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Thursday, October 2, 2025

परीक्षतगढ़ रियासत का संस्थापक जीत सिंह गूजर

डॉ. सुशील भाटी

 अठारवी शताब्दी के मध्य में वर्तमान मेरठ के पूर्वी क्षेत्र में परीक्षतगढ़ रियासत का उदय हुआ| इस रियासत का संस्थापक जीत सिंह गूजर था| जीत सिंह गूजर को कुछ समकालीन ग्रंथो में जैता गूजर के नाम से भी जाना जाता हैं|

जन्म एवं बाल्यकाल- जीत सिंह गूजर का जन्म ग्राम बम्बावड, वर्तमान जिला गौतम बुद्ध नगर में नांगडी गूजर परिवार में हुआ था| इनके पिता का नाम बले सिंह था| जीत सिंह के पिता अपने बागी तेवरों के कारण मुग़ल प्रशासन से टकराव में आ गए थे| सुरक्षा कारणों से बले सिंह बालक जीत सिंह सहित अपने परिवार को लेकर जाटो के गाँव सैदपुर, बुलंदशहर चले गए| यही जाट परिवार में रहकर जीत सिंह पलकर जवान हुए|1 

वंश परिचय- नांगडी गूजर जाति का एक प्रमुख गोत हैं, गौतम बुद्ध नगर जिले में नांगडी गूजरों की चौरासी थी|  वर्तमान में इस क्षेत्र में नांगडी गूजरों के दो सत्ताईसा / चौबीसी हैं| क्षेत्र के लोगो के अनुसार इस क्षेत्र के नांगडी गूजर यमुना पार कर पश्चिम में फरीदाबाद क्षेत्र में स्थित नीमका-तिंगाँव स्थान से आये थे| इस क्षेत्र में भी नांगडी गूजरों की एक चौबीसी हैं, जिसका मुख्यालय नीमका-तिगांव ही हैं| फरीदाबाद क्षेत्र में गूजरों की एक चौरासी हैं, जिसका मुखिया इसी नांगडी चौबीसी का मुखिया होता हैं|2 बारहा, चौबीसी, चौरासी गुर्जर प्रतीहारो और उनके सामंतो की राजस्व-प्रशासनिक ईकाईयां थी| इतिहासकार आर. एस. शर्मा के अनुसार गुर्जर प्रतीहारो ने अपनी विजयी सेना के सरदारों को उक्त बारहा, चौबीसी, साठा, चौरासी, तीन सौ साठा राजस्व ईकाइयों में विजित क्षेत्रो को आवंटित किया था| उक्त राजस्व इकाईयों पर इन सरदारों ने अपने गोत के बंधुओ को जोकि उनके सैनिक थे, बसा दिया था|3 अतः नांगडी गूजर गुर्जर प्रतीहारो अथवा चौहानों के समय यहाँ बसे| नांगडी सभवतः गुहिल वंश की प्रथम राजधानी नागदा से सबंधित थे| पूर्व-मध्यकाल काल में, नागदा को नागहड़ा के नाम से जाना जाता था| नागहड़ा की स्थापना, 646 ई. में शासन करने वाले सिलादित्य के पिता, नागादित्य ने की थी। नागहडा 948 तक मेवाड़ के गुहिलो की राजधानी रही, उसके बाद आहड़ को राजधानी बनाया गया| 1116 में पुनः नागहडा को गुहिलो ने अपनी राजधानी बनाया, जोकि तेरहवी शताब्दी के आरम्भ में इल्तुतमिश के आक्रमण तक बनी रही| सभवतः नागहडा से निकास होने के कारण इन्हें नागहडी/ नांगड़ी कहा गया, जैसे आहड़ से निकले हुए गुहिल आहड़िया कहलाए| इस बात की सम्भावना इसलिए भी अधिक हैं क्योकि गुहिल गुर्जर प्रतीहारो के सामंत भी थे, जिन्होंने गुर्जर प्रतीहारो के लिए उत्तर में विजय भी प्राप्त कि थी| मेवाड़ क्षेत्र में गुहिल गुर्जर प्रतीहार मिहिर भोज के सामंत थे| गुहिल राजवंश के शासक बालादित्य के चाटसू अभिलेख से ज्ञात होता हैं कि उसके पूर्वज हर्षराज ने उत्तर की विजय के बाद अपने स्वामी भोज को घोड़े भेट कियें| यह बात तो सिद्ध हैं कि गुर्जर प्रतीहारो के सामंत के रूप में जिन गुहिलो ने उत्तर भारत की विजय की उनकी राजधानी नागहडा थी| यह भी उल्लेखनीय हैं कि राष्ट्रकूटो के अभिलेखों से यह साबित होता हैं, कि यह नवी शताब्दी में चित्तोड़ पर गुर्जरों का शासन था| अमोघवर्ष के 866 ई. के नीलगुन्ड अभिलेख के अनुसार उसके पिता गोविन्द ने चित्रकूट (चित्तोड़) के गुर्जरों को पराजित किया था|

मुख्य जीवन वृत्त- जीत सिंह गूजर उपनी स्वयं की राजनैतिक सत्ता स्थापित करना चाहता था|  बड़े होने पर जीत सिंह सैदपुर से अपने गाँव बम्बावड लौट गया और उसने अपनी बगावती गतिविधियाँ आरम्भ कर दी| दिल्ली नज़दीक होने के कारण उसे अधिक सफलता नहीं मिली अतः उसने गंगा के घाटो पर अपना प्रभुत्व ज़माना शुरू कर दिया| उसने गंगा के निकट परीक्षतगढ़ को अपना केंद्र बनाया| वहाँ उसने एक किले का निर्माण कराया|

परीक्षतगढ़ में केन्द्रित राव जीत सिंह गूजर उर्फ़ जैता गूजर एक ऐसा मुक्त सिपहसालार था जिसने मेरठ क्षेत्र के रुहेलखण्ड जाने वाले सभी गंगा घाटो पर राजनैतिक और सैन्य नियंत्रण स्थापित कर लिया था| दादरी क्षेत्र के दरगाही सिंह (भाटी) और कुचेसर के मगनीराम जाट इसके ख़ास सहयोगी थे|  दिल्ली के मुग़ल दरबार को जीत सिंह की सभी गतिविधियों की खबर थी, परन्तु उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई| एक दिन दक्कन के मुग़ल सूबेदार प्रताप सिंह के एक प्रिय साथी को जीत सिंह ने मौत के घाट उतार दिया| प्रताप सिंह मुग़ल बादशाह अहमद शाह (1748-1754) की माँ का चहेता था| प्रताप सिंह एक सेना लेकर गूजरों के दमन के लिए आ धमका| जीत सिंह ने उसे भीषण युद्ध में पराजित कर मार डाला| उसके बाद दिल्ली के कोतवाल करम अली की अगुआई में एक और मुग़ल सेना को जीत सिंह के विरूद्ध भेजा गया, उसका भी वही बुरा हश्र हुआ| इसी प्रकार का हश्र कुछ अन्य मुग़ल अभियानों का हुआ| एच आर नेविल्ल ने मेरठ डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर में पृष्ठ संख्या 96 पर जीत सिंह गूजर के उत्थान और दिल्ली के मुगलों के विरुद्ध उसकी सफलताओ का इस प्रकार बखान किया हैं “The chief Gujars in this  (Meerut) district are those of Parichhatgarh, who sprang into prominence during the troublous times at the end of the 18th century. The founder of the family was one Rao Jit Singh who was a notorious leader of banditti. He held command of all the ghats leading into Rohilkhand and reduced the art of levying blackmail to a science. Although his depredations were well known to the court of Dehli, no notice was taken of his conduct until he happened to kill a follower of one Partab Singh, a subahdar of the Deccan, who was a favourite of the mother of Ahmad Shah. Partab Singh marched with a force to chastise the Gujars, but was defeated and slain. Karam Ali, the Kotwal of Dehli, next tried his hands against Jit Singh but suffered the same fate, as did several others. 4 इन परिस्थितियों में दिल्ली दरबार ने जीत सिंह से सुलह-संधि करना ही उचित समझा|

