उत्तराखंड में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उमराव सिंह गूजर “मानिकपुरी”
की भूमिका
डॉ सुशील भाटी
पृष्ठभूमि 1857 का विद्रोह, जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम या भारतीय विद्रोह के नाम से
भी जाना जाता है, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय
सैनिकों और जनता का एक बड़ा विद्रोह था। यह विद्रोह उत्तर भारत में मुख्य रूप से
मेरठ, बुलंदशहर, दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झाँसी और अन्य स्थानों पर केंद्रित
था, लेकिन उत्तराखंड जैसे क्षेत्रीय
इलाकों में भी इसका प्रभाव पड़ा था। उत्तराखंड, जो उस समय उत्तर पश्चिमी प्रांत (उत्तर प्रदेश का हिस्सा) का भाग था, में भी 1857 के
विद्रोह का प्रभाव पड़ा| यहाँ पर भी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ
और संघर्ष हुए थे।
उत्तराखंड का अधिकांश हिस्सा ब्रिटिश
शासन के अधीन था। ब्रिटिशों ने 1815 में सुगौली संधि के तहत गढ़वाल और कुमाऊं को नेपाल से छीन
लिया और अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार वर्तमान गढ़वाल और कुमाऊ 19वीं सदी में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा बन गया। उत्तरखण्ड का वर्तमान
हरिद्वार जनपद तब ऊपरी दोआब का हिस्सा था मुग़ल प्रशासन के अंतर्गत दिल्ली सूबे की
सहारनपुर सरकार का हिस्सा था| |
हरिद्वार-सहारनपुर क्षेत्र में राजा रामदयाल
राजनैतिक रूप से सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति थे| मुगल साम्राज्य के अंतर्गत राजा रामदयाल के पास 804 गाँव की मुकरर्दारी रियासत थी | मुगलों के बाद उत्तर भारत में जब मराठो का
उत्कर्ष हुआ तब 1803 तक हरिद्वार क्षेत्र मराठो के कब्ज़े
में रहा| 1803 में मराठे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से पराजित हो गए| ग्वालियर के सिन्धियाओ के साथ हुई, सुर्जी अर्जुन गाँव की संधि के अंतर्गत हरिद्वार
क्षेत्र सहित ऊपरी दोआब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को प्राप्त हो गया था | ऊपरी दोआब के प्रशासनिक पुनर्गठन करते हुए कंपनी
ने हरिद्वार को सहारनपुर जिले में सम्मिलित कर दिया था| वाटसन द्वारा लिखित देहरादून डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियरके पृष्ठ 189 के
अनुसार 1815 में सुगौली की संधि के बाद, कंपनी
प्रशासन ने 1817 से 1825 तक देहरादून को भी सहारनपुर जनपद का हिस्सा बना दिया था|उक्त अवधि में हरिद्वार और देहरादून सहारनपुर के
अंतर्गत आते थे|
इस प्रकार 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय उत्तराखण्ड का हरिद्वार जनपद
सहारनपुर का हिस्सा था|
उत्तराखंड के निवासी, जो मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर थे, ब्रिटिश शासन की जमींदारी व्यवस्था, लगान और करों के बोझ तले दबे हुए थे। इन कारणों
से लोकविरोधी भावना विकसित हो गई थी।
ब्रिटिश शासन ने मिशनरी कार्य के
माध्यम से धर्म परिवर्तन और ईसाई धर्म के प्रचार को बढ़ावा दिया, जिससे स्थानीय हिंदू और अन्य धार्मिक समुदायों के
बीच असंतोष पैदा हुआ। स्थानीय लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान और धार्मिक परंपराओं को
बनाए रखने के लिए ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ उठ खड़े हुए थे।
हरिद्वार जनपद में उमराव सिंह गूजर
