठी में समाज लेवा
और कड़वा दोनों जातियों को गूजर कहा जाता हैं| इनके गुजराती लेवा और कड़वाओ से
परंपरागत रूप से विवाह भी होते हैं| अतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) के लेवा,
कड़वा और मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) के लेवा, कड़वा गूजर एक ही हैं| जबकि
मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) तिरोले और माना कुनबी भिन्न उत्पत्ति की पृथक
जाति हैं| दक्षिण भारत के मराठी समाज में यह आम धारणा हैं कि लेवा और कड़वा सहित
सभी गूजर कुनबी उत्तर से आये हैं| जबकि तिरोले और माना स्थानीय उत्पत्ति के माने
जाते हैं|
हिंदी भाषी मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग में भी लेवा गूजर मिलते हैं|
होशंगाबाद में इन्हें मून्डले या रेवे गूजर कहते हैं| खानदेश गजेटियर के अनुसार
रेवा गूजर और गुजरात के लेवा गूजर एक ही हैं| मध्य प्रदेश के लेवा गूजर कन्बी या
कुनबी भी नहीं कहे जाते| मध्य प्रदेश के लेवा गूजर, महाराष्ट्र के लेवा और कड़वा
गूजर कुनबी तथा गुजरात के लेवा कड़वा एक ही हैं क्योकि इनमे परंपरागत रूप से शादी
ब्याह भी होते हैं| गुजरात का लेवा गुजरात के अन्जने, मतिया आदि कन्बी जातियो या पूरे भारत की किसी
भी अन्य कुनबी या कुर्मी जाति में शादी-ब्याह नहीं करते बल्कि मराठी लेवा कड़वा
गूजर कुनबियो और मध्य प्रदेश के लेवा गूजरों से इनके ब्याह-शादी आम बात हैं|
हिंदी भाषी क्षेत्र के पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश
में खेतीहर जातियों के वर्ग को कुर्मी कहते हैं|
उत्तर प्रदेश में कुर्मी जाति पुंज की प्रमुख जातिया - बैसवाल,
बर्दिया, गंगा परी, जैसवार, कनौजिया, खरबिंद, पथरिया, पथरिया, सैंथवार,
सिंगरौर अकेरिथिया, अखवार, अथरिया, , अवधिया, अन्दर, इलाहाबादी, हार्डिया, उमराओ, सचान, कटियार, काचीसा,
कर्जवा, कोयरी, कुरुम,
खर्चवाह, लापरिबंध, भूर, खरबिंद, खुरसिया, हैंड्सरी, गेसरी, गंगवार, गोटी,
गोंडल, घिनाला, दखिनहा चनौ, चन्दौर,
चंद्रौल, चंदपुराही, जरिया, जरुहार, तरमल, बाथम, बह्मनिआ, जादौन, जदन, जैसवार, झामैया, झरी, ठकुरिहा, दिनद्वर्, डेल्फोरा, देसी, निरंजन, झुकारसी, महेसरी, पतरिहा, पतवार, बेसरिया, बर्दिया, पछल, बोटा, संसावं, मघैया, रमैया आदि हैं| इन जातियों की
भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के उत्तर प्रदेश में आबाद होने के काल
भी भिन्न-भिन्न हैं|
बिहार में कुर्मी जाति पुंज में इनसे भिन्न जातिया हैं- बिहार - जयसवार,
अवधिया,.
समसवार, घमैला, दोजवार, धानुक, प्रसाद, राम,
लाल,
राय, मंगल, तैलंग,
अभात, कैवर्त,
चपरिया, विश्वास,
शरण, मूलवासी, घनमैला, कोचैसा, सैंठवार, व्याहुत,
ग्राई, धीजमा, घोड़चढ़े,
भगत, पटनवार, मथुरवार, बड़वार,
शंखवार, बसरियार, टिंडवार, शाक्य, मोर्य, आदि| इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं
तथा इनमे अधिकांश के बिहार क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|
इस प्रकार हम देखते हैं हिंदी भाषी क्षेत्र के पूर्वी और मध्य उत्तर
प्रदेश और बिहार में खेतीहर जातियों के
कुर्मी जाति पुंज में गूजर मूल के लेवा और कड़वा नहीं मिलते| मध्य प्रदेश में
कुर्मी जाति पुंज तो हैं परन्तु महाराष्ट्र और गुजरात के तरह यहाँ लेवा गूजर कुर्मी या अन्य किसी किसान जाति पुंज का हिस्सा
नहीं हैं| संभवतः यहाँ इन्होने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यू. पी. आदि के गूजर की
तरह अपना सैनिक व्यवसाय और राजसी तौर-तरीको को पूरी तरह नहीं छोड़ा था| जबकि
महाराष्ट्र और गुजरात में लेवा और कड़वा पूरी तरीके से साधारण किसान बन गए थे, अतः
वो वहाँ किसान जातियों के पुंज का हिस्सा बन गए|
अतः भिन्न भाषा क्षेत्रो में किसान जातियों के पुंज में अलग अलग जातिया
हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा
इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं| कुनबी
अथवा कुर्मी जाति पुंज के अंतर्गत आने वाली अधिकांश जातिया भारतीय अनुसूचित