इस समय मुग़ल बादशाह अहमद शाह और उसके वजीर अवध के नवाब सफदरजंग में तनाव चल रहा था| बादशाह ने सफ़दरजंग को अवध चले जाने को आदेश दिया और उसके स्थान पर इंतजामउददौल्लाह को वजीर और गाजीउद्दीन खान उर्फ़ ईमाद उल मुल्क को मीर बख्शी नियुक्त किया| शीघ्र ही इस तनाव ने गृह युद्ध का रूप ले लिया क्योकि सफदरजंग ने अवध जाने के स्थान पर दिल्ली के बाहर अपनी सेना के साथ डेरा डाल दिया| हालाकि वह दिल्ली पर हमला बोलने में हिचकिचाता रहा| इस गृह युद्ध में मराठो और सिक्खों ने बादशाह अहमद शाह का समर्थन किया तो भरतपुर के जाटो ने सफदरजंग का| 9 मई से लेकर 4 जून तक दोनों पक्षों में झड़पे चलती रही जिसमे सफ़दर जंग और सूरजमल जाट विजयी रहें| सफ़दर जंग के उकसाने पर राजा सूरजमल के नेतृत्त्व में जाटो ने 9 मई से लेकर 4 जून 1853 तक को पुरानी दिल्ली को जमकर लूटा|

इन परिस्थितियों में मीर बख्शी ईमादउलमुल्क ने सेना की भर्ती की| उसने रोहिल्ला पठान सरदार नजीब खान को भी आमंत्रित किया, जोकि 15000 पठान सैनिक लेकर 2 जून 1753 को दिल्ली पहुँच गया| जब नजीब दिल्ली कूच कर रहा था, रास्ते में कतेव्रह (Katewrah) के नवाब फतेहुल्लाह खान ने जीत सिंह गूजर की दोस्ती नजीबुदौल्लाह से करा दी थी|5  अतः जीत सिंह गूजर भी नाजीबुदौल्लाह के साथ 2000 गूजर (हिन्दुस्तानी) सैनिको की ब्रिगेड लेकर दिल्ली आ गया|6  नजीबुदौल्लाह ने जीत सिंह गूजर को मीर बख्शी ईमादउलमुल्क से मिलवाया| अन्य कुछ सैन्य सरदार भी मुग़ल बादशाह के पक्ष में दिल्ली पहुँच गए|

इमादुलमुल्क ने सफ़दर जंग के तुर्क सैनिको को अपनी और मिलाने के लिए लालच भी दिया और उनके घरो पर आक्रामक कार्यवाही कराकर उन पर दवाब भी डाला| इस कार्य में नजीब खान और जीत सिंह गूजर के सैनिको को सफदरजंग के विरुद्ध लगाया गया| इस कार्यवाही में सफदरजंग के समर्थको के घरो को भी नहीं बख्शा गया और उन्हें जमकर लूटा गया| लगभग 23 हज़ार बदख्शी सैनिक पाला बदलकर इमादुल्मुल्क के साथ आ गए|7 इन बदख्शी सैनिको को सिन-दाघ रिसाले का नाम दिया गया| इस प्रकार मुग़ल बादशाह के खेमे में  नजीब खान और जीत सिंह गूजर की उपस्थिति से पलड़ा बादशाह के पक्ष में झुकने लगा|

सफदरजंग का सबसे विश्वसनीय सेनापति राजेंदर गिरी गुसाई था| इमादुल्मुल्क ने मराठो को भी अपनी मदद के लिए बुला लिया था| इमादुल्मुल्क ने अंता जी के नेतृत्त्व वाली मराठा सेना की मदद से राजेन्द्र गुसाई को पराजित कर दिया|

अब नवाब सफ़दरजंग ने राजेंदर गिरी गुसाईं को सहारनपुर सरकार (ऊपरी दोआब) का गवर्नर बनाया| उसने ऊपरी दोआब के सभी ज़मींदारो जिसमे बारहा के सैय्यद, पठान और गूजर सम्मिलित थे, से सख्ती से लगान वसूला| ऊपरी दोआब का नियंत्रण लेने के लिए उसने उसने 15000 सैनिको के साथ मवाना पर हमला कर दिया| खतरे से निबटने के लिए मीर बख्शी इमादुल्मुल्क ने जीत सिंह गूजर को नियुक्त किया| मुज़फ्फरनगर के निकट हुए युद्ध में जीत सिंह गूजर ने राजेंदर गिरी को पराजित कर मार गिराया| हरिराम गुप्ता ने अपनी पुस्तक मराठाज़ एंड पानीपत में पृष्ठ संख्या 310 पर इस निर्णायक युद्ध का वर्णन इस प्रकार किया हैं “Meanwhile Safdar Jang appointed Rajinder Giri Gosain the governor of Saharanpur and sent him to ravage and capture the township of Mawana. As its landlord Ahmad Said Khan was also siding with Najib. Rajinder Girt invested Mawana with 15000 or 16000 soldiers, inflicted a defeat on Saadat Ali Khan and Mohsin Ali Khan and plundered all their baggage. To meet this menace Imad commissioned Jit Singh to proceed against Rajinder Giri. Parvarish Ali Khan and Tahawwar Ali Khan landlords of Barah went out to help Jit Singh. At that time Rajinder Giri was campaigning against Dilawar Ali Khan rais of Jalalabad. An encounter took place between Jit Singh and Rajinder Giri near Muzaffarnagar in which the latter was defeated and killed8 राजेंदर गिरी गुसाईं के मारे जाने से सफदरजंग निराश हो गया और युद्ध के प्रति उदासीन हो गया| उसके इस रवैये को देखते हुए उसके सैनिक पाला बदलने लगे और राजा सूरजमल ने भी मुग़ल बादशाह से सुलह-संधि की बात शुरू कर दी|