का विद्रोह : 1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह
विद्रोह केवल सैनिकों द्वारा नहीं, बल्कि
समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ किया गया था। उमराव
सिंह मानिकपुर आदमपुर गांव के निवासी थे, यह
गाँव मंगलौर के निकट हरिद्वार जनपद में स्थित हैं| |उमराव सिंह गूजर 1857 के विद्रोह के
एक प्रमुख स्थानीय नेता थे, जिन्होंने
इस विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका संघर्ष ब्रिटिश शासन के खिलाफ था,
और उनका नेतृत्व साहस और स्वतंत्रता की भावना का
प्रतीक बन गया। उमराव सिंह के पिता फतेह सिंह भी इस विद्रोह में सक्रिय योगदान कर
रहें थे|
जैसा कि कहा जा चुका हैं कि गंगा
यमुना का समस्त ऊपरी दोआब और गढ़वाल-कुमाऊ के क्षेत्र 1857 के विद्रोह के समय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के तहत थे। ब्रिटिश शासन
के दौरान इन क्षेत्रों में स्थानीय निवासियों, खासकर किसानों और सैनिकों के साथ अत्यधिक शोषण हो रहा था। ब्रिटिश
द्वारा लागू किए गए कठोर करों, भूमि
करों और सैनिकों की भर्ती के कारण जनता में असंतोष था। उमराव सिंह के ब्रिटिश ईस्ट
इंडिया कंपनी के राज के विरुद्ध हुए इस विद्रोह को समझने के लिए हमें समकालीन
सहारनपुर-हरिद्वार क्षेत्र की भू-राजनैतिक परिस्थिथियो का अवलोकन करना होगा, क्योकि इस विद्रोह का कारण मात्र कृषक असंतोष
नहीं था, इस अतिरिक्त क्षेत्रीय रूप से
प्रभुत्वशाली गूजर जाति की राजनैतिक महत्वकांक्षा भी थी| 1857 के विद्रोह के समय हरिद्वार क्षेत्र सहारानपुर जनपद में आता था| नेविल द्वारा लिखित सहारनपुर डिस्ट्रिक्ट
गज़ेटियर के पृष्ठ संख्या 101 के अनुसार पहले सहारनपुर जिले एक बड़े भाग को गुजरात
कहा जाता था, और जिले में गूजर सबसे बड़े भूमिपति
थे| वर्तमान हरिद्वार जनपद में स्थित
लंढोरा रियासत के राजा भी गूजर थे| वह
लिखता हैं कि “ In former days a large part of Saharanpur was commonly
known as Gujarat, and at the present time three divisions of the area are
generally recognised ..........the central
portion (division) Gujarat, comprising the parganas
of Gangoh, Rampur and Nakur, as well as the neighbouring tracts of
Muzaffarnagar. वेह आगे लिखता हैं कि “The
Gujars are the largest proprietors in the district, their holdings including
the great Landhaura estate.” एरिक स्टोक्स द्वारा लिखित पीजेंट आर्म्ड पुस्तक
के पृष्ठ संख्य 199 के अनुसार इस गुजरात में मुज़फ्फरनगर जिले के कैराना और झिंझाना
परगना सम्मिलित थे| 1813 में लंढोरा के राजा रामदयाल
गूजर का निधन हो गया| अंग्रेजो ने राजपरिवार के सदस्यों
में विवाद का लाभ उठा कर रियासत को कई ताल्लुको में बाँट दिया, और रियासत का बड़ा भाग अपने पास रख लिया| जिस कारण क्षेत्रीय गूजरों में अंग्रेजी शासन के
प्रति एक राजनैतिक असंतोष था| इसी
कारण से हरिद्वार क्षेत्र में पूर्व में 1824 में भी ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध
विद्रोह हो चुका था| विद्रोह का नेतृत्व कलुआ गूजर और
राजा विजय सिंह गूजर ने किया था| राजा
विजय सिंह लंढोरा रियासत के कुंजा बहादुरपुर ताल्लुके के ताल्लुकेदार थे| इतिहास में यह विद्रोह गूजर विद्रोह के नाम से
जाना जाता हैं| आरम्भ में यह विद्रोह कलुआ गूजर के
नेतृत्त्व में उत्तराखण्ड में गढ़वाल और कुमाऊ की तराई में फैला हुआ था परन्तु