जनजातिया की तरह प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड नस्ल की हैं| प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड मूल के लोग
मध्य कद काठी के श्याम वर्ण के लोग हैं| अधिकांश भारतीय अनुसूचित जनजातिया भी प्रोटो-ओस्ट्रोलोइड नस्ल की हैं, जैसे- भील,
शबर, संथाल आदि| हरबर्ट रिजले ने 1901 की भारतीय जनगणना में गूजर जाति को
इंडो-आर्य नस्ल का बताया हैं| कन्बी/कुनबी/कुर्मी जाति पुंजो के अन्य जातियों से
भिन्न गुजरात के लेवा और कड़वा पंजाब से आये हुए गूजर हैं| इनका रंग-रूप और उनकी पगड़ी,
उनके खेती का तरीका इस बात की पुष्टि करता हैं|
बॉम्बे गजेटियर, खंड 9
भाग 2 के अनुसार गुजरात के “लेवा तथा कड़वा/खंडवा कन्बी दोनों के लिए इस
बात को ज़ाहिर करने का विशेष महत्व हैं, जोकि गुजरात में अब तक सावधानीपूर्वक छिपा
कर रखा गया था, कि उत्तरी गुजरात और भडोच में रहने वाली पाटीदारो और कन्बियो की
बड़ी आबादी वंशक्रम में गूजर हैं| उत्तरी गुजरात के कन्बी और पंजाब के
गूजरो को द्वारका (गुजरात) में इस बात से संतुष्ट होते देखा जाना कोई अपवाद नहीं हैं
हैं कि दोनों एक ही मूल(stock) के हैं| पाटीदार जाति के जूनागढ़ निवासी
हिम्मतभाई अजा भाई वहीवतदार का 1889 में जूनागढ़ में दिया गया यह वक्तव्य कन्बियो
और पाटीदारों की गूजर उत्त्पत्ति के प्रश्न को अंतिम रूप से तय करता हुए प्रतीत
होता हैं- “मैं संतुष्ट हूँ कि
गुजरात के कन्बी और पाटीदार, लेवा और खंडवा दोनों, गूजर हैं| हमारे पास इस सम्बन्ध
में लिखित कुछ भी नहीं हैं परन्तु हमारे भाट और परिवारों का लेखा-जोखा रखने वाले
इसे जानते हैं, लेवा और खंडवा दोनों पंजाब से आये हैं, यह बुज़र्गो का कहना हैं|
भाटो का कहना हैं कि हमने बीस पीढ़ी पहले पंजाब छोड़ दिया था| एक सूखा हमें गंगा और
ज़मुना के बीच की ज़मीन पर ले गया| पन्द्रह पीढ़ी पहले लेवा खानदेश होते हुए
अहमदाबाद आये तथा खानदेशी तम्बाकू अपने साथ (गुजरात) लाये| .......सबसे पहले वो
चंपानेर आये| हम अभी भी पता कर सकते हैं कि हम पंजाब के गूजर हैं| हमारे जुताई का
तरीका एक हैं, हमारा हल एक (जैसा) हैं, हमारी पगड़ी एक (जैसी) हैं, हम एक ही तरीके
से खाद का इस्तेमाल करते हैं| हमारे शादी-ब्याह के रिवाज़ एक (जैसे) हैं, दोनों
ब्याह के समय तलवार धारण करते हैं| रामचंद्र के दो बेटे थे| लव से लेवा ज़न्मे और
कुश से खंडवा| मैंने पंजाब के गूजरों से द्वारका में बात की हैं, उन्होंने बताया
कि उनके नरवादारी और भागदारी गांव हैं|”
Notes and References
- इरावती कर्वे, हिंदू समाज और जाति व्यवस्था, नई दिल्ली, 1975
- बॉम्बे गजेटियर, खंड IX , भाग I, 1889
- वडोदरा डिस्ट्रिक्ट गजेटियर, अहमदाबाद, 1979, पृ.17
- के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
- रमाशंकर त्रिपाठी., हिस्ट्री ऑफ एंशिएंट इंडिया, दिल्ली 1987
- बॉम्बे गजेटियर, खंड IX भाग II, 1889, पृ.491
- मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
- डब्लू. पी.सिनक्लेर, रफ नोट्स ओन खानदेश, दी इंडियन एंटीक्वैरी, दिल्ली 1875 पृ. 108-110
- खानदेश गजेटियर, XII, पृ.39 बी. एन.पुरी, दी हिस्टरी ऑफ गुर्जर प्रतिहार, नई दिल्ली, 1996
- मस्तराम कपूर, सरदार पटेल स्मारक की भूली हुई कहानी, (लेख) अमर उजाला, 4 नवंबर 2000
- गायत्री एम. दत्त, सरदार वल्लभ भाई पटेल, कॉम्पटीशन सक्सेस रिव्यू, जुलाई 1985.
- मधु लिमये, सरदार पटेल: सुव्यवस्थित राज्य के प्रणेता, दिल्ली, 1993, पृ.8
- के. एल. पंजाबी, इनडोमिटेबल सरदार, पृ 4
- http://www.kurmisamajindore.com/our-proud.php
- http://moralrenew.com/swe.php?swe=32
- आर. वी रसेल एवं हीरालाल, टराईब एंड कास्ट ऑफ सेन्ट्रल प्रोविंसज, खंड- III, लन्दन, 1916
- भारतीय जनगणना 1891- https://en.wikipedia.org/wiki/1891_census_of_India
- खान देश गजेटियर https://gazetteers.maharashtra.gov.in/cultural.maharashtra.gov.in/english/gazetteer/Khandesh%20District/population_race.html#1
(Dr Sushil Bhati)