बादशाह ने खुश होकर जीत सिंह गूजर को राजा का ख़िताब प्रदान कर दिया| मुग़ल बादशाह अहमद शाह ने जीत सिंह को मेरठ के पूर्वी परगने प्रदान किए| पूर्वी परगने में शोंदत, दयालपुर, शेओपुर, पूठी आदि ग्राम प्रमुख थे| जीत सिंह गूजर के प्रमुख साथियों दरगाही सिंह गूजर को दादरी परगना, कुचेसर के मगनीराम जाट को सियाना, पूठ और फरीदा के परगने प्रदान किए गए, हालाकि ये क्षेत्र पहले ही इनके कब्ज़े में थे| एच आर नेविल्ल द्वारा लिखित मेरठ डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर इस घटना को पृष्ठ संख्या 96 पर इस प्रकार वर्णित करता हैं “Accordingly, the Emperor summoned Jit Singh and other Gujar leaders to Dehli, and gave them authority over the country that they held on condition that they should prevent others from thieving. Thus, Dargahi Singh obtained Dadri and the neighbouring lands; Mangni Ram, the Jat leader of Kuchesar, received Siyana, Puth and Farida; and Jit Singh obtained possession of the eastern parganas of this district.9

1739 से 1761 तक मुग़ल साम्राज्य की राजधानी दिल्ली 9 गर्दियो का शिकार बनी| 9 गर्दियो का तात्पर्य 9 लूटमार के सिलसिलो से हैं, जोकि 9 भिन्न शासको अथवा जाति समूहों के द्वारा संचालित किए गए| जिसमे एक बार राव जीत सिंह की अगुआई में गूजरों ने दिल्ली को लूटा जिसे गूजर गर्दी का नाम दिया गया| नजीब खान के साथ दिल्ली में मुग़ल सेना के साथ तैनाती के दौरान 1753 के अगस्त-सितम्बर के माह में सैनिको को तनख्वाह नहीं मिली तब गूजर और रोहिल्ला सैनिको ने दिल्ली को लूट लिया था| इसे गूजर गर्दी कहा गया|10

1754 में जीत सिंह गूजर ने जवालापुर के मुस्लिम राजपूतो के विरुद्ध अभियान किया जिन्होने पवित्र स्थल हरद्वार के ब्राह्मणों को आतंकित कर रखा था|11 हरिद्वार क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाये रखने के लिए जीत सिंह अथवा उसके उत्तराधिकारियो ने कनखल में एक गढ़ी का निर्माण किया| जहाँ कालांतर में उसके एक उत्तराधिकारी राजा नैन सिंह ने अपने भाई अजब सिंह को तैनात किया था|

नजीबुदौल्लाह के कठिन समय में जीत सिंह गूजर की मित्रता बहुत काम आई| कुछ समय बाद मराठो का दिल्ली और ऊपरी दोआब में प्रभाव बढ़ा| ऊपरी दोआब में मराठा सरदार गोविन्दपंत बुंदेले सक्रिय था, वह जीत सिंह गूजर और क्षेत्र के अन्य गुर्जर सरदारों के साथ मित्रता नहीं कर सका,12 उसने उनकी उपेक्षा की तथा उनके आय के स्त्रोतों पर रोक लगा दी| उसने जीत सिंह गूजर पर असहनीय भारी नजराना लगा दिया, अतः जीत सिंह गूजर मानसिक रूप से मराठो से अलग हो गया| जीत सिंह गूजर नजीबुदौल्लाह का मित्र और सहयोगी बना रहा| नतीजा यह हुआ कि पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठो को इस क्षेत्र से उपेक्षित सहयोग प्राप्त नहीं हुआ| पानीपत के किसी भी युद्ध में, ऊपरी दोआब यह क्षेत्र सेना के लिए सैनिको के साथ-साथ खाद्यान भी उपलब्ध कराता था| 14 जनवरी 1761 को पानीपत के तीसरी लड़ाई में खाद्यान की कमी मराठो की हार का एक प्रमुख कारण थी|

क्षेत्र विस्तार और प्रभाव क्षेत्र – जीत सिंह की रियासत अथवा मुकर्रदारी में आज के मेरठ एवं हापुड़ जिले का समस्त पूर्वी क्षेत्र आता था| बहसूमा, हस्तिनापुर, मवाना, दादरी (मंडोरा), किला- परीक्षतगढ़  किठोर, गोहरा आलमगीरपुर और गढ़ मुक्तेश्वर क्षेत्र सम्मिलित थे| जीत सिंह रुहेलखण्ड जानेवाले  सभी गंगा घाटो से कर वसूलता था|  जीत सिंह के राज्य क्षेत्र की उत्तरी सीमा पर मीरापुर क्षेत्र उसके मित्र कतेव्रह (Katewrah) के नवाब फतेहुल्लाह खान काबिज़ था| वही दक्षिण में गढ़ मुक्तेश्वर से लगे सियाना, पूठ और फरीदा के परगने उसके प्रिय साथी मगनीराम जाट के पास थे| इस प्रकार रुहेलखण्ड से सटे गंगा क्षेत्र पर जीत सिंह और उसके मित्रो का कब्ज़ा था| जीत सिंह गूजर एक महान सेनापति थे, जिन्होने मुग़ल सत्ता को चुनौती देते हुए अपने पराक्रम के बल पर मुगलों से परीक्षतगढ़ रियासत/ मुकर्र्दारी प्राप्त कर ऊपरी दोआब में अपना एक प्रभाव क्षेत्र स्थापित किया|  जीत सिंह ने किठौर में, को जोकि सरावा का एक टप्पा था, को अलग कर कर दिया|13 किठौर में उन्होंने या उनके उत्तराधिकारी राजा नैन सिंह ने एक गढ़ी का निर्माण भी करवाया था|14 किठौर कस्बे का यह किला किठौर टप्पे का मुख्यालय था|15

निष्कर्ष- इस प्रकार हम देखते हैं कि अठारवी शताब्दी में गंगा यमुना के ऊपरी दोआब में जीत सिंह गूजर एक प्रमुख सैन्य शक्ति के रूप में उभरा| अपने सैन्य पराक्रम, कूटनीति और संगठन शक्ति के आधार पर ऊपरी दोआब में गंगा और यमुना के घाटो पर अपना आधिपत्य जमा लिया| उसने प्रताप सिंह और करम अली के नेतृत्त्व में अपने विरुद्ध भेजी गई शाही मुग़ल सेनाओ को पराजित किया, और दिल्ली दरबार को अपने समक्ष समझोता करने के लिए विवश कर दिया| उसने कुचेसर के मगनी राम जाट और दादरी क्षेत्र दरगाही सिंह भाटी का सहयोग प्राप्त किया| ना केवल उसने अपने लिए बल्कि अपने उक्त दोनों सहयोगियों के लिए भी मुग़ल दरबार से बड़ी रियासते प्राप्त करने में सफलता हासिल की| रोहिल्ला सरदार नजीब खान के सहयोगी के रूप में उसने दिल्ली दरबार की मुगलिया राजनीती और गृहयुद्ध में सफल हस्तक्षेप किया| आवश्यकता पड़ने पर उसने मुग़ल राजधानी दिल्ली को लूटा भी, जिसे इतिहास में गूजर गर्दी कहा गया| राजा के तौर पर उसने अपनी रियासत का पुनर्गठन किया और अनेक किले और गढ़ियो का निर्माण कराया|