विद्रोह के अंतिम दौर में कुंजा का किला इसका केंद्र बन गया था| कुंजा गाँव रूडकी के पास हरिद्वार जनपद में ही
स्थित हैं| अंग्रेजो ने गोरखों की सिरमोर
बटालियन की मदद से इस विद्रोह को कुचल दिया था| कुछ इतिहासकार इस विद्रोह को 1857 के विद्रोह का पूर्वाभ्यास भी कहते
हैं| उत्तराखण्ड सरकार ने भी इस विद्रोह
के ऐतिहासिक महत्व को समझते हुए हरिद्वार जनपद के कुंजा गाँव में कलुआ गूजर और
राजा बिजय सिंह का भव्य स्मारक बनवाया हैं|1857
के विद्रोह में, इस प्रकार क्षेत्रीय गूजर भूमिपतियों
ने उमराव सिंह गूजर की अगुआई में पुनः अपनी राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने का प्रयास
किया| सहारनपुर में बूढा खेडी के फतुआ
गूजर ने अपने को राजा घोषित किया था|
10 मई 1857 को मेरठ में देशी सैनिक
और धन सिंह कोतवाल सहित मेरठ की पुलिस ने अंग्रेजो को खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा
दिया था| उसके बाद विद्रोह की लहर देशी
सैनिको और आम जनता में फैलती चली गई| 1857
के विद्रोह में, हरिद्वार क्षेत्र में मानिकपुर गाँव, ईस्ट इंडिया कंपनी के विरुद्ध गूजर विद्रोह का
केंद्र बना गया और उमराव सिंह ने उसका नेतृत्त्व किया| उन्होंने स्थानीय गूजर किसानों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट किया
ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने का आव्हान किया। उमराव सिंह गूजर ने क्षेत्र को
स्वतंत्र करा कर स्वयं को राजा घोषित कर दिया, उन्होंने अपने राज्य को स्थिर करने के लिए राज आज्ञाए जारी करनी
आरम्भ कर दी| आजादी के इस संघर्ष में हरिद्वार
क्षेत्र में क्षेत्र और देश को आज़ाद करने की भावना से “मारो फिरंगी को” नारा सभी
तरफ गूँज रहा था| हर तरफ यही उद्घोष था कि “अंग्रेजो
को मालगुजारी मत दो, थाने- तहसील को आग के हवाले कर दो|” “एकजुट होकर अपना राज़ वापिस ले आओ।“ इस बदलते
माहौल का व्यापक असर क्षेत्र पर होने लगा| राजा
उमराव सिंह का राज्य स्थिर होना लगा और क्षेत्र से उन्हें मालगुजारी-लगान मिलने
लगा| इस घटनाक्रम की जानकारी मिलने पर अंग्रेज
अधिकारी चकित रह गए| उमराव सिंह ने युद्ध की रणनीति अपनाई और 22 मई को मंगलौर पर
हमला कर दिया उन्होंने सार्वजनिक रूप से ब्रिटिश अधिकारियों को चुनौती देना शुरू
किया। एरिक स्ट्रोक्स के अनुसार “gathering of 200 Gujars intent on
attacking Manglaur (south of Rurki) on 22 (June) May ,
and the setting up of Umrao Singh as raja at Manikpur (modern Adampur Manakpur,
seven miles west of Rurki), where he became ‘the leader of all the disaffected
Goojurs in the Pergunnah.” उन्होंने सहारनपुर के आसपास के
क्षेत्रों में ब्रिटिश सेना के आपूर्ति मार्गों को बाधित किया और ब्रिटिश सरकार के
बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुँचाया।
ब्रिटिश सेना ने विद्रोहियों के
खिलाफ अपनी कार्रवाई तेज की, उमराव
सिंह को पकड़ने अथवा मारने के प्रयास बढ़ गए। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए
सहारनपुर का जिला मजिस्ट्रेट स्पेंकी सेना लेकर मंगलोर पहुँच गया| जॉइंट मजिस्ट्रेट राबर्टसन भी अपनी सेना लेकर
उससे मंगलौर में आ मिला। 30 मई 1857 को जिले भर की समस्त अंग्रेजी सेना ने मंगलोर
को आधार बनाकर मानिकपुर पर हमला कर दिया| उमराव सिंह स्थानीय गुप्तचर व्यवस्था काफी अच्छी थी| सभवतः उसे अंग्रेजो के आक्रमण की पूर्व में