उसकी मृत्यु के बाद गुलाब सिंह और फिर नैन सिंह उसके उत्तराधिकारी बने जिन्होंने जीत सिंह के नक़्शे-कदम पर ऊपरी दोआब और दिल्ली की राजनीती में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| 

सन्दर्भ-

1. दया राम वर्मा, गुर्जर जाति का राजनैतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, दिल्ली, 2008, पृष्ठ 395-96  

2. Sushil Bhati, Khaps of Haryana, 2017

https://janitihas.blogspot.com/2017/04/khaps-of-haryana.html#google_vignette

3.  R S Sharma, Indian Feudalism, AD 300-1200, Delhi, 1965, P 88-89

4. H. R. Nevil, Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904, p 96

5. Hari Ram Gupta, Marathas and Panipat, Panjab University, 1961, p 310

6. Jadunath Sarkar, Fall of the Mughal Empire, Vol. 1, Calcutta, 1932, p 485-86

7. वही

8. Hari Ram Gupta, Marathas and Panipat, Panjab University, 1961, p 310

9. H. R. Nevil, Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904, p 96

10. Hari Ram Gupta, Marathas and Panipat, Panjab University, 1961, p 331

11. वही, पृष्ठ 310

12. वही पृष्ठ 316-317

13. Edwin T Atkinson, Statistical Descriptive and Historical account o
f the North-Western Provinces of India, Vol II, Part 1, Allahabad, 1875, P 198

14. वही, पृष्ठ 200

15. H. R. Nevil, Meerut: A Gazetteer, Allahabad, 1904, p 256



 


Friday, August 8, 2025

रक्षाबंधन- ब्राह्मणों तथा भाई-बहन का त्यौहार

डॉ सुशील भाटी

हिन्दुओं के चार मुख्य त्यौहार हैं -रक्षा बंधन, दशहरा, दीवाली और होली| परम्परा अनुसार ये चारो मुख्य त्यौहार वर्णव्यवस्था से भी सम्बंधित माने जाते हैं| हालाकि चारो त्यौहार चारो वर्ण धूम-धाम से मनाते हैं| किन्तु रक्षाबंधन ब्राह्मण वर्ण का विशेष त्यौहार हैं| इसी प्रकार दशहरा क्षत्रिय, दीपावली वैश्य और होली शूद्र वर्ण का त्यौहार हैं|

रक्षाबंधन ब्राह्मणों का विशेष त्यौहार हैं| रक्षाबंधन के त्यौहार पर ब्राह्मण अपने जजमान (यजमान) को राखी बांधते हैं, और उसे अपनी रक्षा के लिए प्रतिबद्ध करते हैं| राखी बांधते समय एक मन्त्र का उच्चारण किया जाता हैं जो इस प्रकार हैं - येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल: जिसका अर्थ हैं- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी से मैं तुम्हें बांधती/बांधता हूं, हे रक्षे! तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना| जजमान रक्षा सूत्र से प्रतिबद्ध होकर भेंट स्वरुप कुछ धन अथवा वस्तु दक्षिणा स्वरुप अपने ब्राह्मण पुरोहित को देते हैं|

 रक्षाबंधन के त्यौहार और इस मंत्र की उद्गम कथा भी राजा (बलि) द्वारा ब्राह्मण को दान देने से जुड़ी हैं| पौराणिक कथाओ के अनुसार सबसे पहले, सतयुग में भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी देवी ने दानव राजा बलि को ‘राखी बाँधी थी| लक्ष्मी देवी ने राजा बलि को भाई बनाया और उन्हें राखी बाँधी थी|  कथा के अनुसार दानव राजा बलि का बहुत शक्तिशाली थे, और उसका बहुत विस्तृत साम्राज्य था| राजा बलि अपने गुरु शुक्राचार्य के निर्देशन में सौवा यज कर रहें थे, तब भगवान विष्णु ने एक बौने ब्राह्मण का वेश बना कर ‘वामन अवतार’ धारण किया और उससे तीन पग भूमि का दान माँगा| धार्मिक अवसर होने के कारण राजा बलि ने सहर्ष दान देना स्वीकार कर लिया| वामन अवतार ने विराट रूप में प्रकट होकर दो पग में ही समस्त भूमि और आकाश को नाप दिया| उसके बाद वामन ने राजा बलि से पूछा कि तीसरा पग कहा रखू, तब राजा बलि ने अपने वचन की लाज रखते हुए अपना सिर आगे कर दिया| इस बात से वामन अवतार ने प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक पर राज करने का निर्देश दिया तथा वरदान मागने को कहा| राजा बलि ने भगवान विष्णु (वामन अवतार) को अपने साथ पाताल लोक में अपने राज्य रक्षक के रूप में रहने का वरदान माँगा| अतः भगवान विष्णु राजा बलि के साथ पाताल लोक में रहने लगे| बहुत समय तक बैकुंठ धाम ने नहीं पहुँचने पर उनकी पत्नी लक्ष्मी माँ को उनके राजा बलि के पास होने का पता चला| तब वे एक ब्राह्मणी का रूप बना कर राजा बलि के पास पहुँची और उन्हें अपना भाई बनाकर एक रक्षा सूत्र बाँधा दिया| प्रसन्न होकर राजा बलि ने उन्हें कुछ उपहार मागने के लिए कहा, तब माता लक्ष्मी ने अपने पति विष्णु भगवान को मांग लिया| दानव राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपनी मुँहबोली बहन लक्ष्मी जी प्रदान कर दिया, और इस प्रकार उनके गृहस्थ जीवन की रक्षा की|जिस दिन माँ लक्ष्मी ने दानवराज बलि को राखी बाँधी थी उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी|अतः तब से इस दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता हैं|

 अब हम बात करते हैं जजमान (यजमान) ब्राह्मण सम्बन्ध और रक्षाबंधन की|  मध्यकालीन कृषि आधारित ग्रामीण समाज में वस्तुओ और सेवाओ का आदान-प्रदान जजमानी व्यवस्था के माध्यम से किया जाता था| प्रत्येक ग्राम में एक भूमिपति वर्ग होता था, जिसका भूमि पर एकाधिकार होता था| यह भूमिपति वर्ग अक्सर किसी एक जाति के एक ही गोत्र से सम्बंधित होता था| भूमिपति जाति अथवा गोत्र के व्यक्ति क्षत्रिय एवं जजमान (यजमान) की भूमिका निभाते थे| गाँव में ज़जमान जाति के अतिरिक्त पुरोहित और अन्य व्यावसायिक दस्तकार जातियाँ निवास करती थी, और उसे अपनी सेवाए प्रदान करती थी| ब्राह्मण पुरोहित एवं धार्मिक मार्गदर्शक का कार्य करते थे| | कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाने, ठटेरा धातु के बर्तन बनाने, बढई लकड़ी के उपकरण बनाने, लुहार लोहे के उपकरण बनाने, बुनकर कपडे बुनने का कार्य, दर्जी कपडे सिलने का कार्य, छीपी कपड़े रंगने का कार्य, धोबी कपडे धोने का कार्य करते थे| जजमान सभी सेवाओ का भुगतान फसल के समय खाद्यान के रूप में करता था| अतः मध्यकालीन कृषि आधारित समाज में भूमिपति किसान यजमान एवं क्षत्रिय की केन्द्रीय भूमिका में होते थे| समाज में वर्णव्यवस्था को मज़बूत रखने हेतु पुरोहित/ब्राह्मण के लिए जजमान का समर्थन और संरक्षण महत्वपूर्ण था, अतः रक्षाबंधन के माध्यम से उसे सुनिश्चित किया जाता था|

 आधुनिक काल में मुद्रा-पोषित उद्योग और व्यापार आधारित अर्थव्यवस्था का उदय हो चुका हैं और मध्यकालीन कृषि आधारित सामंती अर्थव्यवस्था का अवसान हो गया हैं| भारत का तेज़ी के साथ शहरीकरण हो रहा हैं| जजमानी व्यवस्था समाप्त प्राय हैं फलस्वरूप ब्राह्मणों द्वारा जजमानो को राखी बांधने की परम्परा भी धीरे-धीरे विलुप्त हो रही हैंकिन्तु मुंहबोले भाई-बहन दानवराज बलि और लक्ष्मी माँ की कथा से प्रेरणा लेकर, रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाइयो को राखी बांधती हैं तथा भाई बहनों को धन, उपहार आदि के साथ उसके सुख-समृधि और गृहस्थी की रक्षा का वचन देता हैं|

Sunday, May 18, 2025

जम्मू-कश्मीर के देशभक्त बहादुर गुज्जर

डॉ सुशील भाटी 

 जम्मू कश्मीर के गुज्जरों का सामान्य परिचय- गुज्जर जनजाति जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों में निवास करती है और उनकी जनसंख्या लाखों में है। एक अनुमानं के अनुसार जम्मू-कश्मीर में गुज्जरों जनसख्या 20 % हैं, और वे राज्य का तीसरा सबसा बड़ा सांस्कृतिक समूह हैं| ज्यादातर दूर-दराज के पहाड़ी क्षेत्रो में अथवा जंगलों के निकट निवास करते हैं| भारत-पाक वास्तविक नियंत्रण रेखा क्षेत्र के पुंछ और राजौरी जिलो में में गुज्जरों की घनी आबादी हैं। गुज्जर-बकरवाल अर्ध-घुमंतू पशुपालक जनजाति हैं, जिसके अनेक गोत (Clans) हैं| जम्मू-कश्मीर के गुज्जरों में खटाना, कसाना, गोर्सी, चेची, चौहान, पोषवाल आदि प्रमुख गोत (Clans) हैं| गुज्जरों का एक तबका भेड़-बकरी पालता हैं वह बकरवाल कहलाता हैं| सामान्यतः गुज्जर भैंस पालते हैं| गुज्जरों का इतिहास, भाषा और संस्कृति जम्मू कश्मीर के अन्य समुदायों से भिन्न है। इनकी भाषा गूजरी हैं, जोकि राजस्थानी विशेषकर मेवाड़ी और मेवाती से समानता रखती हैं इनमे भी यह मेवाती के अधिक निकट हैं| जम्मू-कश्मीर के गुज्जरों के अनुसार सूखा पड़ जाने के कारण उनके पूर्वज सैंकड़ो वर्ष पूर्व गुजरात से आये हैं| 


जम्मू कश्मीर की सुरक्षा में गुज्जरों की भूमिका- 1947 में आज़ादी के समय से कश्मीर पर अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान में तीखा विवाद चल रहा हैं, तथा दोनों देशो में क्रमशः 1947, 1965 तथा 1971 में तीन युद्ध हो चुके हैं| 2001 में कारगिल क्षेत्र में भी पाक घुसपैठियों ने अपना ठिकाना बना लिया था, जिसको लेकर भी कारगिल युद्ध हुआ| इन सभी युद्धों में राष्ट्रभक्त गुज्जर-बकरवाल भारत के साथ खड़े रहें और इन्होने प्रत्येक युद्ध भारतीय सेना का भरपूर साथ दिया| गुज्जर-बकरवालो को भारतीय सेना का आख और कान कहा जाता हैं| गुज्जरो की देशभक्ति और कश्मीर की सुरक्षा में इनके योगदान को भारत सरकार ने भी मान्यता दी हैं और उसे सराहा हैं| गुज्जरों की देशभक्ति पूर्ण कश्मीर की सुरक्षा से जुडा योगदान निम्नवत हैं- 

 1- पद्म श्री पुरस्कार विजेता मोहम्मद दीन गुज्जर- मोहम्मद दीन मुस्लिम गुज्जर समुदाय से हैं और गुलमर्ग से लगभग तीन किलोमीटर दूर दारा कासी गाँव के निवासी हैं। 14 अगस्त 1965 की सुबह जब वे अपने पशुओं को चराने के लिए गुलमर्ग कश्मीर घाटी की पहाड़ियों पर धनवास चरागाह गए थे, तो उन्होंने कुछ लोगों को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने उनसे एक उपकार करने का अनुरोध किया और इसके लिए उन्होंने कुछ पैसे देने की पेशकश की। वे उन्हें क्रमशः उनके गाँव और गुलमर्ग से छह/आठ किलोमीटर दूर ले गए, जहाँ उन्होंने देखा कि लगभग एक वर्ग किलोमीटर जंगल साफ कर दिया गया था जहाँ लगभग एक हजार अजनबी सभी प्रकार के सैन्य हथियारों और गोला-बारूद के साथ रह रहे थे। उन्होंने उससे कहा कि वे पाकिस्तान से आए हैं और कश्मीरी भाइयों को आज़ाद कराना चाहते हैं। उन्होंने गुलमर्ग का आसान रास्ता पूछा और भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों के बारे में भी पूछताछ की। आक्रमणकारियों ने बताया कि वे इस क्षेत्र के प्रत्येक गाइड को 400/- रुपये देंगे। वह 15 अगस्त की सुबह तंगमर्ग पहुंचे और पुलिस को मामले की जानकारी दी। इस सूचना के कुछ घंटों के बाद पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और भारतीय सेना की मदद से आक्रमणकारियों को हिरासत में ले लिया गया। स्वर्गीय चौधरी मोहम्मद दीन को 1966 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। 2 मई 1990 को पाकिस्तानी आतंकवादियों ने भारत समर्थक होने के आरोप में चौधरी मोहम्मद दीन की हत्या कर दी थी। 