ही सूचना मिल गई थी| विद्रोहियों के संख्याबल और संसाधनों के कम होने के कारण, ब्रिटिश शासन ने मानिकपुर में विद्रोह को कुचल
दिया। किन्तु अंग्रेज उमराव सिंह को गिरफ्तार नहीं कर सके| परन्तु उनके कई साथी विद्रोहियों को पकड़ लिया गया और उन्हें कठोर दंड
दिया गया। अंग्रेजो ने विद्रोह में शामिल होने वालेसभी आस-पास के गांवों को
सामूहिक सजा दी। अंग्रेजो ने मानिकपुर और आसपास के कई गांवों को आग में जला कर ख़ाक
कर दिया गया| विद्रोही नेताओं को फांसी दी गई।
1981 में प्रकाशित सहारनपुर डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर के पृष्ठ संख्या 64 पर इस
ऐतिहासिक घटना का विवरण इस प्रकार दिया गया हैं “ On the 30th of May, Spankie, joined by
Robertson and his force, went to Manglaur in order. to make a raid on Manakpur,
then held by one Umrao Singh; who had set himself up as raja and was levying
contributions from the villagers. The village was taken and burned, but an
attempt to capture Umrao Singh failed as he and his -followers succeeded in
effecting their escape.
अंग्रेजो ने राजा उमराव सिंह को
गिरफ्तार करने की हर संभव कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो पाए। जब उन्हें किसी भी
प्रकार कामयाबी नहीं मिली तब अंग्रेजों ने एक क्षेत्रीय जमींदार, जो राजा
उमराव सिंह के रिश्तेदार थे, उनकी
मदद से उन्हें सहारनपुर के निकट सीडकी गाँव से गिरफ्तार कर लिया और फांसी लगा दी
गई|
उमराव सिंह का नाम इतिहास में उतना
प्रसिद्ध नहीं है जितना अन्य प्रमुख विद्रोही नेताओं का, लेकिन उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने आसपास के इलाकों
में ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक मजबूत प्रतिरोध खड़ा किया, और उनकी भूमिका को याद किया जाना चाहिए। उमराव सिंह का नाम स्थानीय
प्रतिरोध का प्रतीक बन गया था| आगामी
पीढियां के लिए वो एक प्रेरणा का स्रोत बन गए| उनके संघर्ष ने यह सिद्ध किया कि ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हर स्तर
पर संघर्ष किया जा सकता है, चाहे
वह स्थानीय स्तर पर ही क्यों न हो। उनका विद्रोह न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ था,
बल्कि यह उस समय की भारतीय जनता की आज़ादी की
आकांक्षाओं का प्रतीक था। हालांकि उनका संघर्ष ब्रिटिश सेना द्वारा दबा दिया गया,
लेकिन उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा,
क्योंकि उन्होंने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की
भावना को जीवित रखा।
सन्दर्भ –
1. H. G.
Watson, Dehradun: A Gazetteer, Allahabad, 1911, p 189
2. H. R.
Nevill, Saharanpur: A Gazetteer, Allahabad, 1909
3. Dangli
Prasad Varun, Uttar Pradesh District Gazetteer: Saharanpur, Lucknow, 1981
4. सुशील भाटी, 1857 की जनक्रांति के जनक धन सिंह कोतवाल, दी
जर्नल ऑफ़ मेरठ यूनिवर्सिटी हिस्ट्री एलुमनाई, खण्ड XII, 2008, पृष्ठ 62-66
5. सुशील भाटी, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत राजा विजय सिंह- कल्याण सिंह, प्रकाशक- अशोक चौधरी, मेरठ, 2002
6. Eric Stroke, Peasant
Armed, Oxford, 1986, p 205
7. Ranajit Guha, Elementary Aspects of
Peasant Insurgency in Colonial India, 206, 318