2- अशोक चक्र पुरस्कार विजेता मौलवी गुलाम दीन- मौलवी गुलाम दीन मुस्लिम गुज्जर समुदाय से थे और जम्मू और कश्मीर के पुंछ जिले, तहसील-हवेली के गाँव-दलान के निवासी थे। 1965 के दौरान भारत-पाक घुसपैठिए भारत के हमारे क्षेत्र में घुस आए| स्वर्गीय मौलवी गुलाम दीन ने अपनी जान की परवाह न करते हुए ग्रामीणों को घुसपैठियों के खिलाफ प्रेरित किया और घुसपैठियों के ठिकानों के बारे में भारतीय सेना के जवानों को जानकारी देने के लिए एक संगठित नेटवर्क तैयार किया। स्वर्गीय मौलवी गुलाम दीन के कुशल मार्गदर्शन में किए गए इस उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें 1966 के युद्ध के बाद "अशोक चक्र" से सम्मानित किया गया। 

 3- पद्म श्री पुरस्कार विजेता श्रीमती माली गुज्जर- 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पुंछ की एक गुज्जर महिला श्रीमती माली ने पाकिस्तानी घुसपैठ से जिले को बचाया था। कठोर परिस्थितियों और भाषाई बाधाओं के बावजूद, उनकी त्वरित सोच और बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सैनिकों को पकड़ लिया गया और अनगिनत लोगों की जान बच गई। उनके असाधारण साहस के लिए उन्हें 1972 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 

 4- पद्म भूषण पुरस्कार विजेता मियां बशीर अहमद- कश्मीर घाटी के गांव-वांगत, तहसील-कंगन, जिला-बडगाम के निवासी मियां बशीर अहमद एक गुज्जर संत और जम्मू-कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल समुदाय के राजनेता हैं। मियां बशीर अहमद जम्मू-कश्मीर में चार बार विधानसभा के सदस्य रहे हैं। उन्होंने हमेशा जम्मू-कश्मीर के गुज्जर-बकरवाल समुदाय के कल्याण और उत्थान के लिए काम किया। उन्होंने गुज्जर लोगों को हमेशा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी के लिए काम करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा गुज्जरों को अपनी मातृभूमि भारत की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया| उन्होंने राजनीति छोड़ दी और इस्लामी सूफी परंपरा के लिए काम करना शुरू कर दिया और दबे कुचले लोगों की मदद की। जम्मू-कश्मीर में उनके अनुयायियों की संख्या लाखों से भी ज़्यादा है। उन्हें राष्ट्र के प्रति उनकी वफादारी के लिए 2008 में भारत सरकार द्वारा "पद्म भूषण" से सम्मानित किया गया है। उनकी मृत्यु अगस्त 2021 में 98 वर्ष की आयु में हुआ| 

5- ऑपरेशन सर्प विनाश और गुज्जरो की देशभक्ति- जम्मू कश्मीर में 2003 में आतंकियों ने राजौरी के एक पहाड़ी गाँव हिल काका में मुस्लिम गुज्जर युवक को मार दिया था| उसके बाद गुज्जरों ने सेना के ऑपरेशन सर्प विनाश में भाग लेकर आतंकियों पर कहर बरपा दिया था| 

 कारगिल के बाद से ही पाकिस्तानी आतंकवादियों ने जम्मू और कश्मीर को बांटने वाली पीर पंजाल रेंज के ऊंचे पहाड़ों पर सुरक्षित ठिकाने बनाने शुरू कर दिए थे| 10 हजार से 12 हजार फीट तक की ऊंचाई वाले इन पहाड़ों पर गुज्जर अपने पशु चराते घूमते हैं| इस इलाके में सेना या पुलिस बहुत कम आती थी| आतंकवादियों ने इन गुज्जरों के बनाए हुए अस्थायी ठिकानों को पक्का बनाकर अपने लिए मज़बूत ठिकाने बनाने शुरू किए| उनका इरादा यहां सुरक्षित बेस बनाकर पूरे जम्मू-कश्मीर में गुरिल्ला हमले शुरू करने का था| 

इन आतंकियों ने वर्ष 2002 में हिल काका गांव के एक गुज्जर युवक मोहम्मद आरिफ की हत्या कर दी क्योंकि उन्हें उसके मुखबिर होने का शक था| इस घटना ने उस युवक के भाई ताहिर हुसैन समेत कई गुज्जर युवकों को आतंकवादियों के खिलाफ हथियार उठाने की प्रेरणा दी| ये सारे युवक सऊदी अरब में नौकरियां करते थे, वो वापस आए और उन्होंने सेना से संपर्क किया| उन्होंने हिल काका क्षेत्र के हालात सेना को बताए| हिल काका के पास के पहाड़ों में लगभग 700 आतंकवादियों ने अपने अड्डे बना लिए थे, जिनका प्रमुख उमर मूसा था|

सेना और पुलिस ने उन पर भरोसा किया और एक बड़े अभियान की तैयारी शुरू कर दी गई| पहाड़ों में रहने वाले गुज्जरों के पास इलाक़े के चप्पे-चप्पे की जानकारी थी| सेना की विशेष यूनिट 9 पैरा और पुलिस ने गुज्जरों को हथियारों की ट्रेनिंग दी| अप्रैल 2003 में पुलिस, सेना और स्थानीय गुज्जरों के स्पेशल ग्रुप्स ने 150 वर्ग किमी के इलाक़े में कार्रवाई शुरू की जो 27 मई 2003 तक चलती रही. कारगिल के बाद इतने बड़े इलाके में की गई ये पहली सैनिक कार्रवाई थी इसमें हेलीकॉप्टर्स और तोपखाने का भी इस्तेमाल किया गया था| पहली ही कार्रवाई में वो आतंकवादी मारा गया, जिसने हिल काका में गुज्जर युवक मोहम्मद आरिफ की हत्या की थी| गुज्जर पहाड़ पर चढ़ने-उतरने की पैदा होते ही ट्रेनिंग ले लेते हैं| जब उन्हें सेना-पुलिस का साथ मिला तो आतंकवादियों का सफ़ाया करना बहुत आसान हो गया| 

 जब 27 मई 2003 को ये अभियान खत्म हुआ तब तक 85 आतंकवादी मारे जा चुके थे और उनके 119 पक्के ठिकाने तबाह कर दिए गए थे| बाकी बचे आतंकवादी वहाँ से भाग गए| इस क्षेत्र से सुरक्षा बलों को 47 असॉल्ट राइफलें, 11 विदेशी पिस्टल, 12 मशीन गन, 19 अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर्स, 178 ग्रेनेड, 25 माइन और एक रॉकेट लांचर समेत बड़ी मात्रा में गोलाबारूद मिला| यहां से 7 हजार किलो राशन भी मिला, जो 300 आतंकवादियों के लिए पूरी सर्दियों के लिए पर्याप्त था| पहाड़ों में 20 फीट से 40 फीट नीचे ऐसे बंकर भी मिले, जिन्हें भारी बमबारी से भी कोई नुकसान नहीं पहुंचता और जिन्हें अफगानिस्तान की तोरा-बोरा पहाड़ियों के मॉडल पर बनाया गया था| इनमें एक समय में 50 आतंकवादी शरण ले सकते थे| ऑपरेशन सर्प विनाश में लगभग 45 नागरिक और लगभग 35 सेना के जवान शहीद हुए| 

ऑपरेशन सर्प विनाश ने पीर पंजाल के दक्षिण में आतंकवादियों की कमर तोड़ दी| प्रतिक्रिया में उन्होंने दूर-दराज़ के गांवों में कुछ हमले किए लेकिन स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों ने जल्द ही उनका सफ़ाया कर दिया| 

ऑपरेशन सर्प विनाश की सफलता की यादगार के रूप में एक युद्ध स्मारक का निर्माण पुंछ जिले के सुरन कोट क्षेत्र में कुलाली गाँव में किया गया हैं, जिसमे एक हथियारबंद भारतीय सैनिक और हथियार बंद पगड़ी बाँधें एक ट्राइबल गुज्जर की मूर्ती एक साथ लगाई गई हैं| इस युद्ध स्मारक को जवान और अवाम मेमोरियल” नाम दिया गया हैं| ऑपरेशन सर्प विनाश में लगभग 45 नागरिक और लगभग 35 सेना के जवान शहीद हो गए थे, इन सभी के नाम यहाँ शिलापट पर उत्कीर्ण किए गए हैं| प्रत्येक वर्ष दिनांक 27 मई को पुंछ जिले के सूरनकोट सेक्टर में ऑपरेशन सर्वनाश के दौरान हुए शहीद सैनिकों और (गुज्जर) नागरिकों को याद करने के लिए “हिल काका दिवस” मनाया जाता हैं| 

6- कीर्ति चक्र एवं राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित रुखसाना कौसर गुज्जर- रुखसाना कौसर अपर कलसी की एक पहाड़ी गुज्जर लड़की है| जोकि 2009 में जम्मू और कश्मीर के राजौरी जिले में अपने घर पर एक लश्कर-ए-तैयबा आतंकवादी को गोली मारने के लिए जानी जाती है। उस समय उसकी उम्र लगभग 20 वर्ष थी| उसे कुल्हाड़ी और AK47 राइफल का उपयोग करके अपने घर पर लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी नेता को मारने के अपने साहसिक कार्य के लिए भारत के राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उसका एक छोटा भाई, ऐजाज़ है, जिसने उसे अन्य आतंकवादियों का पीछा करने और बाद में पुलिस से संपर्क करने में मदद की। 

27 सितंबर 2009 को रविवार की रात करीब 9:30 बजे तीन आतंकवादी रुखसाना के चाचा वकालत हुसैन के घर आए। उन्होंने उसे अपने बड़े भाई नूर हुसैन के बगल के घर में ले जाने के लिए मजबूर किया था। जब नूर हुसैन ने दरवाजा नहीं खोला, तो तीनों ने कथित तौर पर एक खिड़की तोड़ दी और घर में प्रवेश किया। तब तक, उसने और उसकी पत्नी रशीदा बेगम ने रुखसाना को एक खाट के नीचे छिपा दिया था। उन्होंने मांग की कि रुखसाना को उन्हें सौंप दिया जाए। जब उसके माता-पिता और छोटे भाई ऐजाज ने विरोध करने की कोशिश की, तो आतंकवादियों ने उन्हें राइफल के बट से मारना शुरू कर दिया। रुखसाना अपने छिपने के स्थान से एक कुल्हाड़ी लेकर निकली और लश्कर कमांडर के सिर पर वार कर दिया। एक आतंकवादी ने गोली चला दी, रुखसाना ने कमांडर की ए के 47 राइफल उठाई, दूसरे आतंकवादी से दूसरी राइफल ली और उसे अपने भाई की तरफ फेंक दिया। रुखसाना ने कमांडर को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई और उसने और उसके भाई ने दूसरे आतंकवादियों पर गोली चलाई, जिससे वे भागने पर मजबूर हो गए। इसके बाद रुखसाना और उसका भाई अपने परिवार को शाहदरा शरीफ पुलिस चौकी ले गए और हथियार सौंप दिए। रास्ते में, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आतंकवादी दूर रहें, उसके भाई ने नियमित अंतराल पर हवा में गोलियां चलाईं जब तक कि वे पुलिस चौकी तक नहीं पहुंच गए। 

7- चौधरी वजीर मोहम्मद हाकला पुंछी- पुंछ के एक प्रमुख गुज्जर नेता, चौधरी वजीर मोहम्मद हकला ने अपना जीवन गुज्जर-बकरवाल समुदाय के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भारतीय सेना का समर्थन करते हुए और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देते हुए महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी सेवाओं का सम्मान करने के लिए, भारत सरकार ने 2024 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किया, और जम्मू-कश्मीर सरकार ने उनके नाम पर सड़कों और संस्थानों का नाम रखा। 

उपरोक्त विवरण से पूर्णतः स्पष्ट हैं कि पीर पंजाल की पहाडियों, सीमावर्ती पुंछ और राजौरी आदि जिलो, लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल क्षेत्र के गुज्जरों ने जम्मू एवं कश्मीर रक्षा और सुरक्षा में अति महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया हैं| विशेषकर आतंकवाद के खिलाफ वर्ष 2003 में ऑपरेशन सर्पविनाश के अंतर्गत उन्होंने बहादुर, देशभक्त और जंगजू कौम होने का प्रमाण दिया हैं| सेना से प्रशिक्षण प्राप्त कर गुज्जर नागरिको ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हिल काका के क्षेत्र से आतंकवाद का सफाया कर दिया था| जम्मू एवं कश्मीर के गुज्जरो की मांग हैं कि सीमवर्ती जिलो की विषम भोगोलिक परिस्थितियों तथा पीर पंजाल क्षेत्र में रह रहे नागरिको की सुरक्षा के लिए लद्दाख स्काउट्स की तर्ज़ पर “गुज्जर स्काउट्स” नाम से सुरक्षा बल का गठन किया जाए| 

 शम्स इरफ़ान की “कश्मीर लाइफ” समाचार पत्र में दिनांक 18 जनवरी 2015 को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ट्राइबल रिसर्च एंड कल्चरल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में गुज्जर समुदाय के सदस्यों ने बताया कि सरकार ने दिसम्बर 2003 में जम्मू & कश्मीर के सीमवर्ती जिलो तथा पीर पंजाल रेंज में रह रहे नागरिको की सुरक्षा के लिए “गुज्जर स्काउट्स” बल का गठन करने का निर्णय लिया था, तथा जनवरी 2004 कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्यूरिटी ने भी इसे मंजूरी दे दी थी| कार्यक्रम में गुज्जर समुदाय के सदस्यों ने गुज्जर स्काउट्स बल के गठन में हो रही देरी पर असंतोष व्यक्त किया था| एक अन्य गुज्जर सामाजिक संगठन ने “जम्मू & कश्मीर बॉर्डर एरिया स्काउट्स” की स्थापना की मांग भी करता हैं, जिसमे जम्मू एवं कश्मीर के सीमावर्ती क्षेत्र के गुज्जर नौजवानों को भर्ती किया जाए| 

जम्मू एवं कश्मीर के गुज्जरों की देशभक्ति को नमन हैं, वे देश की रक्षा के लिए लड़ने के लिए सेना में गूजर रेजिमेंट की मांग करते हैं| यह मांग अन्य राज्यों के हिन्दू गुर्जर/गूजर/गुज्जर भी करते रहें हैं| 1891 की जनगणना के अनुसार गूजर एक प्रभुत्वशाली सैनिक जाति (Military and dominant caste) हैं| वर्तमान में राजपूत रेजिमेंट में लगभग 45 % गुर्जर हैं| मशहूर मानवशास्त्री एम एन श्रीनिवास के अनुसार गूजर उत्तर भारत के चार प्रभुत्वशाली जातियों- अहीर, जाट, गूजर, राजपूत (अजगर) में से एक हैं| अमेरिकी मानवशास्त्री ग्लोरिया गोडविन रहेजा के अनुसार वो गाँव में क्षत्रिय और यजमान की भूमिका निभाते हैं| विदेशियों से देश की रक्षा करने का गुर्जरों का लम्बा इतिहास हैं| उज्जैन-कन्नौज के गुर्जर प्रतीहारो ने 725 ई. के लगभग से 1025 के लगभग तक अरब साम्राज्यवाद से देश की रक्षा की| दसवी-ग्यारहवी शताब्दी में काबुल, जाबुल और उदानभंड के शाही वंश (खटाना वंश) के जयपाल, आनंदपाल और त्रिलोचनपाल का महमूद गजनवी से ऐतिहसिक संघर्ष रहा हैं, जिन्होने विदेशी तुर्कों के विरुद्ध उत्तर भारत के शासको का परिसंघ बनाकर भारत की रक्षा का प्रयास किया|| बाबरनामा के अनुसार बाबर के आक्रमण के विरुद्ध नमक की पहाडियों में और स्यालकोट में गूजर और जाटो का संघर्ष हुआ| शेर शाह सूरी के विरुद्ध दिल्ली में गूजरों का विद्रोह हुआ, जिसमे पाली और पाखल के भडाना गूजरों की विशेष भूमिका थी| अंग्रजो के विदेशी शासन के विरुद्ध 1824 में राजा विजय, कुंजा बह्दुरपुर, निकट रूडकी, हरिद्वार और कलुआ गूजर का विद्रोह तथा 1857 में लगभग पश्चिमी-उत्तर भारत में अंग्रेजो के खिलाफ गूजरों का विद्रोह उनकी बहादुरी और देशभक्ति की मिसाल हैं| राजस्थान में बिजोलिया आन्दोलन के नायक विजय सिंह पथिक का अंग्रेज समर्थित सामंशाही के विरुद्ध संघर्ष भारतीय इतिहास की अमिट कहानी हैं| गुर्जरों की उपरोक्त बहादुरी और देशभक्ति से परिपूर्ण सामाजिक-ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में, जम्मू एवं कश्मीर में गुज्जर स्काउट्स अथवा सारे देश के गुर्जरो की गुर्जर रेजिमेंट की मांग अनुचित नहीं हैं| 

 सन्दर्भ- 
 1. Haji Mohd. Ashra, The heroes of Gujjars of J&K, Early Times e Paper, 3, May 2025           https://www.earlytimes.in/newsdet.aspx?q=249766

2. Shahid Ahmed Hakla Poonchi, Roar of the brave – the call for a Gujjar regiment in Indian Army, Kashmir Images, 3 May 2025 

3. Rukhsana Kausar (article), https://en.wikipedia.org/wiki/Rukhsana_Kausar

4. कृष्ण मोहन मिश्र, ऑपरेशन सर्प विनाश : जब आतंकियों पर काल बनकर टूटे थे गुज्जर, मार डाले थे 65 आतंकी, Zee News, हिंदी, दिनांक-3 जनवरी 2021 1.   https://zeenews.india.com/hindi/india/operation-sarp-vinash-army-with-gujjars-launched-campaign-against-terrorists-in-pir-panjal-hills/820794

5. हिल काका के लोगों की गुहार- हम आतंकियों से लड़ लिए लेकिन सड़क नहीं बनवा पाए, दैनिक भास्कर, 1.   https://www.bhaskar.com/news/mh-mum-omc-hill-kaka-terror-area-5276994-pho.html

6. “The community members in a programme organised by Tribal Research and Cultural Foundation here today expressed strong resentment over unwarranted delay in raising of ‘Gujjar Scouts’ which stands approved in J&K.”.... 

“The speakers questioned that why the decision of Government of India taken on December 22, 2003 has not been implemented where under it was approved that a new force comprising Gujjars and Bakarwals of Jammu and Kashmir would be raised for deployment on the difficult terrains of the State to serve for the security of the people residing in border and Pir Panchal area of the State. The proposed force was to be named as the “Gujjar scouts” and was designed to be framed on the pattern of Ladakh Scouts. 

The speakers said that even it was reported in a section of press that the Cabinet Committee on Security (CCS) had also approved this proposal in January 2004.” -Shams Irfan, Gujjars seek Support for Raising ‘Gujjar Regiment’ in Army, Kashmir Life, 18 January 2015 https://kashmirlife.net/gujjars-seek-support-for-raising-gujjar-regiment-in-army-71943/


8. Set up Gujjar scouts on Ladakh scouts’ pattern | JK News Today, 25 August 2021 https://www.youtube.com/watch?v=gPMy98KllsM

9. Centre gives nod to Gujjar Scouts in J&K The Government has given its approval to raise a new force comprising Gujjars and Bakkarwals of Jammu and Kashmir for deployment on the difficult terrains of the state to check infiltration from Pakistan and take on mercenaries and local militants in these areas. The force to be named as the Gujjar Scouts will be formed on the pattern of Ladakh Scouts and attached to an Army unit. The government in 1963 had formed the Ladakh Scouts in the wake of 1962 war against China. The Ladakh Scouts or the "Snow Tigers", comprising local Buddhists and Tibetan commandos, is one of the Army's most decorated units with more than 300 gallantry awards to its credit, including one Ashok Chakra, ten Mahavir Chakras and two Kirti Chakras. It was the first unit of the Indian Army to successfully launch the counter strike against Pakistani incursions in the 1999 Kargil operations in the Batalik sector.- Sify News 18 Dec 03 https://archive.ph/rlOZp#selection-4205.0-4221.19

10. P N K Bamzai, Culture and Political History of Kashmir, Vol 1, Delhi, 1994, p 419-424 

11. S C Sharma, Ethnic Identities- Gujjar Problem (Article), Ethnic Rural And Gender Issues In Contemporary North-West, New Delhi, 2005, p 102 https://books.google.co.in/books?isbn=8179750205

12.  Javaid Rahi, The Gujjars Vol 1, Srinagar/Jammu 2012,p 150